जनता कर्फ्यू (Janta Curfew against Corona virus in India) लागू है - और पूरे देश में तकरीबन एक जैसा ही आलम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर लोग पहले से ही जनता कर्फ्यू की तैयारी करते देखे गये और जिससे जो बन पड़ा सोशल मीडिया के जरिये अपने जानने वालों से गुजारिश भी की है. एक मुश्किल घड़ी में पूरे देश का एकजुट होना देखने-सुनने के साथ ही सोचने में भी अच्छा लगता है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना के मामले में काफी सख्त नजर आ रहे हैं. बिलकुल अपने अंदाज में कहा भी है - 'अगर जरूरत पड़ेगी तो आगे भी जनता कर्फ्यू लगाया जाएगा.'
बेशक जनता कर्फ्यू बेहद कारगर उपायों में से एक है. बेशक भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के नागरिकों को सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास कराने और संयम का सबक देने के लिए अच्छा है. बेशक तीसरे स्टेज कोरोना वायरस के सीधे संपर्क में आने से रोकने - लेकिन क्या ये काफी है?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका (PIL in Supreme Court) में इस नाजुक घड़ी में मेडिकल सुविधायें (Medical Facilities) बढ़ाये जाने की मांग की गयी है - जो काफी जरूरी लगती है. ताकि उन छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दिया जाये जिससे ये महामारी चीन और इटली वाले स्तर पर न पहुंच सके.
खतरा बढ़ रहा है, इसलिए सुविधायें भी बढ़ानी होंगी
अब तक तो जो खतरा रहा वो आगे के मुकाबले कुछ भी नहीं रहा - तीसरे स्टेज में स्थिति काफी खतरनाक होने वाली है. अब तक सिर्फ इंसानों के एक-दूसरे से संपर्क से कोरोना वायरस के फैलने का खतरा रहा - लेकिन आगे वायरस के हवाओं में होने का खतरा बढ़ जाता है. ये चीज दूसरे मुल्कों में देखी जा चुकी है और यही वजह है कि डॉक्टर सीधे और सरल शब्दों में स्थिति की भयावहता समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
जनता कर्फ्यू की पूर्व संध्या पर डॉक्टर आर. मौर्या अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं - 'अब हम नाजुक क्षेत्र में हैं और किसी भी तरह का इजाफा बेकाबू हो सकता है. अगर एक बार ये सामूहिक तौर पर लोगों को अपना शिकार बनाने...
जनता कर्फ्यू (Janta Curfew against Corona virus in India) लागू है - और पूरे देश में तकरीबन एक जैसा ही आलम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर लोग पहले से ही जनता कर्फ्यू की तैयारी करते देखे गये और जिससे जो बन पड़ा सोशल मीडिया के जरिये अपने जानने वालों से गुजारिश भी की है. एक मुश्किल घड़ी में पूरे देश का एकजुट होना देखने-सुनने के साथ ही सोचने में भी अच्छा लगता है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना के मामले में काफी सख्त नजर आ रहे हैं. बिलकुल अपने अंदाज में कहा भी है - 'अगर जरूरत पड़ेगी तो आगे भी जनता कर्फ्यू लगाया जाएगा.'
बेशक जनता कर्फ्यू बेहद कारगर उपायों में से एक है. बेशक भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के नागरिकों को सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास कराने और संयम का सबक देने के लिए अच्छा है. बेशक तीसरे स्टेज कोरोना वायरस के सीधे संपर्क में आने से रोकने - लेकिन क्या ये काफी है?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका (PIL in Supreme Court) में इस नाजुक घड़ी में मेडिकल सुविधायें (Medical Facilities) बढ़ाये जाने की मांग की गयी है - जो काफी जरूरी लगती है. ताकि उन छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दिया जाये जिससे ये महामारी चीन और इटली वाले स्तर पर न पहुंच सके.
खतरा बढ़ रहा है, इसलिए सुविधायें भी बढ़ानी होंगी
अब तक तो जो खतरा रहा वो आगे के मुकाबले कुछ भी नहीं रहा - तीसरे स्टेज में स्थिति काफी खतरनाक होने वाली है. अब तक सिर्फ इंसानों के एक-दूसरे से संपर्क से कोरोना वायरस के फैलने का खतरा रहा - लेकिन आगे वायरस के हवाओं में होने का खतरा बढ़ जाता है. ये चीज दूसरे मुल्कों में देखी जा चुकी है और यही वजह है कि डॉक्टर सीधे और सरल शब्दों में स्थिति की भयावहता समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
जनता कर्फ्यू की पूर्व संध्या पर डॉक्टर आर. मौर्या अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं - 'अब हम नाजुक क्षेत्र में हैं और किसी भी तरह का इजाफा बेकाबू हो सकता है. अगर एक बार ये सामूहिक तौर पर लोगों को अपना शिकार बनाने लगा तो स्थिति भयावह हो सकती है.'
