फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) उम्र बढ़ने के साथ धीर-गंभीर और संतुलित और शांत होने की बजाय अनाप-शनाप बोलने से अब भी बाज नहीं आते. यह उनकी हताशा भी हो सकती है कि वे अब जम्मू-कश्मीर और देश की राजनीति में कतई महत्वपूर्ण नहीं रहे. उन्हें अब कोई गंभीरता से भी नहीं लेता. लेकिन, वे खबरों में बने रहने के लिए बार-बार देश विरोधी बयान देते रहते हैं. उन्हें लगता है कि यही करके सुर्खियों में रहा जा सकता है. यह समझ में नहीं आता कि वे यह सब करके किस को खुश कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला ने अपने ताजा जहरीले बयान में कहा है कि चीन की मदद से एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 (Article 370) लागू कराया जाएगा. अब्दुल्ला जी यह बयान तब दे रहे हैं जब चीन (China) का रूख भारत के खिलाफ बेहद आक्रामक बना हुआ है. दोनों देशों की सेनाएं सरहद पर एक-दूसरे के सामने बनी हुई हैं. इनमें खूनी संघर्ष तक हो चुका है. फारूक का ताजा विवादित बयान ऐसे वक्त में आया है, जबकि सारे देश में चीन के खिलाफ आक्रोश का माहौल बना हुआ है. चीन भारत के अनेकों इलाकों पर अपना दावा कर रहा है जिसे न तो देश की वर्तमान मोदी सरकार (Modi Government) सुनने को तैयार है न ही देश की जनता.
अब्दुल्ला जी कहते हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के बीच जो भी तनाव के हालात बने हैं, उसका जिम्मेदार केंद्र का वह फैसला है जिसमें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया है. अब जरा देखिए कि जो फैसला संसद ने लिया, जिसके निचले सदन के वे भी सदस्य हैं, उसी का अब्दुल्ला जी अब विरोध कर रहे हैं. पर फारूक अब्दुल्ला तो बोलते ही चले जा रहे हैं. आखिर देश अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको देता ही है. लेकिन, बकवास की इजाजत तो नहीं देता. वे अब कोरी बकवास ही तो करते हैं. यह खुल्लम-खुल्ला देशद्रोही गतिविधि है और कुछ नहीं है.
फारूक अब्दुल्ला जिस चीन से तमाम उम्मीदें पाले बैठे हैं, उसी चीन ने अपने देश में हज़ारों मस्जिदों को खुलेआम तोड़ा. वह अपने देश के मुलसमानों पर...
फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) उम्र बढ़ने के साथ धीर-गंभीर और संतुलित और शांत होने की बजाय अनाप-शनाप बोलने से अब भी बाज नहीं आते. यह उनकी हताशा भी हो सकती है कि वे अब जम्मू-कश्मीर और देश की राजनीति में कतई महत्वपूर्ण नहीं रहे. उन्हें अब कोई गंभीरता से भी नहीं लेता. लेकिन, वे खबरों में बने रहने के लिए बार-बार देश विरोधी बयान देते रहते हैं. उन्हें लगता है कि यही करके सुर्खियों में रहा जा सकता है. यह समझ में नहीं आता कि वे यह सब करके किस को खुश कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला ने अपने ताजा जहरीले बयान में कहा है कि चीन की मदद से एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 (Article 370) लागू कराया जाएगा. अब्दुल्ला जी यह बयान तब दे रहे हैं जब चीन (China) का रूख भारत के खिलाफ बेहद आक्रामक बना हुआ है. दोनों देशों की सेनाएं सरहद पर एक-दूसरे के सामने बनी हुई हैं. इनमें खूनी संघर्ष तक हो चुका है. फारूक का ताजा विवादित बयान ऐसे वक्त में आया है, जबकि सारे देश में चीन के खिलाफ आक्रोश का माहौल बना हुआ है. चीन भारत के अनेकों इलाकों पर अपना दावा कर रहा है जिसे न तो देश की वर्तमान मोदी सरकार (Modi Government) सुनने को तैयार है न ही देश की जनता.
अब्दुल्ला जी कहते हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के बीच जो भी तनाव के हालात बने हैं, उसका जिम्मेदार केंद्र का वह फैसला है जिसमें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया है. अब जरा देखिए कि जो फैसला संसद ने लिया, जिसके निचले सदन के वे भी सदस्य हैं, उसी का अब्दुल्ला जी अब विरोध कर रहे हैं. पर फारूक अब्दुल्ला तो बोलते ही चले जा रहे हैं. आखिर देश अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको देता ही है. लेकिन, बकवास की इजाजत तो नहीं देता. वे अब कोरी बकवास ही तो करते हैं. यह खुल्लम-खुल्ला देशद्रोही गतिविधि है और कुछ नहीं है.
