पिछले रविवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JN) में हुई हिंसा (JN Violence) की छवियों को देखकर किसी का भी दिल दहल जायेगा. इस हिंसा के लिए जिम्मेदार जो भी होगा उसे पकड़ भी लिया जाएगा. लेकिन, जेएनयू की इस ताजा घटना से सारा देश सन्न है. देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है. यहां तक तो सब ठीक ही है. पर देखने में तो यह आ रहा है कि विरोध के नाम पर भारत विरोधी शक्तियां भी सिर उठाने लगी हैं. इसे तो हमारे देश की राष्ट्र भक्त जनता द्वारा कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. मुंबई में प्रदर्शन (Mumbai Protest) के समय 'फ्री कश्मीर' के पोस्टर भी सामने आ गए. दुखद यह है कि “फ्री कश्मीर” (Free Kashmir) के पोस्टर पर शिवसेना (Shivsena) की महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार ने भी कोई एक्शन नहीं लिया. क्या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को “फ्री-कश्मीर” जैसे भारत विरोधी अभियान बर्दाश्त हैं ? देश की जनता उनसे यह स्पष्टीकरण तो चाहेगा ही. यानी जेएनयू हिंसा की आड़ में अब भारत के खिलाफ खेल खेला जा रहा है. “फ्री कश्मीर” के नारे क्यों लगाए गए ? इसका जे० एन० यू० में छात्रों के आपसी विवाद से मतलब क्या था ? ठाकरे मुंबई में इस तरह के अलगाववादी तत्वों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? “फ्री कश्मीर” के पोस्टर लेकर आई महिला से पूछा जाना चाहिए कि उसका फ्री कश्मीर से आशय क्या है? क्या उसे पता नहीं है कि कश्मीर भारत की प्राण और आत्मा है.
बहरहाल, कभी-कभी तो लगता है कि जेएनयू में पढ़ने और पढ़ाने के अतिरिक्त सब कुछ होता है. यहाँ के छात्र तो कम पर अध्यापक ही ज्यादातर बात-बात पर हंगामा करने लगते हैं. अध्यापकों के...
पिछले रविवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JN) में हुई हिंसा (JN Violence) की छवियों को देखकर किसी का भी दिल दहल जायेगा. इस हिंसा के लिए जिम्मेदार जो भी होगा उसे पकड़ भी लिया जाएगा. लेकिन, जेएनयू की इस ताजा घटना से सारा देश सन्न है. देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है. यहां तक तो सब ठीक ही है. पर देखने में तो यह आ रहा है कि विरोध के नाम पर भारत विरोधी शक्तियां भी सिर उठाने लगी हैं. इसे तो हमारे देश की राष्ट्र भक्त जनता द्वारा कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. मुंबई में प्रदर्शन (Mumbai Protest) के समय 'फ्री कश्मीर' के पोस्टर भी सामने आ गए. दुखद यह है कि “फ्री कश्मीर” (Free Kashmir) के पोस्टर पर शिवसेना (Shivsena) की महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार ने भी कोई एक्शन नहीं लिया. क्या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को “फ्री-कश्मीर” जैसे भारत विरोधी अभियान बर्दाश्त हैं ? देश की जनता उनसे यह स्पष्टीकरण तो चाहेगा ही. यानी जेएनयू हिंसा की आड़ में अब भारत के खिलाफ खेल खेला जा रहा है. “फ्री कश्मीर” के नारे क्यों लगाए गए ? इसका जे० एन० यू० में छात्रों के आपसी विवाद से मतलब क्या था ? ठाकरे मुंबई में इस तरह के अलगाववादी तत्वों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? “फ्री कश्मीर” के पोस्टर लेकर आई महिला से पूछा जाना चाहिए कि उसका फ्री कश्मीर से आशय क्या है? क्या उसे पता नहीं है कि कश्मीर भारत की प्राण और आत्मा है.
बहरहाल, कभी-कभी तो लगता है कि जेएनयू में पढ़ने और पढ़ाने के अतिरिक्त सब कुछ होता है. यहाँ के छात्र तो कम पर अध्यापक ही ज्यादातर बात-बात पर हंगामा करने लगते हैं. अध्यापकों के उकसावे पर छात्र भी हिंसक हो जाते हैं. जेएनयू ने पिछले साल अपनी स्थापना के 50 साल का सफर पूरा किया था. बेशक, इसके पहले वाइस चांसलर गोपालस्वामी पार्थसारथी (जीपी) ने इसे एक श्रेष्ठ संस्थान के रूप में स्थापित किया था. वे खुद आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े थे. वे संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि भी रहे थे. उन्होंने जेएनयू से देश के सबसे योग्य अध्यापकों को जोड़ा. उन्होंने यहां के पाठ्यक्रमों को भी नए तरीके से तैयार करने की अपने अध्यापकों को पूरी छूट दी. वे नहीं चाहते थे कि यहां पर घिसे-पिटे अंदाज में ही विश्वविद्यालय शिक्षा दी जाए. वे स्वाधीनता सेनानी श्री गोपाल स्वामी आयंगर के पुत्र थे. पर जेएनयू विगत कुछ सालों से अपनी साख को बचा नहीं सका. जेएनयू में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और फीस बढ़ोतरी की आड़ में “टुकड़े-टुकड़े गैंग” आये दिन सक्रिय होता रहता है. इसे देश अब कतई सहन नहीं करेगा. अब देश में वामपंथियों के बौधिक वचर्स्व का जमाना लद गया. अब वे अपनी गिरती साख को बचने के लिए हिंसा पर उतारू होते रहते हैं. लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि मोदी-अमित राज” में यह अब संभव नहीं है.
