संजय राउत अब कह रहे हैं कि शिवसेना की तरफ से कंगना रनौत (Kangana Ranaut) एपिसोड खत्म हो चुका है - क्योंकि काम और भी हैं. ये तो सबको मालूम है कि शिवसेना और बीएमसी के जिम्मे और भी बहुत सारे काम हैं, लेकिन ये बात इतनी देर से क्यों समझ आयी है? संजय राउत ने ये बात शरद पवार (Sharad Pawar) के साथ उद्धव ठाकरे की मीटिंग के बाद बतायी.
अव्वल तो बीएमसी के अफसरों को चाहिये कि कोरोना संकट से जूझ रहे लोगों को कैसे मदद पहुंचायी जाये और क्या इंतजाम किया जाये उसके लिए टास्क तैयार करे, लेकिन वो तो ऐसा तब कर पाएंगे जब किसी केस के सिलसिले में ड्यूटी पर पहुंचे किसी आईपीएस अफसर को क्वारंटीन करने से फुरसत पा सकें. मुंबई में तमाम इमारतें हैं जहां गैर कानूनी निर्माण हुए हैं, लेकिन एक नोटिस चिपकाने के 24 घंटे पूरे होते ही घड़ी देखकर हथौड़ा और जेसीबी के साथ मौके पर पहुंच जाते हैं.
शिवसेना नेतृत्व की तरफ से लगातार ऐसी दूसरी राजनीतिक लापरवाही देखने को मिली है जिसमें फजीहत के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ है. सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जांच का विरोध और कंगना रनौत के केस में उनके दफ्तर पर बीएमसी का एक्शन - दोनों ही वाकये राजनीतिक तौर पर एक जैसे ही लगते हैं. और कुछ न सही तो दोनों की राजनीतिक परिणति और दोनों ही मामलों में आम जनता की प्रतिक्रिया तो एक जैसी ही देखने को मिली है.
जो संजय राउत अब कह रहे हैं कि कंगना रनौत एपिसोड खत्म हो चुका है वो शेरो-शायरी ट्वीट करते समय कुछ नहीं सोचे. शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता कंगना रनौत को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते वक्त नहीं सोचे. वो कैमरे पर सरेआम 'हरामखोर लड़की' बोलते वक्त नहीं सोचे - आखिर क्यों?
और सबसे बड़ी बात क्या उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ये सब अपनी सूझ-बूझ दिखाते हुए टाल नहीं सकते थे? ये सब कोई मामूली 'एरर ऑफ जजमेंट' तो नहीं लगता - अगर वो किसी तरह के राजनीतिक दबाव में हैं तो बात और है!
जब हथियार डाल ही देना था तो शिवसेना ने उठाये ही क्यों?
बीएमसी के एक्शन से पहले की...
संजय राउत अब कह रहे हैं कि शिवसेना की तरफ से कंगना रनौत (Kangana Ranaut) एपिसोड खत्म हो चुका है - क्योंकि काम और भी हैं. ये तो सबको मालूम है कि शिवसेना और बीएमसी के जिम्मे और भी बहुत सारे काम हैं, लेकिन ये बात इतनी देर से क्यों समझ आयी है? संजय राउत ने ये बात शरद पवार (Sharad Pawar) के साथ उद्धव ठाकरे की मीटिंग के बाद बतायी.
अव्वल तो बीएमसी के अफसरों को चाहिये कि कोरोना संकट से जूझ रहे लोगों को कैसे मदद पहुंचायी जाये और क्या इंतजाम किया जाये उसके लिए टास्क तैयार करे, लेकिन वो तो ऐसा तब कर पाएंगे जब किसी केस के सिलसिले में ड्यूटी पर पहुंचे किसी आईपीएस अफसर को क्वारंटीन करने से फुरसत पा सकें. मुंबई में तमाम इमारतें हैं जहां गैर कानूनी निर्माण हुए हैं, लेकिन एक नोटिस चिपकाने के 24 घंटे पूरे होते ही घड़ी देखकर हथौड़ा और जेसीबी के साथ मौके पर पहुंच जाते हैं.
शिवसेना नेतृत्व की तरफ से लगातार ऐसी दूसरी राजनीतिक लापरवाही देखने को मिली है जिसमें फजीहत के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ है. सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जांच का विरोध और कंगना रनौत के केस में उनके दफ्तर पर बीएमसी का एक्शन - दोनों ही वाकये राजनीतिक तौर पर एक जैसे ही लगते हैं. और कुछ न सही तो दोनों की राजनीतिक परिणति और दोनों ही मामलों में आम जनता की प्रतिक्रिया तो एक जैसी ही देखने को मिली है.
