ऐसा क्या था उस 37 साल के युवा में कि सरकार को उसके सफाए के लिए सेना भेजनी पड़ी. दूसरी ओर कुछ लोग आज भी उसे संत जी कहते हैं. वह पीढ़ी जो गूगल के दौर में जवान हुई है, उसके लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले एक रहस्यमयी किरदार हो सकता है.
भिंडरावाले को इतिहास में आतंकी के रूप में दर्ज किया गया है, जिसने सिख उग्रवाद को चरम तक पहुंचाया. और स्वर्ण मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने के लिए सरकार को मजबूर किया. लेकिन इस शख्स से जुड़ी एक और हकीकत है, जिससे पर्दा उठाती हैं ताजा खबरें. अमृतसर से लेकर जम्मू तक झड़पें हुई हैं. सिर्फ इसी खबर से कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाए जाने के दौरान पुलिस ने भिंडरावाले का पोस्टर हटा दिया था. पंजाब में एक तबका अब भी भिंडरावाले को सम्मान के साथ मन में बसाता है.
80 के दशक में वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता और उस दौर के कई पत्रकारों ने भिंडरावाले से मुलाकातें की थी. इन मुलाकातों के जिक्र से हमें भिंडरावाले के किरदार को समझने में काफी हद तक मदद मिलती है. पंजाब का ये युवा कैसे धार्मिक बातें करते-करते सरकार का दुश्मन बन गया, उसके करिश्माई व्यक्तित्व से मंत्रमुग्ध लोगों के बीच वह कैसे मौत के फरमान जारी करने लगा, कैसे लोग उसके लिए जीने-मरने को तैयार हो गए, कैसे उसके समूह का हौंसला इतना बढ़ गया कि वे भारत की विशाल सेना के सामने आ खड़े हुए.
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बात शुरू होती है 1978 से. बैसाखी (13 अप्रैल) को भिंडरावाले के समर्थकों की निरंकारियों से झड़प हुई. भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए. इस घटना ने भिंडरावाले का नाम अचानक सुर्खियों में ला दिया. सिख शिक्षण संस्था दमदमी टकसाल के इस 31 वर्षीय प्रमुख का नजरिया हमेशा कट्टर रहा. सिख धर्म के बारे में वह प्रभावशाली ढंग से बातें करता. उसके कहने पर लोगों ने बाल और दाढ़ी कटवाना बंद कर दिया. लोग सिगरेट-शराब पीना बंद करने लगे. लेकिन इस सबके बीच भिंडरावाले ने हिंदू धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने का काम भी शुरू कर दिया. 1947 में जन्मा भिंडरावाले...
ऐसा क्या था उस 37 साल के युवा में कि सरकार को उसके सफाए के लिए सेना भेजनी पड़ी. दूसरी ओर कुछ लोग आज भी उसे संत जी कहते हैं. वह पीढ़ी जो गूगल के दौर में जवान हुई है, उसके लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले एक रहस्यमयी किरदार हो सकता है.
भिंडरावाले को इतिहास में आतंकी के रूप में दर्ज किया गया है, जिसने सिख उग्रवाद को चरम तक पहुंचाया. और स्वर्ण मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाने के लिए सरकार को मजबूर किया. लेकिन इस शख्स से जुड़ी एक और हकीकत है, जिससे पर्दा उठाती हैं ताजा खबरें. अमृतसर से लेकर जम्मू तक झड़पें हुई हैं. सिर्फ इसी खबर से कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाए जाने के दौरान पुलिस ने भिंडरावाले का पोस्टर हटा दिया था. पंजाब में एक तबका अब भी भिंडरावाले को सम्मान के साथ मन में बसाता है.
80 के दशक में वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता और उस दौर के कई पत्रकारों ने भिंडरावाले से मुलाकातें की थी. इन मुलाकातों के जिक्र से हमें भिंडरावाले के किरदार को समझने में काफी हद तक मदद मिलती है. पंजाब का ये युवा कैसे धार्मिक बातें करते-करते सरकार का दुश्मन बन गया, उसके करिश्माई व्यक्तित्व से मंत्रमुग्ध लोगों के बीच वह कैसे मौत के फरमान जारी करने लगा, कैसे लोग उसके लिए जीने-मरने को तैयार हो गए, कैसे उसके समूह का हौंसला इतना बढ़ गया कि वे भारत की विशाल सेना के सामने आ खड़े हुए.
