जनसमर्थन और लोकप्रियता की ताकत कुछ नेताओं को अजेय बना देती हैं. राजनाथ सिंह भी ऐसे ही ऐसे ही चंद नेताओं में हैं. भाजपा के कद्दावर नेता,गृहमंत्री, सांसद और लखनऊ लोकसभा सीट के प्रत्याशी राजनाथ सिंह अपनों के भी निशाने पर हैं इसलिए पराये इन्हें शिकस्त देने की हिम्मत कर रहे हैं. योगी सरकार वाले यूपी में क्षत्रिय बनाम क्षत्रिय की खामोश कलह है. क्षत्रिय और ब्राह्मण के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा है. पिछड़े और सवर्णों के बीच खटपट ने ही यहां अवसरवादी जातिगत राजनीति को मौका दिया है. फिर भी लखनऊ लोकसभा सीट पर राजनाथ सिंह ऐतिहासिक जीत हासिल करने में सक्षम हैं.
भाजपा विरोधी कहे जाने वाले मुसलमानों के शिया समाज के दिलों में राजनाथ राज करते हैं. शिया धार्मिक नेता खुलकर चुनावों में उनका समर्थन करते रहे हैं. किन्तु मुख्यमंत्री योगी ने दूसरी बार ऐन चुनाव के मौके पर हजरत अली संबंधित नकारात्मक बयान देकर लखनऊ की करीब पांच लाख बीस हजार की शिया आबादी को आहत कर राजनाथ के शिया जनसमर्थन को कमजोर कर दिया.
इस तरह की तमाम कमजोरियों का फायदा उठाकर ही विपक्षी ताकतें लखनऊ लोकसभा सीट पर खामोशी और आपसी सामंजस्य की ताकत का एक जाल बिछा रही है. एक सधी हुई रणनीति से सपा-बसपा गठबंधन ने यहां अपने प्रत्याशी को भाजपा के लिए वोटकटवा बनाकर कांगेस के उम्मीदवार को जिताने का प्लान तैयार किया है. लखनऊ में भाजपा का सबसे विशाल और पारंपरिक कायस्थों का वोटबैंक हैं. अभिनेता और कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा सपा उम्मीदवार कम कायस्थ प्रत्याशी की सूरत में ज्यादा नजर आयेंगी. और जातिगत खेल में भाजपा के पारंपरिक अनुमानित चार लाख वोटों को कतरने की कोशिश करेंगी.
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जनसमर्थन और लोकप्रियता की ताकत कुछ नेताओं को अजेय बना देती हैं. राजनाथ सिंह भी ऐसे ही ऐसे ही चंद नेताओं में हैं. भाजपा के कद्दावर नेता,गृहमंत्री, सांसद और लखनऊ लोकसभा सीट के प्रत्याशी राजनाथ सिंह अपनों के भी निशाने पर हैं इसलिए पराये इन्हें शिकस्त देने की हिम्मत कर रहे हैं. योगी सरकार वाले यूपी में क्षत्रिय बनाम क्षत्रिय की खामोश कलह है. क्षत्रिय और ब्राह्मण के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा है. पिछड़े और सवर्णों के बीच खटपट ने ही यहां अवसरवादी जातिगत राजनीति को मौका दिया है. फिर भी लखनऊ लोकसभा सीट पर राजनाथ सिंह ऐतिहासिक जीत हासिल करने में सक्षम हैं.
भाजपा विरोधी कहे जाने वाले मुसलमानों के शिया समाज के दिलों में राजनाथ राज करते हैं. शिया धार्मिक नेता खुलकर चुनावों में उनका समर्थन करते रहे हैं. किन्तु मुख्यमंत्री योगी ने दूसरी बार ऐन चुनाव के मौके पर हजरत अली संबंधित नकारात्मक बयान देकर लखनऊ की करीब पांच लाख बीस हजार की शिया आबादी को आहत कर राजनाथ के शिया जनसमर्थन को कमजोर कर दिया.
इस तरह की तमाम कमजोरियों का फायदा उठाकर ही विपक्षी ताकतें लखनऊ लोकसभा सीट पर खामोशी और आपसी सामंजस्य की ताकत का एक जाल बिछा रही है. एक सधी हुई रणनीति से सपा-बसपा गठबंधन ने यहां अपने प्रत्याशी को भाजपा के लिए वोटकटवा बनाकर कांगेस के उम्मीदवार को जिताने का प्लान तैयार किया है. लखनऊ में भाजपा का सबसे विशाल और पारंपरिक कायस्थों का वोटबैंक हैं. अभिनेता और कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा सपा उम्मीदवार कम कायस्थ प्रत्याशी की सूरत में ज्यादा नजर आयेंगी. और जातिगत खेल में भाजपा के पारंपरिक अनुमानित चार लाख वोटों को कतरने की कोशिश करेंगी.
उधर कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी आचार्य प्रमोद कृष्णम का लक्ष्य सरकार में क्षत्रिय ताकतों से कुंठित ब्राह्मणों को अपनी तरफ खीचना होगा. बाकी कुछ ब्राह्मण और लखनऊ के करीब चार लाख बल्क मुस्लिम वोटबैंक के साथ दलितों-पिछड़ों के बूते यहां कांग्रेस भाजपा को टक्कर देने का ताना-बाना बुन रही है.
