उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन किसी न किसी कारणों से सुर्खियां में बनी ही रहती है. अब देखिये न उत्तर प्रदेश की 11 विधान परिषद सीट पर चुनाव हुए, चुनाव तो शांति से हो गए लेकिन चुनाव के बाद मतगणना में जमकर बवाल हुआ. जगह-जगह तीखी नोकझोंक के साथ-साथ ज़बरदस्त हंगामा हुआ. झांसी में मतगणना स्थल पर तो पुलिस और नेताओं के बीच टकराव पर बन आयी, जिसकी वीडियो ज़बरदस्त तरीके से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. वीडियो में झांसी के एसपी सिटी विवेक त्रिपाठी को भाजपा के प्रदीप सरावगी ने धक्का दे मारा है. नेताजी ने पुलिस की लाठी यानी जिसको पुलिस रूल कहती है उससे धक्का दे मारा, जिससे एसपी सिटी पास खड़ी मोटरसाइकिलों के बीच गिर पड़ते हैं. वहां पुलिस बल भारी संख्या में मौजूद थी, लेकिन सबके सब सभ्य व्यवहार करते नज़र आए. अब बताइये भला एसपी सिटी कोई मामूली अधिकारी तो होता नहीं है लेकिन उसको धक्का देकर गिरा देने के बावजूद उनके साथी पुलिस वाले सभ्य व्यवहार करते हुए दिखाई दिए और वह भी वो पुलिस सभ्य नज़र आई जिसके सिपाही भी लाठी भांजने में माहिर होते हैं.
वीडियो में साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि कैसे एसपी सिटी को धक्का देकर गिराया गया और वहां मौजूद लोगों के मुंह से मारो-मारो जैसा शोर भी सुनाई दे पड़ रहा है. घटना पर मौजूद मीडियाकर्मियों के कैमरे में भी ये सारा माजरा कैद हो गया औऱ वीडियो वायरल हो गया. फिर घटना के बाद एसएसपी साहब सामने आए और कहा कुछ नहीं हुआ है, लोग अफवाहें फैला रहे हैं.
एसपी सिटी भी सामने आए और कहा मतगणना शांतिपूर्वक हुआ है, उनके साथ कोई मारपीट...
उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन किसी न किसी कारणों से सुर्खियां में बनी ही रहती है. अब देखिये न उत्तर प्रदेश की 11 विधान परिषद सीट पर चुनाव हुए, चुनाव तो शांति से हो गए लेकिन चुनाव के बाद मतगणना में जमकर बवाल हुआ. जगह-जगह तीखी नोकझोंक के साथ-साथ ज़बरदस्त हंगामा हुआ. झांसी में मतगणना स्थल पर तो पुलिस और नेताओं के बीच टकराव पर बन आयी, जिसकी वीडियो ज़बरदस्त तरीके से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. वीडियो में झांसी के एसपी सिटी विवेक त्रिपाठी को भाजपा के प्रदीप सरावगी ने धक्का दे मारा है. नेताजी ने पुलिस की लाठी यानी जिसको पुलिस रूल कहती है उससे धक्का दे मारा, जिससे एसपी सिटी पास खड़ी मोटरसाइकिलों के बीच गिर पड़ते हैं. वहां पुलिस बल भारी संख्या में मौजूद थी, लेकिन सबके सब सभ्य व्यवहार करते नज़र आए. अब बताइये भला एसपी सिटी कोई मामूली अधिकारी तो होता नहीं है लेकिन उसको धक्का देकर गिरा देने के बावजूद उनके साथी पुलिस वाले सभ्य व्यवहार करते हुए दिखाई दिए और वह भी वो पुलिस सभ्य नज़र आई जिसके सिपाही भी लाठी भांजने में माहिर होते हैं.
वीडियो में साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि कैसे एसपी सिटी को धक्का देकर गिराया गया और वहां मौजूद लोगों के मुंह से मारो-मारो जैसा शोर भी सुनाई दे पड़ रहा है. घटना पर मौजूद मीडियाकर्मियों के कैमरे में भी ये सारा माजरा कैद हो गया औऱ वीडियो वायरल हो गया. फिर घटना के बाद एसएसपी साहब सामने आए और कहा कुछ नहीं हुआ है, लोग अफवाहें फैला रहे हैं.
एसपी सिटी भी सामने आए और कहा मतगणना शांतिपूर्वक हुआ है, उनके साथ कोई मारपीट नहीं हुई है बल्कि धक्कामुक्की हुयी है. दोनों ही टकराव की बात से मुकर गए. एसपी सिटी साहब ज़रूर पूरी घटना से पल्ला झाड़ लेना चाहते हैं लेकिन उनकी वीडियो देखने वाले लोग उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथ ले रहे हैं. और सवाल दाग रहे हैं कि आखिर उत्तर प्रदेश पुलिस अपने अधिकारी एसपी सिटी के साथ हुए इस दुर्व्यवहार पर कोई एक्शन क्यों नहीं ले रही है.
पुलिस आखिर इतनी मजबूर क्यों बन गई है. क्या सत्ताधारी नेताओं के खिलाफ यूपी पुलिस को सांप सूंघ जाता है या फिर पुलिस का कार्य सिर्फ विपक्षी नेताओं पर लाठियां भांजने का ही रह गया है. सपा, बसपा से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तक के नेता इस पूरी घटना को केंद्र में रखकर खूब राजनीति भी कर रहे हैं. सपा के स्थानीय नेताओं ने तो पुलिस से सवाल भी दाग डाला है कि यही कार्य अगर सपा के किसी छोटे से कार्यकर्ता ने भी कर दिया होता तो उस पर कितनी धाराओं में एफआईआर दर्ज किया जाता.
क्या किसी अन्य पार्टी के सदस्यों के साथ भी उत्तर प्रदेश की पुलिस इतनी सभ्य तरीके से नज़र आती. ये वो सवाल हैं जो उत्तर प्रदेश की पुलिस से पूछे जा रहे हैं. जोकि जाएज़ भी हैं, आखिर इस तरह पुलिस के काम में दखल देना और आन ड्यूटी सरकारी अधिकारी के कालर पर हाथ डालने के लिए भी तो संविधान ने कानून बनाया है और इसे अपराध की श्रेणी में रखा है ताकि पुलिस अधिकारी क्या किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसकी ड्यूटी के दौरान न धमकाया जा सके और न मारा जा सके.
वरना सोचिए अगर ये कानून न होता तो आए दिन कितने पुलिसवालों के गिरेबान में लोगों के हाथ जा पहुंचते. और पुलिस उनको इतनी ही शालीनता के साथ कहती ये तो अफवाह है धक्कामुकी है. सोचिए दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बार्डर पर जमा कोई किसान अगर किसी भी पुलिस अधिकारी को इस तरह धकेल देता तो कितना बवाल मचता देश भर में. बात झांसी की है इसलिए शायद इस घटना की बहुत ज़्यादा चर्चा न हो और इसका राजनीतिकरण बड़े स्तर तक न हो पाए.
लेकिन बात राजनीति और चर्चाओं से हटकर पुलिस की साख की है. आखिर पुलिस महकमे को भी तो विचार करने की आवश्यकता है कि वीडियो होने के बावजूद घटना से मुकर जाने से काम नहीं बन जाता है, अपने अधिकारियों के साथ हुए बदसलूकियों पर इस तरह खामोशी की चादर नहीं ओढ़नी चाहिए बल्कि बदसलूकी करने वालों को सबक सिखाना चाहिए ताकि फिर कोई आपके अधिकारियों के गिरेबान में हाथ डालने की कोशिश करता हुआ भी न नज़र आए.
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