राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है - 'बहुत चतुर बनिया था वो'. रायपुर में ‘महत्वपूर्ण व्यक्तियों’ की एक सभा में शाह ने कांग्रेस को टारगेट करते हुए गांधी के बारे में ये राय रखी. शाह का कहना है कि कांग्रेस की कोई विचारधारा नहीं है, बल्कि आजादी हासिल करने के लिए उसे बतौर एक 'स्पेशल पर्पज व्हीकल' खड़ा किया गया. शाह का दावा है कि कांग्रेस नहीं देश में सिर्फ बीजेपी और सीपीएम विचारधारा वाली पार्टियां हैं.
क्या अमित शाह का ये बयान कांग्रेस की आलोचना का बाइ-प्रोडक्ट है? या फिर हकीकत में गांधी के प्रति यही उनके असली विचार हैं?
वैचारिक लड़ाई
28 मई को विनायक दामोदर सावरकर के जन्मदिन से दो दिन पहले, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में विपक्षी नेताओं को दावत दी थी. ये दावत नीतीश कुमार के न पहुंचने, अरविंद केजरीवाल को न्योता न दिये जाने के अलावा मायावती और अखिलेश यादव के हाव-भाव में मेलजोल के लक्षणों को लेकर चर्चित रही.
17 राजनीतिक दलों के जमावड़े से उत्साहित सोनिया ने केंद्र की मौजूदा सत्ता से सीधी वैचारिक लड़ाई का ऐलान किया था. इस लड़ाई का पहला टेस्ट राष्ट्रपति चुनाव और आखिरी 2019 का लोक सभा चुनाव समझा गया. इस लड़ाई का मकसद पहले टेस्ट में जोरदार टक्कर और आखिरी में शिकस्त है. सावरकर के जन्मदिन के एक दिन बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपने फेवरेट प्लेटफॉर्म ट्विटर पर विचारधारा को लेकर सवाल खड़े किये. इनमें उनके निशाने पर सावरकर ही रहे. दिग्विजय ने एक ट्वीट में संसद में गांधी की तस्वीर के सामने सावरकर के फोटो पर भी सवाल उठाये.
'एक चतुर बनिया...'
अब जरा शाह के उस भाषण पर गौर कीजिए जिसमें...
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है - 'बहुत चतुर बनिया था वो'. रायपुर में ‘महत्वपूर्ण व्यक्तियों’ की एक सभा में शाह ने कांग्रेस को टारगेट करते हुए गांधी के बारे में ये राय रखी. शाह का कहना है कि कांग्रेस की कोई विचारधारा नहीं है, बल्कि आजादी हासिल करने के लिए उसे बतौर एक 'स्पेशल पर्पज व्हीकल' खड़ा किया गया. शाह का दावा है कि कांग्रेस नहीं देश में सिर्फ बीजेपी और सीपीएम विचारधारा वाली पार्टियां हैं.
क्या अमित शाह का ये बयान कांग्रेस की आलोचना का बाइ-प्रोडक्ट है? या फिर हकीकत में गांधी के प्रति यही उनके असली विचार हैं?
वैचारिक लड़ाई
28 मई को विनायक दामोदर सावरकर के जन्मदिन से दो दिन पहले, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में विपक्षी नेताओं को दावत दी थी. ये दावत नीतीश कुमार के न पहुंचने, अरविंद केजरीवाल को न्योता न दिये जाने के अलावा मायावती और अखिलेश यादव के हाव-भाव में मेलजोल के लक्षणों को लेकर चर्चित रही.
17 राजनीतिक दलों के जमावड़े से उत्साहित सोनिया ने केंद्र की मौजूदा सत्ता से सीधी वैचारिक लड़ाई का ऐलान किया था. इस लड़ाई का पहला टेस्ट राष्ट्रपति चुनाव और आखिरी 2019 का लोक सभा चुनाव समझा गया. इस लड़ाई का मकसद पहले टेस्ट में जोरदार टक्कर और आखिरी में शिकस्त है. सावरकर के जन्मदिन के एक दिन बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपने फेवरेट प्लेटफॉर्म ट्विटर पर विचारधारा को लेकर सवाल खड़े किये. इनमें उनके निशाने पर सावरकर ही रहे. दिग्विजय ने एक ट्वीट में संसद में गांधी की तस्वीर के सामने सावरकर के फोटो पर भी सवाल उठाये.
'एक चतुर बनिया...'
अब जरा शाह के उस भाषण पर गौर कीजिए जिसमें गांधी का जिक्र आया और उनकी राय भी, "कांग्रेस किसी एक विचार धारा के आधार पर, किसी एक सिद्धांत के आधार पर बनी हुई पार्टी ही नहीं है, वो आजादी प्राप्त करने का एक स्पेशल पर्पज व्हीकल है, आजादी प्राप्त करने का एक साधन था और इसलिए महात्मा गांधी ने दूरंदेशी के साथ, बहुत चतुर बनिया था वो, उसको मालूम था कि आगे क्या होने वाला है, उसने आजादी के बाद तुरंत कहा था, कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए. महात्मा गांधी ने नहीं किया, लेकिन अब कुछ लोग उसको बिखेरने का काम पूरा कर रहे हैं. इसलिए ही कहा था महात्मा गांधी ने क्योंकि कांग्रेस की कोई विचारधारा ही नहीं है, देश चलाने के, सरकार चलाने के कोई सिद्धांत ही नहीं थे."
