झारखंड में माहौल तनावपूर्ण है. सिर्फ राज्य की जनता ही नहीं, पूरा देश जानना चाहता है कि क्या खदान लीज मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राहत मिलेगी. सीएम अपनी कुर्सी बचा पाएंगे? राज्य में सियासी सरगर्मियां इसलिए भी तेज हैं क्योंकि चुनाव आयोग की राय के बाद हेमंत सोरेन की सदस्यता जा सकती है. मामले को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आमने-सामने हैं. भले ही भाजपा मुख्यमंत्री और उनकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रही हो लेकिन पार्टी भाजपा के आरोपों को कान नहीं दे रही है. कहा यही जा रहा है कि जो भी निर्णय होगा पार्टी उसके लिए तैयार है और भविष्य में फैसले उसी के तहत लिए जाएंगे.
मामले के मद्देनजर हेमंत सोरेन पर क्या आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं और झारखंड मुक्ति मोर्चा की उनपर क्या सफाई है इसपर बात होगी लेकिन सबसे पहले हमारे लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े इस विवाद को समझ लेना बहुत जरूरी है.
पद का दुरूपयोग करते हुए जो कुछ भी हेमंत सोरेन ने किया है माना जा रहा है कि अब उनकी कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है
क्या है मामला?
हेमंत सोरेन पर झारखंड का सीएम रहते हुए रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल जमीन पर खनन पट्टा खुद को और अपने भाई को जारी करने का आरोप है. दिलचस्प ये कि जिस वक़्त हेमंत ने जमीन लीज पर ली उस वक़्त उनके पास खनन मंत्रालय भी था. ध्यान रहे अभी हाल ही में झारखंड में खनन सचिव पूजा सिंघल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया है. बताया जा रहा है कि पूजा हेमंत सोरेन की करीबी हैं और उनके द्वारा ही खनन के लाइसेंस जारी किये गए थे.
भारतीय जनता पार्टी ने इसे काफी गंभीरता से लिया था और इस मामले को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जोड़ते हुए राज्यपाल रमेश बैस से शिकायत की थी. इसी शिकायत के तहत राज्यपाल ने चुनाव आयोग से राय मांगी थी. बीते 18 अगस्त को इस मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है. इसलिए देश की नजर अब चुनाव आयोग पर है हर कोई यही जानना चाहता है कि हेमंत सोरेन पर क्या फैसला आता है.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने अपने निष्कर्षों में हेमंत सोरेन को लाभ के पद का उल्लंघन करने का दोषी पाया है. वहीं कहा ये भी जा रहा है कि झारखंड के मुख्यमंत्री ने 1951 के जन प्रतिनिधि अधिनियम के 9ए का उल्लंघन किया है. जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं भाजपा ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की मांग की थी. संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत हेमंत सोरेन के मुकद्दर पर आखिरी फैसला राज्यपाल द्वारा ही लिया जाएगा.
झारखंड मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने एक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री को चुनाव आयोग द्वारा झारखंड के राज्यपाल को एक रिपोर्ट भेजने के बारे में कई मीडिया रिपोर्टों से अवगत कराया गया है, "जाहिर तौर पर एक विधायक के रूप में उनकी अयोग्यता की सिफारिश की गई है." इस संबंध में सीएमओ को चुनाव आयोग या राज्यपाल से कोई संचारसंदेश प्राप्त नहीं हुआ है.
वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय ने भाजपा, एक भाजपा सांसद और पत्रकारों को भी अपने निशाने पर लिया है. कहा गया है कि जैसे चुनाव आयोग की रिपोर्ट जो सील होती है ऐसा लगता है कि उसका निर्माण इन्हीं लोगों ने किया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर जो आरोप लगे हैं उसपर मुख्यमंत्री कार्यालय का यही मानना है कि भाजपा द्वारा संवैधानिक प्राधिकरणों और सार्वजनिक एजेंसियों का घोर दुरुपयोग किया जा रहा है. जोकि अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है.
भले ही भाजपा इस मामले को हाई लाइट कर झारखण्ड में दोबारा चुनाव की मांग कर रही हो लेकिन अभी कुछ कहना इसलिए भी जल्दबाजी है क्योंकि हेमंत सोरेन और झारखंड दोनों के भाग्य का फैसला राज्यपाल ही करेंगे.
कुल मिला कर जिस तरह अवैध खनन की कुदाल हेमंत सोरेन ने खुद थामी कुर्सी जाने की पूरी सम्भावना है. इसलिए हमारे लिए ये देखना भी दिलचस्प रहेगा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा इस चुनौती को कैसा पार लगाता है? साथ ही हमारे लिए ये देखना भी मजेदार रहेगा कि भाजपा झारखंड की इस पॉलिटिकल आपदा को कैसे अवसर में बदलती है.
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