डॉक्टर मौर्या ने कम्युनिटी ट्रांसमिशन (Community transmission) शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसके बारे में वो बताते हैं - कम्युनिटी ट्रांसमिशन से मतलब ये है कि वायरस हवा में और आस-पास के क्षेत्र में फैलेगा.'
जनता कर्फ्यू का सपोर्ट करते हुए डॉक्टर मौर्या लिखते हैं, चूंकि वायरस के सेटल और इनएक्टिव होने में 6-8 घंटे लगते हैं, ऐसे एहतियाती उपायों से कोरोना की महामारी से बचा जा सकता है. डॉक्टर मौर्या इस मामले में भी हवाई सफर वाली सलाहियत की ओर इशारा करते हैं - सबसे पहले अपना ख्याल रखें. मतलब, स्वस्थ रहेंगे तो दूसरों के लिए भी मददगार रहेंगे. सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर अरविंद कुमार ने तो जनता कर्फ्यू को दो हफ्ते के लिए लागू करने का सुझाव दिया है. बीबीसी से बातचीत में सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स के निदेशक डॉक्टर रामानन लक्ष्मीनारायण की तो साफ साफ चेतावनी है कि भारत को कोरोना वारयस की 'सुनामी' के लिए तैयार रहना चाहिये. डॉक्टर लक्ष्मी नारायण का मानना है कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले और तेज़ी से बढ़ेंगे. हालांकि, ऐसे संकेत नहीं मिले हैं कि बाकी दुनिया के मुकाबले भारत में इसका असर कम हो सकता है.
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जरूरत पड़ी तो जनता कर्फ्यू आगे भी लगाया जा सकता है. योगी आदित्यनाथ ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने में अधिकारियों और कर्मचारियों की तो तारीफ की है, लेकिन मास्क और तमाम जरूरी चीजों की कालाबाजारी करने वालों को कड़ी चेतावनी भी दी है. बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक सभी राज्यों में कोरोना से मुकाबले में काफी सक्रियता देखी जा रही है, लेकिन राजस्थान से ऐसे केस का पता चला है जिसमें लोगों ने कोरोना संक्रमण छुपाने की कोशिश की और जब तक अशोक गहलोत सरकार जागी तब तक काफी देर हो चुकी थी. कोटा अस्पताल के मामले में तो डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने ही सारी पोल-खोल कर डाली थी.
एक और अच्छी बात ये है कि विपक्ष भी मुसीबत की घड़ी में सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है. वरना सवाल उठाते और सबूत मांगते देर कहां लगती है. वैसे राहुल गांधी आर्थिक पैकेज की मांग पर डटे हुए जरूर हैं, लेकिन शशि थरूर जैसे कांग्रेस नेता ने सरकार का पूरा सपोर्ट किया है, जबकि पी. चिदंबरम तो काफी पहले से पूरे लॉक डाउन की मांग कर रहे हैं. लॉक डाउन और जनता कर्फ्यू को आसानी से ऐसे समझ सकते हैं कि जनता कर्फ्यू लोग खुद आगे बढ़ कर लागू करते हैं और लॉक डाउन सरकारी फरमान होता है. जनता कर्फ्यू के बीच ही रेल मंत्रालय ने मालगाड़ी को छोड़ कर सभी ट्रेनों का आवागमन 31 मार्च तक बंद कर दिया है.
देश के बाकी ज्वलंत मुद्दों की तरह कोरोना वायरस से उपजे हालात का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. एक जनहित याचिका दायर कर कोरोना के जांच और दूसरी जरूरी सुविधाओं की कमी को ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की गयी है. पत्रकार प्रशांत टंडन और सामाजिक कार्यकर्ता कुंजना सिंह की तरफ ये PIL दाखिल की गयी है और 23 मार्च को मामले की सुनवाई होनी है. सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में तय सीमा से ज्यादा कैदियों की संख्या के मामले को भी संज्ञान में लिया है, लिहाजा दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ होने जा रही है.
जनहित याचिका के जरिये कहा गया है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में महज 52 जांच केंद्र नहीं के बराबर ही हैं. याचिका के जरिये ऐसे जांच सेंटर की संख्या तत्काल प्रभाव से बढ़ाने की मांग की गयी है. साथ ही क्वैरंटीन सेंटर, आइसोलेशन सेंटर और अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाने की भी मांग की गयी है. एक और भी मांग है - सार्वजनिक स्थानों पर थर्मल स्क्रीनिंग की सुविधा सुनिश्चित की जाये.
कोरोना कारण मुश्किलें बेहिसाब हो गयी हैं
जनता कर्फ्यू को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला है. अब इससे अच्छी बात क्या होगी कि जो जहां जिस स्थिति में है, एक दूसरे को आगाह और एहतियात बरतने के लिए बार बार चेतावनी दे रहे हैं. कितनी अच्छी बात है कि जो लोग दिन भर व्हाट्सऐप पर बगैर देखे भी मैसेज फॉर्वर्ड कर दिया करते रहे वे भी कोरोना जागरुकता अभियान का हिस्सा बन गये हैं. बहुत सारे लोग इस चीज को अपने व्हाट्सऐप और ग्रुप में इस बात को महसूस कर रहे हैं. मगर ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए पुलिसवालों को गांधीगिरी करनी पड़ रही है.
