प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने जम्मू-कश्मीर में जल्दी ही विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Election) कराये जाने के संकेत दिये हैं. हालांकि, इसके लिए परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने तक इंतजार करना होगा. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बने परिसीमन आयोग की निगरानी में जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन यानी परिसीमन के काम चल रहा है. लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि परिसीमन का काम पूरा होने के बाद वहां नई ऊर्जा के साथ चुनाव कराये जाएंगे.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया अपनी जगह है, लेकिन हाल फिलहाल जिस तरह से सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों को आतंकवादी निशाना बना रहे हैं, वो सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है. हालत ये हो चली है कि आतंकी हमलों के डर से बीजेपी के ही कई नेता इस्तीफा सौंप चुके हैं.
जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) ने पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने की बात कही है - और सुरक्षा बलों की तरफ से भी ऐसे प्रतिनिधियों और उनके परिवार के लिए हॉस्टल बनाने की तैयारी चल रही है, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. साथ ही, सिन्हा पर सूबे में राजनीतिक गतिविधियों की बहाली की भी जिम्मेदारी है जिसके लिए उनको बीजेपी ही नहीं बल्कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सहित मुख्यधारा की राजनीति कर रहे नेताओं से संवाद स्थापित करने की कोशिश करनी होगी.
जल्दी ही होंगे विधानसभा चुनाव
5 अगस्त 2020 जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने को एक साल पूरे हो गये और उसी दिन नये उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की नियुक्ति की खबर आयी. माना भी जा रहा था कि मनोज सिन्हा की नियुक्ति का मकसद भी जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों को बढ़ाने के साथ साथ विधानसभा चुनाव कराना भी है. राज्य विधानसभा का चुनाव कराये जाने का जिक्र तो कई बात मनोज सिन्हा के पूर्ववर्ती जीसी मुर्मू ने भी किया था और वो भी उनको हटाये जाने के...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने जम्मू-कश्मीर में जल्दी ही विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Election) कराये जाने के संकेत दिये हैं. हालांकि, इसके लिए परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने तक इंतजार करना होगा. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बने परिसीमन आयोग की निगरानी में जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन यानी परिसीमन के काम चल रहा है. लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि परिसीमन का काम पूरा होने के बाद वहां नई ऊर्जा के साथ चुनाव कराये जाएंगे.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया अपनी जगह है, लेकिन हाल फिलहाल जिस तरह से सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों को आतंकवादी निशाना बना रहे हैं, वो सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है. हालत ये हो चली है कि आतंकी हमलों के डर से बीजेपी के ही कई नेता इस्तीफा सौंप चुके हैं.
जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) ने पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने की बात कही है - और सुरक्षा बलों की तरफ से भी ऐसे प्रतिनिधियों और उनके परिवार के लिए हॉस्टल बनाने की तैयारी चल रही है, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. साथ ही, सिन्हा पर सूबे में राजनीतिक गतिविधियों की बहाली की भी जिम्मेदारी है जिसके लिए उनको बीजेपी ही नहीं बल्कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सहित मुख्यधारा की राजनीति कर रहे नेताओं से संवाद स्थापित करने की कोशिश करनी होगी.
जल्दी ही होंगे विधानसभा चुनाव
5 अगस्त 2020 जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने को एक साल पूरे हो गये और उसी दिन नये उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की नियुक्ति की खबर आयी. माना भी जा रहा था कि मनोज सिन्हा की नियुक्ति का मकसद भी जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों को बढ़ाने के साथ साथ विधानसभा चुनाव कराना भी है. राज्य विधानसभा का चुनाव कराये जाने का जिक्र तो कई बात मनोज सिन्हा के पूर्ववर्ती जीसी मुर्मू ने भी किया था और वो भी उनको हटाये जाने के कारणों में से एक रहा. दरअसल, चुनाव आयोग ने जीसी मुर्मू के उन बयानों पर आपत्ति जतायी थी जिनमें वो कई बार कह चुके थे कि परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होते ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराये जाएंगे. चुनाव आयोग ने बाकायदा बयान जारी कर कहा कि चुनाव कब होंगे ये सिर्फ चुनाव आयोग ही तय कर सकता है. बहरहाल, अब तो इस बात पर प्रधानमंत्री मोदी की भी मुहर लग चुकी है, इसलिए बीती बातें अपनेआप खत्म हो जाती हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए देश प्रतिबद्ध भी है और प्रयासरत भी है. बोले, 'जम्मू-कश्मीर में डिलिमिटेशन का काम चल रहा है... हम सभी चाहते हैं कि जल्दी से ये प्रक्रिया पूरी हो, जिसके बाद जल्दी से चुनाव हों... जम्मू-कश्मीर को अपना विधायक मिले, अपने मंत्री मिलें और अपनी सरकार मिले.'
