एक लड़की के सपनों का आशियाना उजाड़ कर महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार ने अपनी क़ाबिलियत का जो नमूना पेश किया है, उसे देश की तारीख़ याद रखेगी. आज स्वर्ग से अगर बालासाहेब देख रहें होंगे तो क्या गर्व से उनका भी सीना फूल रहा होगा? आख़िर उन्होंने ही तो ऐसा क़ामयाब सपूत महाराष्ट्र को दिया, जो आज महाराष्ट्र के साथ उनका नाम भी 'रौशन' किए दे रहा है. आज मुंबई अपनी क़िस्मत पर रोएगी. आज लोकतंत्र की सही मायने में हत्या हुई है. मुबारक हो. तालियाँ बजती रहनी चाहिए, उद्धव ठाकरे के लिए, संजय राऊत के लिए और उनके सभी स्नेहीजनों के लिए, आख़िर उन्होंने अपनी ताकत का सबूत जो पेश किया. एक लड़की जिसने उनकी शासन-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, उसके आने से पहले उसका ऑफ़िस तोड़ दिया. वाह!
आज तो शिवाजी महाराज भी ख़ुश होंगे, इनकी वीरत्व पर, नहीं!
कंगना की उद्धव ठाकरे कोे चुनौती:
देखिए, मैं एक मिनट के लिए मान लेती हूँ कि कंगना बड़बोली है. आपकी ख़ुशी के लिए ये भी कह दूँ कि पाकिस्तान से मुंबई की तुलना सही नहीं थी लेकिन जिस तुग़लकी फ़रमान के साथ फ़ौरन से तुरंत कंगना का ऑफ़िस तोड़ा गया, क्या वो ये साबित करने के लिए काफ़ी नहीं है कि मुंबई अब पाकिस्तान में तब्दील हो रहा है. एक भारतीय नागरिक जो टैक्स भर कर मुंबई में रह रहा है और वो मुंबई पुलिस के काम से संतुष्ट नहीं है या वहाँ की सरकार से संतुष्ट नहीं है, तो क्या उसे अपनी बात कहने का हक़ नहीं हैं? क्या वो सवाल नहीं कर सकती है सरकार से? अगर नहीं तो फिर क्या ग़लत कहा कंगना के मुंबई को POK बोल कर और अगर सवाल करने की आज़ादी है या बोलने की तो फिर आज उनके ऑफ़िस का टूटना ग़लत कैसे नहीं हुआ.
कंगना रनौत के ऑफिस को तोडकर शिवसेना ने अपनी घिसीपिटी राजनीति का बदसूरत चेहरा एक बार फिर सार्वजनिक किया है.
मैं तो हैरान हूँ ये देख कर कि मुंबई फ़िल्म-इंडस्ट्री के सो-कॉल्ड बुद्धिजीवी अनुराग कश्यप और स्वरा भास्कर जैसे लोगों को आज कुछ ग़लत क्यों नहीं लग रहा है? आज डिजायनर-फ़ेमिनिस्ट सोनम कपूर और तापसी पन्नु जैसी नेत्रियों को डिमॉक्रेसी का काला दिन क्यों नहीं लग रहा है? क्या आज लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई है? जब कोर्ट ने 30 सितम्बर तक की मोहलत दी थी तो कंगना के मुंबई पहुँचने से पहले क्यों तोड़ दिया गया उसके सपनों के घर था. जैसा नेपोटिज़्म से भरी दुनिया में देखने को मिलता है. छोटे शहर से आयी एक अकेली लड़की तमाम मुश्किल का सामना करते हुए गिद्धों के बीच में रहते हुए अपने लिए तिनका-तिनका करके अपना ठिकाना बनाती है और उसे BMC वाले एक ठोकर में उसे तोड़ देते हैं. पता नहीं वो लोग कैसे हैं जो चुप हैं, जिनका ख़ून नहीं खौल रहा है, जिनको दुःख नहीं हो रहा है.
आज मुंबई शहर शर्मिंदा हुई है. आज मुंबई की गोद में उसकी एक बेटी के सपने पर जेसीबी मशीन चलाई गई है. आज की तारीख़ इतिहास याद रखेगी. भारत की बेटियाँ याद रखेगी. ये तारीख़ हमें हर बार ये याद दिलाएगी कि अगर एक अकेली लड़की सिस्टम के ख़िलाफ़ बोलेगी तो उसकी आवाज़ दबाने के लिए पूरा सिस्टम एक साथ खड़ा हो जाएगा.
लेकिन ये लड़ाई अब अकेले कंगना की लड़ाई नहीं बल्कि देश की बेटियों की लड़ाई है. ये लड़ाई अभिव्यक्ति की आज़ादी की लड़ाई है और इस लड़ाई में देश कंगना के साथ है.
मुहब्बत मेरी क्वीन तुम्हारे लिए. जीत तुम्हारी ही होगी!
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