ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia joins BJP) के पाला बदल लेना मध्य प्रदेश की राजनीति को बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाला है. जरूरी नहीं कि ये प्रभाव तात्कालिक तौर पर ही नजर आये, इसका दूरगामी असर कई सियासी समीकरण बदल सकता है.
सवाल ये नहीं है कि सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद कमलनाथ (Kamal Nath) की सरकार बच पाती है या नहीं? या शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) मुख्यमंत्री बन पाते हैं या नहीं? होली के मौके पर एक कद्दावर नेता के चोले का रंग बदल जाने का कहां और कितना असरदार होता है, ये समझना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.
बड़ा सवाल ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने से शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की राजनीति किस हद तक प्रभावित होने जा रही है?
शिवराज को फायदा ही फायदा है
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भगवा धारण कर लेने के बाद शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी मुलाकात की फिर से चर्चा चल पड़ी है. 40 मिनट की ये मुलाकात देर रात 21 जनवरी, 2019 को हुई थी जब आम चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. दोनों ही नेताओं ने इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया था और अब तो सबने देख ही लिया कि शिष्टाचार वाली मुलाकातें कितनी असरदार होती हैं.
विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का उपाध्यक्ष बना कर एक तरीके से दिल्ली बुला लिया गया था. दिल्ली बुलाये जाने का मतलब भोपाल से दूर. मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर. ठीक वैसा ही हाल राजस्थान में अभी वसुंधरा राजे का बना हुआ है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से सबसे बड़ा फायदा तो शिवराज सिंह चौहान के खाते में दिखायी दे रहा है. बीजेपी ज्वाइन कर सिंधिया ने शिवराज सिंह को सूबे की राजनीति के मुख्यधारा में लौटा दिया है - वरना...
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia joins BJP) के पाला बदल लेना मध्य प्रदेश की राजनीति को बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाला है. जरूरी नहीं कि ये प्रभाव तात्कालिक तौर पर ही नजर आये, इसका दूरगामी असर कई सियासी समीकरण बदल सकता है.
सवाल ये नहीं है कि सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद कमलनाथ (Kamal Nath) की सरकार बच पाती है या नहीं? या शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) मुख्यमंत्री बन पाते हैं या नहीं? होली के मौके पर एक कद्दावर नेता के चोले का रंग बदल जाने का कहां और कितना असरदार होता है, ये समझना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.
बड़ा सवाल ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने से शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की राजनीति किस हद तक प्रभावित होने जा रही है?
शिवराज को फायदा ही फायदा है
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भगवा धारण कर लेने के बाद शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी मुलाकात की फिर से चर्चा चल पड़ी है. 40 मिनट की ये मुलाकात देर रात 21 जनवरी, 2019 को हुई थी जब आम चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. दोनों ही नेताओं ने इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया था और अब तो सबने देख ही लिया कि शिष्टाचार वाली मुलाकातें कितनी असरदार होती हैं.
विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का उपाध्यक्ष बना कर एक तरीके से दिल्ली बुला लिया गया था. दिल्ली बुलाये जाने का मतलब भोपाल से दूर. मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर. ठीक वैसा ही हाल राजस्थान में अभी वसुंधरा राजे का बना हुआ है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से सबसे बड़ा फायदा तो शिवराज सिंह चौहान के खाते में दिखायी दे रहा है. बीजेपी ज्वाइन कर सिंधिया ने शिवराज सिंह को सूबे की राजनीति के मुख्यधारा में लौटा दिया है - वरना उपाध्यक्ष बनाकर तो नेतृत्व ने जैसे दूर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. सिंधिया के बीजेपी में आने को घर वापसी बताया जा रहा है तो मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज की भी वापसी ही हुई है.
मौका और हालात ऐसे हैं कि बीजेपी कोई राजनीतिक प्रयोग करने की सोच भी नहीं सकती - क्योंकि प्रतिकूल हालात में शिवराज जैसे अनुभवी की ही जरूरत है. खबर थी कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में ही रहना चाहते थे, लेकिन तब बीजेपी अध्यक्ष रहे अमित शाह को ये मंजूर न था.
शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेता अक्सर नयी नयी चुनौती पेश करते रहते हैं, बदले हालात में शिवराज सिंह चौहान की ताकत बढ़ेगी और विरोधी पस्त होंगे. तय है. आने वाले दिनों में दोनों एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण और मददगार कैसे हो सकते हैं, इसे बीते एक वाकये से समझ सकते हैं. मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में सिंधिया गुट कैलाश विजयवर्गीय के उम्मीदवारों को शायद ही शिकस्त दे पाता, अगर शिवराज सिंह ने खामोशी नहीं अख्तियार की होती.
