राजनीति वादों और दावों का एक अनूठा मेल है. चुनाव भारत में हो या पाकिस्तान में, जीतने के लिए हथकंडे एक जैसे ही इस्तेमाल किये जाते हैं. पाकिस्तान में इस महीने के आखिर में चुनाव होने हैं. और ये चुनाव तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान के लिए करो या मरो की तरह हैं.
हाल के दिनों में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से गिरी है. ऐसी ख़बरें आई थीं कि पाकिस्तान के पास मात्र 3 महीने के आयात भर की विदेशी मुद्रा बची है. आखिर पाकिस्तान चीन की शरण में गया और 6000 करोड़ के चीनी प्रसाद से अपनी अर्थव्यवस्था की इमारत को गिरने से बचाया. अब इस गुरबत को इमरान खान ने मुद्दा बना दिया है. उन्होंने 100 दिनों के भीतर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को उबारने की बात कही है. वे जिस तरह पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था और देश के प्रशासनिक हालत को 100 दिनों के भीतर दुरुस्त करने का दावा करते हैं, अनायास ही हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वादों की याद आ जाती है.
इमरान खान 100 दिन में क्या-क्या देंगे ?
- पाकिस्तान की स्थिरता और अर्थव्यवस्था की बहाली.
- 1 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे.
- कृषि का विकास और जल सरंक्षण.
- सामाजिक सेवाओं में क्रांति और राष्ट्रीय सुरक्षा को अहमियत.
- पर्यटन को बढ़ावा देंगे.
- इस्लाम की बुनियाद पर लोकतंत्र का निर्माण.
इमरान खान ने 2013 चुनाव में भी 90 दिन का ब्लूप्रिंट सामने रखा था. लेकिन इस्लामाबाद पहुँचने से बहुत दूर रह गए थे. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि पाकिस्तान की लुढ़कती अर्थव्यवस्था में 1 करोड़ रोजगार देने का वादा कैसे पूरा करेंगे. तालिबान, अलकायदा और लश्कर -ए - तैयबा के देश में पर्यटन और तीर्थाटन करने जायेगा कौन? खैर, चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन वादे करने का ट्रेंड तो विश्व राजनीति की अचूक धरोहर है. क्या इमरान खान इन चुनावी शिगूफों के दम पर इस्लामाबाद पहुँच पाएंगे, तहरीके- ए -इंसाफ अपने चुनावी वादों के साथ इंसाफ कर पायेगी?
2009 में मनमोहन का वादा..
युपीए के दौरान जब 'करप्शन सीरीज' ने मनमोहन सरकार की साख पर बट्टा लगाया तो 2009 के चुनाव को जीतने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री ने 100 दिनों के भीतर आसमान छूती महंगाई को ही खत्म करने का एलान किया था. इन वादों से उन्होंने सत्ता में तो वापसी कर ली लेकिन ये किसी से छिपा नहीं है कि कैसे महंगाई ने इनके दूसरे कार्यकाल में अर्थव्यवस्था कि चूलें हिलाकर रख दी. 2014 में मोदी का 100 दिन का वादा 2014 के चुनाव में अपने धुंआधार चुनावी प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा वादा किया जो आजतक उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है. 100 दिनों के भीतर विदेशों से कालाधन लाकर उसे देशवासियों में बांटने का उनका दावा उनकी चुनावी जीत को सुनिश्चित करने में एक बड़ा फैक्टर बना. 15 लाख को जुमला बताकर ख़ारिज कर देना पहले ही भाजपा की फ़जीहत करा चुका है और आने वाले लोकसभा चुनाव में इनके विरोधियों का सबसे बड़ा हथियार होगा जिसका जवाब नरेंद्र मोदी जैसे मुखर वक्ता के लिए भी आसान नहीं होगा.
पाकिस्तान के चुनाव में अमूमन वही मुद्दें छाये हुए हैं जिनका शोर हमारे देश की गलियों में हर चुनावी मौसम में होता है. भ्रष्टाचार के मामलों में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसके कारण देश के सबसे ताक़तवर राजनीतिक सख्श को लंदन में अपनी पत्नी का इलाज़ कराने के दौरान ही खुद के इलाज़ की भी जरूरत महसूस होने लगी. अब नवाज़ शरीफ और उनकी पार्टी भावनाओं के समंदर में तैरकर अपनी चुनावी नैया को पार लगाना चाहती है.
इमरान खान ने मौका देख के चौका मारा है. चुनावी दिनों में जनता की सबसे कमजोर नस को पकड़ना ही एक चतुर राजनेता की निशानी है. 100 दिनों में सब कुछ मुहैया करवा देने का वादा ही उनके राजनीतिक वनवास को ख़त्म कर सकता है. निकट भविष्य में जवाब देना मुश्किल होगा लेकिन राजनेता 'अपने वर्तमान की चिंता करो' के आध्यात्मिक चिंतन के साथ ही आगे बढ़ना पसंद करते हैं.
(ये स्टोरी आईचौक के साथ इंटर्नशिप कर रहे विकास कुमार ने बनाई है.)
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