देश में #MeToo कैम्पेन के लिए बुधवार को ,एक अहम मोड़ तब आया जब विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे का ये मतलब नहीं है कि अकबर दोषी हैं. न ही उनके खिलाफ आरोप कानून की अदालत में अभी साबित हुए हैं. ये कानूनी लड़ाई लंबी चलेगी. अकबर ने आरोप लगाने वाली वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया है. अकबर के खिलाफ प्रिया रमानी समेत करीब 20 अन्य महिलाओं ने #MeToo अभियान के तहत आरोप लगाए हैं.
नाइजीरिया के सरकारी दौरे से लौटने के बाद विदेश राज्य मंत्री अकबर ने अपने खिलाफ सभी आरोपों को खारिज किया था. साथ ही ये भी कहा था कि आम चुनावों से महज कुछ महीने पहले ही यह तूफान क्यों उठा? क्या इसके पीछे किसी तरह का कोई एजेंडा है? इन बेबुनियाद और झूठे आरोपों से मेरी इमेज को क्षति पहुंची है. अकबर ने विदेश से लौटते ही अपने बचाव में वकीलों की मदद से फील्डिंग सेट करनी भी शुरू कर दी थी?
फ्रंटफुट से अचानक बैकफुट पर क्यों आए अकबर?
फिर क्या वजह हुई कि पहले जो अकबर फ्रंटफुट पर दिख रहे थे, वो चंद दिनों में ही अचानक बैकफुट पर आए और बुधवार को इस्तीफा दे दिया? क्या आरोप लगाने वाली सभी महिलाओं के चट्टानी एकजुटता दिखाने और सोशल मीडिया पर बढ़ते दबाव की वजह से अकबर को झुकना पड़ा? क्या मोदी सरकार की ओर से कोई इशारा दिया गया कि जब तक आप कानूनी लड़ाई में बेदाग साबित नहीं हो जाते, सरकार से दूर रहें. नहीं तो इसका खामियाजा बीजेपी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है?
क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को NSI के अध्यक्ष पद से फिरोज खान का इस्तीफा लेकर बीजेपी पर दबाव बढ़ाया? दरअसल, फिरोज खान पर कुछ महीने पहले उनके संगठन की ही एक युवती...
देश में #MeToo कैम्पेन के लिए बुधवार को ,एक अहम मोड़ तब आया जब विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे का ये मतलब नहीं है कि अकबर दोषी हैं. न ही उनके खिलाफ आरोप कानून की अदालत में अभी साबित हुए हैं. ये कानूनी लड़ाई लंबी चलेगी. अकबर ने आरोप लगाने वाली वरिष्ठ पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया है. अकबर के खिलाफ प्रिया रमानी समेत करीब 20 अन्य महिलाओं ने #MeToo अभियान के तहत आरोप लगाए हैं.
नाइजीरिया के सरकारी दौरे से लौटने के बाद विदेश राज्य मंत्री अकबर ने अपने खिलाफ सभी आरोपों को खारिज किया था. साथ ही ये भी कहा था कि आम चुनावों से महज कुछ महीने पहले ही यह तूफान क्यों उठा? क्या इसके पीछे किसी तरह का कोई एजेंडा है? इन बेबुनियाद और झूठे आरोपों से मेरी इमेज को क्षति पहुंची है. अकबर ने विदेश से लौटते ही अपने बचाव में वकीलों की मदद से फील्डिंग सेट करनी भी शुरू कर दी थी?
फ्रंटफुट से अचानक बैकफुट पर क्यों आए अकबर?
फिर क्या वजह हुई कि पहले जो अकबर फ्रंटफुट पर दिख रहे थे, वो चंद दिनों में ही अचानक बैकफुट पर आए और बुधवार को इस्तीफा दे दिया? क्या आरोप लगाने वाली सभी महिलाओं के चट्टानी एकजुटता दिखाने और सोशल मीडिया पर बढ़ते दबाव की वजह से अकबर को झुकना पड़ा? क्या मोदी सरकार की ओर से कोई इशारा दिया गया कि जब तक आप कानूनी लड़ाई में बेदाग साबित नहीं हो जाते, सरकार से दूर रहें. नहीं तो इसका खामियाजा बीजेपी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है?