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है - कनिका कपूर जैसे सेलीब्रिटी भी और बहुत सारे गुमनाम लोग भी जो किन रास्तों से गुजरे और किस किस से मिले किसी भी अथॉरिटी के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. वाराणसी क्षेत्र से भी ऐसा एक केस सामने आया है.
वाराणसी जिले की सीमा से लगे फूलपुर क्षेत्र का एक युवक सऊदी अरब से 19 मार्च को लौटा और दिल्ली से ट्रेन से वाराणसी तक का सफर तय किया. वाराणसी से घर तक का सफर भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ही तय किया. जब प्रशासन को जानकारी मिली तो उसे दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के आइसोलेशन सेंटर में भर्ती करा कर जांच करायी गयी. पहले बीएचयू की वायरोलॉजी लैब में जांच हुई और फिर सैंपल पुणे भेजा गया - बाद में, खबरों के मुताबिक, सीएमओ वीबी सिंह ने पुष्टि की है कि जांच में कोरोना पॉजिटिव पाया गया है.
कनिका कपूर कहां कहां गयीं और किस किस से मिलीं, पता लगाना आसान है. हर कोई तो कनिका कपूर से मिला भी नहीं होगा. जो मिला होगा वो भी सतर्क हो गया होगा. लेकिन फूलपुर के युवक को तो किसी ने पहचाना भी नहीं होगा. वो कहां कहां कितने लोगों से मिला. रेलवे स्टेशन से लेकर दिल्ली से वाराणसी तक के ट्रेन के सफर में कितने लोग उसके संपर्क में आये किसे पता. बहुतों को तो अब भी मालूम नहीं होगा कि वे ट्रेन में ऐसे इंसान के साथ सफर कर रहे थे जो कोराना वायरस का शिकार हो चुका था - और किसी के पास ऐसा कोई तरीका भी नहीं है जिससे ये सब पता लग सके. जिस कोच में उस युवक का रिजर्वेशन होगा उसमें कितने लोग आये गये होंगे - कोई नहीं बता सकता.
ये दोनों ही केस जनता कर्फ्यू लागू होने से पहले के हैं - और इन पर गौर से सोचें तो कई पहलू नजर आते हैं. एक तरफ बहुत सारे लोग जागरूक हैं और सतर्कता बरत रहे हैं तो दूसरी तरफ एक जमात ऐसी भी है जो हद से ज्यादा लापरवाही बरत रही है. इस जमात में भी दो तरह के लोग हैं - एक तो कनिका कपूर जैसे लोग और दूसरे फूलपुर के युवक जैसे लोग. पटना में भी एक युवक ऐसे ही इधर उधर भागता फिर रहा था जिसे पकड़ने के लिए डॉक्टर और पुलिस उसके पीछे पीछे भागती रही. हाल तक ये सवाल उठाया जाता रहा कि बिहार में कोरोना का एक भी केस सामने क्यों नहीं आया - अब तो एक कोरोना के चलते एक मौत भी हो चुकी है. वैसे बिहार की नीतीश सरकार ने बस सेवा और रेस्ट्रां बंद कर दिया है.
सवाल है कि आखिर लोग भाग क्यों रहे हैं? जब ये पता चल जा रहा है कि बीमारी की चपेट में आ चुके हैं या फिर वैसी आशंका जतायी जा रही है, फिर भी ऐसा क्यों कर रहे हैं? याद रहे दिल्ली में कोरोना वायरस से ग्रस्त एक युवक ने तो अस्पताल की इमारत से कूद कर आत्महत्या ही कर ली.
ऐसी घटनाएं न हों इसकी भी जिम्मेदारी प्रशासन की ही है. ऐसा लगता है जैसे बीमारी से ज्यादा दूसरी बातों को लेकर लोगों में खौफ पैदा हो जा रहा है और वे इधर उधर भागने लग रहे हैं. व्यवस्था में लगे लोगों को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे मरीज हैं और उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी ये भी समझना होगा.
कनिका कपूर का लखनऊ के अस्पताल में इलाज चल रहा है. उनकी शिकायत है कि उनको खाने तक को नहीं मिल रहा है और अस्पताल में तमाम मुश्किलों से जूझ रही हैं. दूसरी तरफ अस्पताल के स्टाफ की शिकायत है कि वो मरीज की तरह नहीं बल्कि स्टार जैसा व्यवहार कर रही हैं और किसी की कोई बात भी सुनने को तैयार नहीं हैं जबकि उनके कमरे में एसी, टीवी और सभी जरूरी सुविधायें हैं. ये अलग मुसीबत है और इसे खास तौर पर डील करने की जरूरत है.
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