पहले पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की बीमारी, फिर उनकी आकस्मिक मौत. तमिलनाडु की राजनीति में सियासी घमासान मचना तो लाजमी था. शायद ये तमिलनाडु की सियासत की जटिलता और अप्रत्याशित स्थिति ही है जिसके कारण कमल हसन और उनकी नई पार्टी ‘मक्कल नीति मैय्यम' आज हमारे सामने है.
अगर कोई ये काहे कि लम्बे समय से बॉलीवुड और साउथ की इंडस्ट्री में राज करने वाले कमल अचानक ही राजनीति में आए हैं तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. जी हां सही सुन रहे हैं आप. कमल बहुत पहले ही अपने स्टारडम को तमिलनाडु की जटिल सियासत में लॉन्च कर चुके थे. ऐसे में अब उनकी पार्टी और पार्टी का नाम बस एक औपचारिकता मात्र है.
गौरतलब है कि कमल, केजरीवाल से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. बताया जा रहा है कि जिस क्षण कमल अपनी पार्टी लॉन्च कर रहे थे, वहां दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे. चूंकि कमल राजनीति में आ गए हैं और केजरीवाल और उनके अंदाज से प्रभावित हैं ऐसे में कुछ बातें मन में आने लाजमी हैं.
कमल का राजनीतिक स्टैंड क्या है?
पूर्व में अपनी रैलियों के माध्यम से कमल इस बात को साफ कर चुके हैं कि उनका राजनीति में आने का उद्देश्य न तो पैसा कमाना है और न ही लोकप्रियता पाना. इस बिंदु पर गौर करें तो मिलता है कि कमल एक स्थापित एक्टर रह चुके हैं. जब एक्टर स्थापित होता है तो वो ख्याति भी पाता है और पैसा भी कमाता है. अब चूंकि कमल राजनीति में आ गए हैं, तो अब तक लोगों के दिमाग में ये प्रश्न बना हुआ है कि राजनीति में गन्दगी की बात करने वाले कमल का राजनीतिक स्टैंड क्या है.
ये बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि भारत की राजनीति में तमिलनाडु का...
पहले पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की बीमारी, फिर उनकी आकस्मिक मौत. तमिलनाडु की राजनीति में सियासी घमासान मचना तो लाजमी था. शायद ये तमिलनाडु की सियासत की जटिलता और अप्रत्याशित स्थिति ही है जिसके कारण कमल हसन और उनकी नई पार्टी ‘मक्कल नीति मैय्यम' आज हमारे सामने है.
अगर कोई ये काहे कि लम्बे समय से बॉलीवुड और साउथ की इंडस्ट्री में राज करने वाले कमल अचानक ही राजनीति में आए हैं तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. जी हां सही सुन रहे हैं आप. कमल बहुत पहले ही अपने स्टारडम को तमिलनाडु की जटिल सियासत में लॉन्च कर चुके थे. ऐसे में अब उनकी पार्टी और पार्टी का नाम बस एक औपचारिकता मात्र है.
गौरतलब है कि कमल, केजरीवाल से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. बताया जा रहा है कि जिस क्षण कमल अपनी पार्टी लॉन्च कर रहे थे, वहां दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे. चूंकि कमल राजनीति में आ गए हैं और केजरीवाल और उनके अंदाज से प्रभावित हैं ऐसे में कुछ बातें मन में आने लाजमी हैं.
कमल का राजनीतिक स्टैंड क्या है?
पूर्व में अपनी रैलियों के माध्यम से कमल इस बात को साफ कर चुके हैं कि उनका राजनीति में आने का उद्देश्य न तो पैसा कमाना है और न ही लोकप्रियता पाना. इस बिंदु पर गौर करें तो मिलता है कि कमल एक स्थापित एक्टर रह चुके हैं. जब एक्टर स्थापित होता है तो वो ख्याति भी पाता है और पैसा भी कमाता है. अब चूंकि कमल राजनीति में आ गए हैं, तो अब तक लोगों के दिमाग में ये प्रश्न बना हुआ है कि राजनीति में गन्दगी की बात करने वाले कमल का राजनीतिक स्टैंड क्या है.
ये बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि भारत की राजनीति में तमिलनाडु का शुमार उन राज्यों में है जहां संप्रदाय या पंथ की राजनीति चलती है. कमल को बताना होगा कि आखिर वो किस पंथ के साथ हैं? राजनीति में आने का उनका असल उद्देश्य क्या है? क्या वो अपनी ही राह पर चलेंगे या फिर भविष्य में वो एआईएडीएमके या डीएमके को उनकी नीतियों पर कभी अपना समर्थन देंगे?
