पूरे वर्ष कृषि कानून के लाभ गिनाने वाली केंद्र सरकार ने साल की समाप्ति से पूर्व विधेयक वापस ले लिया. साल भर के मान-मनौव्वल पर बात नहीं बनी लेकिन चुनाव निकट है और हाइवे पर तंबू गाड़कर बैठा किसान यूं यह पंचवर्षीय अवसर नहीं गंवाएगा सो नरेंद्र मोदी ने भी नहीं गंवाया और बैकफ़ुट पर आये. उनकी विनम्रता की, सहृदयता की प्रशंसा होने लगी, प्रवक्ताओं के हिस्से नया काम आया. अब पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार ने अपना दांव चला है. किसानों के ऊपर दो लाख रुपये तक के ऋण के लिये कर्ज़माफ़ी की घोषणा कर 1,200 करोड़ रुपये का बजट जारी कर दिया. कर्ज़माफ़ी तो बहुप्रचलित दांव रहा है लेकिन कांग्रेस की पंजाब सरकार ने कृषि कानून का विरोध करने वाले व पराली जलाने वाले किसानों के ख़िलाफ़ राज्य में दर्ज सभी प्राथमिकी रद्द करने की घोषणा भी की. साथ ही सरकार ने सवर्णों को रिझाने के लिए सामान्य श्रेणी आयोग के गठन को मंजूरी दी. चरणजीत सिंह चन्नी बता सकेंगे कि सामान्य श्रेणी आयोग क्या होता है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? आर्थिक आधार पर कमज़ोर वर्ग के लिये पहले ही केंद्र सरकार ने एक श्रेणी बनायी है और उसके नियम तय किये हैं.
वर्ग का नाम दिया है EWS जिसके तहत सामान्य श्रेणी के व्यक्ति की पारिवारिक वार्षिक आय को 8 लाख रुपये से कम होने को मानक रखा गया है. इसके बाद चन्नी के सामान्य आयोग के पास क्या काम रह जाता है? क्या सामान्य वर्ग इस दशा में है कि उसे आयोग की ज़रूरत हो? जिनकी सामाजिक स्थिति दयनीय है उनके लिये ऐसे आयोग का अर्थ है. सामान्य वर्ग अगर कहीं स्वयं को पीछे पाता है तो वह आर्थिक क्षेत्र ही हो सकता है.
सामाजिक स्तर पर एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति को अन्य किसी प्रकार...
पूरे वर्ष कृषि कानून के लाभ गिनाने वाली केंद्र सरकार ने साल की समाप्ति से पूर्व विधेयक वापस ले लिया. साल भर के मान-मनौव्वल पर बात नहीं बनी लेकिन चुनाव निकट है और हाइवे पर तंबू गाड़कर बैठा किसान यूं यह पंचवर्षीय अवसर नहीं गंवाएगा सो नरेंद्र मोदी ने भी नहीं गंवाया और बैकफ़ुट पर आये. उनकी विनम्रता की, सहृदयता की प्रशंसा होने लगी, प्रवक्ताओं के हिस्से नया काम आया. अब पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार ने अपना दांव चला है. किसानों के ऊपर दो लाख रुपये तक के ऋण के लिये कर्ज़माफ़ी की घोषणा कर 1,200 करोड़ रुपये का बजट जारी कर दिया. कर्ज़माफ़ी तो बहुप्रचलित दांव रहा है लेकिन कांग्रेस की पंजाब सरकार ने कृषि कानून का विरोध करने वाले व पराली जलाने वाले किसानों के ख़िलाफ़ राज्य में दर्ज सभी प्राथमिकी रद्द करने की घोषणा भी की. साथ ही सरकार ने सवर्णों को रिझाने के लिए सामान्य श्रेणी आयोग के गठन को मंजूरी दी. चरणजीत सिंह चन्नी बता सकेंगे कि सामान्य श्रेणी आयोग क्या होता है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? आर्थिक आधार पर कमज़ोर वर्ग के लिये पहले ही केंद्र सरकार ने एक श्रेणी बनायी है और उसके नियम तय किये हैं.
