लालू यादव से क्या बीजेपी डर गयी है ? IRCTC केस के रिओपेन के क्या हैं मायने ? आखिर बंद केस को CBI ने फिर से क्यों खोला ? BJP 2024 में लालू को खतरा मान रही है ? लालू के जरिए BJP क्या नीतीश पर प्रेशर बनाना चाह रही है ? बिहार के सियासी गलियारे में कुछ ऐसे ही सवाल कौंध रहे हैं... लेकिन, बीजेपी के पास इसका कोई जवाब नहीं है. जबकि आरजेडी आक्रामक होकर हमले पर हमले करने लगे हैं. इस हमले में आरजेडी के लगभग सभी विंग शामिल हैं. वहीं महागठबंधन में शामिल घटक दल भी इसे लेकर बीजेपी को कठघरे में खडा कर रहे हैं. दरअसल, बिहार में IRCTC मामले का 'भूत' फिर से खड़ा हो गया है. इस 'भूत' को सीबीआई ने रिओपेन किया है. उस केस को रिओपेन किया है, जिसे पिछले ही वर्ष सीबीआई ने बंद कर दिया था. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सीबीआई को फिर से IRCTC मामले को रिओपेन करने की जरूरत क्यों पड गयी..? पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जिस तरह से सीबीआई इस केस को रिओपेन कर रही है, इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि कहीं न कहीं इसके पीछे केंद्र की एनडीए सरकार है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कह दिया कि हमलोग उनके साथ चले गए हैं, इसलिए यह कार्रवाई हो रही है.
दरअसल, बीजेपी पर 2014 से ही आरोप लगते आ रहे हैं कि वह केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. विरोधी नेताओं के पीछे कहीं ईडी तो कहीं सीबीआई तो कहीं आइटी को लगाया जा रहा है. विरोधी पार्टी की ओर से बार-बार सवाल उठाया जाता है कि जांच एजेंसियां सत्ता पक्ष के कितने नेताओं के घर छापेमारी की है. इसी कड़ी में एक बार फिर विरोधी नेता सीबीआई के निशाने पर आ गए हैं. और फिर से सीबीआई आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के खिलाफ एक पुराने मामले को...
लालू यादव से क्या बीजेपी डर गयी है ? IRCTC केस के रिओपेन के क्या हैं मायने ? आखिर बंद केस को CBI ने फिर से क्यों खोला ? BJP 2024 में लालू को खतरा मान रही है ? लालू के जरिए BJP क्या नीतीश पर प्रेशर बनाना चाह रही है ? बिहार के सियासी गलियारे में कुछ ऐसे ही सवाल कौंध रहे हैं... लेकिन, बीजेपी के पास इसका कोई जवाब नहीं है. जबकि आरजेडी आक्रामक होकर हमले पर हमले करने लगे हैं. इस हमले में आरजेडी के लगभग सभी विंग शामिल हैं. वहीं महागठबंधन में शामिल घटक दल भी इसे लेकर बीजेपी को कठघरे में खडा कर रहे हैं. दरअसल, बिहार में IRCTC मामले का 'भूत' फिर से खड़ा हो गया है. इस 'भूत' को सीबीआई ने रिओपेन किया है. उस केस को रिओपेन किया है, जिसे पिछले ही वर्ष सीबीआई ने बंद कर दिया था. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सीबीआई को फिर से IRCTC मामले को रिओपेन करने की जरूरत क्यों पड गयी..? पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जिस तरह से सीबीआई इस केस को रिओपेन कर रही है, इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि कहीं न कहीं इसके पीछे केंद्र की एनडीए सरकार है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कह दिया कि हमलोग उनके साथ चले गए हैं, इसलिए यह कार्रवाई हो रही है.
