आतंकवादियों पर सेना के हमलों से परेशान जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दों ने राज्य पुलिस के रिश्तेदारों को अगवा करना शुरू कर दिया है. दो दिनों के अंदर ही आतंकवादियों ने पुलिसकर्मियों के लगभग दस रिश्तेदारों को अगवा कर लिया था. हालांकि जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों अगवा किए गए पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों को तो अब आतंकवादियों द्वारा छोड़ दिया गया है लेकिन इसके बदले में आतंकवादियों के रिश्तेदारों को छोड़ने की मांग की गई है. आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन ने इन सबको रिहा करते हुए धमकी दी है कि अगर इनके परिवार वालों को तीन दिन के अंदर रिहा नहीं किया गया तो फिर अगली बार किसी भी शख्स को नहीं छोड़ा जाएगा. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शुक्रवार को आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाड नाइकू के पिता को रिहा कर दिया.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके बदले आतंकवादियों के सामने प्रशासन को घुटने टेक देने चाहिए थे? क्या इनकी मांगों को मानते हुए इन आतंकवादियों के रिश्तेदारों को छोड़ना उचित है? क्या 29 साल पहले रुबैया सईद की रिहाई के बदले आतंकवादियों की रिहाई का फार्मूला अपनाना चाहिए? या फिर रवींद्र म्हात्रे के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आतंकवादियों के आगे ना झुकने वाले सिद्धांत का पालन करना चाहिए?
आतंकवादियों द्वारा रिश्तेदारों का अपहरण करने का सिलसिला 1989 में शुरू हुआ था जब जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैया सईद को आतंकियों ने अगवा कर लिया था. और अब वही ट्रेंड मिलना शुरू हो गया है. आइए नज़र डालते है कुछ चर्चित ऐसे ही परिस्थितियों पर जब सरकार को आतंकवादियों के सामने घुटने भी टेकने पड़े तो कुछ मामलों में सरकार इनकी मांगों को ठुकरा भी...
आतंकवादियों पर सेना के हमलों से परेशान जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दों ने राज्य पुलिस के रिश्तेदारों को अगवा करना शुरू कर दिया है. दो दिनों के अंदर ही आतंकवादियों ने पुलिसकर्मियों के लगभग दस रिश्तेदारों को अगवा कर लिया था. हालांकि जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों अगवा किए गए पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों को तो अब आतंकवादियों द्वारा छोड़ दिया गया है लेकिन इसके बदले में आतंकवादियों के रिश्तेदारों को छोड़ने की मांग की गई है. आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन ने इन सबको रिहा करते हुए धमकी दी है कि अगर इनके परिवार वालों को तीन दिन के अंदर रिहा नहीं किया गया तो फिर अगली बार किसी भी शख्स को नहीं छोड़ा जाएगा. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शुक्रवार को आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाड नाइकू के पिता को रिहा कर दिया.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके बदले आतंकवादियों के सामने प्रशासन को घुटने टेक देने चाहिए थे? क्या इनकी मांगों को मानते हुए इन आतंकवादियों के रिश्तेदारों को छोड़ना उचित है? क्या 29 साल पहले रुबैया सईद की रिहाई के बदले आतंकवादियों की रिहाई का फार्मूला अपनाना चाहिए? या फिर रवींद्र म्हात्रे के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आतंकवादियों के आगे ना झुकने वाले सिद्धांत का पालन करना चाहिए?
आतंकवादियों द्वारा रिश्तेदारों का अपहरण करने का सिलसिला 1989 में शुरू हुआ था जब जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैया सईद को आतंकियों ने अगवा कर लिया था. और अब वही ट्रेंड मिलना शुरू हो गया है. आइए नज़र डालते है कुछ चर्चित ऐसे ही परिस्थितियों पर जब सरकार को आतंकवादियों के सामने घुटने भी टेकने पड़े तो कुछ मामलों में सरकार इनकी मांगों को ठुकरा भी दिया.
रुबैया सईद:
ये बात है दिसंबर 1989 की, जब केंद्र में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और उसे छुड़ाने के लिए सरकार ने पांच खूंखार आतंकवादियों को रिहा कर दिया था. इसमें मामले की खास बात ये थी कि इसमें रिहा किए गए आतंकवादी जावेद अहमद जारगर ने 1999 में काठमांडू में इंडियन एयरलाइंस की आईसी 814 फ्लाइट को अगवा किया था. और सबसे मजेदार बात ये कि इस फ्लाइट में सवार यात्रियों के बदले भी आतंकी रिहा किए गए थे और इसमें मौलाना मसूद अजहर शामिल था, जिसने बाद में जैश-ए-मोहम्मद बनाया.
नाहिदा सोज:
कांग्रेस पार्टी के नेता और तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी से सांसद सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा सोज को 1991 में आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था जिसे छुड़वाने के लिए सरकार को खूंखार आतंकी मुश्ताक अहमद को रिहा करना पड़ा था.
तसद्दुक देव:
साल 1992 में कोंग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के साले तसद्दुक देव का आतंकवादियों द्वारा अपहरण कर लिया गया था जिसके बदले सरकार ने तीन आतंकवादियों को जेल से रिहा किया था.
रवींद्र म्हात्रे:
अब एक ऐसे मामले का ज़िक्र जहां सरकार ने आतंकवादियों के आगे घुटने नहीं टेके. हम बात कर रहे हैं राजनयिक रवींद्र म्हात्रे की जिन्हें फरवरी 1984 में ब्रिटेन में सक्रिय जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के सहयोगी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन आर्मी के आतंकवादियों ने बर्मिंघम में उन्हें अपहृत कर लिया था. लेकिन आतंकवाद की शरणस्थली बने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का साहस करने वाली इंदिरा गांधी ने इन आतंकवादियों के आगे झुकने से साफ इनकार कर दिया था. हालांकि म्हात्रे को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था.
अब फैसला जम्मू कश्मीर के प्रशासन को करना है कि किसका उदाहरण पेश किया जाए.
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