पांच साल बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सयुंक्त राष्ट्र पहुंचे हैं. इतने दिनों में दोनों मुल्कों में कई चीजें बदल भी गयी हैं और कुछ चीजें जस की तस हैं.
बदलने की बात करें तो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव जीत कर सत्ता हासिल कर चुके हैं - और पाकिस्तान में नवाज शरीफ चुनाव हार कर जेल जा चुके हैं और उनकी जगह इमरान खान ने ले ली है. हालांकि, पाकिस्तान में प्रधानमंत्री का सिर्फ नाम ही बदला है - कश्मीर पर रवैये में कोई तब्दीली नहीं आयी है.
अपने अमेरिकी दौरे में पाक PM अब तक जो संकेत दे चुके हैं - लगता तो यही है कि वो अपने सारे कूटनीतिक हथियार डाल चुके हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में इमरान खान से रहा नहीं गया और ये बात सीधे सीधे कबूल कर ली कि अब कुछ नहीं होने वाला.
इमरान खान की बातों से तो यही लगता है कि वो बेहद निराश हैं और पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से आगे कैसे डील करेंगे उनके समझ में नहीं आ रहा है. अब तो लगता है इमरान खान का भी वही हाल होने वाला है जो सलूक फिलहाल नवाज शरीफ के साथ होता आ रहा है.
इमरान तो नवाज से भी बेकार निकले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले 27 सितंबर 2014 को NGA को संबोधित किया था और कई मसले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने लाये थे. सबसे यूनीक प्रस्ताव योग दिवस को लेकर था जिसे संयुक्त राष्ट्र बहुद ही कम वक्त में मंजूर कर लिया था - और उसके बाद से तो 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाने लगी है.
दूसरी तरह नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र के ग्रीन बैकग्राउंड वाले पोडियम से अपना पुराना राग ही परफॉर्म किया जो उनका हमेशा से फेवरेट रहा है. सितंबर, 2014 में जब नवाज शरीफ को संयुक्त राष्ट्र में भाषण देना था, पहले उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ से फोन पर बात की थी, मालूम नहीं इमरान खान का क्या इरादा है. या फिर अब तक इतनी बार बात हो चुकी है कि भाषण से पहले ऐसा करने की जरूरत ही नहीं रह गयी हो - ये भी हो सकता है कमर जावेद बाजवा ने खुद ही...
पांच साल बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सयुंक्त राष्ट्र पहुंचे हैं. इतने दिनों में दोनों मुल्कों में कई चीजें बदल भी गयी हैं और कुछ चीजें जस की तस हैं.
बदलने की बात करें तो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव जीत कर सत्ता हासिल कर चुके हैं - और पाकिस्तान में नवाज शरीफ चुनाव हार कर जेल जा चुके हैं और उनकी जगह इमरान खान ने ले ली है. हालांकि, पाकिस्तान में प्रधानमंत्री का सिर्फ नाम ही बदला है - कश्मीर पर रवैये में कोई तब्दीली नहीं आयी है.
अपने अमेरिकी दौरे में पाक PM अब तक जो संकेत दे चुके हैं - लगता तो यही है कि वो अपने सारे कूटनीतिक हथियार डाल चुके हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में इमरान खान से रहा नहीं गया और ये बात सीधे सीधे कबूल कर ली कि अब कुछ नहीं होने वाला.
इमरान खान की बातों से तो यही लगता है कि वो बेहद निराश हैं और पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से आगे कैसे डील करेंगे उनके समझ में नहीं आ रहा है. अब तो लगता है इमरान खान का भी वही हाल होने वाला है जो सलूक फिलहाल नवाज शरीफ के साथ होता आ रहा है.
इमरान तो नवाज से भी बेकार निकले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले 27 सितंबर 2014 को NGA को संबोधित किया था और कई मसले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने लाये थे. सबसे यूनीक प्रस्ताव योग दिवस को लेकर था जिसे संयुक्त राष्ट्र बहुद ही कम वक्त में मंजूर कर लिया था - और उसके बाद से तो 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाने लगी है.
दूसरी तरह नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र के ग्रीन बैकग्राउंड वाले पोडियम से अपना पुराना राग ही परफॉर्म किया जो उनका हमेशा से फेवरेट रहा है. सितंबर, 2014 में जब नवाज शरीफ को संयुक्त राष्ट्र में भाषण देना था, पहले उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ से फोन पर बात की थी, मालूम नहीं इमरान खान का क्या इरादा है. या फिर अब तक इतनी बार बात हो चुकी है कि भाषण से पहले ऐसा करने की जरूरत ही नहीं रह गयी हो - ये भी हो सकता है कमर जावेद बाजवा ने खुद ही डिक्टेट कर भाषण टाइप कराया और उसकी कॉपी लेकर इमरान खान कई बार प्रैक्टिस भी कर चुके हों. क्रिकेटर रहे हैं और काफी अरसे और मशक्कत के बाद सियासत में मंजिल हासिल कर पाये हैं, इसलिए प्रैक्टिस की आदत कायम होगी ऐसा लगता है. नवाज शरीफ के संयुक्त राष्ट्र पहुंचने से पहले उड़ी अटैक हुआ था और इमरान खान के शासन में पुलवामा हमला - दोनों ही घटनाओं के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया है.
