पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) के काफिले पर हमले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस से रिपोर्ट तलब किया है. ऐसा पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिल्ली घोष की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) को लिखे पत्र के बाद किया गया है.
हिंसा और जेपी नड्डा काफिले पर हमले को लेकर पश्चिम बंगाल के प्रभारी बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बड़ी ही गंभीर बात कही है - 'ऐसा लगा जैसे अपने देश में ही नहीं हों.' कैलाश विजयवर्गीय के बयान ने मुंबई को लेकर की कंगना रनौत की PoK वाली टिप्पणी की याद दिला दी है - क्योंकि उस आरोप में भी निशान पर सूबे की पुलिस ही थी.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने हमले को लेकर बीजेपी के दावों को नौटंकी करार दिया है, जबकि बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर डाली है.
अब जेपी नड्डा के काफिले पर अटैक करने वाले हों या फिर कैलाश विजयवर्गीय की गाड़ी पर पत्थर फेंकने वाले - ये ममता बनर्जी सरकार की पुलिस की ही ड्यूटी है कि ऐसे तत्वों को गिरफ्तार कर जेल भेजे और उनके खिलाफ केस की मजबूत पैरवी कर उनको सजा दिलवाये. और ऐसा करने में पुलिस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये कि उपद्रव करने वाले पश्चिम बंगाल के हैं या फिर किसी और राज्य से आये या बुलाये गये हैं. पूरे देश के लिए एक ही कानून बना है और उसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही होती है.
अच्छा तो ये होता कि पश्चिम बंगाल पुलिस हमलावरों को पकड़ कर जेल भेज देती और उनकी करतूत सबको मालूम हो जाती - अगर ममता बनर्जी को पक्का यकीन है कि उनके राज्य में बाहर से गुंडे बीजेपी ही बुला रही है, फिर तो उनको एक एसआईटी बना कर जितना जल्दी हो सके मामले के पर्दाफाश की कोशिश करनी चाहिये - और हां, ममता बनर्जी को मालूम होना चाहिये 24x7 एक्टिव सोशल मीडिया के जमाने में बहुत देर तक किसी की आंखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती है - न तो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल...
पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) के काफिले पर हमले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस से रिपोर्ट तलब किया है. ऐसा पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिल्ली घोष की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) को लिखे पत्र के बाद किया गया है.
हिंसा और जेपी नड्डा काफिले पर हमले को लेकर पश्चिम बंगाल के प्रभारी बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बड़ी ही गंभीर बात कही है - 'ऐसा लगा जैसे अपने देश में ही नहीं हों.' कैलाश विजयवर्गीय के बयान ने मुंबई को लेकर की कंगना रनौत की PoK वाली टिप्पणी की याद दिला दी है - क्योंकि उस आरोप में भी निशान पर सूबे की पुलिस ही थी.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने हमले को लेकर बीजेपी के दावों को नौटंकी करार दिया है, जबकि बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर डाली है.
अब जेपी नड्डा के काफिले पर अटैक करने वाले हों या फिर कैलाश विजयवर्गीय की गाड़ी पर पत्थर फेंकने वाले - ये ममता बनर्जी सरकार की पुलिस की ही ड्यूटी है कि ऐसे तत्वों को गिरफ्तार कर जेल भेजे और उनके खिलाफ केस की मजबूत पैरवी कर उनको सजा दिलवाये. और ऐसा करने में पुलिस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये कि उपद्रव करने वाले पश्चिम बंगाल के हैं या फिर किसी और राज्य से आये या बुलाये गये हैं. पूरे देश के लिए एक ही कानून बना है और उसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही होती है.
अच्छा तो ये होता कि पश्चिम बंगाल पुलिस हमलावरों को पकड़ कर जेल भेज देती और उनकी करतूत सबको मालूम हो जाती - अगर ममता बनर्जी को पक्का यकीन है कि उनके राज्य में बाहर से गुंडे बीजेपी ही बुला रही है, फिर तो उनको एक एसआईटी बना कर जितना जल्दी हो सके मामले के पर्दाफाश की कोशिश करनी चाहिये - और हां, ममता बनर्जी को मालूम होना चाहिये 24x7 एक्टिव सोशल मीडिया के जमाने में बहुत देर तक किसी की आंखों में धूल नहीं झोंकी जा सकती है - न तो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ही ये कर सकती है और न ही बीजेपी को ही ऐसी छूट देनी चाहिये.
