कपिल सिब्बल पूरी शिद्दत से चिदंबरम केस की पैरवी में लगे रहे हैं - लेकिन पी. चिदंबरम को न तो वो CBI रिमांड से बचा पाये और न ही तिहाड़ जेल भेजे जाने से.
कपिल सिब्बल ने एक साथ कई सारे सवाल किये हैं - जाहिर है सवालों के कठघरे में केंद्र की मोदी सरकार 2.0 है जिसके 100 दिन 7 सितंबर को पूरे हो रहे हैं - और इसी अवधि में उसने देश का इतिहास और भूगोल बदलने के साथ चुनावी वादे भी पूरे करने में जुटी हुई है. अब तक जो कुछ भी हुआ है उनमें ज्यादातर वहीं चीजें अमल में आयी हैं जो 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के मैनिफेस्टो का हिस्सा रही हैं.
कपिल सिब्बल सवाल करते वक्त ये क्यों भूल जा रहे हैं कि उनके कांग्रेसी साथी ही कांग्रेस नेतृत्व को लगातार आगाह कर रहे हैं - अगर जयराम रमेश और शशि थरूर को वो किसी और क्लास का मानते हैं तो उनका सपोर्ट करने वाले अभिषेक मनु सिंघवी तो चिदंबरम केस में साथी पैरोकार भी हैं. आखिर कपिल सिब्बल को क्यों लगता है कि ये सवाल सोशल मीडिया और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और उसके नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से ही पूछा जाना चाहिये - कांग्रेस के पार्टी फोरम पर क्यों नहीं पूछा जाना चाहिये?
कपिल सिब्बल का सवाल नहीं, निशाना गलत है
मीडिया के जरिये राजनीतिक बयानों से कोई बात नहीं बन पाने और अदालत में दलीलें नामंजूर हो जाने के बाद कपिल सिब्बल एक बार फिर ट्विटर के जरिये सवाल उठा रहे हैं - कांग्रेस नेता और सीनियर वकील कपिल सिब्बल के निशाने पर तो सीधे सीधे केंद्र की मोदी सरकार है, लेकिन बीच बीच में वो जजों और अदालतों को भी...
कपिल सिब्बल पूरी शिद्दत से चिदंबरम केस की पैरवी में लगे रहे हैं - लेकिन पी. चिदंबरम को न तो वो CBI रिमांड से बचा पाये और न ही तिहाड़ जेल भेजे जाने से.
कपिल सिब्बल ने एक साथ कई सारे सवाल किये हैं - जाहिर है सवालों के कठघरे में केंद्र की मोदी सरकार 2.0 है जिसके 100 दिन 7 सितंबर को पूरे हो रहे हैं - और इसी अवधि में उसने देश का इतिहास और भूगोल बदलने के साथ चुनावी वादे भी पूरे करने में जुटी हुई है. अब तक जो कुछ भी हुआ है उनमें ज्यादातर वहीं चीजें अमल में आयी हैं जो 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के मैनिफेस्टो का हिस्सा रही हैं.
कपिल सिब्बल सवाल करते वक्त ये क्यों भूल जा रहे हैं कि उनके कांग्रेसी साथी ही कांग्रेस नेतृत्व को लगातार आगाह कर रहे हैं - अगर जयराम रमेश और शशि थरूर को वो किसी और क्लास का मानते हैं तो उनका सपोर्ट करने वाले अभिषेक मनु सिंघवी तो चिदंबरम केस में साथी पैरोकार भी हैं. आखिर कपिल सिब्बल को क्यों लगता है कि ये सवाल सोशल मीडिया और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और उसके नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से ही पूछा जाना चाहिये - कांग्रेस के पार्टी फोरम पर क्यों नहीं पूछा जाना चाहिये?
