राजनीति भी बिजनेस ही है, अगर तुलना करने का पैमाना फायदा हो तो. लिहाजा राजनीति में भी हमेशा फायदे की सोच कर ही फैसले लिये जाते हैं. अगर तत्काल नुकसान हो रहा हो और बाद में फायदे की संभावना हो तो भी चलता है.
पेशेवर राजनीति के मामले में भी बीजेपी बाकियों से बहुत आगे है - लेकिन जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) से बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है?
ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी से बीजेपी को किसी तरह का फिलहाल कोई फायदा हो सकता है, बाद की बात और है. बशर्ते, बीजेपी ने पहले से ही कुछ प्लान कर रखा हो.
ऐसे में जबकि साल के आखिर में गुजरात विधानसभा (Gujarat Elections) के लिए चुनाव होने वाले हों - जो हुआ है उससे जिग्नेश मेवाणी को ज्यादा ही फायदा हो सकता है. अगर जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ भी बीजेपी विधायकों की तरह कोई सत्ता विरोधी लहर हो. गिरफ्तारी से लोगों की सहानुभूति मिलेगी और लोग सारे गिले शिकवे भुलाकर फिर से साथ खड़े हो जाएंगे.
दलितों के खिलाफ ऊना में जो उत्पीड़न की घटना हुई थी, जिग्नेश मेवाणी ने बड़ा आंदोलन चलाया और देखते देखते वो गुजरात के बड़े दलित नेता बन गये. जिग्नेश मेवाणी भी तब हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर वाली तिकड़ी का हिस्सा थे जिसने बीजेपी को 2017 के चुनाव में बहुत नुकसान पहुंचाया था.
वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस ने पालनपुर सर्किट हाउस से रात के 11.30 बजे गिरफ्तार किया. असम में बीजेपी (BJP) की सरकार है और एक जमाने में कांग्रेस के नेता रहे हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री हैं. जाहिर है, जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी ऊपर से अप्रूवल लिये बगैर तो हुई नहीं होगी.
जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के सपोर्ट से विधायक बने थे. तभी से वो बाहर से ही कांग्रेस को सपोर्ट करते रहे हैं. कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करते वक्त जिग्नेश मेवाणी के भी पार्टी में शामिल होने की चर्चा रही, लेकिन फिर बताया गया कि तकनीकी वजहों से आगे भी यथास्थिति बनाये रखने का द्विपक्षीय फैसला लिया...
राजनीति भी बिजनेस ही है, अगर तुलना करने का पैमाना फायदा हो तो. लिहाजा राजनीति में भी हमेशा फायदे की सोच कर ही फैसले लिये जाते हैं. अगर तत्काल नुकसान हो रहा हो और बाद में फायदे की संभावना हो तो भी चलता है.
पेशेवर राजनीति के मामले में भी बीजेपी बाकियों से बहुत आगे है - लेकिन जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) से बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है?
ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी से बीजेपी को किसी तरह का फिलहाल कोई फायदा हो सकता है, बाद की बात और है. बशर्ते, बीजेपी ने पहले से ही कुछ प्लान कर रखा हो.
ऐसे में जबकि साल के आखिर में गुजरात विधानसभा (Gujarat Elections) के लिए चुनाव होने वाले हों - जो हुआ है उससे जिग्नेश मेवाणी को ज्यादा ही फायदा हो सकता है. अगर जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ भी बीजेपी विधायकों की तरह कोई सत्ता विरोधी लहर हो. गिरफ्तारी से लोगों की सहानुभूति मिलेगी और लोग सारे गिले शिकवे भुलाकर फिर से साथ खड़े हो जाएंगे.
दलितों के खिलाफ ऊना में जो उत्पीड़न की घटना हुई थी, जिग्नेश मेवाणी ने बड़ा आंदोलन चलाया और देखते देखते वो गुजरात के बड़े दलित नेता बन गये. जिग्नेश मेवाणी भी तब हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर वाली तिकड़ी का हिस्सा थे जिसने बीजेपी को 2017 के चुनाव में बहुत नुकसान पहुंचाया था.
वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को असम पुलिस ने पालनपुर सर्किट हाउस से रात के 11.30 बजे गिरफ्तार किया. असम में बीजेपी (BJP) की सरकार है और एक जमाने में कांग्रेस के नेता रहे हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री हैं. जाहिर है, जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी ऊपर से अप्रूवल लिये बगैर तो हुई नहीं होगी.
जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के सपोर्ट से विधायक बने थे. तभी से वो बाहर से ही कांग्रेस को सपोर्ट करते रहे हैं. कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करते वक्त जिग्नेश मेवाणी के भी पार्टी में शामिल होने की चर्चा रही, लेकिन फिर बताया गया कि तकनीकी वजहों से आगे भी यथास्थिति बनाये रखने का द्विपक्षीय फैसला लिया गया.
अब सवाल ये उठता है कि ये अचानक बीजेपी को क्या हो गया कि वो जिग्नेश मेवाणी पर हद से ज्यादा मेहरबान हो गयी है?
एक ट्वीट पर गिरफ्तारी
गुजरात के दलित विधायक जिग्नेश मेवाणी को असम के एक बीजेपी कार्यकर्ता की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया है. पुलिस के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक बीजेपी कार्यकर्ता ने जिग्नेश मेवाणी के एक ट्वीट पर नाराजगी जताते हुए शिकायत दर्ज करायी थी - और असम पुलिस ने उसी के आधार पर कार्रवाई की है.
जिग्नेश मेवाणी की दो पोस्ट को ट्विटर पर 'विदहेल्ड' देखा जा सकता है. दो ट्वीट को छिपा दिया गया है, और वहां मैसेज डाल दिया गया है - ऐसा भारत में कानूनी तौर पर डिमांड किया गया था. दलित नेता के करीबियों के हवाले से दी गयी मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि जिग्नेश मेवाणी ने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाल की हिंसक घटनाओं को लेकर निशाना बनाया था - और उसमें महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का भी जिक्र किया गया था. जिग्नेश मेवाणी ने हिंसक घटनाओं को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया था.
जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ दर्ज केस: जिग्नेश मेवाणी के ट्वीट को लेकर उनके खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 120 B (आपराधिक साजिश), धारा 153 A (दो समुदायों के खिलाफ शत्रुता बढ़ाना), 295A और 504 (शांति भंग करने के इरादे से भड़काने वाली बातें कहना) के तहत मुकदमा दर्ज किया है. इनके अलावा आईटी एक्ट की भी कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है.
जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी के बाद आधी रात को जैसे ही दलित नेता के समर्थकों को जानकारी मिली वे अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुंच गये और असम पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करके विरोध जताया. मेवाणी के समर्थकों का कहना रहा कि उनके साथ एफआईआर की कॉपी तक नहीं शेयर की गयी.
मेवाणी के सपोर्ट में कांग्रेस नेता भी हरकत में आ गये थे और अहमदाबाद में गिरफ्तारी का अपने तरीके से विरोध भी किया. गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष जगदीश ठाकोर ने इसे एक विधायक को डराने धमकाने का प्रयास बताया है.
क्या ये सब जिग्नेश मेवाणी पर दबाव बनाने और डराने के मकसद से किया गया है?
क्योंकि गिरफ्तारी से ज्यादा कुछ होने वाला तो है नहीं. कोर्ट में ऐसे मामले ज्यादा देर तक टिकते भी नहीं. जब तक कि अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज न किये जायें.
गुजरात कांग्रेस की तरफ से जानकारी दी गयी है कि जिग्नेश मेवाणी के लिए असम में एक लीगल टीम बनायी गयी है ताकि हर संभव कानूनी मदद उपलब्ध करायी जा सके. जिग्नेश मेवाणी को कोर्ट में पेश किये जाने के बाद जमानत की कोशिश होगी.
क्या दलित राजनीति अप्रासंगिक होने लगी है?
आखिर जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी को आज के राजनीतिक हालात में कैसे देखा जाये?
किसी भी नेता की ताकत के पीछे उसका जनाधार होता है. जैसे जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार किया गया है, वैसे हर नेता को नहीं गिरफ्तार किया जाता. ऐसी गिरफ्तारियां बहुत कुछ सोच समझ कर की जाती हैं. ऐसी कार्रवाई के बाद के हालत का पूर्वानुमान लगाने के बाद ही पुलिस भी कोई कदम आगे बढ़ाती है.
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक की गिरफ्तारी के लिए ईडी के अफसर सुबह ही पहुंच गये थे - और उस दौरान अर्धसैनिक बलों ने पहले से ही इलाके को घेर रखा था, ताकि एनसीपी कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की स्थिति में उनको रोका जा सके.
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले नोटिस मिलने पर जब शरद पवार ने घोषणा कर दी कि वो ईडी के दफ्तर खुद चल कर जाएंगे - तो पूरा मुंबई प्रशासन हिल गया था. आला अफसरों की तरफ से अपील की गयी कि शरद पवार अपना कार्यक्रम रद्द कर दें. क्योंकि प्रशासन को डर था कि शरद पवार जैसे बड़े नेता के साथ कुछ भी होने पर उनके सपोर्टर उत्पात मचा देंगे और कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी. शरद पवार और नवाब मलिक होने का फर्क भी यही होता है - और जिग्नेश मेवाणी के केस में भी ऐसा ही समझा जा सकता है.