सबसे ऊपर सावरकर
हाल ही में हिंदुस्तान टाइम्स में खबर छपी थी जिसमें बताया गया कि किस तरह राजस्थान स्टेट बोर्ड की किताब में सावरकर को सबसे ऊपर रखा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब में सावरकर पर जितनी सामग्री दी गयी है उसके आगे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी नहीं टिकते और महात्मा गांधी का तो बस जिक्र भर हुआ है. राज्य सरकार की ओर से सफाई में शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि आंदोलन की हर शख्सियत को सभी किताबों में जगह नहीं दी जा सकती.
गांधी को लेकर शाह के ये शब्द भले ही पहली बार सुनने को मिले हों, बीजेपी के कई नेताओं ने समय समय पर राष्ट्रपिता को लेकर अपनी सोच साझा करते रहे हैं.
साध्वी प्राची की मानें तो देश को आजादी चरखे के चलते नहीं मिली, बल्कि सावरकर और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया था. साध्वी की नजर में महात्मा गांधी सिर्फ अंग्रेजों के एजेंट थे.
जब खादी के एक विज्ञापन में गांधी की तस्वीर गायब पाई गयी तो खूब हंगामा हुआ. इस पर हरियाणा के मंत्री अनिल विज का कहना रहा गांधी जी ने खादी का कोई ट्रेडमार्क तो करा नहीं रखा है. फिर विज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खादी के लिए गांधी से भी बड़ा ब्रांड बताया था.
बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय को तो वो गीत भी नहीं पसंद है - 'सबरमती के संत तून कर दिया कमाल...' विजयवर्गीय ने कहा था कि साबरमती के संत ने नहीं, देश के क्रांतिकारियों ने आजादी दिलवाई थी. जाहिर है वो भी सावरकर और भगत सिंह की ही बात कर रहे होंगे.
जांच का आधार है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका के बाद सवाल उठा है कि क्या गांधी के दो हत्यारे थे? अब तक यही पता है कि नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या की थी. याचिका के जरिये बड़ी साजिश का शक जताते हुए जांच आयोग गठित करने की कोर्ट से गुजारिश की गयी है.
याचिका दायर करने वाले अभिनव भारत के शोधकर्ता डॉ. पकंज फडनिस ने गोडसे और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए तमाम अदालतों में सही मानी गई 'तीन गोलियों की थ्योरी' पर भी सवाल उठाया है. गांधी की हत्या के अभियुक्तों को 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गयी थी, जबकि सावरकर को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया.
याचिका में तीन गोलियों वाली थ्योरी को खारिज किया गया है. अपनी रिसर्च और मीडिया रिपोर्ट के हवाले से फडनिस का कहना है कि उस दिन तीन नहीं, बल्कि चार गोलियां चलीं थीं. फडनिस ध्यान दिलाते हैं - गोडसे के पास जो बंदूक थी उसमें 7 बुलेट चैंबर थे जिनमें से सिर्फ तीन ही खाली हुए थे. यानी चौथी गोली किसी और बंदूक से चली होगी! चौथी गोली चलाने वाला आखिर कौन था? फडनिस इसी सवाल का जवाब चाहते हैं.
याचिका में एक बड़ा सवाल है - क्या गांधी की मौत के लिए सावरकर को जिम्मेदार ठहराने का कोई आधार है, या नहीं?
6 मार्च 2014 को मुंबई के भिवंडी में एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, "आरएसएस के लोगों ने महात्मा गांधी को मारा था."
राहुल के बयान के खिलाफ जब एक डिफेमेशन केस दायर हुआ तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के सामने दो विकल्प रखे - या तो वो आरएसएस से माफी मांगें या फिर कोर्ट में ट्रायल के लिए तैयार रहें. राहुल के वकीलों ने दलील दी कि ये ऐतिहासिक तथ्य है, लेकिन कोर्ट ने नहीं माना. बाद में याचिका वापस लेते हुए राहुल ने कहा कि वो ट्रायल का सामना करेंगे.
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर इसी साल भिवंडी कोर्ट में पेशी के लिए पहुंचे राहुल गांधी ने कहा, "मेरी लड़ाई विचारधारा के खिलाफ है. वही विचारधारा जिसने गांधी जी की हत्या की. वही विचारधारा जो गांधी जी को खादी ग्रामोद्योग के पोस्टर से हटाया है."
ये तो साफ है कि विचारधारा की इस लड़ाई महात्मा गांधी पिस रहे हैं. आशंका बस इतनी है कि बीजेपी के विपक्ष मुक्त और कांग्रेस मुक्त भारत जैसे अभियानों के साये में कहीं महात्मा गांधी भी तो हाशिये पर नहीं पहुंचाये जा रहे?
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