कपिल सिब्बल का सवाल नहीं, निशाना गलत है
मीडिया के जरिये राजनीतिक बयानों से कोई बात नहीं बन पाने और अदालत में दलीलें नामंजूर हो जाने के बाद कपिल सिब्बल एक बार फिर ट्विटर के जरिये सवाल उठा रहे हैं - कांग्रेस नेता और सीनियर वकील कपिल सिब्बल के निशाने पर तो सीधे सीधे केंद्र की मोदी सरकार है, लेकिन बीच बीच में वो जजों और अदालतों को भी सवालों के कठघरे में घसीटने की कोशिश करते रहते हैं.
ट्विटर पर कपिल सिब्बल का सवाल है - 'हमारी मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा कौन करेगा? सरकार? CBI? ED? या IT अफसर? या फिर अदालतें? अगर अदालतें मान लेंगी कि ईडी और सीबीआई की बातें ही अंतिम सच हैं, तो एक दिन भगवती से वेंकटचेलैया युग में स्थापित स्वतंत्रता के स्तंभ ढह जाएंगे. वो दिन दूर नहीं है.'
कपिल सिब्बल न्यायपालिका से तभी से नाराज हैं जबसे INX मीडिया केस में पी. चिदंबरम की अग्रिम जमानत नामंजूर हुई है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल उठाये जब चिदंबरम को CBI रिमांड से नहीं बचा पाये. तभी सिब्बल ने ये सवाल भी उठाया कि रिटायर होने से ठीक पहले ही हाई कोर्ट के जज ने चिदंबरम की अग्रिम जमानत क्यों मंजूर की? सिब्बल को थोड़ी राहत तब मिली होगी जब जज साहब को फौरन नया सरकारी काम भी मिल गया.
ये समझना मुश्किल हो रहा है कि कपिल सिब्बल CBI की कार्यशैली पर सवाल क्यों उठा रहे हैं? वो क्यों भूल रहे हैं कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता बताया था तब देश में कांग्रेस पार्टी का ही शासन हुआ करता था - और सिर्फ मायावती और मुलायम सिंह यादव ही नहीं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुनावी रैलियों में कहा करते कि बीजेपी के खिलाफ चुनाव कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि सीबीआई लड़ रही है. ट्विटर के जरिये जिस पब्लिक को कांग्रेस नेता ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मौजूदा सत्ताधारी पार्टी राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है और कांग्रेस नेताओं को एक एक कर निशाना बना रही है - वो हर किसी के लिए समझाना मुश्किल हो रहा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस और गांधी परिवार को बचाने के लिए भी कांग्रेस नेतृत्व लोकतंत्र बचाने का नाम दे चुका है.
कपिल सिब्बल न्यायपालिका के भगवती युग और चेलैया युग की दुहाई दे रहे हैं, तो इसमें भी चीफ जस्टिस को ही टारगेट करने की मंशा नजर आ रही है. सत्ता पक्ष पर राजनीतिक हमले तो ठीक है, लेकिन कांग्रेस नेता को ये तो याद रखना ही होगा कि उसी सुप्रीम कोर्ट ने CBI रिमांड मंजूर करते वक्त ये हिदायत भी दी कि आरोपी की निजी गरिमा कहीं से भी प्रभावित न हो इस बात का भी पूरा ख्याल रखा जाये. उसी सबसे बड़ी अदालत ने ये भी माना कि आर्थिक अपराध की तह तक जाना जरूरी है, लेकिन आरोपी से उसका वकील और घर के लोग हर रोज 30 मिनट मिल सकते हैं.
आखिर कांग्रेस नेता ये क्यों भूल रहे हैं कि ये सुप्रीम कोर्ट ही रहा जिसने आधी रात को अदालत लगायी और जो फैसला सुनाया उसका सीधा असर सत्ताधारी पार्टी पर ही पड़ा. राजनीतिक तौर पर कर्नाटक की सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी को सवा साल तक तमाम तिकड़मी संघर्ष भी करने पड़े.
सवाल तो विश्वसनीयता के संकट का ही है!
कपिल सिब्बल कांग्रेस के सबसे ज्यादा अनुभवी और कानूनी तौर पर माहिर नेताओं में से एक हैं - लेकिन जो कुछ भी मौजूदा सरकार कर रही है उसमें क्या उनकी पार्टी की कोई भी भूमिका नहीं है?
