मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को एक ऐतिहासिक फैसला किया. सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लगी धारा 370 को खत्म करने का फैसला किया है. जहां एक ओर कांग्रेस, सपा, टीएमसी और भाजपा की सहयोगी जदयू भी इस फैसले का विरोध कर रही है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी और बसपा ने भाजपा के इस फैसले का समर्थन किया है. जैसा कि सभी जानते हैं पाकिस्तान इस फैसले का विरोध ही करेगा, उसने किया भी, लेकिन उसके अलावा दुनिया के और भी देशों के मीडिया में मोदी सरकार के इस फैसले के विरोध में बातें लिखी गई हैं. हालांकि, कुछ ने इसका समर्थन भी किया है.
धारा 370 को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले पर अमेरिका ने साफ कर दिया है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. यानी उनका ये इशारा है कि कश्मीर पर भारत ने जो भी फैसला किया है वह उसका अपना मामला है, जिस पर अमेरिका कुछ नहीं बोल सकता है. अमेरिका विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मॉर्गन ओर्टागस ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा है- हम नियंत्रण रेखा पर सभी पक्षों से शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील करते हैं. हालांकि, उन्होंने ये जरूर कहा कि वह हिरासत की खबरों पर चिंतित हैं और लोगों के अधिकारों के सम्मान और प्रभावित समुदायों से चर्चा की अपील की है.
हिंदू बहुल बनाया जा रहा कश्मीर को
वॉशिंगटन पोस्ट में Lafayette College में साउथ एशियन हिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफेसर हफ्ज़ा कंजवाल (Hafsa Kanjwal) ने एक लेख लिखा है, जिसमें मोदी सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक कहा गया है. उन्होंने लिखा है- 'अब भारतीय कश्मीर में प्रॉपर्टी और जमीन बेच सकते हैं और स्थानीय लोगों को वहां से हटा सकते हैं. ऐसे में इस असंवैधानिक फैसले के चलते दाव पर ये है कि कश्मीर में कोलोनियल प्रोजेक्ट की शुरुआत हो...
मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को एक ऐतिहासिक फैसला किया. सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लगी धारा 370 को खत्म करने का फैसला किया है. जहां एक ओर कांग्रेस, सपा, टीएमसी और भाजपा की सहयोगी जदयू भी इस फैसले का विरोध कर रही है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी और बसपा ने भाजपा के इस फैसले का समर्थन किया है. जैसा कि सभी जानते हैं पाकिस्तान इस फैसले का विरोध ही करेगा, उसने किया भी, लेकिन उसके अलावा दुनिया के और भी देशों के मीडिया में मोदी सरकार के इस फैसले के विरोध में बातें लिखी गई हैं. हालांकि, कुछ ने इसका समर्थन भी किया है.
धारा 370 को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले पर अमेरिका ने साफ कर दिया है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. यानी उनका ये इशारा है कि कश्मीर पर भारत ने जो भी फैसला किया है वह उसका अपना मामला है, जिस पर अमेरिका कुछ नहीं बोल सकता है. अमेरिका विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मॉर्गन ओर्टागस ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा है- हम नियंत्रण रेखा पर सभी पक्षों से शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील करते हैं. हालांकि, उन्होंने ये जरूर कहा कि वह हिरासत की खबरों पर चिंतित हैं और लोगों के अधिकारों के सम्मान और प्रभावित समुदायों से चर्चा की अपील की है.