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बात शुरू होती है 1978 से. बैसाखी (13 अप्रैल) को भिंडरावाले के समर्थकों की निरंकारियों से झड़प हुई. भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए. इस घटना ने भिंडरावाले का नाम अचानक सुर्खियों में ला दिया. सिख शिक्षण संस्था दमदमी टकसाल के इस 31 वर्षीय प्रमुख का नजरिया हमेशा कट्टर रहा. सिख धर्म के बारे में वह प्रभावशाली ढंग से बातें करता. उसके कहने पर लोगों ने बाल और दाढ़ी कटवाना बंद कर दिया. लोग सिगरेट-शराब पीना बंद करने लगे. लेकिन इस सबके बीच भिंडरावाले ने हिंदू धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने का काम भी शुरू कर दिया. 1947 में जन्मा भिंडरावाले हमेशा सिख पहनावे कच्छा और ढीले कुर्ते में रहता था. हथियार के नाम पर उसके पास सिख परंपरा के मुताबिक कृपाण और स्टील का एक तीर होता था. इस छह फुटा युवा की बातचीत का अंदाज बेहद आकर्षक था. गजब की निगाह. उसके सामने पलटकर सवाल-जवाब करने का तो सवाल ही नहीं था, रौब ही कुछ ऐसा था.
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अगस्त 1983 में हुई एक मुलाकात का शेखर गुप्ता कुछ यूं जिक्र करते हैं. भिंडरावाले ने पूछा, 'तुम हिंदू पैदा हुए थे?' मैंने कहा, 'हां बिलकुल'. और रक्षात्मक होते हुए जोड़ा कि 'बाकी हिंदुओं की तरह मैं गुरुद्वारे भी जाता हूं'. उसने मुस्कुराकर कहा, 'अच्छा. तो बताओ तुम मंदिर में कौन से भगवान की पूजा करते हो?'. मैं जवाब देता उससे पहले ही वह बोल पड़ा, 'भगवान राम, कृष्ण, शिव, ब्रह्मा, विष्णु. क्या तुमने कभी इनके सिर के बालों को खुला हुआ देखा है या दाढ़ी को? ईसाई, मुस्लिम, पारसियों में भी ऐसा ही है. क्या तुम्हारे भगवान तुम्हारे पिता की तरह नहीं हैं?' मेरे पास कोई चारा नहीं था, सिवाय हां कहने के. भिंडरावाले ने कहा कि 'तो तुम्हारे पिता ने कभी बाल नहीं कटवाए और तुम क्लीन शेव रहते हो. ऐसे बेटे को क्या कहना चाहिए, वो उसके पिता की तरह नहीं है. इसीलिए मैं कहता हूं शेखर जी, केशों की हत्या बंद कर दो. अपने पूर्वजों की तरह दिखने लगो, फिर हम आपको एक लायक और जायज बेटा कहेंगे'. भिंडरावाले अपनी सभा में ऐसा ही सुलूक करता था देशी-विदेशी पत्रकारों के साथ.
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दो ही पत्रकार हैं, जो भिंडरावाले को अपनी बात से निरुत्तर कर पाए. तवलीन सिंह के बारे भिंडरावाले ने कहा था कि यही सिख पत्रकार है, जो मेरी भौहें नोचती है. इसके अलावा ट्रिब्यून के ब्यूरो चीफ रहे सतिंदर सिंह, जिनकी बात सुनकर भिंडरावाले हंसकर रह गया था. सतिंदर ने कह दिया था कि यदि खालिस्तान बन गया तो वे विलायत चले जाएंगे. भिंडरावाले ने पूछा, क्यों, खालिस्तान को बुद्धिजीवियों की जरूरत नहीं होगी क्या? सतिंदर ने जवाब दिया, हिंदू मुझे भारत में नहीं रहने देंगे, क्योंकि मैं एक सिख हूं. और आप मुझे खालिस्तान में नहीं रहने दोगे, क्योंकि मैं ज्यादा पढ़-लिख गया हूं. तो मैं इंग्लैंड ही जाउंगा. ये शायद कुछ ही मौके थे, जब भिंडरावाले ने भरी सभा में बातों में किसी को जीतने दिया हो, मजाक में ही सही.
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भिंडरावाले का एक क्रूर चहरा भी था, जिसे इन घटनाओं से समझा जा सकता है. एक 80 साल की औरत पैर छूने के लिए भिंडरावाले के पास पहुंची, तो उसने उसी पैरों से उसे जोर से धक्का दे दिया. यह कहते हुए कि लोग क्या कहेंगे, 80 साल की बूढ़ी औरत और 36 साल का संत. तवलीन सिंह अपने सामने हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं कि भिंडरावाले की सभा में एक बार लहर सिंह नाम का व्यक्ति पहुंचा. उसकी दाढ़ी ऐसी लग रही थी मानो उसे चाकू से बेतरतीब ढंग से काटा गया हो. वह पंजाब सीमा से लगे फजिल्का जिले के जटवाली गांव का रहने वाला था. उसने शिकायत की कि थानेदार बिच्छू सिंह ने उसका ये हाल बनाया है. छह महीने बाद पता चला कि किसी ने बिच्छू सिंह को गोली मार दी है. तवलीन कहती हैं कि मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मेरे सामने किसी के लिए मौत की सजा सुना दी गई थी.