दरअसल, बीजेपी पर 2014 से ही आरोप लगते आ रहे हैं कि वह केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. विरोधी नेताओं के पीछे कहीं ईडी तो कहीं सीबीआई तो कहीं आइटी को लगाया जा रहा है. विरोधी पार्टी की ओर से बार-बार सवाल उठाया जाता है कि जांच एजेंसियां सत्ता पक्ष के कितने नेताओं के घर छापेमारी की है. इसी कड़ी में एक बार फिर विरोधी नेता सीबीआई के निशाने पर आ गए हैं. और फिर से सीबीआई आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के खिलाफ एक पुराने मामले को खोलने की तैयारी में है.
बता दें कि यह मामला लालू यादव के रेलमंत्री कार्यकाल का है. सीबीआई ने वर्ष 2018 में लालू यादव और तेजस्वी यादव समेत उनके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच शुरू की थी. इस मामले में कहा गया था कि रेल मंत्री रहते लालू यादव ने रेलवे के प्रोजेक्ट्स निजी कंपनी को देने के एवज में दक्षिणी दिल्ली की एक प्रॉपर्टी हासिल की थी. इस निजी कंपनी ने एक शेल कंपनी के जरिए प्रॉपर्टी काफी कम दाम में खरीदी और फिर इस शेल कंपनी को तेजस्वी यादव और लालू यादव के संबंधियों ने खरीद लिया.
शेल कंपनी को खरीदने के लिए महज चार लाख रुपये की राशि शेयर ट्रांसफर के जरिए चुकाई गई. लेकिन, सबसे बड़ी बात कि इस मामले की जांच सीबीआई ने मई 2021 में ही बंद कर दी थी. तब रिपोर्ट्स में सामने आया था कि सीबीआई को लालू के खिलाफ आरोपों पर पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं. इस मामले में लालू के अलावा उनके बेटे तेजस्वी यादव और उनकी बेटी चंदा यादव के खिलाफ भी जांच बिठाई गई थी. लेकिन, जांच बंद होने के बाद से लालू फैमिली राहत की सांस ले रहा था.
ऐसे में अचानक से सीबीआई की ओर से IRCTC मामले को रिओपेन किया जाना सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है. बता दें कि इसी माह लालू यादव का सिंगापुर में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है. किडनी उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने डोनेट की है. चार दिन पहले ही सिंगापुर के अस्पताल से लालू यादव बाहर निकले हैं. लेकिन अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं और उन्हें कम से कम दो माह अस्पताल के डॉक्टरों की निगरानी में रहना है, इसलिए अस्पताल के निकट ही लालू यादव के लिए घर लिया गया है, ताकि जब भी जरूरत पड़ेगी, तब वे आसानी से डॉक्टर के पास पहुंच जाएं.
ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि जिस केस को सीबीआई ने साल भर पहले बंद कर दिया है, उसी केस को फिर से खोला जा रहा है तो लोगों को इसमें राजनीतिक साजिश का शक होना लाजिमी है. आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?, यह सवाल तो लोग पूछेंगे ही, क्योंकि यदि केस को खोलना ही था तो पहले भी खोला जा सकता था. लेकिन जिस टाइम पर इसे खोला जा रहा है, वह कहीं से भी जायज नहीं है. न पॉलिटिकल दृष्टिकोण से और न ही मानवीय दृष्टिकोण से.
पहले हम मानवीय दृष्टिकोण से ही बात करते हैं तो पाते हैं कि लालू यादव की काफी उम्र हो गयी है. उनकी तबीयत अक्सर खराब ही रहती है, वे कहीं भाग भी नहीं सकते हैं. उनकी तबीयत और उम्र को देखते हुए ही चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में जमानत भी दी गयी है और इसी वजह से उनका किडनी भी ट्रांसप्लांट हुआ है ऐसे में उन्हें अभी अच्छे माहौल में रहना है. सूत्रों की मानें तो डॉक्टरों ने उन्हें तनाव से दूर रहने को कहा है. ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि सीबीआई की ओर से केस का रिओपेन करने का अभी सही टाइमिंग नहीं है.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट यह भी मानते हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का हमेशा से दुरुपयोग होता रहा है. जो भी पार्टी केंद्र सरकार में रही है, वह इसका फायदा उठाती रही है और वर्तमान में यह देखा जा रहा है. दरअसल, बिहार का पॉलिटिकल सिनेरियो बदल गया है. लालू यादव के पॉलिटिकली एक्टिव होने के बाद बिहार में एनडीए की सरकार गिर गयी. दूसरे राज्यों में बीजेपी जोड़-तोड़ कर भले ही सरकार बना ली, लेकिन बिहार में नीतीश कुमार ने उसकी हवा निकाल दी.
इस पर बीजेपी की भद पिट गयी है और वह हर हाल में बिहार में वापसी चाहती है... पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के रहते बीजेपी की वापसी टेढ़ी खीर ही साबित होगी. उपचुनाव में जीतना अलग बात है और मुख्य चुनाव में जीतना अलग बात है. नीतीश और तेजस्वी यादव की जोड़ी को लालू यादव के एक्टिव होने से और अधिक मजबूती मिलने लगी है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट के अनुसार, इस मजबूती को बीजेपी जांच एजेंसियों की मदद से ही कमजोर कर सकती है और IRCTC मामले को फिर से खोलने को वे इसी कड़ी में देख रहे हैं.
इसके लिए पहले आपको बिहार का पॉलिटिकल सिनेरियो को समझना होगा कि किस तरह यहां की महागठबंधन सरकार बीजेपी को टेंशन दे रही है. यह तो क्लियर हो गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव, नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर बैटिंग करेंगे और इसकी प्रैक्टिस शुरू भी हो चुकी है. वे दोनों भाई दो माह पहले दिल्ली में सोनिया गांधी से मिल भी लिये हैं.. वहीं नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव हरियाणा में भी बड़ी राजनीतिक सभा में शामिल हो चुके हैं.
दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी काफी साइंटिफिक तरीके से नरेंद्र मोदी को घेर रहे हैं. यूपी में नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की भी बात हो रही है और यह भी सियासी गलियारे में बात फैल रही है कि 2023 में कभी भी नीतीश कुमार बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंप सकते हैं और नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर बैटिंग करने के लिए दिल्ली कूच कर सकते हैं. दरअसल, इसी माह नीतीश कुमार मीडिया से कह चुके हैं कि 2025 में तेजस्वी यादव बिहार का नेतृत्व करेंगे.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो यह सब इतनी तेजी से हुआ है कि बीजेपी को नीतीश कुमार की काट में कोई रणनीति समझ में नहीं आ रही है क्योंकि शराबबंदी कानून से लेकर जंगलराज तक की रणनीति फेल हो चुकी है. वहीं नीतीश कुमार कई दफे कह चुके हैं कि समाज को लड़ाने की कोशिश होगी, इससे बचके रहना है. वहीं नीतीश कुमार के रहते बिहार में लोगों में एकता को भी नहीं तोड़ा जा सकता है, ऐसे में बीजेपी के पास जांच एजेंसियों के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है और अब यह देखने को मिलने भी लगा है.
सीबीआई वैसे केस को फिर से खोल रही है. जिसे वह साल भर पहले बंद कर चुकी है. बहरहाल, IRCTC मामले को लेकर सियासी बयानबाजी तेज हो गयी है और सबसे अधिक आरजेडी हमलावर है. वहीं इसे लेकर कल ही तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू यादव और उनका जीवन खुली किताब की तरह है. केंद्रीय एजेंसियों को जितनी जांच करना है करें, उसे कोई नहीं रोका है. चाहे तो वह मेरे घर में अपना दफ्तर भी खोल सकती है. ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के चुनाव आते-आते सियासी गलियारे में और क्या-क्या नजारे बनते हैं. बहरहाल, लालू के खिलाफ केस दोबारा खुलने की खबरों से राज्य में एक बार फिर सियासत गर्म हो गयी है.
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