25 मई 2016 तो यूपी के सहारनपुर में महाराणा प्रताप जयंती के मौके पर जुलूस निकालने को लेकर दो पक्षों में हिंसक संघर्ष हुआ था. भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद रावण को मुख्य आरोपी बनाया गया था. जब तक राज्य में अखिलेश यादव की सरकार रही, सब चलता रहा. जैसे ही योगी आदित्यनाथ ने कुर्सी संभाली, तीन महीने के भीतर ही चंद्रशेखर डलहौजी से यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स ने हिमाचल प्रदेश के डलहौजी जाकर पकड़ लिया.
गिरफ्तारी के छह महीने बाद ही चंद्रशेखर को एनएसए में बुक कर दिया गया, लेकिन 2019 के आम चुनाव से पहले सरकार ने स्पेशल आदेश से भीम आर्मी नेता को रिहा भी कर दिया था. जब चंद्रशेखर आजाद जेल में थे तब उनकी रिहाई के लिए जिग्नेश मेवाणी ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस और प्रदर्शन भी किया था.
हो सकता है चंद्रशेखर आजाद भी वैसा ही कुछ सोच भी रहे हों, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस की तरफ से विरोध में अलग अलग ट्वीट किये गये हैं. राहुल गांधी ने असम की हिमंत बिस्वा सरकार की जगह सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार मानते हुए ट्विटर पर लिखा है, 'मोदी जी, आप सरकारी मशीनरी के जरिये विरोध को कुचल सकते हैं, लेकिन सच को जेल में कभी नहीं डाल सकते.'
जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी के बाद कुछ सवाल मौजूं लगने लगे हैं - क्या दलित नेता मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में कमजोर पड़ने लगे हैं? और - क्या दलित राजनीति वास्तव में अप्रासंगिक होने लगी है?
दलित राजनीति की प्रासंगिकता पर यूपी चुनाव के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह का बयान याद आता है. अमित शाह ने वोटिंग के कई दौर बीत जाने के बाद कहा था कि न तो बीएसपी की राजनीति अप्रासंगिक होने जा रही है, न ही मायावती की. साथ में अमित शाह ने मायावती के लिए मुस्लिम सपोर्ट का भी जोर देकर जिक्र किया था. चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ कि बीएसपी को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिली है - और चुनाव जीतने वाला विधायक भी दलित नहीं है. मतलब, वो बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ने के बावजूद अपनी बदौलत जीता है.
जहां तक दलित नेताओं के कमजोर होने की बात है, चिराग पासवान से लेकर जिग्नेश मेवाणी तक एक लंबी फेहरिस्त देखी जा सकती है. कम से कम तीन दलित नेता जो अपने अपने राज्यों मे्ं मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इसी लिस्ट में शामिल हैं - चरणजीत सिंह चन्नी, मायावती और जीतनराम मांझी.
चन्नी को छोड़ दें तो बीजेपी ने मायावती और जीतनराम मांझी का भी भरपूर इस्तेमाल किया है - और चिराग पासवान का तो मामला ही अलग है. बिहार से आने वाले रामविलास पासवान को लालू यादव राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा करते थे, उनके उत्तराधिकारी के पास से सब कुछ करीब करीब छिन चुका है - हां, 2024 तक वो लोक सभा के सांसद जरूर रहेंगे.
ये जानते हुए कि गुजरात चुनाव से पहले जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी का नुकसान भी हो सकता है, बीजेपी के रणनीतिकारों ने अगर ये अप्रूवल दिया है तो काफी सोच विचार के बाद ही ऐसा किया होगा. उनको ये भी पहले से ही मालूम होगा कि किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति को कैसे न्यूट्रलाइज किया जा सकता है - फिर भी कुछ सवाल हैं.
1.क्या जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी विधानसभा चुनाव से पहले उन पर नकेल कसने की कोई तैयारी है?
2.क्या जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार करके कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुजरात में कमजोर करने की कोशिश हुई है?
3.क्या गुजरात में भी दलित राजनीति अप्रासंगिक हो चुकी है?
ध्यान देने वाली एक खास बात ये भी है कि जिग्नेश मेवाणी गिरफ्तारी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अहमदाबाद पहुंचने से ठीक पहले हुई है - और बोरिस जॉनसन के साथ के अलावा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम बने हुए हैं.
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