उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत शनिवार को शपथ ग्रहण करेंगे. लेकिन अगर कोई बात सुर्खियों में है तो वो नए मुख्यमंत्री के सरकारी निवास को लेकर. उत्तराखंड के अधिकृत मुख्यमंत्री आवास को आज भी अपने मुख्यमंत्री का इंतजार है. मुख्यमंत्री आवास के बारे में मिथक है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां रहने आया उसने ही अपनी सत्ता खोई.
कौतुहल का विषय यह है कि क्या नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत करीब 30 करोड़ रुपये की लागत से बने इस सरकारी आवास में रहेंगे? या फिर अंधविश्वास को लेकर अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों के रास्ते पर चलेंगे? पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बात करें तो उन्होंने बीजापुर गेस्ट हाउस को ही अपना आवास बना दिया था, फिरभी चुनावों में जीत नहीं पाए थे. मुख्यमंत्री हरीश रावत इसे अपशकुनी मानकर इसमें नहीं गए. अब देखना है कि क्या प्रदेश के नए मुख्यमंत्री इस मिथक को तोड़ते हैं या नहीं.
मुख्यमंत्री आवास में वास्तुदोष की अफवाहों के कारण लगभग सभी पूर्व मुख्यमंत्री इसमें रहने से बचते रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक संपत्ति विभाग ने इस बंगले को संवारने का काम शुरू कर दिया है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री आवास का निर्माण नारायणदत्त तिवारी के कार्यकाल(02-03-2002 से 07-03-2007) में शुरू हुआ था. निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.सी.खंडूरी के प्रथम कार्यकाल में. खंडूरी ही सर्वप्रथम इस आवास में रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था. निशंक भी मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रह पाए.
भुवन चंद्र खंडूरी जब सितम्बर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, करीब छह माह आवास में रहने के बाद उनकी सरकार चुनाव में हार गई, खुद खंडूरी सीटिंग सीएम होने के बाबजूद कोटद्वार से चुनाव हार गए.
प्रदेश में कांग्रेस की...
उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत शनिवार को शपथ ग्रहण करेंगे. लेकिन अगर कोई बात सुर्खियों में है तो वो नए मुख्यमंत्री के सरकारी निवास को लेकर. उत्तराखंड के अधिकृत मुख्यमंत्री आवास को आज भी अपने मुख्यमंत्री का इंतजार है. मुख्यमंत्री आवास के बारे में मिथक है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां रहने आया उसने ही अपनी सत्ता खोई.
कौतुहल का विषय यह है कि क्या नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत करीब 30 करोड़ रुपये की लागत से बने इस सरकारी आवास में रहेंगे? या फिर अंधविश्वास को लेकर अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों के रास्ते पर चलेंगे? पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बात करें तो उन्होंने बीजापुर गेस्ट हाउस को ही अपना आवास बना दिया था, फिरभी चुनावों में जीत नहीं पाए थे. मुख्यमंत्री हरीश रावत इसे अपशकुनी मानकर इसमें नहीं गए. अब देखना है कि क्या प्रदेश के नए मुख्यमंत्री इस मिथक को तोड़ते हैं या नहीं.
मुख्यमंत्री आवास में वास्तुदोष की अफवाहों के कारण लगभग सभी पूर्व मुख्यमंत्री इसमें रहने से बचते रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक संपत्ति विभाग ने इस बंगले को संवारने का काम शुरू कर दिया है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री आवास का निर्माण नारायणदत्त तिवारी के कार्यकाल(02-03-2002 से 07-03-2007) में शुरू हुआ था. निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.सी.खंडूरी के प्रथम कार्यकाल में. खंडूरी ही सर्वप्रथम इस आवास में रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था. निशंक भी मुख्यमंत्री के रूप में इस आवास में ज्यादा दिनों तक पद पर नहीं रह पाए.
भुवन चंद्र खंडूरी जब सितम्बर 2011 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, करीब छह माह आवास में रहने के बाद उनकी सरकार चुनाव में हार गई, खुद खंडूरी सीटिंग सीएम होने के बाबजूद कोटद्वार से चुनाव हार गए.
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और इसके मुखिया बने विजय बहुगुणा. मुख्यमंत्री आवास को नया सीएम विजय बहुगुणा के रूप में मिला, वे भी लगभग एक साल और ग्यारह महीने वहां ठहरने के बाद चलते बने, उन्हें पार्टी ने ही केदारनाथ की घटना के बाद पद से चलता कर दिया था. वे इस आवास में सबसे ज्यादा रहने वाले मुख्यमंत्री बने.
हरीश रावत भी अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए इस मुख्यमंत्री आवास में शिफ्ट नहीं हुए, मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपना पूरा कार्यकाल बीजापुर गेस्ट हाउस में ही बिताया, वे कभी भी इस सरकारी आवास में नहीं गए. हालांकि वे भी 2017 में अपनी किस्मत के सितारे नहीं बदल पाए.
सीएम आवास के खाली पड़े रहने की वजह से राज्य संपत्ति विभाग काफी परेशान है. बंगले को बनाने में करोड़ों खर्च हुए, इसके अलावा आवास की सिक्योरिटी, रखरखाव और स्टाफ पर भारी भरकम खर्च हो रहा है.
साथ ही सीएम के लिए दूसरे स्थान पर आवास की व्यवस्था करने का भार अलग से है. अब देखना होगा कि नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मिथक को तोड़ते हैं या नहीं!
कौन मुख्यमंत्री कितने दिन रहा इस मुख्यमंत्री आवास में
* निशंक- मई 2011 से सितंबर 2011
* भुवन चंद्र खंडूड़ी- सिंतबर से मार्च 2012
* विजय बहुगुणा- मार्च 2012 से जनवरी 2014
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