केजरीवाल से प्रेरणा तो ली मगर केजरीवाल जैसे गुण अनुपस्थित
कमल केजरीवाल और उनकी विचारधारा को पसंद करते हैं. मगर जब हम केजरीवाल के उदय को देखें तो मिलता है कि, वो एक आंदोलन के जरिये उभरे हुए नेता हैं. एक ऐसा नेता जिसनें अपनी बातों से लोगों को साथ तो लिया मगर ये साथ ज्यादा दिन तक बना नहीं. चाहे कुमार विश्वास हों या फिर योगेन्द्र यादव और कपिल मिश्रा आज हर किसी ने केजरीवाल से उचित दूरी बना ली है. आज ये लोग लगातार केजरीवाल के कृत्य की आलोचना करते हुए नजर आ रहे हैं. तो अब हमारे लिए ये भी जानना जरूरी है कि जब केजरीवाल के लोग ही उनकी आलोचना कर रहे हैं तब किस बिनाह पर कमल केजरीवाल को अपना राजनीतिक गुरु मान रहे हैं.
किसी एनजीओ की तरह लग रहा है नाम
कमल की नई पार्टी के नाम पर गौर करें तो मिल रहा है कि इनकी पार्टी का नाम मक्कल नीति मैय्यम किसी एनजीओ सरीखा है, जो ये बताने के लिए काफी है कि फिल्हाल कमल में न तो राजनीतिक समझ है और न ही ये राजनीति को लेकर किसी स्टैंड पर कायम हैं. कमल जनसेवा की बात तो कर रहे हैं मगर इन आधी अधूरी तैयारियों के बीच जनसेवा की वो भावना कहीं नजर नहीं आ रही.
छुपा है कुर्सी का स्वार्थ
आज भले ही कमल, निस्स्वार्थ भावना से जन सेवा की वकालत कर रहे हों. मगर जब उद्देश्य राजनीति हो, तब ये कहने में गुरेज नहीं किया जा सकता कि हर राजनेता कुर्सी का तलबगार होता है. कहीं न कहीं कमल के दिल में भी इच्छा है कि वो जनसेवा से जनाधार जुटाएं और कुर्सी पर बैठकर सत्ता सुख भोगें. वर्तमान परिदृश्य में ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि शायद कमल भी अपने को, भविष्य के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं.
कहीं ये राजनीति के नाम पर छलावा तो नहीं
तमिलनाडु की सियासी जमीन पर "बढ़िया राजनीति" के नाम पर जो हो रहा है, उसको देखकर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि ये राजनीति नहीं बल्कि छलावा है. इस बार अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह सुशासन का दावा करते हुए कमल और कुछ नहीं बस प्रदेश की जनता को छलने का काम कर रहे हैं. इस कथन के पीछे की वजह ये है कि कमल जिस केजरीवाल को अपना आदर्श मान रहे हैं वो पूर्व में कांग्रेस के साथ मिल चुके थे और हाल क्या हुआ ये जनता ने देखा ही है.
करना है तो कमल केजरीवाल की राजनीति नहीं बल्कि अपनी राजनीति करें
सबसे अंत में हम ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि, जिस केजरीवाल को कमल राजनीतिक लिहाज से अपना आदर्श मानते हैं. उनके दामन पर भी कई बदनुमा दाग लगे हैं. अब जब कमल में तमिलनाडु के सियासी अखाड़े में कूदने का सोच ही लिया है तो बेहतर है वो अपनी राजनीति करें. अपना स्टैंड रखें और उस स्टैंड पर कमल रहें. कमल को याद रखना होगा कि केजरीवाल के उदय के समय हालात दूसरे थे अब हालात दूसरे हैं.
आखिर में बस इतना ही कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के भाई से आशीर्वाद लेकर सियासत में कदम रखने वाले कमल के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. बेहतर है वो वक़्त रहते सही रास्ता निकालें. अन्यथा हिंदुस्तान की राजनीति में जनता के पास असीम शक्ति है, वो कब किसे अर्श से फर्श पर लाकर पटक दे ये कोई नहीं जानता.
ये जरूरी नहीं जिस जानता ने कमल को परदे पर पसंद किया था वही जनता उन्हें राजनीति में भी पसंद करे. बहरहाल अभी कमल और उनकी राजनीति को लेकर कुछ कहना जल्दबाजी है. कमल की राजनीति और उनकी विचारधारा क्या है ये आने वाला वक़्त हमें बता देगा.
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