कपिल सिब्बल कैसे भूल जा रहे हैं कि राज्य सभा में अब भी सत्ताधारी बीजेपी को बहुमत हासिल नहीं हो सका है? फिर भी तीन तलाक से लेकर धारा 370 तक राज्य सभा में वैसे ही पास हुए जैसे लोक सभा में, जहां बीजेपी को पूर्ण बहुमत प्राप्त है.
आखिर ऐसा क्यों है कि कांग्रेस को न तो विपक्ष के राजनीतिक दलों का ठीक से सपोर्ट मिल पा रहा है, न जनता की सहानुभूति. चुनावी हार के बाद भी कांग्रेस जनता को अब तक ये समझाने में विफल रही है कि कांग्रेस नेता राजनीतिक वजहों से टारगेट किये जा रहे हैं. लोग तो यही समझ रहे हैं कि मोदी सरकार वही काम कर रही है जिन वादों पर उसे वोट दिया गया है. कांग्रेस अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा पा रही है और लोग मान कर चल रहे हैं कि मोदी सरकार भ्रष्ट लोगों को जेल भेज रही है.
सबसे पहले तो कांग्रेस नेतृत्व और कपिल सिब्बल जैसे पार्टी नेताओं को ये समझना होगा - और जब वे समझ जाएंगे तो लोगों को भी अपनी बात समझाना उनके लिए थोड़ा आसान हो पाएगा.
अब धारा 370 को ही लें, तो कांग्रेस ने संसद से लेकर सड़क तक उग्र विरोध जताया. कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ देने के बावजूद राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर जाने की नाकाम कोशिश की - लेकिन कांग्रेस भीतर ही इस मसले पर आम राय काम नहीं हो पायी. जरूरी नहीं है कि हर मुद्दे पर या किसी बड़े संवेदनशील मुद्दे पर ही आम राय बन पाये, लेकिन बहुमत को तो एक राय होनी ही चाहिये. धारा 370 पर तो लगा जैसे भीतरी बहुमत ही कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ हो चला हो. धारा 370 का विरोध करने वाले भी तो जनभावनाओं की ही दुहाई दे रहे थे.
कांग्रेस नेतृत्व को ये बात क्यों नहीं समझ में आ रही कि जनभावनाओं का पार्टी खिलाफ चले जाना ही सारी समस्याओं की जड़ है. जब तक कांग्रेस को जनभावनाओं का साथ नहीं मिलता तब तक कुछ भी नहीं होने वाला.
अब सवाल है कि जनभावनाओं का सपोर्ट कांग्रेस को हासिल हो तो कैसे?
सवाल का जवाब तो कांग्रेस के भीतर ही मिल रहा है, लेकिन कोई सुनने को तैयार हो तब तो. आखिर शशि थरूर क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं. शशि थरूर यही समझा रहे हैं कि आंख मूंद कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को खलनायक के तौर पर पेश करना अपनी विश्वसनीयता गंवाने जैसा हो सकता है. शशि थरूर तो यहां तक कह रहे हैं कि छह महीने से वो कांग्रेस नेतृत्व को ये बात समझाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कोई सुनने समझने को राजी ही नहीं है.
आखिर जयराम रमेश और अभिषेक मनु सिंघवी भी तो कांग्रेस नेतृत्व को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार पर लगातार सवाल उठाकर विश्वसनीयता हासिल करना संभव नहीं है, बल्कि गंवानी पड़ रही है. हो भी यही रहा है.
पी. चिदंबरम सीबीआई रिमांड के बाद अब तिहाड़ जेले भेजे जा चुके हैं और डीके शिवकुमार अभी ED की गिरफ्त में हैं. चिदंबरम को भी ईडी के गिरफ्त में जाना पड़ सकता है. वैसे पहले भी वो तिहाड़ जाने की जगह ईडी की कस्टडी में ही जाने की पैरवी कर रहे थे. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी और सलाहकार अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल से अभी ईडी की पूछताछ का दौर चल ही रहा है.