क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को NSI के अध्यक्ष पद से फिरोज खान का इस्तीफा लेकर बीजेपी पर दबाव बढ़ाया? दरअसल, फिरोज खान पर कुछ महीने पहले उनके संगठन की ही एक युवती ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. मंगलवार को फिरोज खान ने कहा कि वो खुद को बेदाग साबित करने के लिए युवती पर अवमानना का केस लड़ना चाहते हैं. सूत्रों के मुताबिक फिरोज को पार्टी की तरफ से कहा गया कि आप पहले इस्तीफा दें और उसके बाद जो करना चाहते हैं करें.
अकबर के इस्तीफे से पहले ये सवाल उठने लगे थे कि क्या #MeToo के साथ भी वैसा ही होने वाला है जैसे कि विदेश से आयातित कैम्पेनों के साथ अतीत में होता रहा है? कहते हैं कि बिना आग धुआं नहीं उठता. बॉलिवुड हो या अकबर, या फिर कोई अन्य क्षेत्र का बड़ा नाम. महिलाओं ने इनके खिलाफ आरोप लगाए हैं तो ज़रूर सोच समझ कर ही लगाए होंगे. उनकी समझ से उनके पास इसकी वजह भी रही होगी. रिप्पल इफेक्ट की तरह एक को देख कर दूसरे में जिस तरह हिम्मत आती है, वैसे ही #MeToo में भी हुआ.
आरोप सच्चे हैं या झूठे, ये कोई तय नहीं कर सकता, सिवाए अदालत के. लेकिन धारणा है कि बिना किसी वजह आखिर कोई महिला किसी शख्स के खिलाफ आरोप लगाने का जोखिम क्यों मोल लेगी? लेकिन अदालतें धारणाओं या परसेप्शन पर नहीं चलती, वो सबूतों के आधार पर फैसले देती हैं.
ये सही है कि इस कैम्पेन से यौन उत्पीड़न के आरोपों के घेरे में आए बड़े नाम वाले लोगों का मान-मर्दन हुआ. ये अपने आप में ही 'बड़ी सजा' है. लेकिन जिन्होंने आरोप लगाए, क्या वो आश्वस्त हैं कि वो कानूनन भी इन्हें सज़ा दिला पाएंगी? क्या इसके लिए उनके पास पर्याप्त सबूत हैं? ये भी तय है कि जिन पर आरोप लगे हैं वो खुद को पाक-साफ़ साबित करने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे. बड़े से बड़े वकीलों की मदद लेंगे. उन्हें ऐसा करने का हक़ है. देश का कानून हर नागरिक को खुद के बचाव में सफाई का मौका देता है.
ये सच है कि किसी भी महिला को वर्कप्लेस हो या कोई और जगह, सुरक्षा का पूरा माहौल मिलना चाहिए. अगर कोई उनके साथ दुराचार करता है तो उसे कानून के मुताबिक सजा मिलनी चाहिए. ऐसा नहीं कि इस सबंध में प्रावधान नहीं है, कानून नहीं है, कमेटियां नहीं हैं. सब कुछ हैं लेकिन फिर भी ऐसी घटनाएं होती हैं, शोषण होता है.
ये सब कैसे रुके?
#MeToo कैम्पेन को सराहा जाना चाहिए कि इसकी वजह से इस संवेदनशील मुद्दे पर देश भर में बहस तो छिड़ी. केंद्र में महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को कुछ दिन पहले ‘मी टू’ मामलों की जन सुनवाई के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की चार सदस्यीय समिति बनाने का एलान करना पड़ा. हालांकि इस एलान को लेकर भी बुधवार को नया मोड़ आया. सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार इस मसले पर सेवानिवृत्त जजों की कमेटी नहीं बल्कि मंत्रियों का समूह (GOM) बनाने पर विचार कर रही है. इस समूह की अध्यक्षता वरिष्ठ महिला मंत्री करेंगी. ये मंत्रियों का समूह मी टू अभियान में उठे सवालों को देखेगा. साथ ही वर्कप्लेस पर महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए मौजूदा कानून-नियमों की खामियों को दूर करने के उपाय सुझाएगा.
क्या अभिनेता जितेंद्र से जुड़ा केस बनेगा नज़ीर?
