दिल्ली में सीएम कैंडिडेट पर शोर मचा तो बीजेपी ने जैसे तैसे किरण बेदी का जुगाड़ किया. बिहार में भी पूरे चुनाव के दौरान चेहरे को लेकर बवाल हुआ. फिर बीजेपी ने असम के लिए एक चेहरा खोजा और केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनवाल को मैदान में उतारा है.
फिर भी असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई सीना ठोक कर कह रहे हैं कि उनका मुकाबला सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है.
मोदी से मुकाबला?
तरुण गोगोई ने असम की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किया है और अब मोदी सरकार को ऐसा करने के लिए चुनौती दे रहे हैं. गोगोई का कहना है कि बीजेपी लंबे अरसे से इसकी मांग कर रही थी. अब गोगोई का कहना है कि मोदी सरकार बताए कि मई 2014 से उसने असम के लिए क्या काम किये - और इस पर श्वेत पत्र पेश करे.
द हिंदू अखबार से बातचीत में गोगोई कहते हैं, "सोनवाल को भूल जाइए, मेरी लड़ाई सीधे प्रधानमंत्री से है क्योंकि ए, बी, सी या डी मिनिस्टर कोई भी हो, उन्हें मोदी की ही नीतियां लागू करनी है."
इसके साथ ही गोगोई समझाते हैं कि जब नगा समझौता हुआ तो गृह मंत्री को हवा तक न लगी और मुझे शक है कि गवर्नर की नियुक्तियों में भी शायद ही उनकी कोई भूमिका होती है. इस क्रम में नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के मंत्री को भी गोगोई असहाय ही मानते हैं.
तरुण गोगोई ने बीजेपी और बदरुद्दीन अजमल पर साठगांठ का इल्जाम लगाया है. गोगोई का कहना है कि दोनों मिल कर ध्रुवीकरण का खेल खेल रहे हैं.
ये साठगांठ क्या है
गोगोई के अनुसार बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ ने असम की 60 सीटों पर सिर्फ वोटों के बंटवारे के लिए अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है. गोगोई इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं, "60 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने का फैसला, जहां उन्हें जीतने की कोई उम्मीद नहीं है, बदरुद्दीन अजमल बीजेपी के साथ सियासी खेल में शामिल हो गये हैं."
गोगोई समझाना चाहते हैं कि बीजेपी और बदरुद्दीन अजमल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. जैसे...
दिल्ली में सीएम कैंडिडेट पर शोर मचा तो बीजेपी ने जैसे तैसे किरण बेदी का जुगाड़ किया. बिहार में भी पूरे चुनाव के दौरान चेहरे को लेकर बवाल हुआ. फिर बीजेपी ने असम के लिए एक चेहरा खोजा और केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनवाल को मैदान में उतारा है.
फिर भी असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई सीना ठोक कर कह रहे हैं कि उनका मुकाबला सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है.
मोदी से मुकाबला?
तरुण गोगोई ने असम की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किया है और अब मोदी सरकार को ऐसा करने के लिए चुनौती दे रहे हैं. गोगोई का कहना है कि बीजेपी लंबे अरसे से इसकी मांग कर रही थी. अब गोगोई का कहना है कि मोदी सरकार बताए कि मई 2014 से उसने असम के लिए क्या काम किये - और इस पर श्वेत पत्र पेश करे.
द हिंदू अखबार से बातचीत में गोगोई कहते हैं, "सोनवाल को भूल जाइए, मेरी लड़ाई सीधे प्रधानमंत्री से है क्योंकि ए, बी, सी या डी मिनिस्टर कोई भी हो, उन्हें मोदी की ही नीतियां लागू करनी है."
इसके साथ ही गोगोई समझाते हैं कि जब नगा समझौता हुआ तो गृह मंत्री को हवा तक न लगी और मुझे शक है कि गवर्नर की नियुक्तियों में भी शायद ही उनकी कोई भूमिका होती है. इस क्रम में नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के मंत्री को भी गोगोई असहाय ही मानते हैं.
तरुण गोगोई ने बीजेपी और बदरुद्दीन अजमल पर साठगांठ का इल्जाम लगाया है. गोगोई का कहना है कि दोनों मिल कर ध्रुवीकरण का खेल खेल रहे हैं.
ये साठगांठ क्या है
गोगोई के अनुसार बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ ने असम की 60 सीटों पर सिर्फ वोटों के बंटवारे के लिए अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है. गोगोई इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं, "60 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने का फैसला, जहां उन्हें जीतने की कोई उम्मीद नहीं है, बदरुद्दीन अजमल बीजेपी के साथ सियासी खेल में शामिल हो गये हैं."
गोगोई समझाना चाहते हैं कि बीजेपी और बदरुद्दीन अजमल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. जैसे बीजेपी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करती है वैसे ही बदरुद्दीन मुस्लिम वोटों के साथ करते हैं.
ओवैसी जैसे बोल?
जैसे बिहार में असदुद्दीन ओवैसी को बीजेपी का मददगार बताया गया वैसे ही तरुण गोगोई असम के मामले में बदरुद्दीन अजमल का नाम ले रहे हैं. एआईयूडीएफ नेता अजमल भी प्रधानमंत्री मोदी को वैसे ही निशाना बना रहे जैसे ओवैसी करते हैं. अजमल कहते हैं, "पिछले करीब दो साल में मोदी सरकार ने कितने बांग्लादेशियों को असम से बाहर निकाला है? लोकसभा चुनाव से पहले मोदी ने रैली में कहा था कि 16 मई 2014 के बाद एक भी बांग्लादेशी यहां नहीं दिखेगा."
इसके साथ ही बदरुद्दीन अजमल का इल्जाम है कि बीजेपी के कोकराझाड़ में रैली करने का फैसला जताता है कि वो सांप्रदायिक दिशा में काम रहें हैं, क्योंकि 2012 में असम में सबसे बड़ा दंगा कोकराझाड़ में ही हुआ था.
बिहार चुनाव के बाद से ही नीतीश कुमार ने असम में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच समझौते की जी तोड़ कोशिश की. इस काम में नीतीश ने अपने सबसे भरोसेमंद मैनेजर प्रशांत किशोर की भी मदद ली लेकिन तरुण गोगोई के अड़े रहने से बात नहीं बनी. अब तो कांग्रेस ने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
दूसरी तरफ बीजेपी ने बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ हाथ मिला लिया है और असम गण परिषद से बातचीत अभी चल रही है. इस बीच चर्चा ये भी है कि बोडोलैंड इलाके के विकास के लिए एक हजार करोड़ का पैकेज मिलेगा. मालूम नहीं इस बार भी लोगों से पूछा जाएगा कितना दूं? या नहीं!
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