राजधानी दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू (JN) एक बार फिर से गलत चीजों को लेकर चर्चाओं में बना हुआ है. जेएनयू में 6 दिसंबर की रात को बाबरी मस्जिद के समर्थन में नारेबाजी की गई. जेएनयूएसयू (JNS) की ओर से बाबरी विध्वंस की बरसी पर किए गए कार्यक्रम में बाबरी मस्जिद के समर्थन में तकरीरों के साथ इसे फिर से बनाने की मांग की गई. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस कार्यक्रम के एक वीडियो में जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष साकेत मून फिर से बाबरी मस्जिद बनाने की मांग और इसके लिए लड़ाई का आह्वान करते नजर आ रहे हैं. बाबरी मस्जिद विध्वंस के खिलाफ निकाले गए प्रोटेस्ट मार्च में 'हिंदुत्व की हिंसा मुर्दाबाद' जैसी तख्तियों के साथ 'नहीं सहेंगे हाशिमपुरा...नहीं करेंगे दादरी...फिर बनाओ...फिर बनाओ बाबरी' जैसे भड़काऊ नारे लगाए गए. किसी जमाने में अपनी पढ़ाई और स्वस्थ वैचारिक बहसों के लिए मशहूर जेएनयू इन दिनों वामपंथी और दक्षिणपंथी राजनीति का अखाड़ा बन गया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर JN ऐसे विवादों में क्यों पड़ता है?
क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं वामपंथी छात्र संगठन?
अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मुस्लिम पक्षकारों को अयोध्या में ही किसी जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. जिसके बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम पक्षकारों को जमीन उपलब्ध करवा दी है. वहीं, दूसरी ओर राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का काम भी तेजी से चल...
राजधानी दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू (JN) एक बार फिर से गलत चीजों को लेकर चर्चाओं में बना हुआ है. जेएनयू में 6 दिसंबर की रात को बाबरी मस्जिद के समर्थन में नारेबाजी की गई. जेएनयूएसयू (JNS) की ओर से बाबरी विध्वंस की बरसी पर किए गए कार्यक्रम में बाबरी मस्जिद के समर्थन में तकरीरों के साथ इसे फिर से बनाने की मांग की गई. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस कार्यक्रम के एक वीडियो में जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष साकेत मून फिर से बाबरी मस्जिद बनाने की मांग और इसके लिए लड़ाई का आह्वान करते नजर आ रहे हैं. बाबरी मस्जिद विध्वंस के खिलाफ निकाले गए प्रोटेस्ट मार्च में 'हिंदुत्व की हिंसा मुर्दाबाद' जैसी तख्तियों के साथ 'नहीं सहेंगे हाशिमपुरा...नहीं करेंगे दादरी...फिर बनाओ...फिर बनाओ बाबरी' जैसे भड़काऊ नारे लगाए गए. किसी जमाने में अपनी पढ़ाई और स्वस्थ वैचारिक बहसों के लिए मशहूर जेएनयू इन दिनों वामपंथी और दक्षिणपंथी राजनीति का अखाड़ा बन गया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर JN ऐसे विवादों में क्यों पड़ता है?
क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं वामपंथी छात्र संगठन?
अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मुस्लिम पक्षकारों को अयोध्या में ही किसी जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. जिसके बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम पक्षकारों को जमीन उपलब्ध करवा दी है. वहीं, दूसरी ओर राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का काम भी तेजी से चल रहा है. वहीं, जेएनएसयू के उपाध्यक्ष साकेत मून और वामपंथी छात्र संगठनों की बात करें, तो ये सभी सीधे तौर पर बाबरी विध्वंस की बरसी लेकर उसे फिर से बनाने की मांग कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, वामपंथी छात्र संगठनों की ओर से किया गया ये कार्यक्रम एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि, 6 दिसंबर से दो दिन पहले ही वामपंथी छात्र संगठनों ने डॉक्यूमेंट्री 'राम के नाम' दिखाए जाने का कार्यक्रम भी रखा था. उस समय भी ऐसी ही नारेबाजी हुई थी.
जेएनयू की छात्र राजनीति का झुकाव हमेशा से ही वामपंथ की ओर रहा है. और, वामपंथी राजनीति का असल मकसद ही लोगों के बीच बन चुके मतभेदों या खाईयों को और गहरा करने का है. अगर ऐसा नहीं होता, तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाना कहीं से भी जायज नजर नहीं आता है. उस पर भी ये पहली बार नहीं है कि जब जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हों. संसद पर हुए हमले के दोषी आतंकवादी अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के को-फाउंडर मकबूल भट की याद में किए गए कार्यक्रम को कल्चरल इवेंट बताया गया था. जिसमें जमकर देशविरोधी नारे गूंजे थे. इन आतंकवादियों की फांसी को इन वामपंथी छात्र संगठनों ने 'न्यायिक हत्या यानी ज्यूडिशल किलिंग' करार दिया था. वैसे, वामपंथी विचारधारा कभी भी किसी मामले के हल की बात नहीं करती है. वामपंथ की विचारधारा के अनुसार, मुद्दों को जितना उलझा कर रखा जाए, वो उतना ही फायदा देते हैं.