जेएनयू में बौद्धिकता के नाम पर केंद्र की सरकार विरोधी रवैये के साथ राष्ट्रीय मीडिया के खिलाफ नारेबाजी करना अब आम होता जा रहा है. थोड़ी सी फीस बढ़ोतरी पर लगातार विरोध प्रदर्शन करना इस बात को दर्शाता है कि छात्रों की अगुवाई करने के नाम पर कुछ लोग शिक्षा के इस महान मंदिर के माहौल को बिगाड़ना चाहते हैं. इनकी साफ मंशा यह है कि जेएनयू में शिक्षा का माहौल किसी भी तरह से न कायम हो सके. इनके नापाक मंसूबों को समझने के साथ ऐसे लोगों के चेहरों के पीछे छिपे चेहरे को भी बेनकाब करना होगा कि ये लोग किसके इशारे पर विश्वविद्यालय और कुलपति विरोधी अभियान चला रहे हैं.
जेएनयू में हालिया घटना से पहले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान जेएनयू से संसद तक मार्च करने की नीति किसी मुद्दे के समाधान के बजाय सिर्फ लाइम लाइट में आने की सुनियोजित साजिश ही थी. विश्वविद्यालय में शिक्षा का माहौल खराब करने के बाद अब सामान्य लोगों के जन जीवन को भी प्रभावित करने की यह साजिश मालूम पड़ती है.
देश की राजधानी में पुरातन चट्टानों और पेड़-पौधों की घनी हरियाली के बीच जेएनयू का सुन्दर कैंपस बसा है. कैंपस में कई ऐसे स्थान हैं, जो पूरी तरह चट्टानों और घने पेड़ों से घिरे हैं. जेएनयू में लगातार अशांति और उपद्रव के बीच एक शख्स और है जिसकी याद आती है. इस इंसान को जेएनयू बिरादरी लगभग भूला चुकी है. उस शख्स का नाम था सी. के. कुकरेजा. उन्होंने ही इसके लाजवाब कैंपस की परिकल्पना की थी और उसे खड़ा किया था. उनका विगत वर्ष निधन हो गया था. जेएनयू जैसा कैंपस देश क्या दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगा. यहां आकर महसूस होता है कि मानो आप यूरोप या अमेरिका की किसी यूनिवर्सिटी में हों. जेएनयू कैंपस में चारों तरफ हरियाली और पहाड़ियों के बीच-बीच में क्लास रूम, लायब्रेरी, हॉस्टल, प्रशासनिक ब्लॉक, फैकल्टी के फ्लैट, जिम आदि की इमारतें हैं. कुकरेजा जी ने जे०एन०यू० की सभी इमारतों को सीमेंट के लेप से मुक्त रखा. इनमें ईंटों को सीमेंट के लेप से छिपाया नहीं गया है.
इससे कैंपस के निर्माण में बहुत अधिक खर्चा नहीं हुआ था. पर अफसोस कि अब वही जेएनयू अब उत्पात का दूसरा नाम हो गया है. जेएनयू को अपनी साख को धूल में मिलने से बचाना होगा. उसकी पहले वाली प्रतिष्ठा कतई नहीं रही है. हाल के दौर में इसने कितने सम्मानित लेखको, उद्यमियों, कवियों और कलाकारों आदि को निकाला है? कौन देगा इस सवाल का जवाब. जेएनयू में डिबेट और डिस्कशन की संस्कृति बनी रहनी चाहिए. इससे किसी कोई दिक्कत नहीं है. पर सब कुछ मर्यादित तरीके से होना चाहिए. इधर अनुशासहीनता बढ़ती ही जा रही है. अब देखिए कि जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आईशी घोष के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
जेएनयू के चीफ सेक्युरिटी ऑफिसर ने पुलिस को शिकायत दी थी कि आइशी घोष और उसके अन्य 18 साथियों ने 4 जनवरी को दोपहर करीब 1 बजे महिला गार्ड के साथ धक्का-मुक्की की और अन्य गार्ड के साथ मारपीट और गाली गलौज किया. आइशी घोष और उनके साथी जबरन सर्वर रूम में घुसना चाह रहे थे, जिसका विरोध सिक्युरिटी गार्ड ने किया जिसके बाद ये लोग पीछे का शीशा तोड़कर सर्वर रूम में घुस गए, जिसमें इन्होंने ऑप्टिक फाइबर केबल और बायोमेट्रिक मशीन तोड़ दी. तो देख लीजिए कि जेएनयू अध्यक्ष और उनके क्रांतिकारी साथी क्या – क्या हरकतें कर रहे हैं? अब जबकि जेएनयू में हालात सामान्य हो रहे हैं तो जेएनयू में उस काले रविवार की हिंसा के दोषियों के चेहरे से नकाब हटने चाहिए. इन कथित क्रांतिवीरों पर कठोर एक्शन होना ही चाहिए. जेएनयू में फिर से पढ़ने और पढ़ाने का वातावरण तो बनाना ही होगा चाहे वह किसी भी कीमत पर स्थापित हो.
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)
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