हिंदू बहुल बनाया जा रहा कश्मीर को
वॉशिंगटन पोस्ट में Lafayette College में साउथ एशियन हिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफेसर हफ्ज़ा कंजवाल (Hafsa Kanjwal) ने एक लेख लिखा है, जिसमें मोदी सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक कहा गया है. उन्होंने लिखा है- 'अब भारतीय कश्मीर में प्रॉपर्टी और जमीन बेच सकते हैं और स्थानीय लोगों को वहां से हटा सकते हैं. ऐसे में इस असंवैधानिक फैसले के चलते दाव पर ये है कि कश्मीर में कोलोनियल प्रोजेक्ट की शुरुआत हो रही है, ठीक वैसी शुरुआत जैसी इजराइल के फिलिस्तीनी टेरिटरी में हुई थी. उस जमीन पर पहले से ही भारतीय सेना का कब्जा है, जो संख्या में करीब 5 लाख हैं, जिन्होंने वहां का एक बड़ा हिस्सा कैंटोनमेंट्स, कैंप और बंकरों के जरिए घेरा हुआ है. लेकिन अब सत्ताधारी पार्टी अपने लॉन्ग टर्म प्लान को लागू कर रही है, जिसके जरिए इलाके में भारी संख्या में हिंदुओं को सेटल करना है, ताकि वहां की मुस्लिम मेज्योरिटी जिस आजादी की बात कर रही है, वह बेकार हो जाए. यहां पर मंशा कश्मीर की जनसांख्यिकी यानी डेमोग्राफिक्स को मुस्लिम बहुल से बदलकर हिंदू बहुल करने की है. इस प्रक्रिया से एक पूरी जाति का सफाया हो सकता है.'
नतीजे भयावह हो सकते हैं
द गार्डियन में एक पूर्व साउथ एशियन कॉरेस्पोंडेंट और ब्रिटिश पत्रकार जैसन बुर्के (Jason Burke) ने लिखा है कि कश्मीर में विद्रोह सामान्य लेवल से कम है, लेकिन अब डर ये है कि ये सब बदल सकता है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है- एक अहम फैक्टर हैं कश्मीर के युवा. इस समय वहां पर एक पूरी पीढ़ी है जो 1990 के दशक के उस डरावने पल को याद नहीं करना चाहती है, लेकिन वह उससे जुड़े दिग्गजों के साथ बड़े हुए हैं. उस दौरान की डरावनी यादों ने लोगों को हिंसा से दूर किया है, जिसके चलते घाटी में चरमपंथियों के लिए हथियारबंद लोगों की भर्ती करना मुश्किल हो गया. अब ऐसा नहीं है और बहुत से युवा सोचेंगे कि उनका वक्त आ गया है. इसके नतीजे काफी भयावह हो सकते हैं, कश्मीर के लिए भी और भारत के लिए भी.
पीएम मोदी को भाषण के लिए मसाला मिल गया
मानव विज्ञानी और कवि जिया एथर (Ather Zia) ने अल जजीरा में लिखे एक आर्टिकल में धारा 370 हटाने को गलत कहा है. वह नॉर्थर्न कोलोराडो ग्रीले यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. उन्होंने लिखा है- 'धारा 370 को हटाने का फैसला भाजपा के लिए जश्न मनाने वाला है. इसने पीएम मोदी को 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लोगों को संबोधित करने के लिए मसाला दे दिया है, क्योंकि इसने सरकार के उस दावे को और भी पक्का किया है कि सरकार हिंदू राष्ट्र के विजन को पाने के लिए बिना थके लगातार काम कर रही है. इससे पीएम मोदी को ये भी फायदा हुआ है कि वह ये दिखा सकते हैं कि वह पाकिस्तान से नहीं डरते, भले ही अमेरिका भी हमारा साथ ना दे रहा हो.'
कश्मीर तनाव धारा 370 से काफी बड़ा मुद्दा है
एक पत्रकार और पश्चिम एशिया विशेषज्ञ सेथ फ्रंट्ज़मैन (Seth Frantzman) ने जेरूसलम पोस्ट में लिखा है कि कश्मीर मुद्दा सिर्फ धारा 370 का नहीं है, बल्कि ये इससे काफी बड़ा है. उन्होंने लिखा है- 'कश्मीर में तनाव धारा 370 से कहीं अधिक बड़ी है. भारत और पाकिस्तान के इससे बड़े मुद्दे हैं और इससे संकट बढ़ सकता है. ये सब उस समय हुआ है, जब अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में तनाव न भड़काए, जहां पर अमेरिका तालिबान के साथ समझौता कर रहा है. ये भी बात सामने आ रही है कि भारत खुद को साबित करना चाहता है और फरवरी जैसा कुछ कर सकता है, जिसमें इसके विमान मार गिराए गए थे. भारत, जिसके इजराइल के साथ काफी करीबी रिश्ते हैं, वह अपनी सेना आधुनिक बनाना चाहता है. ऐसे में कश्मीर तनाव काफी बड़ा है और इसके ग्लोबल लिंक भी हैं.'
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