16 दिसंबर को राहुल गांधी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के मायने क्या वही हैं जो ऊपर से नजर आ रहे? या उस छोटी सी मुलाकात के पीछे बड़े सियासी पेंच हैं.
क्या प्रधानमंत्री मोदी से उस वक्त मुलाकात का राहुल गांधी का फैसला कोई सियासी भूल थी? अगर ये सियासी चूक होने जा रही थी तो क्या किसी अनुभवी कांग्रेसी नेता ने आगे बढ़ कर आगाह करना जरूरी नहीं समझा?
नौसिखिया गच्चा खा गये!
मोदी से मुलाकात से ऐन पहले तक राहुल गांधी उनके खिलाफ पर्सनल करप्शन के सबूत से लैस होकर घूम रहे थे - और यही वजह रही कि विपक्षी दलों के नेता कदम कदम पर कांग्रेस के साथ नजर आ रहे थे.
जैसे ही पता चला कि राहुल गांधी ने मोदी से मुलाकात की है और निकलते निकलते प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें मिलते रहना चाहिये, वे सकते में आ गये.
इसे भी पढ़ें : संसद में देर हुई, कहीं सड़क पर भी अंधेर न हो जाए राहुल के भूकंप लाने में
खबर भी यही बनी कि मोदी ने राहुल से क्या कहा, जो राहुल ने कहा वो सेकंडरी हो गई. जिस किसान यात्रा और खाट सभा के लिए राहुल गांधी ने इतनी मशक्कत और जोर शोर से तैयारी की उसकी बात कहीं गुम गई - ऊपर से जो विपक्ष उनके साथ खड़ा था वो भी बिखर गया. नतीजा ये हुआ कि जब सरकार के खिलाफ शिकायत लेकर सोनिया गांधी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने गईं तो चार विपक्षी दलों ने खुद को साफ तौर पर अलग कर लिया. सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी को ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री मोदी से इस तरह मिलना चाहिये था जब वो नोटबंदी को लेकर विपक्ष को साथ लेकर आगे बढ़ रहे थे.
16 दिसंबर को राहुल गांधी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के मायने क्या वही हैं जो ऊपर से नजर आ रहे? या उस छोटी सी मुलाकात के पीछे बड़े सियासी पेंच हैं. क्या प्रधानमंत्री मोदी से उस वक्त मुलाकात का राहुल गांधी का फैसला कोई सियासी भूल थी? अगर ये सियासी चूक होने जा रही थी तो क्या किसी अनुभवी कांग्रेसी नेता ने आगे बढ़ कर आगाह करना जरूरी नहीं समझा? नौसिखिया गच्चा खा गये! मोदी से मुलाकात से ऐन पहले तक राहुल गांधी उनके खिलाफ पर्सनल करप्शन के सबूत से लैस होकर घूम रहे थे - और यही वजह रही कि विपक्षी दलों के नेता कदम कदम पर कांग्रेस के साथ नजर आ रहे थे. जैसे ही पता चला कि राहुल गांधी ने मोदी से मुलाकात की है और निकलते निकलते प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें मिलते रहना चाहिये, वे सकते में आ गये. इसे भी पढ़ें : संसद में देर हुई, कहीं सड़क पर भी अंधेर न हो जाए राहुल के भूकंप लाने में खबर भी यही बनी कि मोदी ने राहुल से क्या कहा, जो राहुल ने कहा वो सेकंडरी हो गई. जिस किसान यात्रा और खाट सभा के लिए राहुल गांधी ने इतनी मशक्कत और जोर शोर से तैयारी की उसकी बात कहीं गुम गई - ऊपर से जो विपक्ष उनके साथ खड़ा था वो भी बिखर गया. नतीजा ये हुआ कि जब सरकार के खिलाफ शिकायत लेकर सोनिया गांधी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने गईं तो चार विपक्षी दलों ने खुद को साफ तौर पर अलग कर लिया. सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी को ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री मोदी से इस तरह मिलना चाहिये था जब वो नोटबंदी को लेकर विपक्ष को साथ लेकर आगे बढ़ रहे थे.
कहीं ऐसा तो नहीं कि टीम राहुल के नौसीखिये सियासी जाल में फंस गये? सियासत में हर छोटी से छोटी बात और मुलाकात मायने रखती है और उसके दूरगामी परिणाम होते हैं. टाइमिंग का पेंच मोदी-राहुल मुलाकात के बाद से ही कांग्रेस के कई नेता डिनायल मोड में दिखे. जब भी किसी से इस बाबत पूछा गया गोल मोल इंकार और खामोशी भरे इकरार का खेल खेलते रहे. बताते हैं कि करीब दो हफ्ते पहले टीम राहुल की ओर से प्रधानमंत्री से मुलाकात का वक्त मांगा गया था. मुलाकात का वक्त उस दिन मिला जब विंटर सेशन खत्म होने को था - और राहुल के पर्सनल करप्शन वाले इल्जाम लगाने के ठीक एक दिन बाद. इसे भी पढ़ें : कहीं बैकफायर तो नहीं हो रहा मोदी को घेरने वाला ब्रह्मास्त्र तो क्या मुलाकात का वक्त देने के पीछे कोई सियासी चाल थी? इस चाल को नौसीखिये नेता समझ नहीं पाये और विपक्षी एकता यूं ही बिखरते देर न लगी. सोशल मीडिया पर जो मजाक उड़ा सो अलग. सूत्रों के हवाले से जो खबरें आईं उनसे पता यही चला कि कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस मुलाकात के पक्ष में कतई नहीं थे. इनमें ज्यादातर वे थे जिन्हें सोनिया गांधी के प्रति राहुल के मुकाबले ज्यादा निष्ठावान माना जाता रहा है. कहते हैं कि युवा जोश के हावी होने से अनुभव धरा का धरा रह गया - और राहुल गांधी को मोदी से मुलाकात के लिए तैयार कर लिया गया.
सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ये मुलाकात कितनी अहम रही इसे समझने के लिए दो ट्वीट काफी हैं. इस मुलाकात को लेकर सत्ता पक्ष के ट्वीट के घंटे भर बाद राहुल की ओर से ट्वीट आया.
साफ है कि सरकार के लिए अहम था कि राहुल और दूसरे कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री से मिले. राहुल के लिए बस इतना ही मायने रखता था कि उन्होंने किसानों की बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाई. तो क्या प्रधानमंत्री मोदी ने देश को कांग्रेस मुक्त बनाने के अपने मिशन में एक ऐसी चाल चली जिसमें कांग्रेस को जोर का झटका मिला - जिसकी भरपाई अब राहुल गांधी भूकंप न सही थोड़ा बहुत उसके झटके देकर ही कर सकते हैं. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |