यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रचंड जीत के पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ था. भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में सोशल मीडिया का जम कर इस्तेमाल किया था और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे थे. हालांकि अब लगता है कि पार्टी की सबसे बड़ी ताक़त ही उनके गले की फांस बनती जा रही है.
अगले कुछ महीनों में गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं. मगर यहां भाजपा नेतृत्व एक अलग तरह की चुनौती का सामना करती दिख रही है. सोशल मीडिया पर इस वक़्त 'विकास पागल हो गया है' खूब ट्रेंड करता दिख रहा है. हालांकि इसके जवाब में भाजपा ने 'विकास दिखता है' अभियान चलाया है. लेकिन यह ज्यादा जोर नहीं पकड़ पा रहा है.
हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर कई मुद्दों पर मात खाती दिख रही है. ताजा मामला पत्रकार गौरी लंकेश के मौत से जुड़ा हुआ है. लंकेश की मौत पर अभद्र टिपण्णी करने वाले एक शख्स को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फॉलो करते हुए पाए गए थे. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की किरकिरी भी हुई और साथ ही कई लोगों ने प्रधानमंत्री से ऐसे लोगों को फॉलो न करने की भी अपील कर दी.
उसके बाद पेट्रोल के बढ़ते दाम पर भी सोशल मीडिया ने भाजपा के नेताओं की जमकर चुटकी ली. विपक्षी पार्टियों ने तो नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं के पुराने बयान सोशल मीडिया पर डाल दिए. इन्हें आम लोगों ने भी खूब पसंद किया. कुछ-कुछ वैसा ही हाल नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के बाद भी देखने को मिला. सोशल मीडिया पर सरकार के उन बयानों को शेयर किया गया जो पहले नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए दिए गए थे. लेकिन जब नोटबंदी से नुकसान की बात आई तो सरकार के मंत्री...
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रचंड जीत के पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ था. भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में सोशल मीडिया का जम कर इस्तेमाल किया था और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे थे. हालांकि अब लगता है कि पार्टी की सबसे बड़ी ताक़त ही उनके गले की फांस बनती जा रही है.
अगले कुछ महीनों में गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं. मगर यहां भाजपा नेतृत्व एक अलग तरह की चुनौती का सामना करती दिख रही है. सोशल मीडिया पर इस वक़्त 'विकास पागल हो गया है' खूब ट्रेंड करता दिख रहा है. हालांकि इसके जवाब में भाजपा ने 'विकास दिखता है' अभियान चलाया है. लेकिन यह ज्यादा जोर नहीं पकड़ पा रहा है.
हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर कई मुद्दों पर मात खाती दिख रही है. ताजा मामला पत्रकार गौरी लंकेश के मौत से जुड़ा हुआ है. लंकेश की मौत पर अभद्र टिपण्णी करने वाले एक शख्स को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फॉलो करते हुए पाए गए थे. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की किरकिरी भी हुई और साथ ही कई लोगों ने प्रधानमंत्री से ऐसे लोगों को फॉलो न करने की भी अपील कर दी.
उसके बाद पेट्रोल के बढ़ते दाम पर भी सोशल मीडिया ने भाजपा के नेताओं की जमकर चुटकी ली. विपक्षी पार्टियों ने तो नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं के पुराने बयान सोशल मीडिया पर डाल दिए. इन्हें आम लोगों ने भी खूब पसंद किया. कुछ-कुछ वैसा ही हाल नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के बाद भी देखने को मिला. सोशल मीडिया पर सरकार के उन बयानों को शेयर किया गया जो पहले नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए दिए गए थे. लेकिन जब नोटबंदी से नुकसान की बात आई तो सरकार के मंत्री डैमेज कण्ट्रोल करने लगे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
आखिर सोशल मीडिया पर क्यों पिछड़ रही है भाजपा
अगर 2014 और अब की बात करें तो इस दौरान सोशल मीडिया को लेकर पार्टियों की सोच में एक बड़ा बदलाव आया है. 2014 में बीजेपी एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसने सोशल मीडिया की ताक़त को पहचाना था. उस समय कांग्रेस प्रचार के पुराने तरीकों पर ही विश्वास करती दिख रही थी. भारतीय जनता पार्टी को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर पहली चुनौती दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मिली. यहां केजरीवाल बीजेपी को हर मुद्दे पर घेरते दिखे.
अब तो स्थिति यह है कि कमोबेश हर पार्टी सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल करना चाहती है. इसके लिए तो पार्टियों ने बकायदा इस फील्ड के एक्सपर्ट्स को अपने यहां जगह दे रखी है. आज राहुल गांधी, लालू यादव, तेजस्वी यादव, मनीष तिवारी जैसे नेता सोशल मीडिया पर उतने ही एक्टिव दिखते हैं, जितना कुछ समय पहले तक केवल नरेंद्र मोदी या अरविन्द केजरीवाल हुआ करते थे.
विपक्षी पार्टियां अब सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं गंवाती. पार्टियां अब यह जान चुकी हैं कि वर्तमान दौर में सोशल मीडिया को नजरअंदाज कर लोगों से जुड़ना मुश्किल है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 2014 के दौरान जिस मैदान में भारतीय जनता पार्टी अकेले थी. उसी मैदान में उसकी विपक्षी पार्टियां भी उतने ही दमदार तरीके से उतर चुकी हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को इनसे निपटने के लिए न केवल नयी रणनीति पर काम करना होगा, बल्कि इसका इस्तेमाल करते समय और ज्यादा सावधानी बरतनी होगी. ताकि भविष्य में कहीं उनके खुद के बयान ही उनके लिए मुश्किल न खड़ी कर दें.
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