'जो भी कहा सच कहा, सच के सिवा कुछ भी नहीं कहा...' - मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल की पैरवी कर रहे राम जेठमलानी ने जिस तेवर के साथ कोर्ट में 'CROOK' शब्द का इस्तेमाल किया था, बारी आने पर केजरीवाल ने हलफनामे में उनके दावे को उसी अंदाज में खारिज कर दिया. दोनों पक्षों का अपना अपना सच है जो अदालत के कठघरे में खड़ा है.
हलफनामा किसी व्यक्ति द्वारा अदालत में दाखिल सच का दस्तावेज होता है. सच जो भी हो अदालत के लिए सच वही होता है जिसे साबित किया जा सके. साबित उसे ही किया जा सकता है जिसका सबूत हो. केजरीवाल का दावा है कि वो ऐसी बातें सोच भी नहीं सकते, जेठमलानी का कहना है कि वो इससे भी भद्दी बातें कहा करते थे.
केजरीवाल की मुश्किल दोहरी हो गयी है. जेटली ने मानहानि के मामले डबल कर दिये हैं - और जेठमलानी न सिर्फ केस लड़ने से मना किया है, बल्कि दो करोड़ की बची हुई फीस भी मांगी है.
केजरीवाल का हलफनामा
केजरीवाल की ओर से पैरवी करते हुए जेठमलानी अदालत के सामने साबित करना चाहते थे कि अरुण जेटली के मानहानि के दावे में कोई दम नहीं है. 10 करोड़ रुपये के मानहानि का दावा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पांच नेताओं के खिलाफ कोर्ट में दायर किया था. इन नेताओं ने जेटली पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था.
इसी साल 17 मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट के संयुक्त रजिस्ट्रार के सामने अरुण जेटली का क्रॉस-एक्जामिनेशन करते हुए जेठमलानी का कहना था कि जेटली मानहानि के लिए 10 करोड़ रुपये के दावे के हकदार नहीं हैं. जेठमलानी द्वारा इस्तेमाल एक शब्द पर जेटली को गुस्सा आना लाजिमी था. जेटली का सवाल था कि जेठमलानी ऐसा खुद कर रहे हैं या फिर अपने क्लाइंट के कहने पर और अगर ऐसा है तो वो अपना...
'जो भी कहा सच कहा, सच के सिवा कुछ भी नहीं कहा...' - मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल की पैरवी कर रहे राम जेठमलानी ने जिस तेवर के साथ कोर्ट में 'CROOK' शब्द का इस्तेमाल किया था, बारी आने पर केजरीवाल ने हलफनामे में उनके दावे को उसी अंदाज में खारिज कर दिया. दोनों पक्षों का अपना अपना सच है जो अदालत के कठघरे में खड़ा है.
हलफनामा किसी व्यक्ति द्वारा अदालत में दाखिल सच का दस्तावेज होता है. सच जो भी हो अदालत के लिए सच वही होता है जिसे साबित किया जा सके. साबित उसे ही किया जा सकता है जिसका सबूत हो. केजरीवाल का दावा है कि वो ऐसी बातें सोच भी नहीं सकते, जेठमलानी का कहना है कि वो इससे भी भद्दी बातें कहा करते थे.
केजरीवाल की मुश्किल दोहरी हो गयी है. जेटली ने मानहानि के मामले डबल कर दिये हैं - और जेठमलानी न सिर्फ केस लड़ने से मना किया है, बल्कि दो करोड़ की बची हुई फीस भी मांगी है.
केजरीवाल का हलफनामा
केजरीवाल की ओर से पैरवी करते हुए जेठमलानी अदालत के सामने साबित करना चाहते थे कि अरुण जेटली के मानहानि के दावे में कोई दम नहीं है. 10 करोड़ रुपये के मानहानि का दावा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पांच नेताओं के खिलाफ कोर्ट में दायर किया था. इन नेताओं ने जेटली पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था.
इसी साल 17 मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट के संयुक्त रजिस्ट्रार के सामने अरुण जेटली का क्रॉस-एक्जामिनेशन करते हुए जेठमलानी का कहना था कि जेटली मानहानि के लिए 10 करोड़ रुपये के दावे के हकदार नहीं हैं. जेठमलानी द्वारा इस्तेमाल एक शब्द पर जेटली को गुस्सा आना लाजिमी था. जेटली का सवाल था कि जेठमलानी ऐसा खुद कर रहे हैं या फिर अपने क्लाइंट के कहने पर और अगर ऐसा है तो वो अपना दावा बढ़ा देंगे. जेठमलानी ने इसका जवाब 'हां' में दिया. इसके बाद जेटली ने केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का एक और मुकदमा दायर कर दिया.
फिर केजरीवाल ने जेठमलानी को पत्र लिखा और हलफनामा दाखिल कर कहा कि ये उनके समझ से परे है कि वो इस तरह के आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए कहेंगे. केजरीवाल की ओर से साफ किया गया कि न तो खुद उन्होंने और न ही उनके वकील अनुपम श्रीवास्तव ने जेठमलानी को ऐसे किसी शब्द इस्तेमाल करने का निर्देश दिया था.