मार्च, 2017 की एक चुनावी रैली में शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया राजघराने को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी. भिंड के अटेर में शिवराज सिंह का भाषण चल रहा था, '1857 के स्वतंत्रता संग्राम में असफल होने के बाद अंग्रेजों और अंग्रेजों के साथ-साथ सिंधिया ने बड़े जुल्म ढाए थे.' ये सिंधिया घराने पर बड़ा हमला था, इसलिए बीजेपी में होते हुए भी यशोधरा राजे ने खुल कर विरोध जताया था. कह सकते हैं सिंधिया के आने के बाद बदली परिस्थिति में शिवराज सिंह अब कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेताओं की चुनौती को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं - लिहाजा लहजा भी बदल गया है.
शिवराज सिंह चौहान ने जो ट्वीट किया है - 'स्वागत है महाराज, साथ है शिवराज', एक पुराने स्लोगन का नया रूप है. 2018 के चुनाव में स्लोगन चला था - 'माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज.' विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चुनाव कई उपचुनाव हार गये थे. आखिरी उपचुनाव मुंगावली और कोलारस विधानसभा सीटों पर हुए थे - और ज्योतिरादित्य को काउंटर करने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने उनकी बुआ यशोधरा राजे को चुनाव प्रचार में उतार दिया था. यशोधरा राजे और ज्योतिरादित्य में रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं क्योंकि पारिवारिक विवाद पहले ही काफी तूल पकड़ चुका था, लेकिन राजनीति में भतीजे का जोरदार स्वागत हुआ है.
मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया राज परिवार दो हिस्सों में बंटा हुआ था, लेकिन अब एक हो गया है. सिंधिया घराने का असर चंबल क्षेत्र में सबसे ज्यादा है - ग्वालियर, भिंड, मुरैना और शिवपुरी. सिंधिया की वजह से कांग्रेस की कमजोरी का पूरा लाभ बीजेपी को होगा और सीधा फायदा फिलहाल तो शिवराज सिंह चौहान के हिस्से में ही आएगा.
कमलनाथ के रास्ते का अभी सिर्फ एक कांटा निकला है
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने को लेकर राहुल गांधी ने एक री-ट्वीट के साथ रिएक्ट किया है. ये ट्वीट राहुल गांधी ने 13 दिसंबर, 2018 को किया था जब मध्य प्रदेश चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर फैसला नहीं हो पा रहा था. कमलनाथ ने चार दिन बाद 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी.
मीडिया में ये खबर आने के बाद कि राहुल गांधी ने महीनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुलाकात का वक्त नहीं दिया, राहुल गांधी ने कहा है कि वो मेरे साथ कॉलेज में रहे हैं - और सिर्फ वही ऐसे नेता हैं जो कभी भी मेरे घर आ सकते थे.
सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की राजनीति की तुलना करें तो, बड़ा फासला है. दिग्विजय सिंह अपनी पारी खेल चुके हैं और कमलनाथ की राजनीति और बिजनेस एक दूसरे के पूरक जैसे हैं. बिजनेस ही कमलनाथ की राजनीति को सक्षम बनाता है और उसी के ताकत के बूते वो बीजेपी के सामने चुनाव मैदान में टिक पाये और कांग्रेस को जीत हासिल हो सकी. सिंधिया के फैसले को लेकर राहुल गांधी चाहे जो भी महसूस कर रहे हों, कांग्रेस के नेता सिंधिया के जाने को ऐसे पेश करना चाहते हों जैसे कोई मामूली बात हो. सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद मध्य प्रदेश में कमलाथ के रास्ते का एक कांटा तो निकल चुका है लेकिन अभी कई बाकी हैं. पहली चुनौती तो सरकार बचाने की ही है.
सिंधिया, दरअसल, खुद कमलनाथ के लिए तो चुनौती थे ही, वो अपने बेटे नकुलनाथ की राह में भी सिंधिया को बड़े चैलेंज के तौर पर देख रहे थे. कमलाथ के लिए सबसे अजीब बात थी कि पीढ़ियों से गांधी परिवार का करीबी होने के बावजूद वो अपने बेटे को स्थापित नहीं कर पा रहे थे. आम चुनाव में अपनी छिंदवाड़ा सीट से उतारा तो उसके लिए भी भरी सभा में अशोक गहलोत के साथ राहुल गांधी ने कमलनाथ को भी लपेट डाला था.
कमलनाथ को अपने बेटे के रास्ते में अब सिर्फ दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ही रोड़ा हो सकते हैं. अभी की स्थिति तो यही है कि कमलनाथ ने बेटे को लोक सभा भेज कर राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री दिलायी है, तो दिग्विजय सिंह के बेटे मध्य प्रदेश में ही हैं. अभी तक तो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की दोस्ती रही है, लेकिन इस दोस्ती का आधार सिंधिया घराने से दुश्मनी रही है. देखना होगा बेटों के राजनीतिक भविष्य को लेकर दोस्ती आड़े आती है या नहीं.
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