MeToo के इस दौर में एक केस की ओर ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया. इस साल के शुरू में 75 वर्षीय अभिनेता जितेंद्र पर उनकी फुफेरी बहन ने ही यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. आरोप लगाने वाली महिला ने कहा था कि 47 साल पहले 1971 में जितेंद्र एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में हिमाचल प्रदेश आए थे तो उन्होंने शिमला के एक होटल में उनका यौन उत्पीड़न किया था. महिला के मुताबिक उस वक्त जितेंद्र की उम्र 28 साल और महिला की 18 साल थी. 47 साल तक महिला क्यों चुप रही? इस सवाल के जवाब में महिला का कहना था कि उस वक्त उसके माता-पिता जीवित थे और वो उन्हें दुखी नहीं करना चाहती थी.
जितेंद्र के वकील ने इन आरोपों के खिलाफ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जितेंद्र के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ ये केस साजिशन किया गया. शिमला के महिला पुलिस थाने में 16 फरवरी 2018 को आईपीसी की धारा 354 के तहत एफआईआर दर्ज की गई. जितेंद्र की ओर से दलील दी गई कि FIR उन्हें ब्लैकमेल करने के इरादे से दर्ज की गई.
जितेंद्र की ओर से ये भी कहा गया कि आरोप लगाने वाली महिला ने न तो शिमला के होटल का नाम बताया, ना ही फिल्म का नाम बताया और ना ही फिल्म में उनके साथ काम करने वाले किसी सह-कलाकार का नाम बताया. जितेंद्र की ओर से ये तर्क भी दिया गया कि आम आदमी को पुलिस में एफआईआर दर्ज करने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है, फिर ये एफआईआर कैसे आननफानन में दर्ज कर ली गई वो भी बिना सबूत और बिना कोई पड़ताल किए.
हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद आगे जांच या किसी तरह की भी कार्रवाई पर रोक लगा दी. महिला ने माता-पिता को दुख ना पहुंचाने का हवाला देकर शिकायत में इतने साल की देरी की जो वजह बताई, उसे नहीं माना गया. बता दें कि जितेंद्र के वकील ने कोर्ट में लिमिटेशन एक्ट का हवाला भी दिया था. यानी किसी अपराध के लिए किसी निश्चित समय अवधि तक ही शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. जितेंद्र के खिलाफ केस में शिकायत 47 साल बाद दर्ज कराई गई.
अपराध के कितने साल बाद तक करी जा सकती है शिकायत?
यौन अपराधों को लेकर क्या भारत में भी कोई समय अवधि निर्धारित है? और क्या उन अपराधों में समय अवधि बीत जाने के बाद शिकायत दर्ज नहीं कराई जा सकती? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर है कि उस अपराध में कितनी अधिकतम सजा का प्रावधान है. मान लीजिए कि स्टॉकिंग में तीन साल की अधिकतम सजा है. ऐसे में तीन साल के भीतर अपराध की शिकायत करना जरूरी है. तीन साल बीत जाने पर शिकायत नहीं की जा सकती. हालांकि जिन अपराधों में अधिकतम सजा का प्रावधान तीन साल से ज्यादा है वहां ये लिमिट नहीं लागू होती. ऐसे अपराधों में कभी भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है.
भारत समेत दुनिया भर में बच्चों से Sex Abuse (यौन उत्पीड़न) के अधिकतर मामले रिपोर्ट ही नहीं होते. ऐसे में क्या हमारे देश में ये प्रावधान नहीं हो सकता कि ऐसे किसी भी अपराध के लिए जीवन में आगे चलकर पीड़ित कभी भी शिकायत दर्ज करा सके. इस साल फरवरी में राष्ट्रीय महिला आयोग की रजत जयंती के मौके पर केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा था कि सरकार ऐसे प्रस्ताव पर विचार करेगी जिसमें अपराध हुए काफी साल बीतने के बाद भी शिकायत दर्ज कराई जा सके. महिला और बाल कल्याण मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक ये मामला ‘नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ को सौंप दिया गया है.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव आने वाले हैं. ऐसे में अगले आठ-नौ महीने में #MeToo की गूंज चुनावी मुद्दे के तौर पर रह-रह कर सुनाई देती रहेगी, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
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