जो संजय राउत अब कह रहे हैं कि कंगना रनौत एपिसोड खत्म हो चुका है वो शेरो-शायरी ट्वीट करते समय कुछ नहीं सोचे. शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता कंगना रनौत को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते वक्त नहीं सोचे. वो कैमरे पर सरेआम 'हरामखोर लड़की' बोलते वक्त नहीं सोचे - आखिर क्यों?
और सबसे बड़ी बात क्या उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) ये सब अपनी सूझ-बूझ दिखाते हुए टाल नहीं सकते थे? ये सब कोई मामूली 'एरर ऑफ जजमेंट' तो नहीं लगता - अगर वो किसी तरह के राजनीतिक दबाव में हैं तो बात और है!
जब हथियार डाल ही देना था तो शिवसेना ने उठाये ही क्यों?
बीएमसी के एक्शन से पहले की बात करें तो कंगना रनौत और संजय राउत के बीच ट्विटर और मीडिया के जरिये तीखी बहस चल रही थी. बीएमसी की कार्रवाई के फौरन बाद कंगना रनौत सीधे सीधे उद्धव ठाकरे पर फोकस हो गयीं - और तू-तड़ाक वाले लहजे में बोलना शुरू कर दिया.
शिवसेना की स्थापना से लेकर अब तक मुंबई में बैठे किसी भी शख्स ने शिवसेना प्रमुख को ऐसे लहजे में संबोधित नहीं किया है. महाराष्ट्र के किसी मुख्यमंत्री को भी इस तरीके से किसी ने सार्वजनिक तौर पर फटकार नहीं लगायी है. लेकिन कंगना रनौत ने शिवसेना चीफ के साथ साथ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बोलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
जब बीजेपी और शिवसेना के बीच चुनाव नतीजों के बाद तकरार चल रही थी तो उद्धव ठाकरे तमतमाये हुए मीडिया के सामने आये और बीजेपी के प्रति कड़ी नाराजगी दिखायी कि उनकी हिम्मत कैसे हुई झूठा कहने की. मातोश्री के इतिहास की तरफ इशारा करते हुए उद्धव ठाकरे ने साफ किया कि ये सब उनको नहीं आता. माना ये भी गया कि गठबंधन टूटने से बच भी सकता था, अगर अमित शाह ने एक बार फिर मातोश्री जाने की जहमत उठा ली होती - लेकिन दोनों तरफ की जिद के चलते गठबंधन ने दम तोड़ दिया.
आखिर वो कौन सी वजह है जो उद्धव ठाकरे ने सब जानते समझते हुए कंगना रनौत के मामले को इतना तूल पकड़ने दिया?
कंगना रनौत की मां आशा रनौत ने भले ही बीजेपी ज्वाइन कर लिया हो और बता रही हों कि अब कांग्रेस से उनका नाता नहीं रहा. भले ही बीजेपी की केंद्र सरकार ने कंगना रनौत को वाई कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करायी हो, लेकिन कंगना रनौत की बयानबाजी और ट्वीट के पीछे पीछे बीजेपी या उसके आईटी सेल की टीम लगी हो ऐसा नहीं लगता. जिस तरह की स्पेलिंग कंगना के ट्वीट में पढ़ने को मिल रही है वैसा कोई प्रोपेशनल टीम तो नहीं ही करती है - कंगना की पुरानी बयानबाजी और विवाद भी यही बताते हैं कि जो हुआ है वो कंगना रनौत की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. ये बात जरूर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से मिली सुरक्षा और बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा, सुब्रह्मण्यन स्वामी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के वरद हस्त ने कंगना रनौत की हौसलाअफजाई जरूर की है.
लेकिन कंगना रनौत के हद से ज्यादा आक्रामक हो जाने के बावजूद शिवसेना खामोश क्यों है? उसकी ऐसी खामोश प्रतिक्रिया क्यों है? कहीं ये किसी तूफान के पहले की खामोशी तो नहीं है? या फिर शिवसेना ने भी हजार जवाबों से अच्छी खामोशी को ही अब अख्तियार कर लिया है?
ऐसे में जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना से अलग देखा जा रहा हो. जब आदित्य ठाकरे कहते हों कि आज की शिवसेना में हिंसा की कोई जगह नहीं है - कंगना रनौत के मामले में ऐसा एक्शन क्यों हुआ?
क्या वाकई कंगना रनौत के खिलाफ संजय राउत ने जिस तरह की बयानबाजी की उसे उद्धव ठाकरे की शह मिली हुई थी?
क्या बीएमसी अधिकारियों ने जो एक्शन लिया वो अपने स्तर पर ही लिया या फिर उसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सहमति भी रही?
