नागरिकता संशोधन कानून और NRC पर जारी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. बात अगर राजधानी दिल्ली की हो तो CAA और NRC के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय (Jamia students protesting against CAA) के छात्रों का प्रदर्शन और शाहीनबाग में जारी औरतों (Shaheenbagh protest against CAA) का धरना बीते कई दिनों से सुर्ख़ियों में है. नए कानून के खिलाफ करीब एक महीने से प्रदर्शन करने वाले छात्रों और महिलाओं का तर्क है कि नागरिकता संशोधन कानून देश को बांटने वाला कानून है जिसे सरकार को वापस लेना चाहिए. वहीं बात विपक्ष मुख्यतः कांग्रेस (Congress stand on CAA) की हो तो वो इस मुद्दे को लेकर सरकार से सीधा मुकाबला कर रही है. ये शायद सरकार से आर-पार की लड़ाई ही है जिसके चलते बीते दिनों ही दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने जामिया, शाहीनबाग और जेएनयू (Shashi Tharoor visiting Jamia ShaheenBagh and JN) का दौरा किया और केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेने का प्रयास किया. दिल्ली में कांग्रेस को मजबूत दिखाने के लिए थरूर ने तीनों ही स्थानों पर बड़ा दाव तो खेल लिया है. मगर उन्हें ये भी ध्यान रखना होगा कि ये सीधे सीधे उनकी सियासत को प्रभावित करेगा और इससे उन्हें बड़ा नुकसान होगा.
जामिया पहुंच कर छात्रों को संबोधित करते कांग्रेस नेता शशि थरूर
बता दें कि प्रदर्शनकारी छात्रों और महिलाओं को बल देने के लिए जामिया और शाहीनबाग़ पहुंचे शशि थरूर ने मौके की नजाकत को समझते हुए छात्रों और प्रदर्शन में शामिल लोगों में जोश भरने के लिए इकबाल का शेर पढ़ा था. साथ ही मौके पर उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए ये भी कहा था कि वो नागरिकता कानून और NRC के जरिये देश को बांटने का काम कर रही है.
जामिया में छात्रों को संबोधित करते हुए थरूर ने 15 दिसंबर की घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि तब जो कुछ हुआ वह राष्ट्र पर एक धब्बा है. बगैर किसी उकसावे के कुलपति को सूचित किए बगैर पुलिसवाले छात्रावासों में घुसे और छात्राओं पर हमला किया. पुस्तकालय में पढ़ रहे छात्रों पर हमला किया गया, जो कि शर्मनाक है और कहीं से भी स्वीकार्य नहीं है.' साथ ही CAA को लेकर थरूर ने ये भी कहा कि, केंद्र का कदम भेदभावपूर्ण है और एक समुदाय को हाशिये पर धकेलने की कोशिश है.
चाहे जामिया और शाहीनबाग हो या फिर जेएनयू जिस तरह शशि थरूर वहां पहुंचे. उन्होंने न सिर्फ मामले को गर्म किया है. बल्कि ये भी बता दिया है कि आने वाले कई दिनों तक इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस द्वारा राजनीतिक रोटी सेंकी जाएगी. मुद्दा आगे क्या रंग दिखाएगा इसका जवाब खुद थरूर ने पत्रकार पल्लवी घोष को दिया था. पल्लवी ने थरूर को ट्विटर पर टैग करते लिखा था कि थरूर पहले कांग्रेस के हाई प्रोफाइल नेता हैं जो न सिर्फ जामिया और जेएनयू गए बल्कि उन्होंने CAA और NRC को लेकर छात्रों से खुलकर बात भी की.
पल्लवी का जवाब देते हुए थरूर ने कहा है कि यह ओवर ड्यू था. @INCIndia छात्रों के साथ खड़ा है. साथ ही थरूर ने @INC दिल्ली के अध्यक्ष @SChopraINC का जिक्र करते हुए कहा कि चोपड़ा दोनों झी कैम्पसों के अलावा शाहीनबाग गए और अब जबकि मैं यहां आया हूं तो भी वो मेरे साथ हैं.
इसी तरह थरूर जेएनयू भी गए और वहां उन्होंने फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों से मुलाकत की और बीते दिनों परिसर में हुई मारपीट के दौरान घायल हुईं छात्रसंघ अध्यक्ष आयशी घोष से मुलाकात की.
हो सकता है कि जामिया और जेएनयू में थरूर ने छात्रों से मिलकर बोझिल पड़े मुद्दे को लोकप्रिय कर दिया हो और उसमें जान फूंक दी हो. मगर ये कहने में हमें कोई गुरेज नहीं है कि ये भेंट कहीं से भी उनकी सियासत के लिहाज से फायदेमंद नहीं है. जैसे जैसे समय आगे बढ़ेगा इसका सीधा असर उनकी सियासत पर हमें दिखाई देगा.
बात सीधी और एकदम साफ़ है. दिल्ली में चुनाव होने हैं. इस स्थिति में अगर कांग्रेस पार्टी का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि कांग्रेस की स्थिति कोई अच्छी नहीं है. ऐसे में CAA और NRC विरोध में जिस तरह कांग्रेस खुलकर सामने आई है. माना जा रहा है कि कांग्रेस ने दिल्ली में अपना खोया हुआ जनाधार वापस लाने के लिए एक बड़ा दाव खेला है और इसकी जिम्मेदारी थरूर को दी है जो मैदान और ट्विटर दोनों ही स्थानों पर सधी हुई पारी खेलकर पार्टी को मजबूत करने का काम करते नजर आ रहे हैं.
बाकी बात हमने थरूर की सियासत प्रभावित होने के सन्दर्भ में कही है. तो बता दें कि चाहे जामिया हो या फिर जेएनयू पूर्व में छात्र अफज़ल गुरु की शोक सभा मनाने से लेकर भारत के टुकड़े तक ऐसा बहुत कुछ कर चुके हैं जिसके चलते इनकी खूब जमकर किरकिरी हुई थी.
ऐसे में अब जबकि शशि थरूर इनके समर्थन में सामने आए हैं तो भले ही जेएनयू और जामिया के छात्र एक सही मुद्दा उठा रहे हैं. ये उन लोगों को प्रभावित करेगा जिनके जीवन में राष्ट्रवाद एक बड़ी भूमिका अदा करता है. यानी कल हम थरूर की भी कुछ वैसा ही फजीहत देख सकते हैं जैसी हमने राहुल गांधी की उस वक़्त देखी थी जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने का मामला छाया हुआ था और राहुल ने अपनी चुप्पी के रूप में एक तरह से उन बातों का समर्थन किया था.
अंत में हम अपनी बातों को विराम देते हुए बस यही कहेंगे कि चाहे थरूर का जामिया जेएनयू और शाहीनबाग जाना हो. या फिर लोगों का प्रदर्शन. दिल्ली में चुनाव होने हैं. तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा. भाजपा इस बात को बखूबी जानती है कि इस मुद्दे को लेकर तुष्टिकरण कैसे करना है? कैसे इसमें कांग्रेस को फंसाना है? और कैसे इसको बड़ा मुद्दा बनाते हुए वोट हासिल करने हैं. कुल मिलाकर बात का सार बस इतना है कि दिल्ली में भाजपा की राहें खुद कांग्रेस ने आसान की हैं.
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