दिल्ली चुनाव (Delhi Assembly Election Result 2020) में आयी AAP की आंधी में भी बीजेपी के ज्यादातर उम्मीदवार तो बह गये, लेकिन कुछ ने कड़ी टक्कर भी दी है - विशेष रूप से पटपड़गंज सीट पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को 2020 का संघर्ष (Manish Sisodia and Amantullah Khan struggle) हमेशा याद रहेगा.
सिसोदिया की तरह ही काफी देर तक ओखला में अमानतुल्ला खान की नाव भी हिलोरें लेती रही - और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद वो राहत की सांस ले पाये. 2015 के बाद उपचुनाव के लिए चर्चित रही दो सीटों राजौरी गार्डन और बवाना के नतीजे भी अलग देखने को मिले हैं.
सबसे बड़ा खेल तो आम आदमी पार्टी से बगावत करने वाले दो नेताओं के साथ हो गया - कपिल मिश्रा और अलका लांबा (Kapil Mishra and Alka Lamba) दोनों ही ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, लेकिन चुनाव में दोनों ही सबसे बड़े लूजर साबित हुए हैं.
कपिल मिश्रा और अलका लांबा
ये कपिल मिश्रा ही थे जो अरविंद केजरीवाल की सरकार में मंत्री रहे, लेकिन हटाये जाने के बाद उन पर दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया था, हालांकि, बाद में वो अकेले पड़ गये क्योंकि किसी ने साथ नहीं दिया. माना जा रहा था कि तब आप की कोर टीम के सदस्य रहे कुमार विश्वास की शह पर कपिल मिश्रा ने बगावत की, लेकिन रिश्वत वाले आरोप पर वो भी मानने को राजी नहीं हुए. तभी से कपिल मिश्रा लगातार अरविंद केजरीवाल पर हमलावर रहे.
करावल नगर से विधायक रहे कपिल मिश्रा अपने इलाके से ही बीजेपी का टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें मॉडल टाउन से प्रत्याशी बनाने का फैसला किया. करावल नगर सीट तो बीजेपी ने जीत ली, लेकिन मॉडल टाउन में कपिल मिश्रा ने घुटने टेक दिये.
मॉडल टाउन विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी के अखिलेश पति त्रिपाठी को फिर से जीत दर्ज की जिन्हें इस बार 52665 वोट मिले, लेकिन कपिल मिश्रा के हिस्से में महज 41532 वोट पड़े और वो चुनाव हार गये.
आप से बगावत तो अलका लांबा ने भी की थी, लेकिन वो कांग्रेस में लौट गयी...
दिल्ली चुनाव (Delhi Assembly Election Result 2020) में आयी AAP की आंधी में भी बीजेपी के ज्यादातर उम्मीदवार तो बह गये, लेकिन कुछ ने कड़ी टक्कर भी दी है - विशेष रूप से पटपड़गंज सीट पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को 2020 का संघर्ष (Manish Sisodia and Amantullah Khan struggle) हमेशा याद रहेगा.
सिसोदिया की तरह ही काफी देर तक ओखला में अमानतुल्ला खान की नाव भी हिलोरें लेती रही - और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद वो राहत की सांस ले पाये. 2015 के बाद उपचुनाव के लिए चर्चित रही दो सीटों राजौरी गार्डन और बवाना के नतीजे भी अलग देखने को मिले हैं.
सबसे बड़ा खेल तो आम आदमी पार्टी से बगावत करने वाले दो नेताओं के साथ हो गया - कपिल मिश्रा और अलका लांबा (Kapil Mishra and Alka Lamba) दोनों ही ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, लेकिन चुनाव में दोनों ही सबसे बड़े लूजर साबित हुए हैं.
कपिल मिश्रा और अलका लांबा
ये कपिल मिश्रा ही थे जो अरविंद केजरीवाल की सरकार में मंत्री रहे, लेकिन हटाये जाने के बाद उन पर दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया था, हालांकि, बाद में वो अकेले पड़ गये क्योंकि किसी ने साथ नहीं दिया. माना जा रहा था कि तब आप की कोर टीम के सदस्य रहे कुमार विश्वास की शह पर कपिल मिश्रा ने बगावत की, लेकिन रिश्वत वाले आरोप पर वो भी मानने को राजी नहीं हुए. तभी से कपिल मिश्रा लगातार अरविंद केजरीवाल पर हमलावर रहे.
