सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर ऐतराज जताकर देश की राजनीति में तूफान लाने वाले जस्टिस जे. चेलमेश्वर शुक्रवार को रिटायर हो गए. लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने खास इंटरव्यू में उन बातों से पर्दा हटा दिया, जो अब तक कयासों में थीं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही संघर्ष वाली स्थिति, न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर खुल कर बात की. उन्होंने न्यायपालिका की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर उठ रहे सवालों पर भी बात की. जस्टिस चेलमेश्वर ने जजों की नियुक्ति, जस्टिस गोगोई की सीजेआई के पद पर नियुक्ति के मामले में बात की.
12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वामपंथी सांसद डी. राजा से मुलाकात को लेकर :
'ये महत्वपूर्ण नहीं है कि मैं किससे मिला और डी. राजा किससे मिले. हम देश नहीं चला रहे हैं. सवाल ये है कि सत्ता से जुड़े वो कौन लोग हैं जो देश चला रहे हैं और बंद दरवाजे करके लोगों से संदिग्ध मुलाकात कर रहे हैं.'
'मैंने बंद दरवाजों वाली ऐसी बैठक होते हुए तो नहीं देखी, लेकिन इनके बारे में सुना जरूर है.'
मार्च 2017 में मैंने एक पत्र लिखा था जिसमें सुप्रीम कोर्ट जज और मुख्यमंत्री के बीच गठजोड़ का हवाला था. जब पांच वरिष्ठ वकीलों को प्रमोशन देने की बात आई तो मुख्यमंत्री की दलील हूबहू वही निकली जो उससे पहले चर्चा में थी.' (जस्टिस चेलमेश्वर ने चंद्रबाबू नायडू के पत्र का खासतौर पर जिक्र किया, जिसमें सर्वोच्च अदालत के लिए सुझाए गए नाम और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम बिलकुल एक जैसे थे. ये साबित करता है कि जजों और कार्यपालिका की ये दोस्ती न्यायपालिका की निष्पक्षता को नुकसान पहुंचाती रही है.)
रिटायरमेंट के बाद भी उतने ही मुखर हैं जस्टिस चेलमेश्वर.
CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग पर :
जस्टिस चेलमेश्वर ने कांग्रेस द्वारा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव पर तो टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्होंने न्यायपालिका की जवाबदेही और उसमें होने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की पुरजोर मांग की.(आपको याद होगा कि कांग्रेस ने दीपक मिश्रा पर भ्रष्टाचार के आरोपों, उनके मनमाने ढंग से कोर्ट की कार्रवाई संचालित करने आदि के आरोप लगाकर राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव भेजा था. जिसे राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था. वे इस मामले में अपील के लिए सुप्रीम कोर्ट भी गए, लेकिन वहां भी मामला ज्यादा देर नहीं रुका. आखिर में कपिल सिब्बल ने अपनी याचिका वापस ले ली थी.)
12 जनवरी की प्रेस कान्फ्रेंस पर :
'मुझे 12 जनवरी को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर कोई पछतावा नहीं है. जस्टिस रंजन गोगोई को चीफ जस्टिस के पद पर जरूर प्रमोट किया जाना चाहिए. वे इसके लिए पूरे हकदार हैं.'
(सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने 12 जनवरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ एक प्रेस कान्फ्रेंस करके सबको चौंका दिया था. उन्होंने सर्वोच्च अदालत में मामलों का आवंटन मनमाने ढंग से किए जाने का आरोप लगाया था. तब यह कयास लगाए गए थे कि उनका इशारा जज लोया की संदिग्ध मौत के केस की सुनवाई से जुड़ा था. इस प्रेस कान्फ्रेंस में जस्टिस रंजन गोगोई भी मौजूद थे.)
मेडिकल एडमिशन स्कैम केस में जस्टिस चेलमेश्वर का आदेश सीजेआई दीपक मिश्रा द्वारा रद्द कर दिए जाने पर :
'मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा था कि चूंकि मामला गंभीर है, इसलिए इसे पांच जजों की बेंच को सौंप देना चाहिए. यह बेंच इतनी जल्दबाजी में दोपहर साढ़े तीन बजे क्यों बनाई गई. सात कुर्सियां लगाई गईं, जबकि पांच जज आकर बैठे. यह सब गंभीर था, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.'
जस्टिस चेलमेश्वर ने उन कुछ हाई प्रोफाइल केस का जिक्र करते हुए उनके निर्धारण पर शंका जताई, जैसे : जयललिता, लोया, कलिको पुल, सहारा डायरी, आदि. खासतौर पर ऐसे समय जब 'बेंच फिक्सिंग' का आरोप 12 जनवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरेआम लगाया गया है.
जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर सीधी टिप्पणी से इनकार किया, लेकिन उन्होंने इशारों में कहा कि उनके कुछ निर्णय सुप्रीम कोर्ट जजों की आम राय से मेल नहीं खाते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर आधार और अयोध्या जैसे बड़े मामले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों को सुनवाई के लिए क्यों नहीं सौंपे.
जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि 'आखिर सोली सोराबजी और फाली नरीमन उस वक्त क्यों नहीं बोलते हैं जब सुप्रीम कोर्ट में अप्रत्याशित चीजें हो रही होती हैं. उनकी भावनाएं प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद ही क्यों बाहर आईं.'(सुप्रीम कोर्ट में जजों के बीच टकराव के बाद कानूनविद और वरिष्ठ अभिभाषक सोली सोराबजी और फाली नरीमन ने चार जजों की प्रेस कान्फ्रेंस और उनके आरोप लगाने के तरीकों की आलोचना की थी. इसके अलावा इन्होंने कांग्रेस के महाभियोग प्रस्ताव पर सवाल उठाया था.)
जस्टिस चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट में केएम जोसेफ की नियुक्ति का पुरजोर समर्थन किया. उन्होंने इस नियुक्ति में हो रही देरी पर आश्चर्य जताया. उन्होंने जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में परिवर्तन की बात एक नोट पहले ही लिख दी है.
( साथ में अनुषा सोनी भी )
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