यूपी के क्षेत्रीय दलों के शेरों को राष्ट्रीय दल अक्सर सर्कस का शेर साबित कर जांच एजेंसियों का कोड़ा लेकर सामने खड़े हो जाते हैं. कभी कांग्रेस की केन्द्रीय सत्ता से डरने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी आज भाजपा की सरकारों से भयभीत रहती है. कांग्रेस की तत्कालीन केन्द्र सरकार ने जब मायावती पर शिकंजा कसा तो बतौर अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा ने उन्हें बचा लिया. और फिर उन्हें बसपा ने खूब नवाजा, वो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने और राज्य सभा भेजे गए. पहले मिश्रा जी बाहर से बहन जी के वकील थे फिर पार्टी के अंदर आने के बाद तो बसपा को कानूनी सलाहकार भी मिल गया. कैसे जेल जाने से बचा जा सकता है, किस तरह फूंक-फूंक के क़दम रखना है! ताज कॉरीडोर का मामला हो या आय से अधिक सम्पत्ति का आरोप हो, कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की हुकूमत हो, सतीश मिश्रा के होते बहन जी की जांच भले ही जितनी भी होती रही हों पर उनपर आंच नहीं आ सकी. इतिहास गवाह है गैर लोकतांत्रिक हुकुमतों में कुर्सी जाते ही जेल या मौत के रास्ते खुल जाते थे.
लोकतंत्र में ऐसा नहीं है, यहां जनता और कानून की ताकत किसी को तानाशाह नहीं बनने देती. राजनीतिक द्वेष या प्रतिद्वंद्विता से सत्ताधारी विपक्ष को दबाए तो कानून न्याय दिया देता है. इसलिए अपने बुरे वक्त के लिए देश के हर बड़े राजनीतिक दलों में बड़े-बड़े अधिवक्ताओं को भरमार रही है. राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा में तो ख़ूब दिग्गज वकीलों की तादाद रही है. यूपी के क्षेत्रीय दल बसपा में कोई नामचीन वकील नहीं था.
पार्टी सुप्रीमो मायावती मुश्किल में थी और उनकी कानूनी लड़ाई अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्र बड़ी कुशलता से लड़ रहे थे. ऐसे में...
यूपी के क्षेत्रीय दलों के शेरों को राष्ट्रीय दल अक्सर सर्कस का शेर साबित कर जांच एजेंसियों का कोड़ा लेकर सामने खड़े हो जाते हैं. कभी कांग्रेस की केन्द्रीय सत्ता से डरने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी आज भाजपा की सरकारों से भयभीत रहती है. कांग्रेस की तत्कालीन केन्द्र सरकार ने जब मायावती पर शिकंजा कसा तो बतौर अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा ने उन्हें बचा लिया. और फिर उन्हें बसपा ने खूब नवाजा, वो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने और राज्य सभा भेजे गए. पहले मिश्रा जी बाहर से बहन जी के वकील थे फिर पार्टी के अंदर आने के बाद तो बसपा को कानूनी सलाहकार भी मिल गया. कैसे जेल जाने से बचा जा सकता है, किस तरह फूंक-फूंक के क़दम रखना है! ताज कॉरीडोर का मामला हो या आय से अधिक सम्पत्ति का आरोप हो, कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की हुकूमत हो, सतीश मिश्रा के होते बहन जी की जांच भले ही जितनी भी होती रही हों पर उनपर आंच नहीं आ सकी. इतिहास गवाह है गैर लोकतांत्रिक हुकुमतों में कुर्सी जाते ही जेल या मौत के रास्ते खुल जाते थे.
लोकतंत्र में ऐसा नहीं है, यहां जनता और कानून की ताकत किसी को तानाशाह नहीं बनने देती. राजनीतिक द्वेष या प्रतिद्वंद्विता से सत्ताधारी विपक्ष को दबाए तो कानून न्याय दिया देता है. इसलिए अपने बुरे वक्त के लिए देश के हर बड़े राजनीतिक दलों में बड़े-बड़े अधिवक्ताओं को भरमार रही है. राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा में तो ख़ूब दिग्गज वकीलों की तादाद रही है. यूपी के क्षेत्रीय दल बसपा में कोई नामचीन वकील नहीं था.
पार्टी सुप्रीमो मायावती मुश्किल में थी और उनकी कानूनी लड़ाई अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्र बड़ी कुशलता से लड़ रहे थे. ऐसे में बहन जी ने मिश्रा जी को न सिर्फ पार्टी में शामिल करवाया बल्कि वो मायावती के बाद दूसरी पोजीशन पर खड़े दिखने लगे. समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह के दौर में दिग्गज अधिवक्ता वीरेंद्र भाटिया सपा राज्यसभा भेजे गए थे. मुलायम सरकार में वो महाधिवक्ता भी रहे. उनके देहांत के बाद इनके अधिवक्ता पुत्र गौरव भाटिया को सपा ने ओहदों से नवाजा.
अखिलेश यादव के जमाने में गौरव सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए. केंद्र और यूपी में भाजपा की सरकारे हैं. यादव परिवार की फाइलें तमाम सरकारी एजेंसियों के पास हैं. सपा के दिग्गज नेता आज़म ख़ान और उनका परिवार जेल का दंश भुगत चुका है. आज़म उम्र दराज़ हैं और गंभीर बीमार रहे, फिर भी उन्हें जमानत पर जेल से बाहर आने के लिए दो साल से अधिक समय लग गया.
कभी कांग्रेस के नौ रत्नों में शामिल दिग्गज अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आज़म का केस अपने हाथ लिया और जमानत दिलवाकर वो काम कर दिया जो दो वर्षों तक कोई नहीं कर सका. लोग कह रहे हैं कि सपा ने कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने का फैसला करके एहसान का बदला एहसान से दिया. लेकिन सच ये भी है कि भाजपा सरकारों की एजेंसियों की जाचों की तलवारों का खौफ भरा एहसास समाजवादी यादव कुनबे को है.
और पार्टी को कपिल सिब्बल जैसे विख्यात वकील, कानूनी जानकार और भाजपा की रग-रग से वाक़िफ राष्ट्रीय स्तर के राजनितिक शख्सियत की ज़रुरत भी थी. जबकि सपा और बसपा के सामने एक जैसे ख़तरे रहे हैं लेकिन बसपा के पास सतीश चंद्र मिश्रा थे लेकिन सपा के पास ऐसा कोई नहीं था. अब सपा के पास भी जेल जाने से बचाने और जमानतें कराने के लिए कपिल सिब्बल आ चुके हैं.
ये भी पढ़ें -
सपा के तीन राज्यसभा प्रत्याशी, तीनों की अपनी अलग कहानी है!
'जयंत राज्यसभा जाएंगे' का मतलब आजम खान के आगे फिर 'टीपू' साबित हुए अखिलेश
कपिल सिब्बल ने अभी G-23 को छोड़ा है - कांग्रेस तो पहले ही छूट चुकी थी!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.