लो जी पाकिस्तान में तो इमरान खान अभी से पटाखे खरीदने लगे हैं. भारत में चुनावी चर्चा है कि 'महामिलावटी' लोग महासंग्राम जीते तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे और सरहद पार तो बयार ऐसी बह चली है कि दरिया का उफान भी उछल उछल कर पलटी खाने लगा है. सीमा पार से संदेशे आ रहे हैं कि पाकिस्तान में जश्न का आलम तो तब होगा जब मोदी सरकार सत्ता में वापसी करेगी और पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे.
ये क्या इमरान खान ने तो खुलेआम कह दिया कि मोदी सरकार के सत्ता में वापस लौटने पर ही भारत-पाक रिश्तों के 'अच्छे दिन' आ सकते हैं. आखिर इमरान खान का ये बयान क्या इशारा करता है? क्या ये इमरान खान के किसी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
इमरान क्या वाकई मोदी के मुरीद हो गये हैं
लगता है पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को वे लोग कतई नहीं पसंद हैं जो बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'पाकिस्तान में हीरो बनने' की कोशिश कर रहे हैं. क्या इसलिए कि ऐसे लोगों के चलते इमरान खान को टीवी पर मिलने वाला एयरटाइम घट गया है? या कुछ और बात भी हो सकती है?
अभी इमरान खान ने 'नमो अगेन' वाले अंग वस्त्रम् धारण तो नहीं किया है लेकिन माला फेरते वक्त मन में लग रहा है एक ही मंत्र का जप करने लगे हैं - 'फिर एक बार मोदी सरकार', 'फिर एक बार मोदी सरकार', 'फिर एक बार मोदी सरकार'...
ऐसा भी नहीं है कि विदेशी पत्रकारों के सामने इमरान खान ने प्रधानमंत्री की कोई आलोचना नहीं की है. चीन से भी दोस्ती तो निभानी ही है. भारत के खिलाफ चीन के पास भी ले देकर दुनिया में इमरान खान ही बचे थे. मसूद अजहर को लेकर वैसे भी चीन अकेले कब तक जूझता रहेगा. चीन को सस्ती चीजें तो पसंद हैं, लेकिन टिकाऊ और मजबूत के चक्कर में वो अपना बिजनेस क्यों खराब करे. मगर, अफसोस इमरान खान भी प्रधानमंत्री मोदी के मुरीद हो चुके हैं - वो भी ऐसे वैसे नहीं क्योंकि चाहते हैं कि भारत में फिर से नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनें.
चौतरफा दबाव ने इमरान को हिला दिया है
पुलवामा हमले की खबर तो वक्त पर ही...
लो जी पाकिस्तान में तो इमरान खान अभी से पटाखे खरीदने लगे हैं. भारत में चुनावी चर्चा है कि 'महामिलावटी' लोग महासंग्राम जीते तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे और सरहद पार तो बयार ऐसी बह चली है कि दरिया का उफान भी उछल उछल कर पलटी खाने लगा है. सीमा पार से संदेशे आ रहे हैं कि पाकिस्तान में जश्न का आलम तो तब होगा जब मोदी सरकार सत्ता में वापसी करेगी और पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे.
ये क्या इमरान खान ने तो खुलेआम कह दिया कि मोदी सरकार के सत्ता में वापस लौटने पर ही भारत-पाक रिश्तों के 'अच्छे दिन' आ सकते हैं. आखिर इमरान खान का ये बयान क्या इशारा करता है? क्या ये इमरान खान के किसी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
इमरान क्या वाकई मोदी के मुरीद हो गये हैं
लगता है पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को वे लोग कतई नहीं पसंद हैं जो बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'पाकिस्तान में हीरो बनने' की कोशिश कर रहे हैं. क्या इसलिए कि ऐसे लोगों के चलते इमरान खान को टीवी पर मिलने वाला एयरटाइम घट गया है? या कुछ और बात भी हो सकती है?
अभी इमरान खान ने 'नमो अगेन' वाले अंग वस्त्रम् धारण तो नहीं किया है लेकिन माला फेरते वक्त मन में लग रहा है एक ही मंत्र का जप करने लगे हैं - 'फिर एक बार मोदी सरकार', 'फिर एक बार मोदी सरकार', 'फिर एक बार मोदी सरकार'...
