भारत ने एक बड़े तथा प्रतिष्ठापूर्ण वैश्विक मंच "वासेनार एरेंजमेंट" में प्रवेश कर लिया है. इससे पड़ोसी चीन को करारा झटका लगा है. क्योंकि "वासेनार एरेंजमेंट" में प्रवेश के बाद एनएसजी के लिए भारत की दावेदारी मजबूत होगी. भारत को इस संगठन में 42वें सदस्य के तौर पर मान्यता दी गई है. वासेनार अरेंजमेंट, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और निर्यात नियंत्रण व्यवस्था देखने वाली संस्था है. ये विकसित देशों का एक एक्सक्लूसिव क्लब है. इसमें भारत का शामिल होना देश की एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है.
यह संगठन परंपरागत हथियारों, वस्तुओं व तकनीक के हस्तांतरण-निर्यात तथा दोहरे इस्तेमाल आदि की वैश्विक व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है. इस तरह वासेनार एरेंजमेंट की आधुनिक तकनीक, खास तौर पर रक्षा से जुड़े तकनीकी हस्तांतरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत को वासेनार अरेंजमेंट में शामिल करने का फैसला संगठन के विएना स्थित मुख्यालय में दो दिन तक चली बैठक के बाद लिया गया.
वासेनार अरेंजमेंट की सदस्यता मिलने के बाद भारत की कोशिश भारतीय हथियार और स्पेस कार्यक्रमों के लिए उच्च स्तरीय तकनीक के सुगम आदान-प्रदान की रहेगी. साथ ही भारत को सदस्य देशों के साथ निर्यात नियंत्रण नीति के तहत काम करना होगा. इनमें निर्माण कार्य, चुनिंदा लाइसेंस छूट आदि शामिल है. भारत को अभी भी हाई टेक निर्माण के लिए, डयूल यूज निर्यात के लिए लाइसेंस का आवेदन करना पड़ता है. लेकिन अब उम्मीद है कि यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
वासेनार अरेंजमेंट में शामिल होने का मतलब है कि इसके सदस्य देश यह स्वीकार करते हैं कि भारत बेहद संवेदनशील तकनीक हस्तांतरण के लिए उपयुक्त देश है. इसका एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि भारत को एनपीटी (परमाणु अप्रसार...
भारत ने एक बड़े तथा प्रतिष्ठापूर्ण वैश्विक मंच "वासेनार एरेंजमेंट" में प्रवेश कर लिया है. इससे पड़ोसी चीन को करारा झटका लगा है. क्योंकि "वासेनार एरेंजमेंट" में प्रवेश के बाद एनएसजी के लिए भारत की दावेदारी मजबूत होगी. भारत को इस संगठन में 42वें सदस्य के तौर पर मान्यता दी गई है. वासेनार अरेंजमेंट, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और निर्यात नियंत्रण व्यवस्था देखने वाली संस्था है. ये विकसित देशों का एक एक्सक्लूसिव क्लब है. इसमें भारत का शामिल होना देश की एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है.
यह संगठन परंपरागत हथियारों, वस्तुओं व तकनीक के हस्तांतरण-निर्यात तथा दोहरे इस्तेमाल आदि की वैश्विक व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है. इस तरह वासेनार एरेंजमेंट की आधुनिक तकनीक, खास तौर पर रक्षा से जुड़े तकनीकी हस्तांतरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत को वासेनार अरेंजमेंट में शामिल करने का फैसला संगठन के विएना स्थित मुख्यालय में दो दिन तक चली बैठक के बाद लिया गया.
वासेनार अरेंजमेंट की सदस्यता मिलने के बाद भारत की कोशिश भारतीय हथियार और स्पेस कार्यक्रमों के लिए उच्च स्तरीय तकनीक के सुगम आदान-प्रदान की रहेगी. साथ ही भारत को सदस्य देशों के साथ निर्यात नियंत्रण नीति के तहत काम करना होगा. इनमें निर्माण कार्य, चुनिंदा लाइसेंस छूट आदि शामिल है. भारत को अभी भी हाई टेक निर्माण के लिए, डयूल यूज निर्यात के लिए लाइसेंस का आवेदन करना पड़ता है. लेकिन अब उम्मीद है कि यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
वासेनार अरेंजमेंट में शामिल होने का मतलब है कि इसके सदस्य देश यह स्वीकार करते हैं कि भारत बेहद संवेदनशील तकनीक हस्तांतरण के लिए उपयुक्त देश है. इसका एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि भारत को एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में एक जिम्मेदार और गंभीर राष्ट्र के रुप में मान्यता मिल गई है. एनएसजी का सदस्य बनने के लिए यह मुख्य शर्त है. ऐसे में जब भारत अगली बार एनएसजी की दावेदारी पेश करेगा, तो उसका दावा और गंभीर समझा जाएगा. भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी अपने एक बयान में कहा है कि, "वैसे तो एनएसजी और वासेनार एरेंजमेंट में कोई सीधा संबंध नहीं है. लेकिन इससे पता चलता है कि दुनिया के देश हमें एक जिम्मेदार देश मानते हैं."
