कांग्रेस आलाकमान इन दिनों युवा और नई टीम बनाने की ओर बढ़ चला है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने इस बात के संकेत दे दिए थे कि कांग्रेस में अब बुजुर्ग नेताओं को युवाओं के लिए जगह खाली करनी होगी. आसान शब्दों में कहें, तो पिछले साल कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ विद्रोह करने वाले पार्टी के वरिष्ठ और असंतुष्ट नेताओं (जिन्हें जी-23 का नाम से जाना जाता है) को शीर्ष नेतृत्व की ओर से स्पष्ट संकेत दे दिए गए हैं कि पार्टी में बने रहना है, तो गांधी परिवार के आदेशों पर ही चलना होगा. बीते कुछ समय से ऐसी खबरें है कि कांग्रेस को मजबूत करने के लिए युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिश में जुटे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर्दे के पीछे से सलाह दे रहे हैं. इसी क्रम में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है.
कन्हैया कुमार ने कांग्रेस में शामिल होने की वजह बताते हुए कहा कि देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रेस है. मैं 'लोकतांत्रिक' पर जोर दे रहा हूं, ताकि आप बाद में परिवारवाद पर सवाल जरूर कीजिएगा. कांग्रेस में मैं इसलिए शामिल हो रहा हूं कि हमको लगता है और सिर्फ हमको ही नहीं देश के करोड़ों युवाओं को लगता है कि कांग्रेस नहीं बची, तो देश नहीं बचेगा. कन्हैया कुमार ने कहा कि विपक्ष का कमजोर होना केवल विपक्ष के लिए चिंता की बात नहीं है. विपक्ष कमजोर हो जाता है, तो सत्ता निरंकुश हो जाती है. कन्हैया कुमार ने विपक्षी दलों को परोक्ष रूप से संदेश देते हुए कहा कि जो पार्टी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, अगर उस पार्टी को नहीं बचाया गया, अगर बड़े जहाज को नहीं बचाया गया तो छोटी कश्तियां भी नहीं बचेंगी. उन्होंने कहा कि देश में जो वैचारिक संघर्ष छिड़ा है, उसे केवल कांग्रेस ही दिशा दे सकती है. उनके पूरे भाषण को आसान शब्दों में कहा जाए, तो कन्हैया कुमार ने ये साबित करने की कोशिश की कि वे डूबती कांग्रेस को बचाने आए हैं.
कांग्रेस आलाकमान इन दिनों युवा और नई टीम बनाने की ओर बढ़ चला है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने इस बात के संकेत दे दिए थे कि कांग्रेस में अब बुजुर्ग नेताओं को युवाओं के लिए जगह खाली करनी होगी. आसान शब्दों में कहें, तो पिछले साल कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ विद्रोह करने वाले पार्टी के वरिष्ठ और असंतुष्ट नेताओं (जिन्हें जी-23 का नाम से जाना जाता है) को शीर्ष नेतृत्व की ओर से स्पष्ट संकेत दे दिए गए हैं कि पार्टी में बने रहना है, तो गांधी परिवार के आदेशों पर ही चलना होगा. बीते कुछ समय से ऐसी खबरें है कि कांग्रेस को मजबूत करने के लिए युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिश में जुटे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर्दे के पीछे से सलाह दे रहे हैं. इसी क्रम में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है.
कन्हैया कुमार ने कांग्रेस में शामिल होने की वजह बताते हुए कहा कि देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रेस है. मैं 'लोकतांत्रिक' पर जोर दे रहा हूं, ताकि आप बाद में परिवारवाद पर सवाल जरूर कीजिएगा. कांग्रेस में मैं इसलिए शामिल हो रहा हूं कि हमको लगता है और सिर्फ हमको ही नहीं देश के करोड़ों युवाओं को लगता है कि कांग्रेस नहीं बची, तो देश नहीं बचेगा. कन्हैया कुमार ने कहा कि विपक्ष का कमजोर होना केवल विपक्ष के लिए चिंता की बात नहीं है. विपक्ष कमजोर हो जाता है, तो सत्ता निरंकुश हो जाती है. कन्हैया कुमार ने विपक्षी दलों को परोक्ष रूप से संदेश देते हुए कहा कि जो पार्टी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, अगर उस पार्टी को नहीं बचाया गया, अगर बड़े जहाज को नहीं बचाया गया तो छोटी कश्तियां भी नहीं बचेंगी. उन्होंने कहा कि देश में जो वैचारिक संघर्ष छिड़ा है, उसे केवल कांग्रेस ही दिशा दे सकती है. उनके पूरे भाषण को आसान शब्दों में कहा जाए, तो कन्हैया कुमार ने ये साबित करने की कोशिश की कि वे डूबती कांग्रेस को बचाने आए हैं.
क्या साझा विपक्ष को संदेश देने की स्थिति में हैं कन्हैया?
