कनिका कपूर का 'हलफनामा' भी अब आ चुका है. हलफनामा या एफिडेविट अदालतों में देना होता है जो दाखिल करने वाले का बयान होता है - जो मैं कह रहा/रही हूं वो सच है और सच के सिवा कुछ भी नहीं है.
बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिये अपनी तरफ से जनता की अदालत में ये हलफनामा दिया है. मकसद खुद को पाक साफ बताना है और ये बात कनिका कपूर ने विस्तार से कही है. कनिका कपूर के प्रशंसक इसे जैसे भी लें, कानूनी प्रक्रिया पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
कोरोना पॉजिटिव (Coronavirus) पाये जाने पर भी कनिका कपूर ने इंस्टाग्राम पर ही एक पोस्ट लिख कर उसके बारे में बताया था. अगर नयी पोस्ट हलफनामा है तो पुरानी पोस्ट को कनफेशन या इकबालनामा के तौर पर समझा जा सकता है. मगर, दोनों में बड़ा फर्क है.
ताजा पोस्ट में कनिका कपूर ने हर बात का बड़ी ही खूबसूरती से जिक्र कर सफाई दी है - और ऐसा लगता है जैसे सफाई देते देते वो वो सरकार को ही कठघरे (Government) में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं.
कनिका कपूर की सफाई
कनिका कपूर बधाई की पात्र हैं. बधाई उनको इस बात की तो मिलनी चाहिये कि वो कोरोना को मात देकर जिंदगी की जंग जीत चुकी हैं. सबसे बड़ी राहत की बात इसलिए भी क्योंकि कोरोना की शिकार होते हुए भी जिन लोगों के संपर्क में आयीं, वे सभी कोरोना वायरस टेस्ट में निगेटिव पाये गये और स्वस्थ हैं. अपनी पोस्ट में भी कनिका कपूर ने इस बात का जिक्र किया है. बेबी डॉल गाने के लिए मशहूर कनिका कपूर ने अपनी ताजा पोस्ट में पूरे केस की टाइमलाइन साझा की है. कब वो लंदन से लौटीं. कब वो लखनऊ पहुंचीं. कब लंच और डिनर किया. कैसे तबीयत खराब महसूस हुई और वो जांच के लिए गयीं और फिर वो सब फॉलो किया जो कहा गया.
कनिका कपूर का कहना है कि वो अब तक इसलिए चुप नहीं थीं क्योंकि वो गलत थीं, बल्कि इसलिए चुप थीं क्योंकि लोगों को गलत जानकारियां दी गयी थीं. कनिका कपूर के मुताबिक फिलहाल वो अपने माता पिता के साथ लखनऊ में हैं - सकुशल और सानंद.
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कनिका कपूर का 'हलफनामा' भी अब आ चुका है. हलफनामा या एफिडेविट अदालतों में देना होता है जो दाखिल करने वाले का बयान होता है - जो मैं कह रहा/रही हूं वो सच है और सच के सिवा कुछ भी नहीं है.
बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिये अपनी तरफ से जनता की अदालत में ये हलफनामा दिया है. मकसद खुद को पाक साफ बताना है और ये बात कनिका कपूर ने विस्तार से कही है. कनिका कपूर के प्रशंसक इसे जैसे भी लें, कानूनी प्रक्रिया पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
कोरोना पॉजिटिव (Coronavirus) पाये जाने पर भी कनिका कपूर ने इंस्टाग्राम पर ही एक पोस्ट लिख कर उसके बारे में बताया था. अगर नयी पोस्ट हलफनामा है तो पुरानी पोस्ट को कनफेशन या इकबालनामा के तौर पर समझा जा सकता है. मगर, दोनों में बड़ा फर्क है.
ताजा पोस्ट में कनिका कपूर ने हर बात का बड़ी ही खूबसूरती से जिक्र कर सफाई दी है - और ऐसा लगता है जैसे सफाई देते देते वो वो सरकार को ही कठघरे (Government) में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं.
