क्या दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के पास इतनी ताकत होती है कि वह यूनिवर्सिटी कैंपस में घुस सके? ये वो सवाल है जो रविवार शाम को पुलिस की तरफ से जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (Jamia university protest) में घुसकर लाठीचार्ज करने और आंसूगैस के गोले दागने के बाद से बहस का मुद्दा बन गया है. स्क्रिप्ट राइटर, गीतकार और पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर ने सोमवार की शाम को एक ट्वीट कर के इस बहस को और भड़का दिया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा- 'नियमों के अनुसार किसी भी स्थिति में पुलिस बिना यूनिवर्सिटी प्रशासन की अनुमति के किसी भी यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं घुस सकती है. जामिया कैंपस में घुसकर पुलिस ने हर यूनिवर्सिटी के दिल में एक डर सा पैदा कर दिया है.'
जावेद अख्तर की टिप्पणी पर बहुत सारे लोगों ने तीखी टिप्पणी की है, जिनमें पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं. आईपीएस अधिकारी संदीप मित्तल ने अपने वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया- 'प्रिय लीगल एक्सपर्ट, कृपया इन नियमों को विस्तार से बताएं, उस कानून का नाम और उसकी धारा आदि ताकि हम भी उसे जान सकें.'
इससे पहले जामिया मिलिया इस्लामिया की वाइस चांसलर नजमा अख्तर ने भी इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी और कहा था कि पुलिस को कैंपस में घुसने की इजाजत नहीं है, लेकिन फिर भी पुलिस कैंपस में घुसी है. उन्होंने कहा था- पुलिस कैंपस में बिना इजाजत घुसी. हम कैंपस में पुलिस की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेंगे. उन्होंने हमारे छात्रों को पुलिस बर्बरता से डरा कर रख दिया है. यूनिवर्सिटी की प्रॉपर्टी को भी भारी नुकसान पहुंचाया गया है. हम प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने और छात्रों के खिलाफ पुलिस एक्शन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएंगे.
यूनिवर्सिटी कैंपस आम तौर पर पुलिस फ्री स्पेस माने जाते हैं, यानी जहां पुलिस नहीं होती है. यह इस विश्वास से आया है कि पुलिस का मतलब है निगरानी और छात्रों को आजादी से सोचने के लिए मुक्त माहौल चाहिए होता है. अधिकतर यूनिवर्सिटी और कैंपस प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड तैनात करते हैं....
क्या दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के पास इतनी ताकत होती है कि वह यूनिवर्सिटी कैंपस में घुस सके? ये वो सवाल है जो रविवार शाम को पुलिस की तरफ से जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (Jamia university protest) में घुसकर लाठीचार्ज करने और आंसूगैस के गोले दागने के बाद से बहस का मुद्दा बन गया है. स्क्रिप्ट राइटर, गीतकार और पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर ने सोमवार की शाम को एक ट्वीट कर के इस बहस को और भड़का दिया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा- 'नियमों के अनुसार किसी भी स्थिति में पुलिस बिना यूनिवर्सिटी प्रशासन की अनुमति के किसी भी यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं घुस सकती है. जामिया कैंपस में घुसकर पुलिस ने हर यूनिवर्सिटी के दिल में एक डर सा पैदा कर दिया है.'
जावेद अख्तर की टिप्पणी पर बहुत सारे लोगों ने तीखी टिप्पणी की है, जिनमें पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं. आईपीएस अधिकारी संदीप मित्तल ने अपने वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया- 'प्रिय लीगल एक्सपर्ट, कृपया इन नियमों को विस्तार से बताएं, उस कानून का नाम और उसकी धारा आदि ताकि हम भी उसे जान सकें.'
इससे पहले जामिया मिलिया इस्लामिया की वाइस चांसलर नजमा अख्तर ने भी इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी और कहा था कि पुलिस को कैंपस में घुसने की इजाजत नहीं है, लेकिन फिर भी पुलिस कैंपस में घुसी है. उन्होंने कहा था- पुलिस कैंपस में बिना इजाजत घुसी. हम कैंपस में पुलिस की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेंगे. उन्होंने हमारे छात्रों को पुलिस बर्बरता से डरा कर रख दिया है. यूनिवर्सिटी की प्रॉपर्टी को भी भारी नुकसान पहुंचाया गया है. हम प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने और छात्रों के खिलाफ पुलिस एक्शन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएंगे.
यूनिवर्सिटी कैंपस आम तौर पर पुलिस फ्री स्पेस माने जाते हैं, यानी जहां पुलिस नहीं होती है. यह इस विश्वास से आया है कि पुलिस का मतलब है निगरानी और छात्रों को आजादी से सोचने के लिए मुक्त माहौल चाहिए होता है. अधिकतर यूनिवर्सिटी और कैंपस प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड तैनात करते हैं. बहुत से मामलों में रिटायर्ड आर्मी के लोगों को भी छात्रों और कैंपस की सुरक्षा के लिए रखा जाता है.
