आम चुनाव सिर्फ तीन हफ्ते दूर है और राहुल गांधी के लिए मुश्किलें खड़ी करने के मामले में कांग्रेस नेताओं में होड़ मच गयी है. सैम पित्रोदा से लेकर राज बब्बर तक राहुल गांधी की मुसीबतें बढ़ाने में कोई पीछे नहीं है.
और तो और राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शामिल जितिन प्रसाद भी गोलमोल बातें कर रहे हैं - समझना मुश्किल है हो रहा है कि वो कांग्रेस के करीब हैं या दूर जाने की तैयारी कर चुके हैं.
राहुल गांधी ने यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के गठन के बाद कहा था कि कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलेगी. कांग्रेस खेलती तो फ्रंटफुट पर ही लग रही है लेकिन राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि आपस में ही लुकाछिपी का खेल शुरू हो चुका है.
बगावत पर क्यों उतरे राज बब्बर?
राज बब्बर का गुस्सा जायज है. ऐसा लग रहा है जैसे राज बब्बर 2014 में गाजियाबाद से हारने की सजा कांग्रेस अब जाकर देने लगी है. आखिर कब तक बर्दाश्त करते गुस्सा तो फूटना ही था.
राज बब्बर के साथ बस यही है कि उन्हें यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया नहीं गया है. वरना, अध्यक्ष के तौर पर उनके जिम्मे काम ही क्या बचा है. ऐसा लगता है यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता बन कर रह गये हैं.
वैसे भी प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्वी यूपी की प्रभारी हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिम उत्तर प्रदेश के - फिर राज बब्बर के जिम्मे पार्टी के फैसलों की प्रेस कांफ्रेंस में जानकारी देने के अलावा काम भी क्या बचा है.
कांग्रेस ने राज बब्बर को मुरादाबाद लोक सभा सीट से टिकट दिया है. मुरादाबाद प्रियंका गांधी वाड्रा का ससुराल है. रॉबर्ट वाड्रा का घर और कारोबार भी वहीं है. राज बब्बर को ये नहीं सुहा रहा है.
राज बब्बर असल में फतेहपुर सिकरी सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. 2009 में राज बब्बर फतेहपुर सीकरी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन बीएसपी उम्मीदवार सीमा उपाध्याय ने उन्हें शिकस्त दे दी थी. पहले आगरा ही राज बब्बर का संसदीय क्षेत्र हुआ करता था.
1990 और 2004...
आम चुनाव सिर्फ तीन हफ्ते दूर है और राहुल गांधी के लिए मुश्किलें खड़ी करने के मामले में कांग्रेस नेताओं में होड़ मच गयी है. सैम पित्रोदा से लेकर राज बब्बर तक राहुल गांधी की मुसीबतें बढ़ाने में कोई पीछे नहीं है.
और तो और राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शामिल जितिन प्रसाद भी गोलमोल बातें कर रहे हैं - समझना मुश्किल है हो रहा है कि वो कांग्रेस के करीब हैं या दूर जाने की तैयारी कर चुके हैं.
राहुल गांधी ने यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के गठन के बाद कहा था कि कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलेगी. कांग्रेस खेलती तो फ्रंटफुट पर ही लग रही है लेकिन राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि आपस में ही लुकाछिपी का खेल शुरू हो चुका है.
बगावत पर क्यों उतरे राज बब्बर?
राज बब्बर का गुस्सा जायज है. ऐसा लग रहा है जैसे राज बब्बर 2014 में गाजियाबाद से हारने की सजा कांग्रेस अब जाकर देने लगी है. आखिर कब तक बर्दाश्त करते गुस्सा तो फूटना ही था.
राज बब्बर के साथ बस यही है कि उन्हें यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया नहीं गया है. वरना, अध्यक्ष के तौर पर उनके जिम्मे काम ही क्या बचा है. ऐसा लगता है यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता बन कर रह गये हैं.
वैसे भी प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्वी यूपी की प्रभारी हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया पश्चिम उत्तर प्रदेश के - फिर राज बब्बर के जिम्मे पार्टी के फैसलों की प्रेस कांफ्रेंस में जानकारी देने के अलावा काम भी क्या बचा है.
कांग्रेस ने राज बब्बर को मुरादाबाद लोक सभा सीट से टिकट दिया है. मुरादाबाद प्रियंका गांधी वाड्रा का ससुराल है. रॉबर्ट वाड्रा का घर और कारोबार भी वहीं है. राज बब्बर को ये नहीं सुहा रहा है.
राज बब्बर असल में फतेहपुर सिकरी सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. 2009 में राज बब्बर फतेहपुर सीकरी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन बीएसपी उम्मीदवार सीमा उपाध्याय ने उन्हें शिकस्त दे दी थी. पहले आगरा ही राज बब्बर का संसदीय क्षेत्र हुआ करता था.
