अब सवाल ये नहीं है कि भारत ने मसूद अजहर मामले में जिस चीन से यूएन में मुंह की खाई, अब उसी चीन के एक असंतुष्ट नेता के मामले में फिर भारत को फिर नीचा देखना पड़ा है. सवाल ये भी नहीं है कि भारत चीन को जैसा का तैसा जवाब देने में नाकाम रहा है. दरअसल, सवाल दो देशों की तैयारी का है कि वे किस तरह अपने देश के खिलाफ काम कर रहे लोगों से निपटते हैं.
चीन की आपत्ति के बाद भारत ने उइगर नेता डोल्कुन ईसा को दिया ई-वीजा रद्द कर दिया है. वर्ल्ड उइघर कांग्रेस का नेता है डोल्कुन ईसा और चीन का आरोप है कि वह वहां के मुस्लिम बहुल जिनजियांग प्रांत में इस्लामिक आतंकवाद का समर्थक है. जर्मनी में रह रहे डोल्कुन ईसा को चीन एक आतंकी घोषित कर चुका है और उसकी मांग पर ईसा के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी है. ईसा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में चीन में लोकतंत्र के मुद्दे पर अमेरिका द्वारा प्रायोजित एक सेमिनार में हिस्सा लेने आना चाहता था.
भारत ने डोल्कुन ईसा का वीजा अप्रैल की शुरुआत में मंजूर कर दिया था और चीन के विदेश मंत्रालय से आपत्ति के बाद शुक्रवार को स्थगित कर दिया. भारत के फैसले पर चीन सरकार ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि डोल्कुन एक आतंकवादी है और चीन की पुलिस को कई आतंकी वारदातों में उसकी तलाश है. लिहाजा ऐसे आतंकवादी को पकड़ने में मदद करना दुनिया के अहम देशों का दायित्व है. चीन के बयान के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय बयान जारी किया कि डोल्कुन की सच्चाई जानने की कोशिश की जा रही है.
माना जा रहा है कि भारत की तरफ से डोल्कुन को वीजा देने का कदम हाल में जैश-ए-मोहम्मद आतंकी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने की उसकी कोशिशों को चीन से लगे झटके के कारण लिया गया. यानी, भारत की कोशिश चीन को उसी की भाषा में जबाव देने की थी. अगर भारत सरकार का कदम वाकई इसे मसूद अजहर बनाम डोल्कुन ईसा का मुद्दा बनाकर चीन को कड़ा संदेश देने के लिए था तो एक बात साफ है कि उसके दबाव में आकर वीजा निरस्त करने से महज उसकी...
अब सवाल ये नहीं है कि भारत ने मसूद अजहर मामले में जिस चीन से यूएन में मुंह की खाई, अब उसी चीन के एक असंतुष्ट नेता के मामले में फिर भारत को फिर नीचा देखना पड़ा है. सवाल ये भी नहीं है कि भारत चीन को जैसा का तैसा जवाब देने में नाकाम रहा है. दरअसल, सवाल दो देशों की तैयारी का है कि वे किस तरह अपने देश के खिलाफ काम कर रहे लोगों से निपटते हैं.
चीन की आपत्ति के बाद भारत ने उइगर नेता डोल्कुन ईसा को दिया ई-वीजा रद्द कर दिया है. वर्ल्ड उइघर कांग्रेस का नेता है डोल्कुन ईसा और चीन का आरोप है कि वह वहां के मुस्लिम बहुल जिनजियांग प्रांत में इस्लामिक आतंकवाद का समर्थक है. जर्मनी में रह रहे डोल्कुन ईसा को चीन एक आतंकी घोषित कर चुका है और उसकी मांग पर ईसा के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी है. ईसा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में चीन में लोकतंत्र के मुद्दे पर अमेरिका द्वारा प्रायोजित एक सेमिनार में हिस्सा लेने आना चाहता था.
भारत ने डोल्कुन ईसा का वीजा अप्रैल की शुरुआत में मंजूर कर दिया था और चीन के विदेश मंत्रालय से आपत्ति के बाद शुक्रवार को स्थगित कर दिया. भारत के फैसले पर चीन सरकार ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि डोल्कुन एक आतंकवादी है और चीन की पुलिस को कई आतंकी वारदातों में उसकी तलाश है. लिहाजा ऐसे आतंकवादी को पकड़ने में मदद करना दुनिया के अहम देशों का दायित्व है. चीन के बयान के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय बयान जारी किया कि डोल्कुन की सच्चाई जानने की कोशिश की जा रही है.
माना जा रहा है कि भारत की तरफ से डोल्कुन को वीजा देने का कदम हाल में जैश-ए-मोहम्मद आतंकी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने की उसकी कोशिशों को चीन से लगे झटके के कारण लिया गया. यानी, भारत की कोशिश चीन को उसी की भाषा में जबाव देने की थी. अगर भारत सरकार का कदम वाकई इसे मसूद अजहर बनाम डोल्कुन ईसा का मुद्दा बनाकर चीन को कड़ा संदेश देने के लिए था तो एक बात साफ है कि उसके दबाव में आकर वीजा निरस्त करने से महज उसकी कमजोरी सामने आई है.