2016 में आतंकवादी अफजल गुरू की फांसी की बरसी पर जेएनयू में हुए एक कार्यक्रम में देशविरोधी नारों की वजह से चर्चा में आए कन्हैया कुमार ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. कुछ ही दिनों में कन्हैया कुमार मोदी-विरोधी राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बन गए थे. कन्हैया कुमार के उभार से यहां तक माना जाने लगा था कि देश की राजनीति में तकरीबन हाशिये पर जा चुकी सीपीआई को उनके रूप में रिवाइवल का एक मौका मिल गया है. 2019 के आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ वामदलों का पूरा काडर 'सत्ता विरोधी लहर' बनाने में जुटा था. इस चुनाव में सीपीआई ने कन्हैया कुमार को उनके गृह जिले बेगूसराय से टिकट दिया था. कन्हैया कुमार की जीत को सुनिश्चित करने के लिए उनका चुनाव प्रचार करने अभिनेत्री स्वरा भास्कर, गीतकार जावेद अख्तर, दलित राजनीति करने वाले विधायक जिग्नेश मेवाणी समेत कई बड़े नाम बेगूसराय पहुंचे थे. लेकिन, भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह ने कन्हैया कुमार को चार लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी.
आसान शब्दों में कहा जाए, तो कन्हैया कुमार मोदी विरोध का राष्ट्रीय चेहरा हो सकते हैं. लेकिन, जनाधार के नाम पर उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है. वैसे, कांग्रेस में राहुल गांधी के हिसाब से ऐसे ही लोगों की जरूरत है, जो नरेंद्र मोदी का विरोध करने में बिलकुल भी न हिचकिचाते हों. चूंकि, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी कन्हैया कुमार के देशविरोधी प्रदर्शन को समर्थन देने पहुंचे थे, तो उनके पास कांग्रेस से अच्छा विकल्प कोई अन्य हो भी नहीं सकता था. वैसे, कांग्रेस को बचाने की दलील देने वाले कन्हैया कुमार कुछ महीनों पहले जेडीयू नेता और नीतीश कुमार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी से भी मुलाकात करने पहुंचे थे. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कन्हैया कुमार की जेडीयू में एंट्री को लेकर तल रही अटकलों पर फुल स्टॉप लगा दिया था. उन्होंने कहा था कि मिलना-मिलाना कोई नई बात नहीं है. कुल मिलाकर कन्हैया कुमार के जेडीयू में शामिल होने के रास्तों को नीतीश कुमार ने पूरी तरह से बंद कर दिया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कन्हैया कुमार मोदी विरोध के पोस्टर ब्वॉय हो सकते हैं. लेकिन, अभी उनकी शख्सियत इतनी बड़ी नहीं हुई है कि विपक्षी दलों को एकजुट रहने की सलाह दे सकें.
बिहार में कितना काम आएंगे कन्हैया?
महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी भाजपा छोटे भाई की भूमिका से बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है. वहीं, आरजेडी के साथ गठबंधन करने वाली कांग्रेस का बिहार में कद लगातार घट रहा है. बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत सकी थी. जो 2015 के सीटों के आंकड़ों से 8 कम थीं. कांग्रेस के पास बिहार में कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की तरह ही युवा और सियासी कद में उनकी ही बराबरी का हो. जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि वो अगला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. युवा चेहरा चिराग पासवान भी एलजेपी को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा दिल्ली में युवा नेतृत्व विकसित करने के लिए नर्सरी चला रही है. इस स्थिति में कांग्रेस के सामने बिहार में खुद को स्थापित रखने के लिए कन्हैया कुमार जैसे ही युवा चेहरे की तलाश थी. कांग्रेस के लिए एक प्लस प्वाइंट ये कहा जा सकता है कि बिहार में भूमिहार जाति का एक बड़ा वोटबैंक है और कन्हैया कुमार इसी जाति से आते हैं. लेकिन, कन्हैया कुमार के नाम पर ये वोटबैंक एकजुट होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कन्हैया कुमार इस वोटबैंक को एक करने में नाकाम रहे थे. हालांकि, ये जरूर कहा जा सकता है कि कन्हैया कुमार 2024 के आम चुनाव में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के सामने लोकसभा सीटों को लेकर तोल-मोल की अच्छी स्थिति में आ सकते हैं.
अपने फैसलों से आईसीयू में न पहुंच जाए कांग्रेस?
बुजुर्ग नेताओं को किनारे करने में जुटी कांग्रेस ने हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को नया सीएम बना दिया था. ऐसा कर कांग्रेस आलाकमान ने पहला दलित सिख मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय तो हासिल कर लिया. लेकिन, नवजोत सिंह सिद्धू को भड़का दिया. जिसका नतीजा उनके इस्तीफे के तौर पर सामने आ चुका है. खैर, ये चर्चा का अलग विषय है. लेकिन, इस फैसले के मूल में जो निहितार्थ है, उसे समझने की जरूरत है. कांग्रेस अपने स्थापित नेताओं को यूं ही किनारे नहीं लगा सकती है. वहीं, कन्हैया कुमार को शामिल कर कांग्रेस ने संदेश दे दिया है कि वो खुद को बचाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है. इस बात की पूरी संभावना है कि बिहार में थोड़ी-बहुत इज्जत बचाने में कामयाब हो रही कांग्रेस भारतीय सेना को बलात्कारी कहने वाले कन्हैया कुमार की 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' वाली छवि में फंसकर रह जाएगी.
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