पिछले साल जून में (27 जून 2016) एमसीटीआर (मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम) का 35वां सदस्य बनने के बाद, भारत की यह दूसरी बड़ी सफलता है. साथ ही चीन के लिए एक बड़ा झटका भी जो लंबे समय से भारत को एनएसजी का सदस्य बनाने का विरोध कर रहा है. उसने वासेनार अरेंजमेंट का सदस्य न होने के बावजूद इस संगठन में भी भारत को सदस्यता देने का विरोध किया था. लेकिन चीन के अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाकी चारो स्थायी सदस्य- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस वासेनार में शामिल हैं. ये सभी देश भारत को सदस्यता देने के पक्ष में थे. इसलिए भारत की राह आसान हो गई.
अमेरिका के साथ परमाणु करार होने के बाद से भारत लगातार अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं से जुड़ना चाह रहा है. इसके अंतर्गत मुख्यतः 4 समझौतों या व्यवस्थाओं को शामिल किया जाता है- वासेनार व्यवस्था, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (MTCR). भारत इसमें से एमटीसीआर और वासेनार का सदस्य बन चुका है. एमटीसीआर में शामिल होने के बाद अब भारत अपनी ब्रह्मोस जैसी उच्च तकनीकी मिसाइलें मित्र देशों को बेच सकेगा. अमेरिका से आसानी से ड्रोन खरीद सकेगा. एमटीसीआर का गठन 1987 में विकसित देशों के समूह जी-7 द्वारा किया गया था. इसमें परमाणु, जैविक और रासायनिक पदर्थों को ले जाने में सक्षम मिसाइल और मानवरहित विमान तकनीक के प्रसार पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए किया गया था.
वासेनार एरेंजमेंट की स्थापना 1996 में की गई थी. भारत ने वासेनार और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में शामिल होने के लिए "विशेष रासायनिक, जैव सामग्री, पदार्थ, उपकरण और तकनीकी निर्यात (SCOMET) को अनुमोदित किया है. ये वासेनार व्यवस्था का प्रमुख और अनिवार्य चरण था. अब भारत, आस्ट्रेलिया ग्रुप में इंट्री के लिए प्रयास कर रहा है. रासायनिक और जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए 1985 'आस्ट्रेलिया ग्रुप' बना था. इसको बनाने की पहल आस्ट्रेलिया ने की थी और इसलिए इसका सचिवालय प्रबंधन भी आस्ट्रेलिया ही करता है. 1974 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का गठन किया गया था. इसका प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य परमाणु तकनीक, परमाणु पदार्थों और सामग्री के आयात-निर्यात पर नियंत्रण स्थापित करना है. इसके गठन के समय 7 सदस्य थे. अब इसमें 48 देश हैं. अर्जेंटीना इसका नवीनतम सदस्य है जो 2015 में बना.
भारत की एनएसजी में प्रवेश की रणनीति-
नई दिल्ली, एमटीसीआर और वासेनार में चीन को सदस्यता दिलाने का लाभ उठा सकता है. चीन ने भी दोनों संगठनों में सदस्यता के लिए आवेदन किया है. चीन द्वारा शर्तों का उल्लंघन करने के इतिहास को देखते हुए उसकी सदस्यता रुकी हुई है. आवेदन के लिए जरुरी शर्तों के आधार पर चीन का पलड़ा थोड़ा कमजोर जरुर है. एमटीसीआर और वासेनार में भारत की सदस्यता का समर्थन इन संस्थाओं के सभी सदस्यों ने किया था. इनमें से ज्यादातर एनएसजी के भी सदस्य हैं. नॉन-एनपीटी भारतीय स्टैंड इन दोनों समूहों की सदस्यता में किसी तरह बाधक नहीं बना. 11 दिसंबर को नई दिल्ली में रूस, चीन और भारत के विदेशमंत्रियों की बैठक में भी एनएसजी में भारतीय प्रवेश का मुद्दा उठ सकता है.
एमसीटीआर के बाद वासेनार एरेंजमेंट में भारतीय प्रवेश मूलत: भारत के बढ़ते वैश्विक कद को ही प्रतिबिंबित करता है. इससे अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारतीय भूमिका में निरंतर वृद्धि हो रही है. इससे भारतीय परमाणु अप्रसार तथा निशस्त्रीकरण प्रयासों को वैश्विक मान्यता मिलने के साथ-साथ ही एनएसजी में प्रवेश की भारतीय दावेदारी को भी अप्रत्याशित मजबूती मिली है.
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