करावल नगर से विधायक रहे कपिल मिश्रा अपने इलाके से ही बीजेपी का टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें मॉडल टाउन से प्रत्याशी बनाने का फैसला किया. करावल नगर सीट तो बीजेपी ने जीत ली, लेकिन मॉडल टाउन में कपिल मिश्रा ने घुटने टेक दिये.
मॉडल टाउन विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी के अखिलेश पति त्रिपाठी को फिर से जीत दर्ज की जिन्हें इस बार 52665 वोट मिले, लेकिन कपिल मिश्रा के हिस्से में महज 41532 वोट पड़े और वो चुनाव हार गये.
आप से बगावत तो अलका लांबा ने भी की थी, लेकिन वो कांग्रेस में लौट गयी थीं. अलका लांबा ने राजीव गांधी को भारत रत्न दिये जाने पर एक प्रस्ताव को लेकर अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल दिया था. पहले तो वो आम चुनाव में चांदनी चौक से लोक सभा के टिकट के लिए प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बन पायी. बाद में विधानसभा चुनाव में टिकट जरूर मिला.
कांग्रेस ने अलका लांबा की सीट तो नहीं बदली, लेकिन चांदनी चौक में पार्टी उन्हें जीत नहीं दिला सकी. चांदनी चौक सीट इस बार भी आप के ही खाते में गयी, लेकिन दूसरा स्थान अलका लांबा को नहीं बल्कि बीजेपी उम्मीदवार सुमन कुमार गुप्ता को मिला. अलका लांबा को महज 3881 वोटों से ही संतोष करना पड़ा. वैसे वोटिंग वाले दिन अलका लांबा आप के एक कार्यकर्ता को थप्पड़ रसीद करने को लेकर काफी देर तक सुर्खियों में बनी रहीं.
बीजेपी उम्मीदवारों का संघर्ष याद रहेगा
बीजेपी उम्मीदवारों ने कम से कम दो सीटों पर बहुत देर तक AAP वालों की सांसें रोक दी थी - पटपड़गंज और ओखला. ये दोनों ही सीटें आप के लिए महत्वपूर्ण हैं. पटपड़गंज में आप सरकार के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की उम्मीदवारी के कारण तो ओखला में शाहीन बाग का इलाका होने के चलते.
काफी देर तक आगे-पीछे होते रहे मनीष सिसोदिया 13वें दौर की मतगणना के बाद बढ़त बनायी और आखिर तक कायम रहे - जीत भी सुनिश्चित कर ली. मनीष सिसोदिया कितने अपसेट रहे होंगे समझा जा सकता है - अगर कोई और वजह नहीं रही तो जीत के बाद केजरीवाल के पहले भाषण के वक्त सिसोदिया की गैरमौजूदगी ने सभी का ध्यान खींचा.
दिल्ली चुनाव में मुद्दा बने शाहीन बाग का इलाका ओखला में ही आता है - और जामिया हिंसा में सबसे पहले आप विधायक अमानतुल्ला खान का ही नाम उछला था. जब वोटों की गिनती होने लगी तो सिसोदिया की तरह अमानुल्ला खान भी काफी देर तक पीछे रहे.
बीजेपी के लिए वोट मांगते वक्त अमित शाह ने एक रैली में तो EVM का बटन ऐसे दबाने की अपील की थी कि करंट शाहीन बाग तक जाये - और कहीं न सही, लगता है ओखला में अमित शाह की बातों का काफी असर रहा क्योंकि बीजेपी उम्मीदवार ब्रह्म सिंह ने आप विधायक अमानतुल्ला खान को बहुत देर तक डराये रखा. हालांकि, बाद में अमानतुल्ला खान अपनी सीट निकालने में कामयाब रहे.
2015 में बीजेपी को महज तीन सीटें मिली थीं लेकिन बाद में पार्टी के राजौरी गार्डन उपचुनाव जीतने के बाद सीटों की संख्या 4 पहुंच हो गयी थी. बीजेपी ने चार में से दो सीटें - रोहिणी में विजेंद्र गुप्ता और विश्वास नगर में ओम प्रकाश शर्मा ने तो बचा ली है लेकिन मुस्तफाबाद और उपचुनाव में हाथ लगी राजौरी गार्डन सीट भी इस बार फिसल गयी है. रोहिणी और विश्वास नगर के अलावा बीजेपी की झोली में आयी 6 सीटें हैं - लक्ष्मीनगर, रोहतास नगर, गांधी नगर, घोंडा, करावल नगर और बदरपुर.
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