लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ भारत की तनातनी की खबरें भी लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिकी रक्षा विभाग यानी पेंटागन की एक रिपोर्ट ने आग में घी का काम किया है. पेंटागन की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC के अंदर घुसकर पूर्वी क्षेत्र में 100 घरों वाले एक गांव का निर्माण किया है. इस रिपोर्ट पर कुछ दिनों की देरी से ही सही, लेकिन आखिरकार भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया देते चीनी दावों को नकार दिया है. इंडिया टुडे की एक खबर में कहा गया है कि जिस इलाके में ये गांव बनाया गया है, वहां चीन ने 1959 में कब्जा किया था. वैसे, चीन लगातार अपनी सरकारी मीडिया के सहारे भारत पर हमलावर रुख अपनाए हुए हैं. और, एक पखवाड़े पहले ही चीन ने नया भूमि सीमा कानून पारित कर भारत की परेशानियों को कई दर्जा बढ़ा दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चीन अब भारत के साथ युद्ध न लड़कर उसे प्रॉक्सी वॉर में उलझाए रखने की ओर बढ़ गया है. लेकिन, ऐसा लगता है कि 'चीन दुश्मन नंबर -1' जानते हुए भी भारत सरकार प्रॉक्सी वॉर का जवाब देने में पीछे ही है.
क्या होता है प्रॉक्सी वॉर?
किसी समय भारत के खिलाफ छद्म युद्ध यानी प्रॉक्सी वॉर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल पड़ोसी देश पाकिस्तान करता था. प्रॉक्सी वॉर में पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ के साथ देश के अन्य हिस्सों में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिलाने की कोशिश की जाती थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सीधे तौर पर युद्ध की जगह अलग-अलग तरीकों से दूसरे देश को नुकसान पहुंचाने को प्रॉक्सी वॉर कहा जाता...
लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ भारत की तनातनी की खबरें भी लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिकी रक्षा विभाग यानी पेंटागन की एक रिपोर्ट ने आग में घी का काम किया है. पेंटागन की इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC के अंदर घुसकर पूर्वी क्षेत्र में 100 घरों वाले एक गांव का निर्माण किया है. इस रिपोर्ट पर कुछ दिनों की देरी से ही सही, लेकिन आखिरकार भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया देते चीनी दावों को नकार दिया है. इंडिया टुडे की एक खबर में कहा गया है कि जिस इलाके में ये गांव बनाया गया है, वहां चीन ने 1959 में कब्जा किया था. वैसे, चीन लगातार अपनी सरकारी मीडिया के सहारे भारत पर हमलावर रुख अपनाए हुए हैं. और, एक पखवाड़े पहले ही चीन ने नया भूमि सीमा कानून पारित कर भारत की परेशानियों को कई दर्जा बढ़ा दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चीन अब भारत के साथ युद्ध न लड़कर उसे प्रॉक्सी वॉर में उलझाए रखने की ओर बढ़ गया है. लेकिन, ऐसा लगता है कि 'चीन दुश्मन नंबर -1' जानते हुए भी भारत सरकार प्रॉक्सी वॉर का जवाब देने में पीछे ही है.
क्या होता है प्रॉक्सी वॉर?
किसी समय भारत के खिलाफ छद्म युद्ध यानी प्रॉक्सी वॉर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल पड़ोसी देश पाकिस्तान करता था. प्रॉक्सी वॉर में पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ के साथ देश के अन्य हिस्सों में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिलाने की कोशिश की जाती थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सीधे तौर पर युद्ध की जगह अलग-अलग तरीकों से दूसरे देश को नुकसान पहुंचाने को प्रॉक्सी वॉर कहा जाता है. हालांकि, बीते कुछ समय में पाकिस्तान की ओर से इस प्रॉक्सी वॉर में कमी आई है. लेकिन, पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में हुई झड़प के एक साल बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की आक्रामकता बढ़ती हुई दिखाई दी है. चीन लगातार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके में उसे आर्थिक और सैन्य सहयोग मुहैया कराकर भारत के खिलाफ इस छद्म युद्ध को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है. बीते कुछ समय में जम्मू-कश्मीर में बढ़ी आतंकी गतिविधियों में आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों की हत्याओं के साथ भारतीय सेना के जवानों को निशाना बनाए जाने को भी इससे जोड़कर देखा जा सकता है. और, चीन का नया भूमि सीमा कानून भी इसी का हिस्सा है.