ऐसा तो नहीं लगता कि इतनी बड़ी कार्रवाई जिस पर पूरे देश की निगाह हो, बगैर उद्धव ठाकरे के परमिशन के हुई होगी. अगर स्थिति का पहले अंदाजा नहीं लगा तो क्या बाद में भी एक्शन रोका नहीं जा सकता था? जब टीवी पर पूरा देश बीएमसी के जेसीबी का हर एक्शन जूम हो रहे कैमरे की नजर से देख रहा था तो क्या ठीक उसी वक्त उसे रोका नहीं जा सकता था? उद्धव ठाकरे के लिए तो ये वैसा ही एक्शन था जैसा बराक ओबामा के लिए पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी नेवी सील का मिशन या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सर्जिकल स्ट्राइक के पल पल की खबर. अब कोई ये कहे कि जब पाली हिल में बीएमसी के कर्मचारी एक्शन में थे तो उद्धव ठाकरे कोरोना की कोई फाइल पढ़ कर उस पर दस्तखत कर रहे थे.
ये समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि उद्धव ठाकरे ने कैसे ये सब होने दिया - वो तो किसी भी वक्त कुछ भी रोक सकते थे, लेकिन फिर भी ऐसा क्यों नहीं किया? सबसे बड़ी बात जब पूरे मामले से हथियार डाल ही देना था तो उठाया ही क्यों था?
कहीं उद्धव के हाथ बंधे तो नहीं थे
कंगना रनौत के दफ्तर पर बीएमसी की कार्रवाई को बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी भी डॉक्टर कफील खान के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिलती जुलती ही है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर जारी करते हुए कहा, 'बीएमसी की ये कार्रवाई उचित नहीं, बल्कि दुर्भावनापूर्ण लगती है.' अदालत ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 22 सितंबर मुकर्रर की है. तब तक न तो बीएमसी की तरफ से कोई एक्शन लिया जाएगा और न ही कंगना रनौत की तरफ से किसी तरह का निर्माण कार्य कराया जाएगा.
एनसीपी नेता शरद पवार ने तो पहले ही बोल दिया था कि बीएमसी के एक्शन की कोई जरूरत नहीं थी - और बाद में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ बैठक में भी ये बात उठी. बैठक में ही सहमति बनी की अब कंगना रनौत के मामले को तूल देने की जरूरत नहीं है. संजय राउत ने दोनों नेताओं की बैठक के बाद ही मीडिया से बातचीत में कंगना रनौत एपिसोड खत्म होने की बात बतायी.
सूत्रों के हवाले से आई आज तक की खबर के मुताबिक, शरद पवार की ओर से उद्धव ठाकरे को साफ संदेश दिया गया कि कंगना रनौत के मसले को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा सकता था. हालांकि, उद्धव ठाकरे की ओर से शरद पवार को कहा गया कि एक्शन की जरूरत थी. उद्धव ठाकरे को लगता है कि उनकी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है और ये बीजेपी की ओर से किया जा रहा है.
बीबीसी से बातचीत में शिवसेना और महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से देखने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन 9 सिंतबर, 2020 को मुंबई में जो कुछ हुआ उसे शिवसेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं मानतीं. कहती हैं, 'मैं जितना शिव सेना को समझती हूं, उसके मुताबिक़ बीएमसी ने जो कुछ किया है, वो शिव सेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं है. शिव सेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया ये होती कि वो कुछ अराजक तत्वों को भेजकर कंगना के दफ्तर पर तोड़फोड़ करवा देती. बीएमसी ने जिस ढंग से कंगना के खिलाफ कार्रवाई की है, वो बताता है कि शरद पवार की इसमें बड़ी भूमिका है क्योंकि पवार को अपने दुश्मनों से कानूनी परिधि में रहते हुए निपटने के लिए जाना जाता है.'
सुजाता आनंदन का का मानना है कि उद्धव ठाकरे भले ही इस सरकार के मुख्यमंत्री हों, लेकिन असली नेता शरद पवार ही हैं. वो संजय राउत की एक बात भी याद दिलाती हैं - सरकार के हेडमास्टर शरद पवार ही है.
अगर अंदर की बात भी वाकई यही है तो शरद पवार बीएमसी की कार्रवाई को गैरजरूरी क्यों बताते हैं? ये तो ऐसा लग रहा है जैसे शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को फंसा दिया हो - लेकिन उद्धव ठाकरे ऐसे तो नहीं है कि कदम कदम पर ऐसे जहर के घूंट पीते रहें. क्या वास्तव में उद्धव ठाकरे के हाथ बंधे हुए हैं और ये सब उसी का नतीजा है?
इन्हें भी पढ़ें :
कंगना रनौत तो बहाना हैं, शिवसेना और BJP का असली पंगा समझिए...
शाबाश शिवसेना, तुमने साबित कर दिया कि कंगना रनौत सही है!
शिवसेना को दोबारा गरम दल बनाना उद्धव ठाकरे की मजबूरी है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.