1990 और 2004 में राज बब्बर आगरा से ही लोक सभा पहुंचे थे. तब राज बब्बर समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे. आगरा सीट सुरक्षित हो जाने के कारण राज बब्बर को फतेहपुर सीकरी शिफ्ट होना पड़ा था. फतेहपुर सीकरी की हार का गम भुलाने का मौका भी राज बब्बर को जल्द ही मिल गया जब फिरोजाबाद में हुए उपचुनाव में उन्होंने मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव को हरा दिया. 2014 में राज बब्बर गाजियाबाद से चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी के जनरल वीके सिंह के आगे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
बीजेपी ने फतेहपुर सिकरी से राजकुमार चाहर को टिकट दिया है. बीजेपी के बाद बीएसपी ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. बीएसपी इस बार अपना उम्मीदवार बदल दिया है. सीमा उपाध्याय की जगह बीएसपी का टिकट राजवीर सिंह को दिया गया है.
कहां प्रियंका गांधी के ससुराल पहुंच कर राज बब्बर के लिए वोट मांगने की तैयारी चल रही थी - और कहां राज बब्बर के विद्रोह के चलते कांग्रेस कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति हो गयी है.
वैसे जितिन प्रसाद हैं किसकी तरफ?
जब जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने की खबरें मीडिया में आने लगीं तो कांग्रेस नेता ने एक ट्वीट किया - और रोजगार के मुद्दे पर बीजेपी को टारगेट किया. ये कहते हुए कि कांग्रेस इसके लिए संघर्ष कर रही हैं.
लेकिन जब कैमरे के सामने यही सवाल उठा तो जितिन प्रसाद गोलमोल बातें करने लगे. जितिन प्रसाद ने बीजेपी में जाने की बात का साफ तौर पर खंडन भी नहीं किया. जितिन प्रसाद का कहना रहा, 'ऐसे किसी सवाल का कुछ आधार होना चाहिए. मैं किसी काल्पनिक सवाल का जवाब क्यों दूं.' जितिन प्रसाद के इस डिप्लोमैटिक जबाव के बाद अटकलें गंभीर होती चली जा रही हैं. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी यही सवाल उठाया कि जितिन प्रसाद आखिर सीधे सीधे खंडन क्यों नहीं कर रहे हैं.
जितिन प्रसाद भी राहुल गांधी के करीबियों की उसी जमात में शामिल हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और गौरव गोगोई जैसे कांग्रेस नेता हैं जिन्हें राजनीति खानदानी विरासत में मिली हुई है. जितिन प्रसाद की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रियंका गांधी के रोड शो में गाड़ी पर सवार नेताओं में शुमार थे.
जितिन प्रसाद कांग्रेस के पुराने नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे हैं जो देश के दो प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी और पीवीएल नरसिम्हा राव के करीबी और राजनीतिक सलाहकार के रूप में दबदबा रखते थे. हालांकि, अक्सर उन्हें निष्ठावान विरोधी के तौर पर भी देखा जाता था - और वो जितेंद्र प्रसाद ही थे जिन्होंने सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का खुला विरोधि किया था.
जितिन प्रसाद की नाराजगी की वजह तब से मानी जाती है जब वो यूपी कांग्रेस अध्यक्ष पद के दावेदार थे. कांग्रेस नेतृत्व ने जितिन प्रसाद की जगह राज बब्बर को यूपी की कमान सौंप दी.
जितिन प्रसाद की ताजा नाराजगी की वजह तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम यूपी का प्रभारी बनाया जाना भी लगता है. यूपी से जितिन प्रसाद के होते हुए राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश से सिंधिया को लाकर प्रभारी बना दिया. कहा ये भी जा रहा है कि टिकट बंटवारे में भी अपनी राय को तवज्जो न मिलने से जितिन प्रसाद नाराज हैं. सीतापुर और लखीमपुर से उम्मीदवारों को टिकट दिये जाने के मामले में जितिन प्रसाद की सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया है.
देखा जाये तो राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती 2018 के विधानसभा चुनाव में रही. राहुल गांधी ने एक दूसरे के विरोधी नेताओं को पूरे चुनाव न सिर्फ साथ साथ मोर्चे पर तैनात किये रखा बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी बीच का रास्ता निकाल कर बैठा दिया. मतभेदों की बात और है लेकिन यूपी में तो कांग्रेस की इतनी हैसियत ही नहीं बची गुटबाजी की नौबत भी आ सके - फिर भी बवाल नहीं थम रहा है.
राज बब्बर और जितिन प्रसाद से पहले तो सैम पित्रोदा ने ही पुलवामा को लेकर पाकिस्तान पर बयान देकर बवाल करा दिया. कांग्रेस ने सैम पित्रोदा के बयान से खुद को अलग कर लिया है लेकिन बीजेपी है कि मान ही नहीं रही है.
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