कनिका कपूर की सफाई
कनिका कपूर बधाई की पात्र हैं. बधाई उनको इस बात की तो मिलनी चाहिये कि वो कोरोना को मात देकर जिंदगी की जंग जीत चुकी हैं. सबसे बड़ी राहत की बात इसलिए भी क्योंकि कोरोना की शिकार होते हुए भी जिन लोगों के संपर्क में आयीं, वे सभी कोरोना वायरस टेस्ट में निगेटिव पाये गये और स्वस्थ हैं. अपनी पोस्ट में भी कनिका कपूर ने इस बात का जिक्र किया है. बेबी डॉल गाने के लिए मशहूर कनिका कपूर ने अपनी ताजा पोस्ट में पूरे केस की टाइमलाइन साझा की है. कब वो लंदन से लौटीं. कब वो लखनऊ पहुंचीं. कब लंच और डिनर किया. कैसे तबीयत खराब महसूस हुई और वो जांच के लिए गयीं और फिर वो सब फॉलो किया जो कहा गया.
कनिका कपूर का कहना है कि वो अब तक इसलिए चुप नहीं थीं क्योंकि वो गलत थीं, बल्कि इसलिए चुप थीं क्योंकि लोगों को गलत जानकारियां दी गयी थीं. कनिका कपूर के मुताबिक फिलहाल वो अपने माता पिता के साथ लखनऊ में हैं - सकुशल और सानंद.
अपनी पोस्ट में कनिका कपूर ने ये भी बता दिया है कि वो ठीक हो जाने के बाद लोगों से क्या अपेक्षा कर रही हैं - 'मैं उम्मीद करती हूं कि पूरे वाकये को लोग सच्चाई और संवेदनशीलता के साथ समझने का प्रयास करें - इंसान पर नकारात्मकता थोप देने से सच्चाई नहीं बदलती.'
कनिका कपूर ने भले ही इंस्टाग्राम के लिए एक सामान्य पोस्ट लिखी हो, लेकिन एक एक बात काफी सोच-समझ कर लिखी गयी है - तकनीकी तौर पर बेशक वो कनिका कपूर की पोस्ट है लेकिन ऐसा लगता है जैसे किसी अच्छे वकील ने ड्राफ्ट किया हो.
ये सफाई है या सरकार पर सवाल?
कनिका कपूर को अपनी बात कहने का पूरा हक हासिल है - बाहर भी को कोर्ट परिसर में भी. जैसे ही कनिका कपूर की जांच रिपोर्ट निगेटिव आनी शुरू हुई थी, वो अपने वकीलों से कानूनी सलाह लेने लगी थीं. दरअसल, लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी की तरफ से कनिका कपूर के खिलाफ सरोजिनी नगर थाने में IPC की धारा 269, 270 और 188 के तहत केस दर्ज कराया गया है.
वैसे भी कनिका कपूर की इस पोस्ट का अदालती कार्यवाही से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन अगर कहीं विरोधाभासी बात सामने आयी तो बचाव पक्ष के लिए जवाब देने में मुश्किल हो सकती है. सफाई देकर कनिका कपूर भले ही अभी पीठ थपथपा लें, लेकिन उनकी कानूनी लड़ाई इससे खत्म नहीं होने वाली है.
1. पार्टी की परिभाषा क्या है: कनिका कपूर की इंस्टाग्राम पोस्ट के मुताबिक, 14 और 15 मार्च को वो एक दोस्त के लंच और डिनर में शामिल हुईं. कनिका कपूर का कहना है कि उन्होंने कोई पार्टी नहीं होस्ट की और तब वो पूरी तरह स्वस्थ थीं.
सवाल ये है कि लंच और डिनर बता कर कनिका कपूर समझाना क्या चाहती हैं - वो कोई पार्टी नहीं थी? फिर तो कनिका कपूर को ये भी बताना चाहिये कि पार्टी होती कैसी है? क्या पार्टी में लंच और डिनर नहीं होते या जहां लंच और डिनर किया जाता है उसे पार्टी नहीं माना जाता?
जो दलील आम आदमी के गले न उतर रही हो, वो दलील कोर्ट में कितना टिक पाती है देखना होगा.
कनिका कपूर का कहना है कि उन्होंने कोई पार्टी नहीं होस्ट की थी - लेकिन ये तो किसी ने कहा नहीं कि जिस पार्टी में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके सांसद बेटे दुष्यंत सिंह के अलावा तमाम नेता और नौकरशाह शामिल थे उसकी होस्ट कनिका कपूर थीं.
कनिका पर इल्जाम है कि वो कोरोना को लेकर एहतियात बरतने की जगह घूम घूम कर पार्टी अटेंड कर रही थीं - ये नहीं कि वो कोई पार्टी होस्ट कर रही थीं. अगर कनिका को एहतियात बरतनी थी तो पार्टी होस्ट करना या अटेंड करना दोनों बराबर की गलती मानी जाएगी.
