Coming together is a beginning; Keeping together is a progess; working together is success. यानी एक साथ आना एक शुरूआत है. साथ रखना एक प्रगति है. साथ काम करना सफलता है. कोट अमेरीकी इतिहासकार, लेखक और विचारक Edward Everett Hale का है. Hale ने ये बात अमेरिका के सन्दर्भ में कही. लेकिन इसे हम अगर मौजूदा वक़्त में देखें तो क्या हमारा JN और BH और क्या पाकिस्तान का लाहौर और सिंध विश्वविद्यालय दुनिया में जहां-जहां भी छात्र हैं, तमाम अलग अलग मुद्दों को लेकर जो उनके आंदोलन हैं उनका आधार शायद यही बात है. JN पर नजर डालें तो यहां विवाद यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा फीस बढ़ाने के बाद शुरू हुआ. कहा गया कि अगर फीस बढ़ी तो इससे 40% छात्र प्रभावित होंगे. बात 40% की थी. मगर इस फैसले के विरोध में वो भी आए जो 40% में नहीं थे. यानी एक शुरुआत हुई. फिर इस विषय पर लेफ्ट, कांग्रेस और भाजपा की छात्र इकाइयों का साथ आना और छोटी सी बात को एक बड़ा आंदोलन बना देना, बता देता है कि अमेरिका के Hale ने जो बात कई साल पहले अपने देश में कही, वो भारत के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी वो अमेरिकी छात्रों के लिए है. वहीँ जब हम BH का रुख करें तो BH में संस्कृत विभाग में संस्कृत पढ़ाने के लिए मुस्लिम प्रोफ़ेसर की नियुक्ति हुई. विरोध में छात्र एकजुट हुए और मामले ने तूल पकड़ा और एक बड़े आंदोलन का रूप लिया.
हमने बात लाहौर और सिंध की भी की है. आंदोलन वहां भी चल रहा है. वहां भी छात्र एकजुट हैं. वहां भी नारेबाजी चालू है. सवाल होगा कि भारत में तो दो प्रमुख यूनिवर्सिटियों के छात्रों के पास फिर भी मुद्दा है मगर ऐसा क्या हुआ जो पाकिस्तान के छात्र विरोध के नाम पर सरकार के आमने सामने हैं? तो बता दें कि...
Coming together is a beginning; Keeping together is a progess; working together is success. यानी एक साथ आना एक शुरूआत है. साथ रखना एक प्रगति है. साथ काम करना सफलता है. कोट अमेरीकी इतिहासकार, लेखक और विचारक Edward Everett Hale का है. Hale ने ये बात अमेरिका के सन्दर्भ में कही. लेकिन इसे हम अगर मौजूदा वक़्त में देखें तो क्या हमारा JN और BH और क्या पाकिस्तान का लाहौर और सिंध विश्वविद्यालय दुनिया में जहां-जहां भी छात्र हैं, तमाम अलग अलग मुद्दों को लेकर जो उनके आंदोलन हैं उनका आधार शायद यही बात है. JN पर नजर डालें तो यहां विवाद यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा फीस बढ़ाने के बाद शुरू हुआ. कहा गया कि अगर फीस बढ़ी तो इससे 40% छात्र प्रभावित होंगे. बात 40% की थी. मगर इस फैसले के विरोध में वो भी आए जो 40% में नहीं थे. यानी एक शुरुआत हुई. फिर इस विषय पर लेफ्ट, कांग्रेस और भाजपा की छात्र इकाइयों का साथ आना और छोटी सी बात को एक बड़ा आंदोलन बना देना, बता देता है कि अमेरिका के Hale ने जो बात कई साल पहले अपने देश में कही, वो भारत के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी वो अमेरिकी छात्रों के लिए है. वहीँ जब हम BH का रुख करें तो BH में संस्कृत विभाग में संस्कृत पढ़ाने के लिए मुस्लिम प्रोफ़ेसर की नियुक्ति हुई. विरोध में छात्र एकजुट हुए और मामले ने तूल पकड़ा और एक बड़े आंदोलन का रूप लिया.
हमने बात लाहौर और सिंध की भी की है. आंदोलन वहां भी चल रहा है. वहां भी छात्र एकजुट हैं. वहां भी नारेबाजी चालू है. सवाल होगा कि भारत में तो दो प्रमुख यूनिवर्सिटियों के छात्रों के पास फिर भी मुद्दा है मगर ऐसा क्या हुआ जो पाकिस्तान के छात्र विरोध के नाम पर सरकार के आमने सामने हैं? तो बता दें कि शिक्षा को लेकर जो रुख भारत, खासकर यहां की सरकार का है. वैसा ही कुछ रुख पाकिस्तान में भी है. पाकिस्तान की भी फिजा, 'हम लेके रहेंगे आजादी' जैसे नारों से गुलजार है.
पाकिस्तान में भी अपने नारों की बदौलत छात्र राज-द्रोह का वैसा ही मामला देख रहे हैं. जैसा पूर्व में हम कन्हैया कुमार और उमर खालिद के दौर के आंदोलन में देख चुके थे. पाकिस्तान में फैज़ लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन हुआ. ध्यान रहे कि पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी में ये आयोजन हर साल भारत और पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय शायर फैज़ अहमद फैज़ की पुण्यतिथि से पहले होता है.