फारूक अब्दुल्ला जिस चीन से तमाम उम्मीदें पाले बैठे हैं, उसी चीन ने अपने देश में हज़ारों मस्जिदों को खुलेआम तोड़ा. वह अपने देश के मुलसमानों पर जो जुल्म कर रहा है, उसके बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है. पर फारूक अब्दुल्ला या तो कुछ जानना नहीं चाहते या जानकर भी चुप हैं. कौन नहीं जानता कि चीन में मुसलमानों को सूअर का मांस जबर्दस्ती खिलाया जाता है. उनकी लड़कियों को खुलेआम उठाकर धर्म परिवर्तन कराकर शादियां कराई जाती हैं जिसमें सरकार का पूरा सहयोग रहता है. इस पर तो फारुख साहब कुछ भी नहीं बोलते?
बहरहाल, कहना न होगा कि फारूक अब्दुल्ला की देश विरोधी बयानबाजी से भारत के शत्रुओ को ताकत तो जरूर ही मिलती है. दोनों देशों के बीच लद्दाख की सीमा पर जो कुछ भी गुजरे महीनों में हुआ उसके लिए चीन को तो कभी भी माफ तो नहीं किया जाएगा और न ही किया जाना चाहिए. अब चीन की भी आंखें खुल गई हैं. भारत ने भी दोनों देशों के बीच की सरहद पर अपने लड़ाकू विमानों से लेकर दूसरे प्रलयकारी अस्त्र भी पर्याप्त मात्रा में तैनात कर दिए हैं. अब चीन की किसी भी हरकत का कायदे से जवाब देने के लिए भारतीय जल, थल और वायु सेनाएं तैयार है.
फारूक अब्दुल्ला फिलहाल श्रीनगर लोकसभा सीट से लोकसभा सांसद भी हैं. वह केंद्र सरकार के अनेकों वर्ष मंत्री भी रहे हैं. सच पूछा जाए तो उन्होंने बहुत पहले ही समझदारी से बोलना लगभग बंद ही कर दिया है. कुछ साल पहले ही फारुक अब्दुल्ला ने चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत के दावे को लेकर कह डाला था कि 'क्या यह तुम्हारे बाप का है'? उन्होंने आगे और कहा, 'पीओके भारत की बपौती नहीं है जिसे वह हासिल कर ले'.
अब्दुल्ला ने पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाते हुए कहा था 'नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान के कब्जे से पीओके को लेकर तो दिखाए.' मतलब यह कि फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक पीओके हासिल करना भारत के लिए नामुमकिन ही है. यह तो भारत में रहकर भारत को सीधे धमकी देना नहीं तो क्या है ? अब्दुल्ला साहब आप कभी मौका मिले तो संसद लाइब्रेरी में भी तो हो आइये और वहां देखिए भारतीय संसद के 22 फरवरी,1994 को पारित प्रस्ताव को. उस प्रस्ताव में भारत ने पीओके पर एक एतिहासिक फैसला लिया था.
उस दिन संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके पीओके पर अपना पूरा हक जताते हुए कहा था कि पीओके सहित सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है. 'पाकिस्तान को उस भाग को छोड़ना ही होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है. 'क्या फारूक अब्दुल्ला संसद के एक सम्मानित सदस्य होने के नाते उस प्रस्ताव को खारिज करते है? उनके सार्वजनिक बयान का तो यही मतलब है.
क्या जम्मू- कश्मीर के मसले पर जो देश की नीति है, उससे हटकर भी आपकी कोई नीति या सोच हो सकती है ? अगर है तो उसे भी बताकर देश को अनुगृहीत कर दें. फारूक अब्दुल्ला कश्मीर में भारतीय सैनिकों पर पत्थर फेंकने वालों के समर्थन में भी खुलकर सामने आ चुके हैं. उन्होंने पत्थरबाजों का समर्थन किया है. अब जरा सोच लें कि वे कितने गैर-जिम्मेदार हो गए हैं ? फारूक अब्दुल्ला ने कहा था अगर कुछ नौजवान सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थर मार रहे हैं तो कुछ सरकार द्वारा प्रायोजित भी हैं. मतलब यह कि उन्हें विवादास्पद बयान देना ही सदा पसंद हैं.
फारूक अब्दुल्ला के बेशर्मी और विवादास्पद बयानो की सूची सच में बहुत ही लंबी है. वे तो सुकमा के नक्सली हमले की तुलना कुपवाड़ा के आतंकी हमले तक से कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि कुपवाड़ा के शहीदों की शहादत को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था जबकि सुकमा के शहीदों की अनदेखी हुई. सबको पता है कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के पंजगाम सेक्टर में आर्मी कैंप में आतंकी हमला हुआ था. आत्मघाती आतंकी हमले में एक कैप्टन, एक जेसीओ और एक जवान शहीद हो गए थे. सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में दो आतंकी भी मारे गए.
चाहें सुकमा हो या कुपवाडा या फिर कोई अन्य जगह, सारा देश शहीदों का कृतज्ञ भाव से स्मरण करता है. देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों को लेकर भेदभाव करने का कोई सपने में भी नहीं सोच सकता. लेकिन यह भी याद रख लें कि भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले बयान देने वाले फारूक अब्दुल्ला का शायद बाल भी बांका नहीं होगा. उन पर कोई कठोर कार्रवाई भी नहीं होगी. मतलब साफ है कि वे देश के खिलाफ बोलते ही रहेंगे.आखिर इस देश ने अभिव्यक्ति की आजादी जो दे रखी है. लेकिन, यह कबतक चलेगा?
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