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भिंडरावाले में जबर्दस्त इगो था. वह चाहता था कि लोगों का ध्यान सिर्फ उसी पर रहे. किसी और पर नहीं. शेखर गुप्ता और मशहूर फोटोग्राफर रघु राय एक बार भिंडरावाले से मिलने स्वर्ण मंदिर पहुंचे. सर्दियों के दिन थे. हमेशा स्टाइलिश रहने वाले रघु उस दिन भिंडरावाले की सभा से हटकर धूप लेने के लिए किनारे एक मुंडेर के पास खड़े हो गए. उनके गले में कैमरा और बड़े-बड़े लैंस लोगों का ध्यान खींच रहे थे. भिंडरावाले ने कहा, 'शेखर जी अपने फोटोवाले से कहो कि मुंडेर के पास से हट जाए'. किसी की हिम्मत नहीं हुई कि पूछ ले क्यों. तो मैंने रघु से कहा कि संत जी चाह रहे हैं कि तुम अंदर आकर सभा में जमीन पर बैठ जाओ. रघु ने भीतर आते हुए पूछा 'क्यों, क्या प्रॉब्लम है?' भिंडरावाले बोला, 'शेखर जी बता दो उसको मुंडेर से हट जाए, वरना वह नीचे गिर जाएगा और मर जाएगा. दुनिया कहेगी कि संतों ने मार डाला'. अब तो रघु ने भी कहना मान लिया.
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ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू होने से करीब एक पखवाड़ा पहले शेखर गुप्ता और न्यूजवीक के सीनियर पत्रकार एडवर्ड बेर पंजाब पहुंचे. आजादी से पहले ब्रिटिश आर्मी की गढ़वाल रेजिमेंट में अफसर रह चुके एडवर्ड जब स्वर्ण मंदिर में दाखिल हुए तो उन्हें देखकर भिंडरावाले ने पूछ लिया 'इस गोरे पत्रकार का पैर क्यों कांप रहा है? एडवर्ड ने जवाब दिया कि खून का दौरा रुकने से वह सुन्न पड़ गया है'. भिंडरावाले ने सभा में मौजूद लोगों की ओर देखते हुए कहा 'कहीं मुंडेर पर लगी स्टेन गन देखकर तो पैर नहीं लड़खड़ा रहे हैं'. ऐसा कहते ही भीड़ से आवाज उठी जो बोले सो निहाल. एडवर्ड ने सधी हुई आवाज में कहा 'मैं स्टेन गन से नहीं डरता. हमने सेना में रहते हुए थॉमसन कार्बाइन इस्तेमाल की है. और हमें पता है कि यह गलती से भी गिर गई तो तीन राउंड फायर हो जाएंगे. तुम क्या जानों गन के बारे में'. शेखर बताते हैं कि 'एडवर्ड के ऐसा कहते ही मानो वहां का तापमान माइनस 30 डिग्री हो गया था. मैंने एडवर्ड की कलाई थामी और उन्हें सभा से बाहर ले गया'.
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शेखर गुप्ता उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक हैं, जिन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू होने से ठीक पहले भिंडरावाले से मुलाकात की थी. भिंडरावाले की यह अंतिम प्रेसवार्ता थी. इस मुलाकात में लग रहा था जैसे भिंडरावाले भी उन किंवदंतियों को सही मान बैठा था, जो उसके समर्थक उसके बारे में कह रहे थे, कि वह एक दैवीय अवतार है. वह बड़े ही सहज ढंग से बोला, 'समय आ गया है हमारी जीत का और पृथक सिख देश के बनने का. ये अटल सत्य है. सिखों की जीत और बीबी (इंदिरा गांधी) की सेना की हार पक्की है'. पूछा गया कि 'आप इतनी बड़ी सेना से कैसे लड़ोगे? उनके पास टैंक भी है, जो कोतवाली के सामने खड़े हैं?' जवाब आया कि 'हमारी जीत पक्की है, हमें तो सिर्फ रूसी कमांडो से लड़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना है'. फिर सवाल हुआ 'रूसी कमांडो क्यों संत जी?' भिंडरावाले ने मुस्कुराते हुए कहा कि 'भारत की फौज में जो सिख हैं, वो हमसे लड़ेंगे नहीं और टोपीवाले (हिंदू) हमारे सामने टिकेंगे नहीं. तो बीबी के पास रूसी कमांडो के अलावा कोई विकल्प नहीं है'. मौके पर मौजूद पत्रकार समझ गए थे कि 37 वर्षीय भिंडरावाले ने अपनी और वहां मौजूद सैकड़ों समर्थकों की मौत का फरमान जारी कर दिया है.
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भिंडरावाले के करीबी रहे मोहकम सिंह कहते हैं कि संत जी मामूली आदमी नहीं थे. वे अलगाववादी नहीं थे. वे तो पंजाब की ऑटोमोनी (स्वायत्तता) की बात करते थे. जो अब बहुत कॉमन है. लेकिन तब साजिश करके उनकी बात को गलत ढंग से पेश किया गया. वे भिंडरावाले का पोर्टेट दिखाते हुए कहते हैं देखिए उनके अस्त्र कैसे घुटने के नीचे तक दिखाई देते हैं. बिलकुल गुरु गोविंद सिंह की तरह. भिंडरावाले के बारे में 80 के दशक में ऐसी कई कंवदंतियां प्रचलित थीं. लेकिन पंजाब में अब भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है.
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