सपा-बसपा गठबंधन की सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा गठबंधन के निर्देशानुसार मुस्लिम, दलित-पिछड़ों के बीच ना जनसभाएं करेंगी ना ही इस समाज से वोट की अपील करेंगी. उनका मुख्य उद्देश्य कायस्थ समाज को साधना होगा. गठबंधन की खामोश कोशिश होगी कि दलित, मुस्लिम, पिछड़ा खासकर जाटव और यादव वोट भी कांग्रेस को ट्रांसफर कर दिया जाये. बलशाही पहलवान को अत्यंत कमज़ोर विरोधी भी धोखे से शिकस्त दे सकता है. चुनाव में धर्म और जाति की चालें भी कमजोर सियासत की धोखाधड़ी ही होती हैं. लखनऊ लोकसभा सीट कहने को तो भाजपा एकतरफा जीत रही है लेकिन यहां विपक्षी चालों ने राजनाथ सिंह को टक्कर देने का बड़ा जाल बुना है.
भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार लखनऊ सीट पर एक दूसरे के विरोधी कांग्रेस और गठबंधन मिलकर मिलीभगत का सियासी खेल खेलेंगे.यहां गठबंधन के लिए कांग्रेस सीट छोड़ देती या कांग्रेस के लिए गठबंधन सीट छोड़ देता तब भी लखनऊ सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह के विजय रथ की रफ्तार पर भी असर नहीं पड़ता. किंतु यहां विपक्षियों को आपसी सामंजस्य और जातिगत चालबाजी में कामयाबी मिल गई तो वाकई राजनाथ सिंह के सामने चुनौती खड़ी हो सकती है.
वोट प्रतिशत के पिछले तमाम रिकार्ड उठाकर देखिए तो लखनऊ लोकसभा सीट पर समस्त विपक्षी दलों पर भारी है अकेला भाजपा का वोट प्रतिशत. पिछले पच्चीस वर्षोँ में जब-जब यूपी में भाजपा हाशिये पर थी तब भी लखनऊ लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी भारी मतों से जीतता रहा. स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति विरासत की केंद्र कहे जाने वाली लखनऊ लोकसभा सीट से राजनाथ सिंह या भाजपा को कोई टक्कर नहीं दे सकता है. इन दलीलों और धारणा के अति आत्मविश्वास का फायदा उठाकर गठबंधन खासकर सपा और कांग्रेस ने लखनऊ सीट पर भाजपा को टक्कर देने की चाल चली है.
चुनावी लड़ाई में विपक्ष ने यहां मुकाबले में साइलेंट गन जैसे हथियार का उपयोग करने की रणनीति बनाई है. इस गन में धर्म और जाति के कारतूस भरे जायेंगे. भाजपा के नये नये शत्रु बने शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस के ही नहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के भी नये नये दोस्त बने हैं. जिन्होंने मिल कर लखनऊ सीट पर भाजपा के मजबूत प्रत्याशी राजनाथ सिंह को टक्कर देने की अय्यारी का ताना बाना बुना है.
चर्चाएं हैं कि लखनऊ लोकसभा सीट के प्रत्याशी राजनाथ सिंह के खिलाफ यूपी में भाजपा के ताकतवर नेताओं की एक लॉबी काम कर रही है. क्षत्रिय वर्सेज क्षत्रिय लाबी भी है और क्षत्रिय बनाम ब्राह्मण भी खूब फल फूल रहा है. अटल-आडवाणी वाले भाजपाई बनाम मोदी वाले भाजपाई जैसी अदृश्य लकीरें भी महसूस की जा रही हैं. इन कमजोरियों को फायदा उठाकर पहले विपक्षी दल अपना साझा प्रत्याशी लखनऊ में उतारना चाहते थे. यानी गठबंधन द्वारा कांग्रेस के लिए सीट छोड़ने की योजना बना रहा था.
बताया जाता है कि फिर रणनीति में बदलाव कर इसे प्रयोगात्मक बनाया गया. तय हुआ कि यहां कांग्रेस लड़ेगी और क्षत्रिय सत्ताधारियों से नाराज ब्रह्मणों पर कांग्रेस के ब्रह्मण उम्मीदवार आचार्य प्रमोद कृष्णम जातिगत डोरे डालेंगे. उधर गठबंधन प्रत्याशी पूनम सिन्हा भाजपा के सबसे बड़े और पारंपरिक कायस्थ वोट बैंक की वोट कटवा बन कर भाजपा का वोट काटेंगी.
अंदरखाने की ये रिपोर्ट यदि सही हुई और भाजपाई कायस्थ और ब्राह्मण जाति के जाल में फंस गये. कायस्थ प्रत्याशी के प्रति कायस्थ आकर्षित हो गये. ब्राह्मण उम्मीदवार के आकर्षण में ब्राहम्ण खिंच गये. गठबंधन और कांग्रेस की मिलीभगत अपने काडर के जरिये भाजपा विरोधी मुस्लिम, दलित और पिछड़ों को सपा के बजाय कांग्रेस के समर्थन में एक जुट कर ली गयी तो वाकई भाजपा को लखनऊ में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
लेकिन भाजपा विरोधी सियासी ताकतों की ये चालें तब ही कामयाब हो सकती हैं जब राजनाथ सिंह इस ग्राउण्ड रिपोर्ट से बिल्कुल ही बेखबर हों. पर उनके जैसे दिग्गज प्रतिद्वंद्वियों के ऐसे इरादों से बेखबर क्यों होंगे. हाथ पर हाथ रखकर वो भी नहीं बैठेंगे.
आंख-कान और मुंह वो भी खुला रखेंगे. अपने विरोधियों के जाल और चाल में इतनी आसानी से फंसने वाले नहीं हैं राजनाथ. सच ये भी है कि ना भाजपा क पारंपरिक वोटर (कायस्थ/ब्राह्मण) इतने भोले हैं और ना ही राजनाथ सिंह राजनीति में अपरिपक्व हैं कि विरोधियों के मंसूबों को आसानी से पूरा होने दें.
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