जिस देश में राजनीति का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है. खिचड़ी से लेकर गधे तक और पद्मावती से लेकर करणी सेना तक राजनीति में उतर आई है. गोवा से लेकर उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में भी राजनीति बदल रही है. लेकिन आखिर उड़ीसा इस दौड़ में कहां नज़र आ रहा है?
ये सवाल इसलिए जायज हो रहा है क्योंकि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में कमल खिलाने के साथ साथ देश को विकास का सपना दिखा रहे हैं. तो दूसरी ओर ओडिशा की राजनीति पटनायक साम्राज्य के चारों तरफ ही घूम रही है. कई दशकों से यहां बीजू जनता दल का राज रहा है. फिर चाहे वो पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक हों या उनके बेटे और मौजुदा सीएम नवीन पटनायक. हालांकि पटनायकों का कांग्रेस से भी पुराना नाता रहा है. लेकिन फ़िलहाल नवीन पटनायक और उनकी बीजू जनता दल करीब ढाई दशकों से ओडिशा पर राज कर रहे हैं. नवीन पटनायक की जनता के बीच काफी बेहतर और एक डायनामिक नेता की छवि है.
यही वजह है कि ओडिशा की जनता से नवीन पटनायक का मोह भंग नहीं हो रहा. लेकिन 2019 में 2014 का नतीजा दोहराने के संकल्प के साथ बीजेपी अब ओडिशा की तरफ नज़रें घुमा रही है. और ओडिशा की जनता के इस पटनायक मोह में सेंध लगाने की रणनीति बना रही है.
जिस देश में राजनीति का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है. खिचड़ी से लेकर गधे तक और पद्मावती से लेकर करणी सेना तक राजनीति में उतर आई है. गोवा से लेकर उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में भी राजनीति बदल रही है. लेकिन आखिर उड़ीसा इस दौड़ में कहां नज़र आ रहा है?
ये सवाल इसलिए जायज हो रहा है क्योंकि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में कमल खिलाने के साथ साथ देश को विकास का सपना दिखा रहे हैं. तो दूसरी ओर ओडिशा की राजनीति पटनायक साम्राज्य के चारों तरफ ही घूम रही है. कई दशकों से यहां बीजू जनता दल का राज रहा है. फिर चाहे वो पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक हों या उनके बेटे और मौजुदा सीएम नवीन पटनायक. हालांकि पटनायकों का कांग्रेस से भी पुराना नाता रहा है. लेकिन फ़िलहाल नवीन पटनायक और उनकी बीजू जनता दल करीब ढाई दशकों से ओडिशा पर राज कर रहे हैं. नवीन पटनायक की जनता के बीच काफी बेहतर और एक डायनामिक नेता की छवि है.
यही वजह है कि ओडिशा की जनता से नवीन पटनायक का मोह भंग नहीं हो रहा. लेकिन 2019 में 2014 का नतीजा दोहराने के संकल्प के साथ बीजेपी अब ओडिशा की तरफ नज़रें घुमा रही है. और ओडिशा की जनता के इस पटनायक मोह में सेंध लगाने की रणनीति बना रही है.
लगभग 450 किलोमीटर के वाले तटीय राज्य और अपार प्राकृतिक संपदा के होने के बावजूद भी यहां की आर्थिक दशा खास्ता हाल है. और इसी को बीजेपी ने मुद्दा बनाते हुए ट्राईबल वोट बैंक को अपना हथियार बनाया है. हाल ही में अमित शाह के भुवनेश्वर दौरे से इसका अंदाजा भी लगाया जा सकता है.
ओडिशा में कभी बीजेपी, कांग्रेस, जैसी राष्ट्रीय पार्टियों का अच्छा जनाधार था. लेकिन मौजूदा समय में दोनों ही पार्टियां यहां कमबैक करने के लिए मेहनत कर रही हैं. तो वहीं नवीन पटनायक के पास भी खुद को राजनीति के राष्ट्रीय पटल पर लाने का मौका 2019 ही है.
क्योंकि अगर पटनायक ऐसा नहीं करते हैं तो शायद ओडिशा राजनीति के पटल पर कुएं के मेंढक से ज़्यादा कुछ नहीं रह जाएगा. जो शायद ओडिशा और पटनायक के लिए राजनीति में तो फायदे का सौदा नहीं होगा.
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