तकरीबन 20 सालों तक अमेरिका और उसके सहयोगियों से युद्ध. फिर 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता हासिल करना. कहने वाले इसे तालिबान की बड़ी उपलब्धि कह सकते हैं. लेकिन हकीकत यही है कि अफगानिस्तान की हालत उस बंदर से कम नहीं है, जिसके हाथ में उस्तरा लगा है और वो मौके-बेमौके सबको घायल कर रहा है. कट्टरपंथ से लबरेज तालिबानी लड़ाकों की जैसी विचारधारा है, महिलाएं और लड़कियां हमेशा ही संगठन के निशाने पर रही हैं. लड़की या महिला मुखर होकर अपनी बात कहने वाली है तो उसका तालिबानी आतंकियों ने क्या हाल किया है? पूर्व में आए कई मामलों से हम अवगत हैं. अब चूंकि एक पूरा मुल्क तालिबान के हाथ में है और क्योंकि दुनिया के सामने अपने शासन को नजीर बनाना है. महिलाओं के प्रति तालिबान का एक लिबरल अप्रोच हमें दिखाई दे रहा है. लेकिन बात फिर वही है, इंसान अपनी आदत से जा सकता है, फितरत से नहीं. जैसी फितरत तालिबानियों की है ये पैट्रिआर्कि के पक्षधर तो हैं ही. सत्ता हासिल करने के बावजूद अपने कट्टरपंथ के हाथों मजबूर हैं. असल में महिलाओं को लेकर एक बार फिर तालिबान की तरफ से बड़ी बात कही गई है. वहीं तालिबानी सरकार ने लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति देने के अपने फैसले को अनिश्चितकाल के लिए पलट दिया है.
ध्यान रहे कि कुर्सी पर बैठते ही तलिबान अपने असली रंग में आया और उसने जिस चीज को सबसे पहले अपने निशाने पर लिया वो लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा ही थी. ऐसे में उसपर गम्भीर आरोप लगे थे और उन आरोपों से बचने के लिए उसने लड़कियों को स्कूल भेजने की बात की थी. चाहे अमेरिका हो या उसके सहयोगी इन्होने हमेशा ही ताबीनन की सोच को संकीर्ण बताया.
मुल्क का निजाम जब 2021 में तालीबान के पास आया उसने...
तकरीबन 20 सालों तक अमेरिका और उसके सहयोगियों से युद्ध. फिर 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता हासिल करना. कहने वाले इसे तालिबान की बड़ी उपलब्धि कह सकते हैं. लेकिन हकीकत यही है कि अफगानिस्तान की हालत उस बंदर से कम नहीं है, जिसके हाथ में उस्तरा लगा है और वो मौके-बेमौके सबको घायल कर रहा है. कट्टरपंथ से लबरेज तालिबानी लड़ाकों की जैसी विचारधारा है, महिलाएं और लड़कियां हमेशा ही संगठन के निशाने पर रही हैं. लड़की या महिला मुखर होकर अपनी बात कहने वाली है तो उसका तालिबानी आतंकियों ने क्या हाल किया है? पूर्व में आए कई मामलों से हम अवगत हैं. अब चूंकि एक पूरा मुल्क तालिबान के हाथ में है और क्योंकि दुनिया के सामने अपने शासन को नजीर बनाना है. महिलाओं के प्रति तालिबान का एक लिबरल अप्रोच हमें दिखाई दे रहा है. लेकिन बात फिर वही है, इंसान अपनी आदत से जा सकता है, फितरत से नहीं. जैसी फितरत तालिबानियों की है ये पैट्रिआर्कि के पक्षधर तो हैं ही. सत्ता हासिल करने के बावजूद अपने कट्टरपंथ के हाथों मजबूर हैं. असल में महिलाओं को लेकर एक बार फिर तालिबान की तरफ से बड़ी बात कही गई है. वहीं तालिबानी सरकार ने लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति देने के अपने फैसले को अनिश्चितकाल के लिए पलट दिया है.