मार्च, 2020 में ही केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के साथ साथ केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग बनाया था. जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में हुआ था. जम्मू-कश्मीर में फिलहाल 83 विधानसभा सीटें हैं और माना जाता है कि परिसीमन के बाद सात सीटें और जुड़ सकती हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'ये एक साल जम्मू कश्मीर की एक नई विकास यात्रा का साल है... एक साल जम्मू कश्मीर में महिलाओं, दलितों को मिले अधिकारों का साल है... ये जम्मू-कश्मीर में शरणार्थियों के गरिमापूर्ण जीवन का भी एक साल है... लोकतंत्र की सच्ची ताकत स्थानीय इकाइयों में है... हम सभी के लिए गर्व की बात है कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय इकाइयों के जनप्रतिनिधि सक्रियता और संवेदनशीलता के साथ विकास के नए युग को आगे बढ़ा रहे हैं.'
हालांकि, परिसीमन को लेकर बीजेपी के कुछ नेताओं की आपत्तियां भी हैं. द प्रिंट से बातचीत में बीजेपी नेता निर्मल सिंह कहते हैं, ‘अगर हम परिसीमन के लिए 2011 को आधार वर्ष के रूप में चुनते हैं, तो ये जम्मू के साथ अन्याय होगा - और यह दोषपूर्ण भी होगा. 2011 की जनगणना की तुलना में 2001 की जनगणना ज्यादा तर्कसंगत थी.’
धारा 370 खत्म किये जाने से पहले पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम रहे निर्मल सिंह का कहना है कि परिसीमन की प्रक्रिया तेज की जानी चाहिये और चुनाव कराने के बारे में सोचने से पहले सभी लोगों तक पहुंचकर उनकी चिंताओं को सुनना चाहिये.
निर्मल सिंह का दावा है कि धारा 370 खत्म हो जाने के बाद हर कोई कश्मीर की नयी हकीकत समझता है. निर्मल सिंह याद दिलाते हैं कि नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला भी जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा नहीं बल्कि राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर रहे हैं. हाल ही में उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि जब तक जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया जाता, वो तो चुनाव लड़ने से रहे.
अब तो ये सारी जिम्मेदारियां जम्मू-कश्मीर के LG मनोज सिन्हा के कंधों पर ही है - राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया के तहत लोगों से संवाद स्थापित करने से लेकर जन प्रतिनिधियों की सुरक्षा तक और तभी जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लायक माहौल भी बन सकेगा.
पहले नेताओं के सुरक्षा इंतजाम किये जाने जरूरी हैं
महीने भर के भीतर ही आधा दर्जन बीजेपी नेताओं को आतंकवादियों ने निशाना बनाया है. हमले के शिकार 5 स्थानीय नेताओं की मौत हो चुकी है - और डर के मारे कई बीजेपी नेताओं ने पार्टी से माफी मांगते हुए दूरी बना ली है. कुछ नेता सरपंच भी हैं और कुछ किसी न किसी पंचायत के प्रतिनिधि. बीजेपी के बांदीपोरा के जिलाध्यक्ष वसीम बारी, उनके भाई और पिता की जुलाई में ही गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. ऐसी ही घटनाएं कुलगाम और बड़गाम में भी देखने को मिली हैं.
स्थानीय नेताओं को टारगेट करने का मकसद पहले से ही चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की साजिश लगती है. पहले भी देखा गया है कि आतंकवादी उम्मीदवारों को चुनाव न लड़ने की धमकी देते रहे हैं - और इसके चलते जिन उम्मीदवारों ने हिम्मत दिखायी वे निर्विरोध चुने गये. मीडिया से बातचीत में कुछ सरपंचों और पंचों का कहना रहा है कि हमले के शिकार पंचायत प्रतिनिधि बार-बार अपनी सुरक्षा की मांग करते रहे, लेकिन आखिर तक उनको सुरक्षा नहीं मिली और जान गंवानी पड़ी.
कामकाज संभालने के बाद उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी पहले ही सार्वजनिक संबोधन में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों को कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों के सुरक्षा इंतजाम जल्दी पुख्ता किये जाने का भरोसा दिलाया. मनोज सिन्हा ने कहा कि इसके लिए कुछ उपाय तो किये जा चुके हैं और कुछ कदम उठाये भी जाएंगे, लेकिन प्रतिनिधियों को खुद भी एहतियात बरतनी होगी. असल में, जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ से तय किया गया है कि नगर निकायों और ग्राम पंचायतों में चुने गए प्रतिनिधियों को पच्चीस लाख रुपये की जीवन बीमा सुरक्षा दी जाएगी. लोकतंत्र बहाली के मकसद से किये जा रहे ऐसे उपायों से आतंकवादी हमले के शिकार परिवारों की आर्थिक सुरक्षा के साथ साथ शिक्षा और दूसरी जरूरी जरूरतें पूरी की जा सकेंगी.
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