चीन का नया भूमि सीमा कानून
चीन की ओर से पारित किया गया नया भूमि सीमा कानून अगले साल 1 जनवरी 2022 से लागू हो जाएगा. इस कानून के जरिये चीन अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के के लिए आर्थिक, सामाजिक और सैन्य विकास को बढ़ावा देगा. चीन अपनी सीमाओं पर सार्वजनिक सेवाओं के साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देकर वहां बसे लोगों के जीवन को आसान करेगा. चीन का ये भूमि सीमा कानून उसकी विस्तारवादी नीति का नमूना भर है. इस कानून में सीमा पर घुसपैठ, अतिक्रमण या हमले से से जुड़े मामलों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और पीपुल्स आर्म पुलिस (पीएपी) को एक्शन लेने के अधिकार दिए गए हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में इस कानून को ऐसे समझा जा सकता है कि अरुणाचल प्रदेश के जिस विवादित इलाके में 100 घरों का गांव बसाने की बात की जा रही है, वहां चीन अपने नागरिकों को आसानी से बसाएगा और एलएसी को ही एलओसी बनाने की ओर बढ़ जाएगा. ये कानून भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर का सबसे बड़ा हथियार बन जाएगा.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि चीन ने भारत से लगी सीमा पर बीते कुछ वर्षों में तेजी से निर्माण कार्य को गति दी है. चीन ने भारत से लगती सीमाओं पर बड़ी संख्या में गांव और सैन्य ढांचों को खड़ा किया है. तिब्बत का इलाका भारत के लिए शांत माना जाता था. लेकिन, इस कानून के बाद और जगहों से लाकर लोगों को बसाया जाएगा. जो भारत के लिहाज से मुश्किल बढ़ाने वाला होगा. गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसी साल जुलाई में भारत के साथ चल रहे सीमा तनाव के बीच तिब्बत का दौरा किया था. इसके साथ ही शी जिनपिंग भारत के अरुणाचल प्रदेश से सटे चीन के न्यिंगची शहर भी गए थे. इस दौरान शी जिनपिंग ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे बांध का निरीक्षण किया था, जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है. कहने का मतलब ये है कि भारत के तमाम विरोधों और कूटनीतिक प्रयासों के बाद भी चीन तेजी से अपनी विस्तारवादी नीति पर अड़ा हुआ है. कहना गलत नहीं होगा कि चीन का नया भूमि सीमा कानून भारत के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है.
भारत से सटी सीमा पर एक बार खुद को स्थापित कर लेने के बाद चीन से मुकाबला करना देश के लिए आसान नहीं रह जाएगा. चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश को हमेशा से ही तिब्बत का हिस्सा कहा गया है. चीन की अब तक की हरकतों को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि भूमि सीमा कानून के जरिये चीन इसके बाद अरुणाचल प्रदेश में मनमानी करने पर उतारू हो जाए. इस कानून के साथ भारत के सीमावर्ती इलाकों में चीन को दादागिरी दिखाने का पूरा मौका मिलेगा. क्योंकि, वह सशस्त्र प्रतिकार के लिए भी तैयार हो जाएगा.
कमजोर नजर आती है भारत सरकार
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के संदर्भ में कहा था कि दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं. अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा ही पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों की वकालत करते देखा जाता था. लेकिन, वो भी भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा की कीमत पर संबंधों को सुधारने की बात नहीं करते थे. भारत सरकार की ओर से चीन से जुड़ी ऐसी रिपोर्टों और घटनाओं पर कुछ ज्यादा ही देरी कर दी जाती है. बीते साल गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के मामले में भी भारत सरकार की ओर से इस घटना पर तुरंत स्थिति साफ नहीं की गई थी. चीन की ओर से सीमा पर किए जा रहे निर्माण कार्य को लेकर भी भारत सरकार हमेशा ही देरी से अपना वक्तव्य जारी करती है. हालांकि, इस बार भी विदेश मंत्रालय की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया है कि भारत ने ना तो अपनी जमीन पर चीन के अवैध कब्जे और ना ही अनुचित चीनी दावों को माना है. सरकार ने हमेशा राजनयिक माध्यम से ऐसी गतिविधियों का कड़ा विरोध किया है और भविष्य में भी ऐसा करना जारी रखेगी.
ये बात सही है कि भारत सरकार की ओर से ऐसे मामलों पर हमेशा से ही राजनयिक माध्यमों से कड़ा विरोध जताया जाता रहा है. लेकिन, सवाल उठना जायज है कि आखिर कब तक भारत सरकार केवल कड़ा विरोध जताकर चुप हो जाएगी. कहा जा सकता है कि भारत सरकार चीन से लगती सीमा पर सड़कों, पुलों जैसे निर्माण कार्यों में तेजी लाई है. लेकिन, चीन के प्रति भारत सरकार की ओर से आक्रामकता नदारद रहती है. पाकिस्तान के खिलाफ भारत सरकार जितना उन्मुक्त कंठ से जयघोष करती है, चीन के सामने वह एक कमजोर स्वर ही नजर आता है. क्योंकि, सीमा पर चीन की ओर से आक्रामकता भारत से कहीं ज्यादा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत को चीन के मामले में अपने क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस को बढ़ाना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है, तो चीन की आक्रामकता दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाएगी.
रामधारी सिंह 'दिनकर' की एक कविता के इस अंश से भारत सरकार प्रेरणा लेना चाहे, तो ले सकती है...
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो
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