आम आदमी पार्टी से बर्खास्त किए जाने के बाद योगेंद्र यादव ने अपने फेसबुक पेज पर पहली प्रतिक्रिया लिखी है. योगेंद्र यादव लिखते हैं - 'जो हुआ अच्छा हुआ... एक नई, सुंदर और लंबी यात्रा की शुरुआत है.' पढ़िये यादव का स्टेटस अपडेट -
"कई दिन की थकान थी, सोचा था आज रात जल्दी सो जाऊंगा. तभी घर का लैंडलाइन फोन बजा, जो कभी कभार ही बजता है. देखा आधी रात में सिर्फ पांच मिनट बाकी थे. अनिष्ट की आशंका हुई. फोन एक टीवी चैनल से था- 'आपको पार्टी से एक्सपेल कर दिया गया है. आपका फोनो लेना है.' मैं सोच पाता उससे पहले मैं इंटरव्यू दे रहा था. आपकी पहली प्रतिक्रिया? आरोपों के जवाब में आपको क्या कहना है? आगे क्या करेंगे? पार्टी कब बनाएंगे? वो प्रश्नों की रस्म निभा रहे थे, मैं उत्तरों की.
कई चैनलों से निपटने के बाद अपने आप से पूछा- तो, आपकी पहली प्रतिक्रिया? अंदर से साफ उत्तर नहीं आया. शायद इसलिए चूंकि खबर अप्रत्याशित नहीं थी. पिछले कई दिनों से इशारे साफ थे. जब से 28 तारीख की मीटिंग का वाकया हुआ तबसे किसी भी बात से धक्का नहीं लगता. 'अनुशासन समिति' के रंग-ढंग से जाहिर था किस फैसले की तैयारी हो चुकी थी. शायद इसीलिए फैसला आते ही कई प्रतिक्रिया एक साथ मन में घूमने लगीं.
अगर आपको घसीट कर आपके घर से निकाल दिया जाए (और तिस पर कैमरे लेकर आपसे आपकी प्रतिक्रिया जानने की होड़ हो) तो आपको कैसा लगेगा? बस वैसा की कुछ लगा.
सबसे पहले तो गुस्सा आता है- 'ये कौन होते हैं हमें निकालने वाले? कभी मुद्दई भी खुद जज हो सकते हैं?'
फिर अचानक से दबे पांव दुख पकड़ लेता है. घर में वो सब याद आता है जो पीछे छूट गया. इतने खूबसूरत वॉलंटीर, कई साथी जो शायद अब मिलने से भी डरेंगे. के एल सहगल गूंज रहे हैं- 'बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाय…'
फिर ममता की बारी है. दिल से दुआ निकलती है- 'अब जिस का भी कब्जा है वो घर को ठीक से बना कर रखे. जिस उम्मीद को लेकर इतने लोगों ने ये घोंसला बनाया था, उम्मीद कहीं टूट न जाए.
आखिर में कहीं संकल्प अपना सिर उठाता है. समझाता है, जो...
आम आदमी पार्टी से बर्खास्त किए जाने के बाद योगेंद्र यादव ने अपने फेसबुक पेज पर पहली प्रतिक्रिया लिखी है. योगेंद्र यादव लिखते हैं - 'जो हुआ अच्छा हुआ... एक नई, सुंदर और लंबी यात्रा की शुरुआत है.' पढ़िये यादव का स्टेटस अपडेट -
"कई दिन की थकान थी, सोचा था आज रात जल्दी सो जाऊंगा. तभी घर का लैंडलाइन फोन बजा, जो कभी कभार ही बजता है. देखा आधी रात में सिर्फ पांच मिनट बाकी थे. अनिष्ट की आशंका हुई. फोन एक टीवी चैनल से था- 'आपको पार्टी से एक्सपेल कर दिया गया है. आपका फोनो लेना है.' मैं सोच पाता उससे पहले मैं इंटरव्यू दे रहा था. आपकी पहली प्रतिक्रिया? आरोपों के जवाब में आपको क्या कहना है? आगे क्या करेंगे? पार्टी कब बनाएंगे? वो प्रश्नों की रस्म निभा रहे थे, मैं उत्तरों की.
कई चैनलों से निपटने के बाद अपने आप से पूछा- तो, आपकी पहली प्रतिक्रिया? अंदर से साफ उत्तर नहीं आया. शायद इसलिए चूंकि खबर अप्रत्याशित नहीं थी. पिछले कई दिनों से इशारे साफ थे. जब से 28 तारीख की मीटिंग का वाकया हुआ तबसे किसी भी बात से धक्का नहीं लगता. 'अनुशासन समिति' के रंग-ढंग से जाहिर था किस फैसले की तैयारी हो चुकी थी. शायद इसीलिए फैसला आते ही कई प्रतिक्रिया एक साथ मन में घूमने लगीं.
अगर आपको घसीट कर आपके घर से निकाल दिया जाए (और तिस पर कैमरे लेकर आपसे आपकी प्रतिक्रिया जानने की होड़ हो) तो आपको कैसा लगेगा? बस वैसा की कुछ लगा.
सबसे पहले तो गुस्सा आता है- 'ये कौन होते हैं हमें निकालने वाले? कभी मुद्दई भी खुद जज हो सकते हैं?'
फिर अचानक से दबे पांव दुख पकड़ लेता है. घर में वो सब याद आता है जो पीछे छूट गया. इतने खूबसूरत वॉलंटीर, कई साथी जो शायद अब मिलने से भी डरेंगे. के एल सहगल गूंज रहे हैं- 'बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाय…'
फिर ममता की बारी है. दिल से दुआ निकलती है- 'अब जिस का भी कब्जा है वो घर को ठीक से बना कर रखे. जिस उम्मीद को लेकर इतने लोगों ने ये घोंसला बनाया था, उम्मीद कहीं टूट न जाए.
आखिर में कहीं संकल्प अपना सिर उठाता है. समझाता है, जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ. घर कोई ईंट-पत्थर से नहीं बनता, घर तो रिश्तों से बनता है. हो सकता है एक दिन हम उन्हें दुआ देंगे जिन्होंने हमें सड़क पर लाकर नया रास्ता दिखा दिया. हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियां गूंज रही थीं- नीड़ का निर्माण फिर…
ये किसी कहानी का दुखांत नहीं है, एक नयी, सुन्दर और लंबी यात्रा की शुरुआत है."
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.