बात अगर फैज़ की हो तो फैज़ उर्दू अदब में एक खास मर्तबा रखने वाले शायर हैं. जिन्हें पूरी दुनिया में वाम विचारधारा का मील का पत्थर कहा जाता है. छात्रों के लिए मौका अच्छा था. उन्होंने कह कर लेंगे आजादी, लड़कर लेंगे आजादी, हम क्या मांगें आजादी, पढ़ने की आजादी जैसे नारे लगा दिए. पाकिस्तान के विश्वविद्यालय में लगे ये नारे इंटरनेट पर खूब वायरल भी हो रहे हैं.
बताया जा रहा है कि जिन छात्रों ने नारे लगाए वो छात्र वामपंथी प्रगतिशील समूह के सदस्य हैं. ऐसा माना जा रहा है कि ये नारे 29 नवंबर को होने वाले छात्र एकजुटता मोर्चे के मद्देनजर, छात्रों को जुटाने के लिए लगाए गए थे. यह मार्च शिक्षा क्षेत्र में बजट कटौती और छात्र संघों की बहाली के खिलाफ हैं.
सरकार की नीतियों को मुद्दा बनाकर पाकिस्तान के छात्र लगातार इमरान सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. पाकिस्तान के छात्रों का ये प्रदर्शन भी कुछ कुछ वैसा ही है जैसा हम बीते कई दिनों से भारत के JN में देखते चले आ रहे हैं. पाकिस्तान में भी वही नारे लग रहे हैं जिन्हें लगाकर हमारे छात्रों ने शासन प्रशासन की नींद उड़ाई है. ध्यान रहे कि पाकिस्तान का एक वो वीडियो भी खूब वायरल हुआ है जिसमें छात्र 'बिस्मिल अजीमाबादी' या ये कहें कि आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो को नाकों तले चने चबवाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल का 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' का नारा लगा रहे हैं.
जिन लोगों ने मनोविज्ञान पढ़ा होगा. या जिन्हें मनोविज्ञान में रूचि होगी वो जरूर जानते होंगे कि Activism Is Learning. यानी आंदोलन लर्निंग का हिस्सा है. लेकिन ये हिस्सा हर बार लोगों, विशेषकर सरकारों को अच्छा ही लगे ये बिलकुल भी जरूरी नहीं. बात पाकिस्तान और वहां आन्दोलन कर रहे छात्रों की चल रही है तो बताना जरूरी है कि पाकिस्तान के ही पंजाब प्रांत में देश विरोधी नारेबाजी करने और दीवारों पर सरकार विरोधी बातें लिखने के आरोप में सिंध यूनिवर्सिटी के 17 छात्रों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया है. जमशोरो पुलिस ने विश्वविद्यालय की सुरक्षा व्यवस्था के प्रमुख गुलाम कादिर पन्हवार की शिकायत पर छात्रों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
अगर डॉन अख़बार में छपी रिपोर्ट पर यकीन करें तो 31 अक्टूबर को सिंध यूनिवर्सिटी के छात्रावास के पास जय सिंध समूह के करीब 17-18 छात्र पाकिस्तान विरोधी नारेबाजी तो कर ही रहे थे. साथ ही वो बॉयज हॉस्टल के मेन गेट पर देश विरोधी नारे भी लिख रहे थे. पन्हवार ने कहा कि छात्र 'सिंधु देश, ना खापे ना खापे पाकिस्तान' (हम पाकिस्तान को तोड़ेंगे) नारे लगाते हुए छात्रावास की ओर बढ़े. पन्हवार ने ये भी बताया कि, 'हमारे पास नारेबाजी करने वाले छात्रों का वीडियो और अन्य सबूत है.'
वहीं जब इस बारे में छात्रों से बात हुई, तो उनका रुख वैसा ही था जैसे 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' नारे के मामले में जेएनयू छात्रों का रहा है. छात्रों ने आरोप का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने छात्रावास में पानी की किल्लत के खिलाफ प्रदर्शन किया था. उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया कि उनके हाथ में जय सिंध के झंडे थे और वे पाकिस्तान विरोधी नारे लगा रहे थे या दीवार पर देश के खिलाफ बातें लिख रहे थे. छात्रों ने प्रशासन पर उन्हें प्रताड़ित करने और उनके खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करके उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया. मामले पर छात्रों ने ये तर्क भी दिया है कि, 'अगर प्रदर्शन 31 अक्टूबर को हुआ तो पुलिस ने 18 दिन बाद क्यों मामला दर्ज किया है?
बहरहाल, बात आन्दोलन की चल रही है. और JN, BH, सिंध और लाहौर तक प्रशासन का रवैया छात्रों की परेशानी का सबब बना है. तो हम छात्रों से इतना भर कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि There is no elevator to success. You have to take the stairs. यानी सफलता के लिए कोई लिफ्ट नहीं है. आपको सीढ़ियां लेनी होंगी. अब जब छात्र सीढ़ियां ले रहे हों तो JN, BH से लेकर सिंध और लाहौर तक, उन्हें इस बात का ख्याल रखना होगा कि वो अपने आंदोलन का मूल समझें और उसे राजनीतिक ताने बाने में उलझाएं नही.
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