गुंडे बाहरी हों या भीतरी फर्क नहीं पड़ता
कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी पूरी तरह राज्य सरकार की होती है - और पश्चिम बंगाल में ये जिम्मा वहीं के लोगों ने अपना वोट देकर ममता बनर्जी को सौंपा है. ऐसे में तो चाहे वो जेपी नड्डा हों, कैलाश विजयवर्गीय हों या फिर किसी जमाने में ममता बनर्जी के सबसे ज्यादा भरोसेमंद मुकुल रॉय ही क्यों न हों, अगर वे पश्चिम बंगाल की सीमा में हैं तो ये ममता बनर्जी की जिम्मेदारी बनती है कि वो तब तक उनको सकुशल रखें जब तक वो रहना चाहें.
अभी तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में कानून का राज कायम करने को लेकर तब तक पल्ला नहीं झाड़ सकतीं जब तक कि वो केंद्रीय गृह मंत्री के सामने हाथ न खड़ी कर दें कि हालात बेकाबू हो चुके हैं - और केंद्र को उसे काबू में करने के लिए अर्ध सैनिक बलों और फिर भी बात न बनी तो सेना के हवाले करना होगा.
या फिर तब जब राज्यपाल की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सिफारिश न कर दे - और राष्ट्रपति भवन मंजूरी के बारे में बता न दे.
विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में हुए दंगों के वक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से सेना बुलाने की मांग की थी, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इंकार कर दिया. तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकरा अजित डोभाल को मौके पर भेजा गया था और हालात पर काबू पाने के लिए एक स्पेशल कमिश्नर की नियुक्ति की गयी थी.
दिल्ली में भी तब राजनीति ही हो रही थी और फिलहाल पश्चिम बंगाल में भी यही हो रहा है, लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर अरविंद केजरीवाल तो पल्ला झाड़ भी सकते थे क्योंकि दिल्ली पुलिस उनको नहीं बल्कि केंद्र में गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है - जबकि पश्चिम बंगाल में पुलिस मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को रिपोर्ट करती है.
NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं 2018 में हुईं. पूरे देश में दर्ज 54 राजनीतिक हत्याओं में से 12 अकेले राज्य में दर्ज की गईं. NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 1999 और 2016 के बीच 18 साल में पश्चिम बंगाल में हर साल 20 राजनीतिक हत्याएं हुईं.
'पश्चिम बंगाल में हिंसा कॉमन चीज है - और ये फर्क नहीं पड़ता कि किसकी सरकार है,' सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की थी - और ये 2019 के आम चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक दिन पहले की बात है. आम चुनाव के नतीजे 23 मई, 2019 को आये थे.
लेकिन क्या ये टिप्पणी ममता बनर्जी के लिए कोई सुरक्षा कवच हो सकती है?
हरगिज नहीं.
नवंबर, 2020 में ही पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले में बीजेपी के एक कार्यकर्ता का शव मिलने के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा था कि वो सियासी हिंसा बर्दाश्त नहीं करेंगे. कुछ अफसरों को आड़े हाथों लेते हुए राज्यपाल जगदीप धनखड़ का कहना रहा कि कानून-व्यवस्था को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिये.
तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि चुनाव से पहले राज्य में बाहरी गुंडों को लाया जा रहा है जो शांति भंग करने की फिराक में हैं. ऐसे ही आरोप ममता बनर्जी 2019 के आम चुनाव के दौरान भी लगाया करती थीं.
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने तब ये भी कहा था कि बगैर हिंसा के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सके, ये सुनिश्चित करने के लिए मैं अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए सब कुछ करूंगा. राज्यपाल का कहना रहा कि उनको नतीजों से कोई मतलब नहीं है, उनका काम सिर्फ कानून और वोटर की संतुष्टि को कायम रखना है.
राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नोक झोंक भी करीब करीब पश्चिम बंगाल की जिंदगी में रूटीन का हिस्सा बन चुकी है, लेकिन ममता बनर्जी बीजेपी पर 'बाहरी गुंडे' बुलाने का तोहमत जड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकतीं - क्योंकि मुख्यमंत्री होने के नाते गुंडे कहीं के भी हों, कानून हाथ में लेने की छूट किसी को नहीं मिल सकती.
"जैसे अपने देश में ही नहीं हैं!"
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना इलाके में सड़क से गुजर रहे बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाया है कि उनके काफिले की एक भी ऐसी गाड़ी नहीं है जिस पर अटैक नहीं हुआ हो - और हमलावरों के निशाने पर तो वो खुद भी रहे.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, 'मैं सुरक्षित हूं क्योंकि मैं बुलेटप्रूफ कार में यात्रा कर रहा था... पश्चिम बंगाल में अराजकता और असहिष्णुता की इस स्थिति को समाप्त करना है.
साथ ही जेपी नड्डा ने ये भी जानकारी दी कि बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और उपाध्यक्ष मुकुल रॉय घायल हो गये हैं.
बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, 'मैं इस हमले में घायल हो गया हूं... पुलिस की मौजूदगी में गुंडों ने हम पर हमला किया. ऐसा लगा जैसे हम अपने ही देश में नहीं हैं.'
कैलाश विजयवर्गीय के बयान पीड़ायुक्त इस बयान ने फिल्म स्टार कंगना रनौत की मुंबई पुलिस को लेकर की गयी टिप्पणी की याद दिला दी है. कंगना रनौत ने मुंबई पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाते हुए मुंबई की तुलना PoK से की थी और उस काफी बवाल मचा था. कैलाश विजयवर्गीय ने पीओके जैसा कोई नाम तो नहीं लिया है, लेकिन कहने का भाव वैसा ही लगता है. भले ये बात राजनीतिक लगती हो या अपनी सुरक्षा की फिक्र में किसी नेता या आम इंसान के मन में व्याप्त भय की ही क्यों न हो.
गवर्नर जगदीप धनखड़ का कहना है कि सुबह ही उन्होंने ने मुख्य सचिव और डीजीपी को अलर्ट किया था, फिर भी ये घटना हो गयी. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा है, 'राज्य में अराजकता की चौंकाने वाली रिपोर्ट पर चिंतित हूं.'
राज्यपाल भले ही चिंतित हों, लेकिन मुख्यमंत्री को फर्क नहीं पड़ता, शायद इसलिए भी क्योंकि राज्यपाल जगदीप धनखड़ तृणमूल कांग्रेस सरकार के हर काम पर ऐसी ही टिप्पणी किया करते हैं और चिंता जताने के साथ साथ सवाल खड़े करते रहते हैं.
लेकिन बीजेपी के आरोपों पर ममता बनर्जी का बयान भी कम दिलचस्प नहीं है - न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, बीजेपी के आरोपों को लेकर ममता बनर्जी का रिएक्शन था, "उनको कोई काम नहीं है. कभी गृह मंत्री यहां आते हैं, कभी नड्डा आते हैं... जब उनको सुनने वाला कोई नहीं होता, वो अपने कार्यकर्ताओं को नौटंकी करने के लिए कहते हैं.''
ममता बनर्जी के बयान पर रिएक्ट करते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कह दिया है कि पश्चिम बंगाल गलत हाथों में है.
अव्वल तो ममता बनर्जी को इस बात से कतई फर्क नहीं पड़ना चाहिये कि अमित शाह या कब जेपी नड्डा पश्चिम बंगाल का दौरा करते हैं. अगर वास्तव में उनको लगता है कि बीजेपी नेता नौटंकी कर रहे हैं या कृत्रिम तरीके से ऐसा करने की कोशिश की जा रही है तो ममता बनर्जी को चाहिये कि वो सभी को एक्सपोज करें - और इसमें बगैर कोई वक्त गंवाये ऐसा जल्द से जल्द करें.
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