2. गलती किसकी है: कनिका कपूर का कहना है कि 10 मार्च को वो यूके से वापस मुंबई आयी थीं और एयरपोर्ट पर अच्छे से स्क्रीनिंग हुई थी. अगर कनिका कपूर ये बताना चाहती हैं कि वो स्क्रीनिंग से भागी नहीं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है - एयरपोर्ट पर CISF सिक्योरिटी होती है और यूं ही कोई भाग भी नहीं सकता. वो भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर. फिर 11 मार्च को कनिका कपूर लखनऊ पहुंचती हैं और उसके बारे में बताया है कि डोमेस्टिक फ्लाइट्स के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था नहीं थी. ये भी मान लेते हैं.
अब जरा 14 अप्रैल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को याद करते हैं. 14 अप्रैल को भी प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में देश में लागू संपूर्ण लॉकडाउन की मियाद 3 मई तक बढ़ाने का ऐलान किया था. प्रधानमंत्री के उसी भाषण में 20 अप्रैल से दी जाने वाली छूट और 15 अप्रैल को जारी की गयी गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों का भी जिक्र था.
तमाम बातों के बीच तभी प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, 'जब देश में एक भी मरीज नहीं था तब ही कोरोना प्रभावित देशों से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग हमने शुरू कर दी थी. भारत ने समस्या बढ़ने का इंतजार नहीं किया. भारत दूसरे देशों की तुलना में बहुत संभली हुई स्थिति में है.'
अब अगर सरकार ने स्क्रीनिंग का इंतजाम किया तो उसके लिए कुछ दिशानिर्देश भी होंगे ही, लेकिन कनिका कपूर 18 मार्च को यूके की एडवायजरी की तरफ ध्यान दिला रही हैं. विकिपीडिया में कोरोना पर दी गयी टाइमलाइन में पहला केस केरल में 30 जनवरी को दर्ज बताया गया है. एक छात्र जो छुट्टियों में चीन के वुहान शहर से लौटा था.
कनिका कपूर ने जिस एडवायजरी का जिक्र किया है, ऐसा लगता है जैसे वो यूके में जारी एडवायजरी के बारे में बता रही हों. सवाल है कि यूके में जारी की गयी एडवायजरी का भारत में क्या मतलब है. अगर वो जारी हुई है तो वो ब्रिटिश नागरिकों के लिए हो सकती है - अगर कनिका कपूर भी उसी कैटेगरी में आती हैं तो सीधे सीधे उनकी बात मान ली जाएगी.
कनिका कपूर ने ये नहीं बताया है कि भारत में विदेशों से आने वाले नागरिकों के लिए तय प्रोटोकॉल से वो तब वाकिफ थीं या नहीं - इंस्टाग्राम पोस्ट से तो ये भी साफ नहीं है कि वो अब भी पूरी जानकारी हासिल कर पायी हैं.
लग तो ये रहा है कि कनिका कपूर ने खुद को बेकसूर साबित करते करते सरकार को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही हों - बहरहाल, अब तो दूध का दूध और पानी का पानी अदालत में ही होगा.
3. दूसरों के निगेटिव होने से कनिका निर्दोष कैसे: कनिका कपूर ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि जो कोई भी शख्स उनसे उस दौरान मिला वो कोरोना निगेटिव पाया गया है. ये तो खुशकिस्मत होने की बात है - लेकिन कोई आरोपी इस बात से अपराध मुक्त नहीं हो सकता कि उसकी वजह से किसी को नुकसान हुआ या नहीं? महत्वपूर्ण ये होता है कि अंजाम देने वाले की मंशा क्या थी?
कोई किसी की गोली मार कर हत्या कर देता है या गला दबा कर अपराध बराबर माना जाएगा. अगर कोई किसी की जान लेने की मंशा से किसी पर हमला करता है वो बच जाता है तो भी हमलावर अपराध मुक्त नहीं होता, उसकी सजा कम जरूर हो सकती है - और इसी तरह दुर्घटनाओं में ड्राइवर की लापरवाही से किसी की मौत होती है तो उसमें भी मंशा ही देखी जाती है - जो कुछ हुआ वो इरादतन था या गैर-इरादतन?
ये सही है कि आरोप को अक्सर संदेह का लाभ भी दिया जाता है क्योंकि ये न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत में आता है - अगर कनिका कपूर के संपर्क में आया कोई व्यक्ति पॉजिटिव नहीं आया तो इससे कनिका कपूर बेकसूर नहीं साबित होती हैं.
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