शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के ख़िलाफ़ अंततः ड्रग केस में एफ़आईआर दर्ज हुई. मजीठिया अभी अंडरग्राउण्ड हैं और उनके ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी किया जा चुका है. उनसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 2014 में ही पूछताछ की थी फिर 2013 के करोड़ों रुपये के ड्रग रैकेट को लेकर एक एफ़आईआर में इतना वक़्त क्यों लगा? 2007 से 2017 तक दो सत्र में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की सरकार थी, बिक्रम मजीठिया दूसरे सत्र में पंजाब कैबिनेट के मंत्री रहे लेकिन उनकी उपलब्धि यही नहीं थी. वे शिरोमणि अकाली दल की स्टार नेत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं. इन्हीं मिसेज़ बादल के ससुर जी की सरकार थी तो पंजाब सरकार से ईमानदारी की उम्मीद रखना बेमानी है.
स्वजनों और स्वलाभ को ताख पर रखकर मूल्यों पर चलने वाली बात प्लैटो के साथ ही दुनिया से ग़ायब होकर किताबों में समा गयी. व्यवहार में जो आया वह था अपनों के हित के लिये सर्वस्व की बलि दे देना. उस वक़्त भाजपा ने भी इसपर सख़्ती नहीं दिखायी लेकिन अजीब यह है कि 2017 में इस बात पर ख़ूब ज़ोर देने वाली कांग्रेस करीब साढ़े चार वर्ष तक शांत क्यों रही.
कांग्रेस को किसने रोका था एक्शन लेने से? कैप्टन अमरिंदर सिंह क्यों चूक गये और फिर चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार क्यों इससे तबतक किनारा करती रही जबतक कि नवजोत सिंह सिद्धू ज़िद पर नहीं अड़े कि यह वादा किया था तो कार्रवाई होनी ही चाहिए नहीं तो अनशन करेंगे.
पहले सदन में किसान बिल का समर्थन कर बाद में उसका विरोध कर भाजपा से गठबंधन तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल और हरसिमरत कौर से अपेक्षा नहीं की जा सकती थी लेकिन अमरिंदर सिंह और चरणजीत चन्नी ने अबतक इसे क्यों स्थगित रखा. क्या यह चुनावी...
शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के ख़िलाफ़ अंततः ड्रग केस में एफ़आईआर दर्ज हुई. मजीठिया अभी अंडरग्राउण्ड हैं और उनके ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी किया जा चुका है. उनसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 2014 में ही पूछताछ की थी फिर 2013 के करोड़ों रुपये के ड्रग रैकेट को लेकर एक एफ़आईआर में इतना वक़्त क्यों लगा? 2007 से 2017 तक दो सत्र में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की सरकार थी, बिक्रम मजीठिया दूसरे सत्र में पंजाब कैबिनेट के मंत्री रहे लेकिन उनकी उपलब्धि यही नहीं थी. वे शिरोमणि अकाली दल की स्टार नेत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं. इन्हीं मिसेज़ बादल के ससुर जी की सरकार थी तो पंजाब सरकार से ईमानदारी की उम्मीद रखना बेमानी है.
स्वजनों और स्वलाभ को ताख पर रखकर मूल्यों पर चलने वाली बात प्लैटो के साथ ही दुनिया से ग़ायब होकर किताबों में समा गयी. व्यवहार में जो आया वह था अपनों के हित के लिये सर्वस्व की बलि दे देना. उस वक़्त भाजपा ने भी इसपर सख़्ती नहीं दिखायी लेकिन अजीब यह है कि 2017 में इस बात पर ख़ूब ज़ोर देने वाली कांग्रेस करीब साढ़े चार वर्ष तक शांत क्यों रही.
कांग्रेस को किसने रोका था एक्शन लेने से? कैप्टन अमरिंदर सिंह क्यों चूक गये और फिर चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार क्यों इससे तबतक किनारा करती रही जबतक कि नवजोत सिंह सिद्धू ज़िद पर नहीं अड़े कि यह वादा किया था तो कार्रवाई होनी ही चाहिए नहीं तो अनशन करेंगे.
पहले सदन में किसान बिल का समर्थन कर बाद में उसका विरोध कर भाजपा से गठबंधन तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल और हरसिमरत कौर से अपेक्षा नहीं की जा सकती थी लेकिन अमरिंदर सिंह और चरणजीत चन्नी ने अबतक इसे क्यों स्थगित रखा. क्या यह चुनावी मौसम में खेला जाने वाला दांव था?
इसके बाद पंजाब में किसी की भी सरकार आये, ड्रग मुक्त पंजाब की कामना कैसे की जा सकेगी, होगा कोई जो नकेल कसेगा? मजीठिया के अलावा यहां तब और अब की सरकार में दर्जनों दोषी हैं जिनपर एफ़आईआर नहीं दर्ज होगी क्योंकि अपना काम न करने पर यहां सिर्फ़ स्कूलों में सज़ा होती है, संसद में नहीं, सदन में नहीं.
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