कांग्रेस नेता भले ही लोगों को ये समझाने की कोशिश करते फिरें कि ये सब राजनीति से प्रेरित है, लेकिन हकीकत तो ये है कि कांग्रेस विश्वसनीयत के भारी संकट के दौर से गुजर रही है. विश्वसनीयता का ये संकट भी ऐसे वक्त जब तीन महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं.
कांग्रेस ये भूल जा रही है कि एक तरफ उसके नेता जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं और दूसरी तरफ वो आपस में ही भिड़े हुए हैं. हरियाणा का झगड़ा जैसे तैसे हल्का जरूर किया है लेकिन मध्य प्रदेश में घमासान जारी है. जारी क्या है बढ़ता ही जा रहा है.
देश की आर्थिक स्थिति को लेकर घिरी होने के बावजूद बीजेपी सरकार अपनी बात लोगों तक आसानी से पहुंचा ले रही है कि वो जो कुछ भी कर रही है वो देश हित में और लोगों का जीवनस्तर ऊपर उठाने के लिए कर रही है.
कांग्रेस जिन गैर जरूरी मुद्दों को धैर्य के साथ नजरअंदाज कर मोदी सरकार को आर्थिक मुद्दों पर घेर सकती है, उस पर बच कर निकलने लिए तो जैसे ग्रीन-कॉरिडोर भी मुहैया करा रही है.
हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने को हैं, बीजेपी की तैयारियां आधे से भी ज्यादा हो चुकी हैं - और कांग्रेस अभी ठीक से अपने नेताओं के झगड़े ही नहीं सुलझा पायी है. अगर कांग्रेस नेतृत्व अंदरूरी झगड़ों पर काबू पा लिया होता तो चुनावी तैयारी में जुटा होता. अरे, जीत कर सत्ता हासिल करना संभव भले न हो लेकिन ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर सक्रिय विपक्ष की भूमिका में तो बने रहा जा सकता है. अगर राज्यों में नंबर अच्छे होंगे तो नेताओं को राज्य सभा भेजना भी संभव होगा जहां सरकार पर पहले की तरह आगे भी दबाव बनाये रखना संभव हो सकता है.
अगर कांग्रेस सोच समझ कर सबसे जरूरी मसलों पर पहले रणनीति तैयार करे और उस हिसाब से काम करते हुए आगे बढ़े तो घूम घूम कर गुहार लगाने की कम जरूरत पड़ेगी. ऐसा भी तो नहीं कि कांग्रेस सत्ता से पहली बार बाहर हुई है. आखिर सत्ता से बाहर होने के बाद लड़ाई लड़कर वापस तो आई ही है.
जो सवाल कपिल सिब्बल अभी उठा रहे हैं - क्या इंदिरा गांधी के जमाने में ऐसे सवाल नहीं पैदा हुए होंगे? तब क्या इंदिरा गांधी ने सवालों के जवाब बाहर जाकर खोजे थे?
कबीर दास भी तो कहे ही हैं, 'कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माहि, ऐसे घटि घटि राम हैं दुनिया देखे नाहि.' ये शाश्वत सत्य है जो राजनतीति पर भी ठीक वैसे ही लागू होता है जैसे बाकी क्षेत्रों में. कपिल सिब्बल वैसे भी रोजाना के अदालती अपडेट के चलते कांग्रेस नेतृत्व से परोक्ष तौर पर ही लगातार संपर्क में बने हुए होंगे. बेहतर होता सरकार से सवाल पूछने से पहले वो कांग्रेस लीडरशिप को ऐसी राय देते. एक बार ऐसा हो जाये तो कपिल सिब्बल को सवालों के जवाब भी अंदर ही मिल जाएंगे और कांग्रेस भी एक साथ मजबूती से खड़े होकर सरकार से भी सवाल कर सकेगी?
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