तब नवाज शरीफ ने कहा था कि भारत के साथ रिश्ते अच्छा करना उनकी वरीयता सूची में है और भारत जाने के पीछे भी मकसद यही रहा. दरअसल, नवाज शरीफ भी सार्क देशों के नेताओं के साथ भारत के बुलावे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण में आये थे. नवाज शरीफ का कहना रहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जम्मू-कश्मीर का मसला हल करवाने में मदद करनी चाहिए. शरीफ ने दोहराया कि कश्मीर के सभी पक्षों को बातचीत में शामिल करना चाहिये जिसमें हुर्रियत के लोग भी शुमार हों. बातचीत के पक्षधर इमरान खान खुद को भी बताते हैं लेकिन अब वो धारा 370 के हटने तक इसके लिए तैयार नहीं हैं. भारत ने भी संकेत दे दिया है कि ऐसा तो होने से रहा, लेकिन बातचीत भी अब सिर्फ PoK पर ही होगी.
न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकों से बातचीत में पाक प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘मुझे पता है कि संयुक्त राष्ट्र में मेरे जम्मू-कश्मीर पर भाषण से कुछ बड़ा असर नहीं होगा... खासकर आने वाले दिनों में... लेकिन वो चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर का मसला दुनिया सुने.’
इमरान खान तो नवाज शरीफ से भी गये गुजरे लगते हैं. पहले ही हार मान ली है. नवाज शरीफ तो कम से कम खड़े होकर भाषण देते भी थे - बाद में भले ही भारत के कूटनीतिक हमलों के चलते भाग खड़े होते रहे.
इमरान खान के पास माफी का भी आखिरी मौका है
जिस तरह इमरान खान दुनिया भर के नेताओं के सामने कभी लोन के लिए तो कभी हाफिज सईद के लिए तो कभी के नाम पर नाक रगड़ते फिर रहे हैं, एक बार भारत की ओर रूख करके कह देते - 'हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी. हम गलत रास्ते पर चले गये थे. लोगों ने बहका दिया था. अब माफ कर दो महाराज और बताओ मैं अपने परिवार के लिए क्या कर सकता हूं - समझो 47 का भूला और 65/71 में भटका अगर 2019 में घर लौटना चाहे तो क्या माफी भी नहीं मिलेगी?
1. जो मदद पाकिस्तान दूसरे मुल्कों से चाह रहा है, भारत उससे कहीं ज्यादा मददगार साबित हो सकता है. अगर पाकिस्तान को यकीन नहीं आ रहा हो तो पड़ोस में अफगानिस्तान की तरक्की देख सकता है - और भारत के लिए पाकिस्तान तो इस हिसाब से सबसे करीबी है.
2. चाहे पहले अमेरिका रहा हो या अभी चीन, हर कोई पाकिस्तान का सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता रहा है. अगर पाकिस्तान भारत से हाथ मिला ले तो बड़ी आसानी से उसकी ज्यादातर समस्याएं खत्म हो सकती हैं.
3. जो बात इमरान खान यूएन जाकर कर अपने भाषण से पहले समझने की कोशिश कर रहे हैं, अगर उसे मन में बिठा लें और कश्मीर पर पंगे लेना छोड़ दें तो पाकिस्तान की सारी समस्याएं ही सुलझ सकती है.
4. अगर एक बार इमरान खान भारत के खिलाफ जारी नफरत की जंग रोक दें और वास्तव में एक कदम के मुकाबले दो कदम बढ़ाने की कोशिश करें तो भारत जैसे अच्छे दिन पाकिस्तान में भी जल्दी ही आ सकते हैं - और ऐसा करके इमरान खान अवाम से किया अपना चुनावी वादा भी आसानी से पूरा कर सकते हैं.
अगर इमरान खान ने वक्त रहते अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने का उपाय नहीं खोजा तो उनका हाल नवाज शरीफ से भी बुरा होने वाला है. पाक फौज ने इमरान खान पर दांव इसीलिए लगाया ताकि वो भारत के खिलाफ उसके मंसूबों को अंजाम तक पहुंचा सकें - लेकिन अब इमरान खान भी हथियार डालते हुए लग रहे हैं.
अब सवाल है कि क्या फौज इमरान खान के साथ वही सलूक नहीं कर सकती है जैसा नवाज शरीफ के साथ हो रहा है?
जिस तरह नवाज शरीफ का तगड़ा विरोध इमरान खान करते रहे - उसी रोल में अब बिलावल भुट्टो भी उभरने लगे हैं. फिर तो वो दिन दूर नहीं जब फौज इमरान खान को जेल में डाल दे - और कमर बाजवा भी परवेज मुशर्रफ जैसा करतब दिखलाते हुए प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जो भी पद पंसद आये अपने नाम लिख लें और गद्दी पर बैठ जायें. बाद में चाहें तो चुनाव भी करा सकते हैं या खुद राष्ट्रपति रहते हुए - बिलावल भुट्टो को प्रधानमंत्री ही बना दें.
अच्छा तो ये होता कि इमरान खान ने कमर बाजवा को जैसे अभिनंदन वर्धमान को छोड़ने के लिए मना लिया था - एक बार 'सरेंडर' को लेकर भी बात करने की कोशिश करें. सरेंडर से आशय फौज के सामने हथियार डाल देने से नहीं है - बल्कि, कश्मीर मसले पर जिद छोड़ देने से है. अगर ऐसा हो पाया तो सिर्फ इमरान खान या कमर बाजवा के लिए ही नहीं पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में खुशहाली आ सकेगी - और इमरान खान भी खुशी खुशी कह सकेंगे - वाकई 'मोदी है तो मुमकिन है'!
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