ध्यान रहे कि कुर्सी पर बैठते ही तलिबान अपने असली रंग में आया और उसने जिस चीज को सबसे पहले अपने निशाने पर लिया वो लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा ही थी. ऐसे में उसपर गम्भीर आरोप लगे थे और उन आरोपों से बचने के लिए उसने लड़कियों को स्कूल भेजने की बात की थी. चाहे अमेरिका हो या उसके सहयोगी इन्होने हमेशा ही ताबीनन की सोच को संकीर्ण बताया.
मुल्क का निजाम जब 2021 में तालीबान के पास आया उसने अपने को महिलाओं का हिमायती दिखाने का प्रयास किया. मगर आज भी वो महिलाएं तालिबान को एक फूटी आंख नहीं भातीं, जो 'नॉटी' होती हैं. अफगानिस्तान सरकार के कार्यवाहक आंतरिक मंत्री और तालिबान के कद्दावर नेता सिराजुद्दीन हक्कानी ने माना है कि लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति दिए जाने का वादा अभी पूरा नहीं हुआ है.
हक्कानी ने कहा है कि लेकिन जल्द ही एक अच्छी खबर मिलेगी. वहीं उन्होंने उन महिलाओं को चेतावनी भी दी है जो शासन के विरोध में हैं. हक्कानी का मानना है कि ऐसी महिलाओं को घर पर रहना चाहिए. कहा गया कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता संभालते ही महिलाएं डर के चलते घर पर रहने को मजबूर हैं. इसपर अपना पक्ष रखते हुए हक्कानी ने कहा कि हम शरारती 'नॉटी' महिलाओं को घर पर रखते हैं.
अब सवाल होगा कि आखिर नॉटी महिलाओं की परिभाषा क्या है? तो बकौल हक्कानी नॉटी महिला से मतलब ऐसी महिलाओं से है, जो मौजूदा सरकार पर सवाल उठाती हैं. ऐसी महिलाओं को कुछ पक्षों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. बताते चलें कि अभी तक अफगानिस्तान में कक्षा 6 तक की लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति है.
वहीं जो लड़कियां जो कक्षा 6 तक पढ़ाई कर चुकी हैं और आगे पढ़ाई करना चाहती हैं उनकी 'शिक्षा' को लेकर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार अपनी सुचिता और सुविधा के लिहाज से रणनीतियां बना रही है. हक्कानी ने कहा है कि इस मामले के मद्देनजर जल्द ही अच्छी खबर सुनने को मिलेगी.
सत्ता संभालने के बाद से ही तालिबान ने पर्दे या ये कहें कि हिजाब पर सख्त रुख रखा है इसपर भी हक्कानी से सवाल हुआ. सवाल का जवाब उन्होंने अपने ही डिप्लोमेटिक अंदाज में दिया है. उन्होंने कहा है कि हम महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम उन्हें सलाह दे रहे हैं, हिजाब अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह एक इस्लामिक आदेश है, जिसे सभी को मानना चाहिए.
हक्कानी ने क्या कहा क्या नही कहा इसको लेकर ढेर सारी बातें और लंबा विमर्श हो सकता है लेकिन जो नजरिया उनका महिलाओं के प्रति है साफ़ पता चलता है कि तालिबान शासित अफगानिस्तान वो देश है जहां मूलभूत सुविधाओं और मानवाधिकार के लिए भी महिलाएं पुरुषों के भरोसे हैं. जो अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है.
भले ही आज एक नेता के रूप में हक्कानी शरीयत और अफगान रीति-रिवाजों और संस्कृति का हवाला दे रहे हों लेकिन अफगानिस्तान में लड़कियां और महिलाएं जानती हैं इस बात को कि विकास की इन बड़ी बड़ी बातों से तालिबान सिर्फ और सिर्फ दुनिया की नजरों में धूल झोंक रहा है.
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