विवादित मुद्दे हैं वामपंथी छात्र संगठनों की पहली पसंद
जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठन देशभर में हाशिये पर जा चुकी वामपंथी विचारधारा के गढ़ के रूप में शिक्षा के इस मंदिर को स्थापित करने की हरसंभव कोशिश करते रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जेएनयू में अब पढ़ाई से ज्यादा राजनीति को तवज्जो दी जाने लगी है. वामपंथी छात्र संगठन जेएनयू में फीस बढ़ाने और 75 प्रतिशत अटेंडेंस जरूरी करने के मुद्दों को उठाने के साथ ही विरोध प्रदर्शन के नाम पर कैंपस में उपद्रव करने से भी नहीं चूकते हैं. बीते साल ही जनवरी में वामपंथी छात्र संगठनों ने सेमेस्टर रजिस्ट्रेशन रोकने के लिए सर्वर रूम में तोड़-फोड़ की थी. जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठन नक्सली हमले में मारे जाने वाले जवानों की शहादत, अफजल गुरु की फांसी, कश्मीर की आजादी जैसे मामलों पर देशविरोधी नारेबाजी से लेकर लोगों को जातियों के नाम पर तोड़ने के लिए मनगढ़ंत कहानियों और साहित्य के दम पर महिषासुर राक्षस को दलित घोषित करने से भी नहीं चूकते हैं.
ये सभी छात्र संगठन महिषासुर को दलित बताकर ब्राह्मण जाति के खिलाफ लोगों में जहर भरने में लगे रहते हैं. जातियों में कटुता फैलाना वामदलों का पुराना राजनीतिक एजेंडा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो देश को तोड़ने वाले हर मामले वामपंथी छात्र संगठनों की पहली पसंद हैं. जेएनयू में वामपंथी छात्र संगठन इन विवादित मुद्दों को दक्षिणपंथी छात्र संगठन को उकसाने के लिए उठाते रहते हैं. दरअसल, देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुए कन्हैया कुमार अब कांग्रेस के एक बड़े नेता बन चुके हैं. व्यवस्था विरोधी सोच वाले ये छात्र नेता जेएनयू को अपने लिए राजनीति में लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल करने की मंशा के साथ ही आगे बढ़ते हैं. वहीं, विवादित मुद्दों पर होने वाले बवाल से वामपंथी विचारधारा को मुफ्त का लाइमलाइट मिलता है. खैर, इन तमाम तरह के विरोध प्रदर्शनों से जेएनयू के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में किस तरह से सहयोग होता होगा, ये सोचने का विषय है.
कितनी अव्यवहारिक है वामपंथी सोच?
ये चौंकाने वाली बात है कि देश में वामपंथ राजनीतिक रूप से हाशिये पर जा चुका है. लेकिन, जेएनयू में वामपंथी छात्र संगठन हर बार जेएनयूएसयू के चुनावों में बहुमत के साथ जीतते आ रहे हैं. दरअसल, जेएनयू में वामपंथी छात्र संगठनों ने अपनी व्यवस्था विरोधी सोच को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है. देश के पिछड़े इलाकों और कमजोर वर्ग से आने वाले छात्र-छात्राओं के बीच गरीबी, शोषण जैसे मुद्दों के साथ छात्रों के बीच अपनी पकड़ बनाते हैं. लेकिन, पढ़ाई के बाद काडर नेताओं के अलावा शायद ही कोई छात्र-छात्रा वामपंथी राजनीति के साथ खड़ा नजर आता है. अकादमिक तौर पर वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखी गई किताबों से इतर जब छात्र-छात्राएं अन्य विचारधाराओं के लेखकों को पढ़ना शुरू करते हैं, तो ये साफ हो जाता है कि किस हद दर्जे तक वामपंथी विचारधारा एकतरफा होकर चीजों को लोगों के सामने पेश करती है. जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठनों का उद्देश्य दक्षिणपंथी राजनीतिक दल भाजपा के विरोध तक ही सीमित हो गया है. अपनी इसी सोच की वजह से वामपंथ भी कांग्रेस की तरह अव्यवहारिक हो गई है.
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