भारत से बीजा स्थगित होने पर डोल्कुन ईसा ने जारी किया अपना बयान
गौरतलब है कि चीन के जिनजिंयाग प्रांत में 1 करोड़ से ज्यादा उइगर मूल की मुस्लिम जनसंख्या है जो कि इस क्षेत्र में बहुसंख्यक भी हैं. बीते एक दशक में इस समुदाय ने चीन मेनलैंड से जिनजिंयाग प्रांत में बड़ी संख्या में हान चीनी समुदाय को स्थापित करने की नीति का विरोध किया है और इसके लिए आतंकवाद का सहारा ले रखा है. इसके उलट अमेरिका और यूरोपीय देश लंबे समय से चीन में लोकतंत्र बहाली के विकल्पों पर चर्चा करते रहे हैं. इसी के चलते एक अमेरिकी संस्था ने चीन में लोकतंत्र पर चर्चा करने के लिए धर्मशाला में एक सेमिनार का आयोजन कर रही है जिसमें ईसा समेत कई उइगर और तिब्बति नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है.
अब सवाल यह है कि क्या डोल्कुन ईसा के मामले में भारत ने वाकई जल्दबाजी में कदम उठाया. डोल्कुन ईसा के ट्वीट के मुताबिक 2-3 अप्रैल को उन्होंने सेमिनार में शामिल होने के लिए ऑनलाइन वीजा का आवेदन किया था और 24 घंटे के अंदर उन्हें वीजा की स्वीकृति दे दी गई थी. वहीं 23 अप्रैल को विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया की वह ईसा का बैकग्राउन्ड चेक करा रहा है और फिलहाल उनका वीजा स्थगित है. गौरतलब है कि सेमिनार और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिए वीजा गृह मंत्रालय के स्तर पर दिया जाता है लेकिन ऐसे में भी ज्यादातर मामले विदेश मंत्रालय के संज्ञान में रहते है. लिहाजा, अगर 24 घंटे के अंदर चीन के करार आतंकी डोल्कुन ईसा को वीजा दिया गया तो जाहिर है कि यह फैसला मसूद अजहर पर चीन के रुख को संज्ञान में लेते हुए ही लिया गया होगा. ऐसा करने में भी हमें इस बात तक की जानकारी नहीं मिल सकी कि डोल्कुन ईसा के खिलाफ चीन ने किसी तरह का इंटरपोल अलर्ट जारी करा रखा है.
उइगर नेता डोल्कुन ईसा |
डोल्किन को वीजा दिए जाने की खबर का देश की मीडिया में स्वागत किया गया. अंतरराष्ट्रीय मामलों के कई टिप्पणीकारों ने इस कदम को चीन के विरुद्ध कड़ा लेकिन उचित कदम बताया. कुछ जानकारों ने तो यहां तक संभावना जता दी कि इससे मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने में सफलता मिलेगी. लेकिन हैरतअंगेज सच्चाई यह भी है मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी करार देने के लिए भी केन्द्र सरकार अधूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ा था. आज हम भले चीन को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराएं कि मसूद मामले में उसने अड़ंगा लगा दिया लेकिन हकीकत यह भी है कि आजतक हम मसूद अजहर के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस नहीं जारी करा सके. यहां तक कि हमारी सरकार ने इस मामले में कदम भी 11 अप्रैल के बाद तब उठाया जब चीन ने अपने वीटो की दलील में कहा कि मसूद अजहर के खिलाफ किसी तरह का मामला नहीं है. वहीं आज महज रेड कॉर्नर नोटिस के नाम पर ही उसने डोल्कुन ईसा का वीजा रद्द कराने के लिए भारत पर दबाव बनाने में सफलता हासिल कर ली है.
जैसे ही चीन की तरफ से आपत्ति उठाई गई कि डोल्कुन के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस है लिहाजा सभी देशों को उसकी गिरफ्तारी में मदद करने की अपेक्षा है, विदेश मंत्रालय ने 24 घंटे के अंदर डोल्किन के वीजा को स्थगित कर दिया. अब क्या यह फैसला भी एनडीए सरकार में बेहद मजबूत हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की देन है जिसने विदेश मंत्रालय के मत को पूरी तरह जाने और समझे और गृह मंत्रालय को बैकग्राउन्ड चेक करने का पर्याप्त समय दिए बिना वीजा जारी करने की हरी झंड़ी दे दी थी. यदि ऐसा किया गया है तो एक बात साफ है कि इस मामले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और चीन को एक बात साफ हो चुकी है कि हमारे देश की सरकार भावुकता में आकर ऐसे फैसले ले लेती है जिसपर अमल करना उसके लिए संभव नहीं रहता. लिहाजा अपनी इस कमजोरी का प्रदर्शन करने के बाद अब केन्द्र सरकार मसूद अजहर के मुद्दे को चीन के सामने कैसे रख पाएगी.
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