अब जेठमलानी ने केजरीवाल को एक पत्र लिखकर मानहानि मामले से हटने और अपनी कानूनी फीस का पेमेंट करने के लिए कहा है. ये जेठमलानी ही थे जो केजरीवाल का केस एक रुपये में लड़ने को तैयार थे, लेकिन अब वो बकाया भी वसूलने वाले हैं.
जेठमलानी का बिल
इस तरह केजरीवाल के लिए ये सौदा कई तरह से महंगा हो गया है. अब उन्हें जेठमलानी का साथ भी नहीं मिलेगा और ऊपर से फीस भी तत्काल देनी पड़ेगी. अगर सरकारी खाते से उसकी भरपाई होने की नौबात आती है तो विरोधियों के लिए एक और आसान कैच होगा. जेठमलानी की साढ़े तीन करोड़ की फीस पर पहले ही खासा विवाद हो चुका है. ऊपर से मानहानि के दो-दो मुकदमे, डबल रकम के साथ अलग से.
केजरीवाल के पत्र की बाबत जेठमलानी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा उन्होंने अपना जवाब भेज दिया है. जेठमलानी का कहना है कि मीडिया चाहे तो केजरीवाल से दोनों पत्र सार्वजनिक करने को कह सकता है. खुद पत्रों को सार्वजनिक वो इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि केजरीवाल से उन्होंने ऐसा वादा कर रखा है.
अब ये जेठमलानी का अतिविश्वास था या केजरीवाल वाकई अपनी बात से मुकर गये? समझना मुश्किल है. इस बात का पता तो तभी चलेगा जब कोई स्टिंग वीडियो या सबूत सामने आये. वैसे जेठमलानी की मानें तो उन्होंने बस क्रूक का जिक्र किया है - जबकि उनके अनुसार केजरीवाल और भी भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे.
वैसे केजरीवाल की ताकत उनका आत्मविश्वास है जो उनके आस पास के लोग बातों बातों में बढ़ाते भी रहते हैं, भले ही पब्लिक में रोना धोना ही क्यों न पड़े. जब केजरीवाल ने अन्ना, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की परवाह नहीं कि तो जेठमलानी उनके लिए किस खेत की मूली होंगे.
मुलाकातों और बातों का सच जो भी हो सामना तो दोनों का होना है. वकील और मुवक्किल के बीच बातें वैसे ही होती हैं जैसे किसी सीए और उसके क्लाइंट या फिर किसी डॉक्टर और मरीज के बीच. अगर जेठमलानी ने ऐसी बात कही है जो केजरीवाल ने बोला या सोचा भी नहीं तो इसे जो भी नाम दिया जाये - एथिकल तो नहीं ही माना जाएगा. अपने मुवक्किल को उसका वकील कोर्ट में रिप्रजेंट करता है और अदालत भी वकील को मुवक्किल ही मानती है. अगर जेठमलानी और केजरीवाल के बीच केस को प्रजेंट करने को लेकर कोई स्ट्रेटेजी बनी हो तो ये बात सिर्फ उन्हें ही मालूम होगी. केजरीवाल के हलफनामे को देखें तो लगता है जेठमलानी ने एथिक्स का उल्लंघन किया है - और जेठमलानी के दावे के हिसाब से देखें तो केजरीवाल के ही करार तोड़ने जैसा लग रहा है.
सबूत की बात और है, केजरीवाल का हलफनामा भी अपनी जगह. सच क्या है और झूठ कौन बोल रहा है अदालत का फैसला आने पर ही मालूम हो पाएगा.
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा हुआ कोई शख्स देश के प्रधानमंत्री के लिए 'कायर' और 'मनोरोगी' जैसे शब्दों का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल करे - और हलफनामे में कहे कि क्रूक जैसे अपमानजनक शब्द कहने की बात उनकी समझ से परे है. बात सच हो सकती है लेकिन ये भी समझ से परे ही है.
कानूनी दावपेचों में जेठमलानी का कोई सानी नहीं, लेकिन उनके विवादों के ट्रैक रिकॉर्ड भी कम नहीं हैं. वैसे भी ये मामला केजरीवाल बनाम जेटली से कहीं ज्यादा जेठमलानी बनाम जेटली जैसा लगने लगा था. जेठमलानी के लिए केजरीवाल कोई सबक हैं या उनके साथ हुए तमाम विवादों में एक और बस जुड़ गया है, समझना मुश्किल हो रहा है.
ये मामला इतना ही नहीं लगता. देखना ये है कि जेठमलानी की फीस को लेकर केजरीवाल का क्या रुख रहता है. केजरीवाल और जेठमलानी के बीच मामला फीस तक ही सीमित रहता है या आगे बढ़ता है. जेठमलानी की ओर से सोचें तो उनकी ओर से भी केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का एक मुकदमा बनता है - क्योंकि केजरीवाल के चलते जेठमलानी झूठे साबित हो रहे हैं. इसी तरह केजरीवाल की तरफ से देखा जाये तो वो चाहें तो जेठमलानी के खिलाफ भी मानहानि का दावा कर सकते हैं. ये सिलसिला लंबा चलता दिखता है.
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