ऐसा भी नहीं है कि विदेशी पत्रकारों के सामने इमरान खान ने प्रधानमंत्री की कोई आलोचना नहीं की है. चीन से भी दोस्ती तो निभानी ही है. भारत के खिलाफ चीन के पास भी ले देकर दुनिया में इमरान खान ही बचे थे. मसूद अजहर को लेकर वैसे भी चीन अकेले कब तक जूझता रहेगा. चीन को सस्ती चीजें तो पसंद हैं, लेकिन टिकाऊ और मजबूत के चक्कर में वो अपना बिजनेस क्यों खराब करे. मगर, अफसोस इमरान खान भी प्रधानमंत्री मोदी के मुरीद हो चुके हैं - वो भी ऐसे वैसे नहीं क्योंकि चाहते हैं कि भारत में फिर से नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनें.
चौतरफा दबाव ने इमरान को हिला दिया है
पुलवामा हमले की खबर तो वक्त पर ही या पहले भी हो चुकी होगी, लेकिन बालाकोट एयरस्ट्राइक की जानकारी इमरान खान को अगली सुबह नींद खुलने पर ही मिल सकी. संसद में खड़े होकर इमरान खान ने साथियों और कुर्सी पर बिठाने वाले अवाम से अपना पक्ष रखा - और खुद को बतौर बड़े दिलवाला पेश करते हुए अमन की जोरदार पैरवी की. विंग कमांडर अभिनंदन को भारत भेजने का खुलासा भी इमरान खान ने उसी वक्त किया था.
तमाम पेशकश और बयानात के बावजूद इमरान खान न अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को साथ के लिए साध सके न अपने राजनीतिक विरोधियों को. बिजनेस इंटरेस्ट नहीं होता तो चीन भी किसी नये कॉरिडोर की तैयारी में कबका लग चुका होता. लगता है इमरान खान को वस्तुस्थिति की गंभीरता गहरायी से समझ आने लगी है.
बाहर तो बाहर घर में भी इमरान खान के खिलाफ मुहिम शुरू हो चुकी है. ये वही इमरान खान हैं जो चुनावों में नवाज शरीफ और नरेंद्र मोदी की दोस्ती का मजाक उड़ाया करते थे. पाकिस्तान की जमीयत-ए-इस्लाम पार्टी के चीफ मौलाना फजलुर्रहमान कहने लगे हैं कि इमरान खान को अपनी उल्टी गिनती शुरू कर देनी चाहिए. पूर्व पाक PM नवाज शरीफ से मुलाकात के बाद फजलुर्रहमान ने कहा कि इंतकाम की सियासत कर रहे इमरान खान के पास असली ताकत नहीं है, बल्कि, - उनके पीछे की ताकतें खेल कर रही हैं. हाल की ही बात है पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के संस्थापक जुल्फिकार अली भुट्टो की बरसी पर बिलावल भुट्टो जरदारी ने तो यहां तक कह डाला कि इमरान खान सरकार को धक्के मारकर बाहर कर देंगे.
पाकिस्तान पर FATF की काली सूची में डाला जाना तकरीबन तय दिखने लगा है. मसूद अजहर पर अमेरिका सहित कई मुल्कों और यूरोपीयन यूनियन का स्टैंड भारत के पक्ष में डटा हुआ है. भारतीय सैन्य संस्थानों पर पाकिस्तानी हमले में F-16 के इस्तेमाल पर इमरान खान के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है. एक मैगजीन ने जरूर एक रिपोर्ट छाप कर कुछ देर के लिए इमरान खान को मुगालते में डाला था, लेकिन पेंटागन ने तो रिपोर्ट ही खारिज कर दिया.
तो क्या यही सब कारण है कि इमरान खान खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी को उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे हैं? क्या इमरान खान जो बातें अभिनंदन की वापसी से नहीं सध सकीं, उन्हीं के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं?
