कैराना वाले लड्डू तो अभी खत्म भी नहीं हुए. पता चला कि सम्मानजनक सीट का नंबर 40 है. बुआ जी जल्दी में दिख रही हैं. भतीजे अभी देख रहे हैं. रह रह कर बैंगलोर वाली फोटो फ्लैशबैक में आ रही होगी. मैडम ने ऐसा हाथ पकड़ा था, कि फिर छोड़ा ही नहीं. वैसी दोस्ती अब यूपी के लड़कों की कहां रही!
बुआजी बैंगलोर से लौटीं, तो तुरंत सम्मानजनक सीटें कहने लगीं. तब तो कैराना का रिज़ल्ट भी नहीं आया था. रिज़ल्ट पर एक बार कुछ नहीं बोला, लेकिन 24 घंटे में डिमांड आ गई. बुआजी चाहती क्या हैं, ये बता कर डरा रही हैं.
40 एक साथ उधर निकल गए तो फिर भतीजे के पास बचेगा क्या. बाकी पिछलग्गू तो सेट भी हो जाएंगे. लेकिन चौधरी भी तो कैराना के बाद चौड़े होंगे. होना तो चाहिए. हिस्सा मांगेंगे. इस बार जोर लगाकर.
फिर पीएम कैंडिडेट की पार्टी को लड़ने वाली 20 सीट भी ना मिले तो कैसी नाक? ना मिलीं तो मैडम और बुआजी ने बैंगलोर में दिखा ही दिया है कि क्या होगा. भतीजे ही फंसे हैं और उन्हीं को मैनेज भी करना है.
बुआजी के पास खोने को कुछ नहीं है. भतीजे को पिछले साल का बदला लेना है. नेताजी ने कह ही दिया था-इससे बचके रहना, मेरा बेटा है. ये करके भी दिखाना है. पीएम कैंडिडेट की पार्टी का भी यूपी के बिना काम चलेगा नहीं.
कम सीटें किसे अच्छी लगेंगी. वो भी तब जब दूसरे के एकमुश्त वोट मिलने का चांस हो. आखिर में तो नंबर ही देखे जाएंगे ना. नंबर ही ताकत है. पहले ही अपने नंबर कोई काटता है क्या? लेकिन अकेली दिक्कत ये नहीं है.
गोरखपुर-फूलपुर तो परपीड़ा में सुख देने जैसा था. फिर कैराना आया. सुख बढ़ गया. पर साइड-इफेक्ट्स के खतरे भी दिख रहे हैं. मार्जिन उतना नहीं, जितना सोचा था. सपोर्टर बता रहे थे 1 लाख सोचा था. 45 हज़ार ही रहा.
पूरा गेम फिट करने से जीत तो मिल गई. लेकिन अभी साल भर बाकी है. फिर उधर एक नाम भी तो है, जिससे लड़ना है. ऊपर से नए ध्रुवीकरण का रिस्क दे दिया है. इससे बच नहीं पाए तो ब्लू व्हेल चैलेंज बन जाएगा
उधर, गठबंधन के गणित के सामने भगवा रंग...
कैराना वाले लड्डू तो अभी खत्म भी नहीं हुए. पता चला कि सम्मानजनक सीट का नंबर 40 है. बुआ जी जल्दी में दिख रही हैं. भतीजे अभी देख रहे हैं. रह रह कर बैंगलोर वाली फोटो फ्लैशबैक में आ रही होगी. मैडम ने ऐसा हाथ पकड़ा था, कि फिर छोड़ा ही नहीं. वैसी दोस्ती अब यूपी के लड़कों की कहां रही!
बुआजी बैंगलोर से लौटीं, तो तुरंत सम्मानजनक सीटें कहने लगीं. तब तो कैराना का रिज़ल्ट भी नहीं आया था. रिज़ल्ट पर एक बार कुछ नहीं बोला, लेकिन 24 घंटे में डिमांड आ गई. बुआजी चाहती क्या हैं, ये बता कर डरा रही हैं.
40 एक साथ उधर निकल गए तो फिर भतीजे के पास बचेगा क्या. बाकी पिछलग्गू तो सेट भी हो जाएंगे. लेकिन चौधरी भी तो कैराना के बाद चौड़े होंगे. होना तो चाहिए. हिस्सा मांगेंगे. इस बार जोर लगाकर.
फिर पीएम कैंडिडेट की पार्टी को लड़ने वाली 20 सीट भी ना मिले तो कैसी नाक? ना मिलीं तो मैडम और बुआजी ने बैंगलोर में दिखा ही दिया है कि क्या होगा. भतीजे ही फंसे हैं और उन्हीं को मैनेज भी करना है.
बुआजी के पास खोने को कुछ नहीं है. भतीजे को पिछले साल का बदला लेना है. नेताजी ने कह ही दिया था-इससे बचके रहना, मेरा बेटा है. ये करके भी दिखाना है. पीएम कैंडिडेट की पार्टी का भी यूपी के बिना काम चलेगा नहीं.
कम सीटें किसे अच्छी लगेंगी. वो भी तब जब दूसरे के एकमुश्त वोट मिलने का चांस हो. आखिर में तो नंबर ही देखे जाएंगे ना. नंबर ही ताकत है. पहले ही अपने नंबर कोई काटता है क्या? लेकिन अकेली दिक्कत ये नहीं है.
गोरखपुर-फूलपुर तो परपीड़ा में सुख देने जैसा था. फिर कैराना आया. सुख बढ़ गया. पर साइड-इफेक्ट्स के खतरे भी दिख रहे हैं. मार्जिन उतना नहीं, जितना सोचा था. सपोर्टर बता रहे थे 1 लाख सोचा था. 45 हज़ार ही रहा.
पूरा गेम फिट करने से जीत तो मिल गई. लेकिन अभी साल भर बाकी है. फिर उधर एक नाम भी तो है, जिससे लड़ना है. ऊपर से नए ध्रुवीकरण का रिस्क दे दिया है. इससे बच नहीं पाए तो ब्लू व्हेल चैलेंज बन जाएगा
उधर, गठबंधन के गणित के सामने भगवा रंग गाढ़ा किया जाएगा. देख रहे होंगे कि कहां फीका हो रहा है. ये ध्रुवीकरण तय है. एक पहले से ही है. या तो मोदी या फिर एंटी मोदी. खेल आर या पार का है.
गठबंधन की दिक्कत यही है. दो रास्ते हैं. एक रास्ता देखा सुना है. अलग अलग जाने का खतरा पता है. दूसरा रास्ता पक्का दिखने में लग रहा है. पर आगे कच्चा नहीं होगा. इसके खतरे समझ में आ नहीं रहे हैं.
इसलिए कैराना ने क्या बताया. जितना दिख रहा है, वही, या कुछ और. इंतज़ार करिए.
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