वर्ग का नाम दिया है EWS जिसके तहत सामान्य श्रेणी के व्यक्ति की पारिवारिक वार्षिक आय को 8 लाख रुपये से कम होने को मानक रखा गया है. इसके बाद चन्नी के सामान्य आयोग के पास क्या काम रह जाता है? क्या सामान्य वर्ग इस दशा में है कि उसे आयोग की ज़रूरत हो? जिनकी सामाजिक स्थिति दयनीय है उनके लिये ऐसे आयोग का अर्थ है. सामान्य वर्ग अगर कहीं स्वयं को पीछे पाता है तो वह आर्थिक क्षेत्र ही हो सकता है.
सामाजिक स्तर पर एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति को अन्य किसी प्रकार का भेदभाव झेलना पड़े, भारतवर्ष का समाज जातिवाद से इतना आगे भी नहीं बढ़ा, और कम से कम ऐसा तो नहीं कि उसे पटरी पर लाने के लिये आयोग की ज़रूरत पड़े लेकिन चूँकि चुनाव सिर पर है और पंजाब में सामान्य वर्ग एक बड़ा वर्ग है सो आयोग बन गया.
सीएम साहब ने अपनी दरियादिली दिखाते हुए एक और घोषणा की जिसकी शायद बिल्कुल ज़रूरत न पड़ती अगर चुनाव न होता. अब उनकी सरकार पाँच एकड़ भूमि पर एक नायाब स्मारक का भी निर्माण करेगी. यह विशेष रूप से किसानों के आंदोलन और उनके बलिदान को समर्पित होगा, जिन्होंने कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन में अपनी जान गंवायी है.
अगर चुनाव न होता तो शायद इतनी बुद्धिमता की अपेक्षा की जाती कि उसी पांच एकड़ भूमि पर किसानों के लिये ऐसे कई कार्य किये जा सकते हैं जिनसे वे लाभांवित हो सकें. वो किसान जो अपना हक़ मांगते हुए मर गये, जयकारा नहीं मांगते हैं. मांगते हैं सुकून भरी ज़िंदगी अपनों के लिये.
यह वर्ष किसानों का वर्ष रहा, वे लू और बरसात में सड़कों पर जमे रहे और ले गये जो माँगा था. लेकिन अपनी मज़बूत अस्मिता कायम रखने के बावजूद जिस तरह सभी दल उन्हें लुभाने में लगे हुए हैं, वे वोट बैंक बनकर संकुचित कर दिये गये मालूम पड़ते हैं. किसान इस देश की नींव हैं, यहां की मौलिकता हैं, उनका महज़ वोट बैंक में तब्दील होना मुनासिब नहीं लग रहा.
यही चन्नी साहब गुरू ग्रंथ साहब की बेअदबी पर हुई लिंचिंग पर मौन धारण कर लेते हैं. धार्मिक ग्रंथों का सम्मान है लेकिन अगर कोई व्यक्ति उनकी बेअदबी करता है तो उसके लिये कानूनी प्रावधान है, उसे भीड़ का ग्रास नहीं बनाया जा सकता. यह संविधान की बेअदबी है. ग़ौरतलब है कि उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने केद्र सरकार के हवाले से राष्ट्रपति को उस लंबित कानून को पारित करने की अपील की है जिसमें धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी पर उम्र क़ैद की सज़ा सुनिश्चित है.
ज़ाहिर है धर्म के नाम पर समूचा पंजाब इस कानून के लिये खड़ा होगा और कम से कम लोग सवाल करेंगे कि भीड़ को सज़ा देने का हक़ कैसे? कानून का पालन क्यों नहीं? कोई उठकर नहीं कहेगा कि उस पांच एकड़ ज़मीन पर स्कूल या डेयरी फ़ार्म बनवा दें ताकि ग़रीब किसानों की मदद हो सके.
धर्म के नाम पर ख़ून उबालने वाले देश के कर्णधारों को पता है कि कौन-सी पेंच कसनी है और किसे खुला छोड़ देना है. उनके लिये आप उबलते हुए लावा हैं, अवसर हैं, ज़िंक का वह टुकड़ा हैं जिसे हाइड्रोक्लोरिक एसिड में उछाल देना है. अजीब है कि आपको भारत भाग्य विधाता होना था.
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