बातों बातों में इमरान खान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये मैसेज भी देना चाहते हैं कि उनकी सरकार आतंकवाद के खिलाफ कड़े एक्शन ले रही है. इमरान खान का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है और उसमें फौज की भी मदद मिल रही है.
हैरान करने वाली बात ये है कि इमरान खान के ही एक मंत्री भारत की ओर से पाकिस्तान पर हमले की आशंका जता रहे थे - और अपने खुफिया सूत्रों के हवाले से तारीख भी बता दिये थे - फिर इमरान खान को भारत की अंदरूनी राजनीति पर बयानबाजी की क्यों सूझी?
ये इमरान की सियासी गुगली है!
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने बातें तो मुख्य तौर पर दो कही है, लेकिन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
1. 'ऐसा लगता है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करती है तो दोनों मुल्कों के बीच शांति वार्ता के लिए बेहतर माहौल बन सकता है.'
2. 'अगर भारत में अगली सरकार विपक्षी दल कांग्रेस की अगुवाई में बनती है तो वो 'राइट विंग' वाली राजनीतिक पार्टी बीजेपी से डर कर कश्मीर के मुद्दे को पाकिस्तान के साथ बातचीत के जरिये हल करने से पीछे हट सकती है.
भारत में इमरान खान के दो ही जबरदस्त फैन हैं - एक नवजोत सिंह सिद्धू और दूसरी, महबूबा मुफ्ती. सिद्धू तो खामोश रहे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने तो इमरान खान का बयान आते ही फटाफट ट्विटर पर मन की बात भी कह डाली. जैसा फारूक अब्दुल्ला को पुलवामा हमला लगता है, वैसा ही महबूबा मुफ्ती को इमरान खान का बयान लग रहा है.
ऊपरी तौर पर तो यही लग रहा है कि इमरान खान का बयान भारत में सत्ताधारी बीजेपी के पक्ष में है - और ठीक उसी वक्त महागठबंधन के लिए प्रयासरत राजनीतिक विरोधी गठबंधन के खिलाफ. मगर - क्या वाकई ऐसा ही है? अगर ऐसा है तो मोदी के विरोधियों को हमले का मौका क्यों मिल गया है?
सवाल ये है कि इमरान खान को ऐसा क्यों लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता हासिल कर ली तो कश्मीर समस्या और उलझेगी? क्या इसमें कांग्रेस या बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्रों का भी कोई रोल है?
चुनावी घोषणा पत्र और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की बातों से अब साफ हो चुका है कि एनडीए की सत्ता में वापसी की स्थिति में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और अनुच्छेद 35A खत्म कर दिये जाएंगे. ऐसा होने पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिले विशेष अधिकार खत्म हो जाएंगे और पूरा भारत एक जैसा हो जाएगा. जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय राजनीतिक दल बीजेपी के इस वादा का कड़ा विरोध कर रहे हैं - और कश्मीर के अलग तक हो जाने की धमकी देने लगे हैं.
इमरान खान को बीजेपी के ये वादे चुनावी स्टंट जैसे लगते हैं. कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में AFSPA में फेरबदल और देशद्रोह कानून खत्म करने का वादा किया है. बीजेपी कांग्रेस के वादे को ऐसे प्रचारित कर रही है कि इससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा. क्या ऐसा नहीं लगता कि इमरान खान ने मोदी सरकार के पक्ष में बयान देकर कांग्रेस का बचाव किया है - क्योंकि अब तो मोदी के विरोधी सारे नेता कहने ही लगे हैं कि बीजेपी सत्ता में लौटी तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे.
दरअसल, इमरान खान ये बयान देकर F-16 के इस्तेमाल पर अपना मुंह छिपाने का प्रयास किया है और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का ढिंढोरा पीट कर अपनी पीठ थपथपाने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक विरोधियों को बोलने का मौका मुहैया कराया है.
अव्वल तो लग रहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक और मोदी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से तंग आकर उनके विरोधियों की जीत की दुआ मांग रहे होंगे - लेकिन पाकिस्तान प्रधानमंत्री ने तो सियासी गुगली फेंकी है जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय गुमराह रहे और प्रधानमंत्री मोदी के विरोधियों को हमले का मौका मिल जाये.
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