क्या कहता है कानून?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अतुल कुमार ने इंडिया टुडे को बताया कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो पुलिस को किसी भी जगह घुसने से रोकता हो, भले ही वह यूनिवर्सिटी कैंपस क्यों ना हो. उन्होंने कहा- अगर पुलिस को कहीं से भी ये सूचना मिलती है कि कहीं पर कुछ गलत हो रहा है या कुछ गलत होने वाला है तो पुलिस कानून के दायरे में रहते हुए उसे रोकने के लिए सबकुछ करती है, ताकि शांति व्यवस्था ना बिगड़े. यूनिवर्सिटी भी कानून की नजरों में कोई अपवाद नहीं है.
यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी यूजीसी की 2016 की छात्रों की कैंपस में और कैंपस के बाहर सुरक्षा को लेकर जारी गाइडलाइन्स में भी पुलिस को यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसने से रोकने का कोई निर्देश नहीं है. मौजूदा समय में यूनिवर्सिटी से इजाजत लेने की प्रक्रिया सिर्फ लोकल पुलिस और यूनिवर्सिटी के बीच की एक आपसी सहमति से अधिक कुछ नहीं हैं.
वकील अतुल कुमार बताते हैं कि अगर यूनिवर्सिटी भी ऐसा कोई नियम बनाए, जिसके तहत पुलिस यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं घुस सकती हो तो भी वह किसी काम का नहीं होगा, क्योंकि आपराधिक दंड संहिता इन सबके ऊपर है. आपराधिक दंड संहिता का सेक्शन 41 पुलिस को ये ताकत देता है कि वह मजिस्ट्रेट से वारंट लेकर या वारंट के बिना भी गिरफ्तारी कर सकती है. सेक्शन 46 के तहत पुलिस उन लोगों को भी गिरफ्तार कर सकती है जो पुलिस की कार्रवाई का विरोध करे. सेक्शन 47 और 48 के तहत पुलिस को अधिकार है कि वह ऐसे लोगों का पीछा किसी भी जगह घुसकर कर सकती है, जिसके पीछे पुलिस का विश्वास ये होता है कि वह किसी जगह में घुस गया है या छुप रहा है.
अतुल कुमार बताते हैं- 'पुलिस को वर्दी में ऐसी जगहों पर घुसने में सिर्फ एक ही मामले में प्रतिबंध होता है, जब पुलिस किसी नाबालिग को गिरफ्तार करने पहुंचती है. इसलिए अगर कोई यूनिवर्सिटी स्टूडेंट नाबालिग है तो उसे जुवेनाइल पुलिस के नियमों के मुताबिक ही गिरफ्तार किया जा सकता है. लेकिन जुवेनाइल पुलिस सिर्फ किताबों में ही पाई जाती है. सामान्य पुलिस भी नाबालिगों को गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन उन्हें सादी वर्दी में होना जरूरी है.'
2016 में जब जेएनयू कैंपस में पुलिस ने एक्शन किया था तो उस पर सवाल उठाए गए थे. उस समय कुछ जेएनयू छात्रों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला भी दर्ज किया गया था. जामिया मामले के बाद एक बार फिर से पुलिस पर सवाल उठने लगे हैं.
क्या दिल्ली पुलिस का जामिया कैंपस में घुसना गलत है?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अतुल कुमार ने विस्तार से बताते हुए कहा- 'पुलिस आमतौर पर यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं घुसती है क्योंकि छात्रों के खिलाफ कोई भी एक्शन उल्टा पड़ जाता है और कानून व्यवस्था का बड़ा मामला बन जाता है. पुलिस खुद भी यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं घुसना चाहती है. जामिया मामले में पुलिस ड्यूटी पर थी और परिस्थिति को देखते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी में घुसने का कदम उठाना पड़ा, ये गैर कानूनी नहीं है.'
आपको बता दें कि 1974 में पुलिस ने बिहार और गुजरात में यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसकर भारी विरोध प्रदर्शनों को रोका था. पुलिस के इस एक्शन ने जय प्रकाश नारायण जैसे स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं का ध्यान खींचा, जिसके बाद इंदिरा गांधी सरकार को पूरे देश से भारी राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा.
2016-17 में सुरक्षा बल भारत के खिलाफ नारे लगाने वाले छात्रों को गिरफ्तार करने के लिए पुलवामा के यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसे थे. शुरुआत में छात्रों द्वारा भारत विरोधी नारे लगाने पर बाकी छात्रों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन जब सुरक्षा बल कैंपस में घुसा तो पूरे कश्मीर के छात्र सड़कों पर निकल आए और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी की. घाटी के छात्रों का गुस्सा शांत होने में कई हफ्ते लग गए. जेएनयू के छात्रों के खिलाफ पुलिस के एक्शन पर भी छात्रों के समर्थन में पूरे देश से विरोध हुआ था. जामिया कैंपस में पुलिस के एक्शन के बाद पूरे देश की करीब 20 यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन हो रहा है.
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