गुजरात चुनाव के नतीजे आने से पहले यह कहना मुश्किल लग रहा था कि जीत का ताज भाजपा के सिर पर होगा या फिर कांग्रेस जीत जाएगी. गुजरात की राजनीति में गैंगस्टर्स का बहुत बड़ा रोल रहा है. जब भी गुजरात चुनाव होते हैं तो भाजपा कांग्रेस के उस दौर की याद गुजरात की जनता को जरूर दिलाती है, जब 'लतीफ राज' हुआ करता था. इस बार भी गुजरात की जनता को कांग्रेस की सरकार के समय फैले डर की याद दिलाई गई. मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने राजकोट में लोगों को संबोधित करते हुए 'लतीफ राज' की बात की थी. 'तलीफ राज' का ये डर भी कांग्रेस को दोबारा सत्ता में नहीं आने दे रहा है. जो लोग 'लतीफ राज' का दंश झेल चुके हैं, वह तो उस दौर को याद भी नहीं करना चाहते. वहीं भाजपा हर चुनाव में वह दौर याद दिलाकर लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति गुस्से को हवा दे देती है.
'मौत के सौदागरों को चैन से जीने नहीं दूंगा'
विजय रूपानी ने 20 नवंबर को एक रैली में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि 1995 के पहले कांग्रेस ने 45 साल तक राज किया. तब आए दिन धार्मिक हिंसा हुआ करती थी, साल भर में 200 दिनों तक कर्फ्यू लगे रहते थे, लेकिन अब दंगे रुक गए हैं और गुजरात में शांति है. उन्होंने कहा कि पहले पोरबंदर को संतोषबेन, कच्छ को इभला सेठ, अहमदाबाद को अब्दुल लतीफ और सूरत को मामा सूरती के इलाकों के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब वह सब खत्म हो चुका है. रूपानी ने जिन बातों का जिक्र किया है, उसका जिक्र पीएम मोदी भी अपने कई भाषणों में कर चुके हैं. नरेंद्र मोदी ने कहा था- 'मैं गुजरात की धरती पर मौत के सौदागरों को चैन से जीने नहीं दूंगा.' अब गुजरात के हर चुनाव में...
गुजरात चुनाव के नतीजे आने से पहले यह कहना मुश्किल लग रहा था कि जीत का ताज भाजपा के सिर पर होगा या फिर कांग्रेस जीत जाएगी. गुजरात की राजनीति में गैंगस्टर्स का बहुत बड़ा रोल रहा है. जब भी गुजरात चुनाव होते हैं तो भाजपा कांग्रेस के उस दौर की याद गुजरात की जनता को जरूर दिलाती है, जब 'लतीफ राज' हुआ करता था. इस बार भी गुजरात की जनता को कांग्रेस की सरकार के समय फैले डर की याद दिलाई गई. मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने राजकोट में लोगों को संबोधित करते हुए 'लतीफ राज' की बात की थी. 'तलीफ राज' का ये डर भी कांग्रेस को दोबारा सत्ता में नहीं आने दे रहा है. जो लोग 'लतीफ राज' का दंश झेल चुके हैं, वह तो उस दौर को याद भी नहीं करना चाहते. वहीं भाजपा हर चुनाव में वह दौर याद दिलाकर लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति गुस्से को हवा दे देती है.
'मौत के सौदागरों को चैन से जीने नहीं दूंगा'
विजय रूपानी ने 20 नवंबर को एक रैली में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि 1995 के पहले कांग्रेस ने 45 साल तक राज किया. तब आए दिन धार्मिक हिंसा हुआ करती थी, साल भर में 200 दिनों तक कर्फ्यू लगे रहते थे, लेकिन अब दंगे रुक गए हैं और गुजरात में शांति है. उन्होंने कहा कि पहले पोरबंदर को संतोषबेन, कच्छ को इभला सेठ, अहमदाबाद को अब्दुल लतीफ और सूरत को मामा सूरती के इलाकों के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब वह सब खत्म हो चुका है. रूपानी ने जिन बातों का जिक्र किया है, उसका जिक्र पीएम मोदी भी अपने कई भाषणों में कर चुके हैं. नरेंद्र मोदी ने कहा था- 'मैं गुजरात की धरती पर मौत के सौदागरों को चैन से जीने नहीं दूंगा.' अब गुजरात के हर चुनाव में अब्दुल लतीफ के डर को भाजपा एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है.
कौन था अब्दुल लतीफ?
अब्दुल लतीफ गुजरात में अंडरवर्ल्ड का एक चेहरा था, जो अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का सहयोगी था. अहमदाबाद उसका गढ़ था और वह उसकी पहुंच राजनीति के भी बड़े-बड़े लोगों तक थी. उस पर करीब 100 मामलों में केस दर्ज थे, जिनमें हत्या, सुपारी, फिरौती, हिंसा, अपहरण, तस्करी जैसे मामले भी शामिल हैं. 1993 के मुंबई धमाके में आरडीएक्स की सप्लाई करने का आरोप भी लतीफ पर ही लगा था. लतीफ के इन्हीं खतरनाक कारनामों की वजह से गुजरात के लोगों में अब्दुल लतीफ का नाम एक डर की तरह घर कर के बैठ गया है. कुछ समय पहले आई शाहरुख खान की फिल्म रईस की कहानी अब्दुल लतीफ की जिंदगी पर ही आधारित है.
लतीफ के नाम से ही याद आ जाते हैं हिंदू-मुस्लिम दंगे
लतीफ वह शख्स था, जिस पर गुजरात में दंगे करवाने का भी आरोप है. हिंदू और मुस्लिम लोगों के बीच एक लकीर बना देने में लतीफ ने कोई कसर नहीं छोड़ी. 2002 के दंगों की आग को भी हिंदू-मुस्लिम दुश्मनी से ही हवा मिली. इसका अंजाम यह हुआ कि गुजरात में मुस्लिम हाशिए पर आ गए. गुजरात चुनाव में इस बार कुल चार मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं. ये सभी कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लड़े थे. अगर इससे पहले की स्थिति को देखा जाए तो पिछली बार भी 2 ही मुस्लिम उम्मीदवार विधानसभा पहुंच सके थे. इसके अलावा 2007 में पांच, 2002 में तीन, 1998 में पांच, 1995 में एक और 1990 में दो मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीते थे.
भाजपा ने कोई मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. वहीं कांग्रेस ने कुल 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया और उन्हें खुद से जोड़ने में काफी हद तक कामयाब भी रही. गुजरात में 9.67 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जिनके बारे में भाजपा ने अपने इस बार के चुनावी अभियान में कोई बात भी नहीं की.
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