सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों के ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं. 12 जनवरी को मीडिया से बातचीत की एक अभूतपूर्व घटना हुई. इसमें सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश- जस्टिस चेलेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर ने वर्तमान सीजेआई दीपक मिश्रा के आचरण और सर्वोच्च न्यायालय के प्रबंधन के तरीके की आलोचना की थी. हमें लग रहा था कि अब मामला शांत हो गया होगा. लेकिन नहीं ऐसा है नहीं!
न्यायमूर्ति चेलेश्वर के सेवानिवृत्त होने के कारण अर्जुन कुमार सीकरी को कॉलेजियम में जगह मिली है. सूत्र बताते हैं कि कॉलेजियम के भीतर का माहौल अब बदलने वाला है. पहले चार न्यायाधीशों का सीजेआई मिश्रा के कामकाज के तरीके के लिए बड़ा ही आलोचनात्मक रुख था. लेकिन एक ओर जहां अभी तक न्यायमूर्ति एके सीकरी किसी भी तरह के विवाद से दूर हैं वहीं दूसरी ओर सीजेआई का उनपर विश्वास माना जाता है. वो आधार और केंद्र बनाम दिल्ली के मुद्दों का फैसला करने के लिए गठित महत्वपूर्ण संवैधानिक बेंचों का हिस्सा रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि कॉलेजियम में यह परिवर्तन उचित ही होगा.
पिछले छह महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अधिक गड़बड़ी देखी है. सबसे पहले तो विपक्षी दलों द्वारा सीजेआई मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव. हमारे संवैधानिक इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी सीजेआई के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया हो. उपराष्ट्रपति द्वारा इसे खारिज कर देने के बाद, प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट के...
सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों के ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं. 12 जनवरी को मीडिया से बातचीत की एक अभूतपूर्व घटना हुई. इसमें सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश- जस्टिस चेलेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर ने वर्तमान सीजेआई दीपक मिश्रा के आचरण और सर्वोच्च न्यायालय के प्रबंधन के तरीके की आलोचना की थी. हमें लग रहा था कि अब मामला शांत हो गया होगा. लेकिन नहीं ऐसा है नहीं!
न्यायमूर्ति चेलेश्वर के सेवानिवृत्त होने के कारण अर्जुन कुमार सीकरी को कॉलेजियम में जगह मिली है. सूत्र बताते हैं कि कॉलेजियम के भीतर का माहौल अब बदलने वाला है. पहले चार न्यायाधीशों का सीजेआई मिश्रा के कामकाज के तरीके के लिए बड़ा ही आलोचनात्मक रुख था. लेकिन एक ओर जहां अभी तक न्यायमूर्ति एके सीकरी किसी भी तरह के विवाद से दूर हैं वहीं दूसरी ओर सीजेआई का उनपर विश्वास माना जाता है. वो आधार और केंद्र बनाम दिल्ली के मुद्दों का फैसला करने के लिए गठित महत्वपूर्ण संवैधानिक बेंचों का हिस्सा रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि कॉलेजियम में यह परिवर्तन उचित ही होगा.
पिछले छह महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अधिक गड़बड़ी देखी है. सबसे पहले तो विपक्षी दलों द्वारा सीजेआई मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव. हमारे संवैधानिक इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी सीजेआई के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया हो. उपराष्ट्रपति द्वारा इसे खारिज कर देने के बाद, प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लाया गया. न्यायमूर्ति एके सीकरी के नेतृत्व वाली बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और इस बात को स्पष्ट करने में असफल रहे कि आखिर इस खंडपीठ का गठन किसने किया. क्योंकि मामला खुद सीजेआई के खिलाफ था तो वो रोस्टर तय नहीं कर सकते थे. ऐसे में कोर्ट के प्रशासनिक अधिकार किसके पास थे इस बात का जवाब सीकरी से मांगा गया था.
हालांकि कांग्रेस ने तो अपनी याचिका वापिस ले ली, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में स्वामित्व और प्रक्रिया का सवाल तो बना ही रहेगा.
एमसीआई घोटाले में प्रशांत भूषण की याचिका पर न्यायमूर्ति सीकरी द्वारा सुनवाई की जानी थी. लेकिन न्यायमूर्ति चेलेश्वर ने भूषण की याचिका को पांच जजों की खंडपीठ को दे दिया. इस आदेश को अंततः सीजेआई मिश्रा ने उलट दिया था, जिसके बाद 12 जनवरी को चार जजों ने मीडिया के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सभी को चौंका दिया. कर्नाटक विधानसभा में 24 घंटों के अंदर फ्लोर टेस्ट कराने का जो आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, वो न्यायमूर्ति सीकरी की अगुआई वाली पीठ से आया था. कोर्ट का ये आदेश बीजेपी सरकार के पतन का कारण बना था.
पिछले छः महीनों में, पांच सदस्यीय कॉलेजियम जिसमें चार वरिष्ठ न्यायाधीश और सीजेआई शामिल हैं, के बीच की तकरार खुले तौर पर आम जनता के सामने आई है. खास तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद. ये साफ तौर पर सीजेआई बनाम अन्य चार न्यायाधीश का मामला बन गया था. विशेष रूप से जब न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति के लिए जब विवाद शुरू हुआ. कम से कम दो न्यायाधीशों ने कॉलेजियम से जस्टिस जोसेफ की तत्काल पदोन्नति की आवश्यकता के बारे में मीडिया से बात की थी.
लेकिन केंद्र ने न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ का नाम वापस भेज दिया गया था. उसके बाद से कॉलेजियम दो बार बैठी, हालांकि नाम को दोबारा नहीं जोड़ा गया. लेकिन वेबसाइट पर अपलोड किए गए कॉलेजियम के रिजॉल्यूशन को देखें तो उसमें कहा गया है कि केएम जोसेफ के नाम पर दोबारा विचार किया जाएगा. हालांकि ऐसे कई अन्य नाम हैं जिन पर सहमति नहीं बन पाई है.
केंद्र ने अपने पत्र में और अधिक नामों की सिफारिश मांगी थी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की नियुक्तियों को कार्यकारी और न्यायपालिका के बीच संघर्ष के बिंदु के रूप में देखा गया है. लेकिन उच्च न्यायालय के स्तर पर नियुक्तियों में समस्या हमेशा से ही थी. सूत्रों ने पुष्टि की है कि सरकार द्वारा दो वरिष्ठ वकीलों के नाम को दो साल तक अटकाने के बाद कॉलेजियम को उनका नाम लौटाया. उनके नाम पर तीन सदस्यीय कॉलेजियम की सहमति थी; लेकिन फिर भी, सरकार ने सारे नियम तोड़ते हुए मोहम्मद मंसूर और बशरत अली खान के नामों को मंजूरी देने से साफ मना कर दिया.
जुलाई में अदालत फिर से शुरू होंगी. देखना ये होगा कि सीजेआई दीपक मिश्रा, भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उन्नति के लिए जस्टिस रंजन गोगोई (जो 12 जनवरी प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा था) का नाम आगे बढ़ाएंगे या नहीं. सरकार ने साफ कर दिया है कि वो सीजेआई की सिफारिश के अनुसार ही काम करेंगे.
जाहिर है, शीर्ष न्यायपालिका के संकट ने "गर्मियों की छुट्टी" का मजा ले लिया, लेकिन यह वापस लौटेगा. और वो भी एक धमाके के साथ!
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