पुलवामा आतंकी हमले के बाद न सिर्फ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच जो तनाव की स्थिति बनी है वो न सिर्फ दोनों देशों के राजनायिक संबंधों पर असर डाल रही है बल्कि देश के नागरिकों पर भी गहरा असर डाल रही है. हाल ही में अब हिंदुस्तान में कराची बेकरी को निशाने पर लिया गया है. बेंगलुरु में कराची बेकरी पर हमला हुआ और बेकरी के नाम से कराची शब्द को ही हटाना पड़ गया. बात कुछ यूं हुई कि बेंगलुरु में कराची बेकरी की एक दुकान पर 15-20 लोगों ने हमला बोल दिया और मैनेजर से पूछा कि वो 'हिंदू हैं या मुस्लिम', साथ ही ये भी पूछा गया कि उनका पाकिस्तान के साथ क्या कनेक्शन है. कराची बेकरी के उस मैनेजर ने उन लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की कि ये बेकरी पूरी तरह से हिंदुस्तानी है, लेकिन वो लोग मानने को तैयार ही नहीं थे. आलम ये था कि लोग उस कराची बेकरी के मैनेजर से उसके यहां काम करने वाले सभी मुसलमान कर्मचारियों की जानकारी मांग रहे थे.
कराची बेकरी की शुरुआत 1953 में सिंध प्रांत से भारत आए खानचंद रमनानी ने की थी. खानचंद 1947 में बंटवारे के बाद ही हिंदुस्तान के हैदराबाद आ गए थे और वहीं उन्होंने कराची बेकरी की शुरुआत की थी. ये हैदराबाद और तेलंगाना में खास तौर पर मौजूद है और साथ ही इसके पूरे देश में कई आउटलेट्स हैं.
हिंदुस्तानी बेकरी में सिर्फ नाम के कारण हंगामा कितना सही?
कराची बेकरी पर हुए इस हमले के बाद पूरे देश में इसको लेकर प्रतिक्रिया शुरू हो गई है. कुछ लोगों का कहना है कि ये गलत था, और कुछ को लगता है कि हिंदुस्तान में पाकिस्तान के नाम का कुछ भी नहीं रहना चाहिए. लेकिन क्या वाकई ये हालात भारत में सही हैं?
इसपर चर्चा को...
पुलवामा आतंकी हमले के बाद न सिर्फ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच जो तनाव की स्थिति बनी है वो न सिर्फ दोनों देशों के राजनायिक संबंधों पर असर डाल रही है बल्कि देश के नागरिकों पर भी गहरा असर डाल रही है. हाल ही में अब हिंदुस्तान में कराची बेकरी को निशाने पर लिया गया है. बेंगलुरु में कराची बेकरी पर हमला हुआ और बेकरी के नाम से कराची शब्द को ही हटाना पड़ गया. बात कुछ यूं हुई कि बेंगलुरु में कराची बेकरी की एक दुकान पर 15-20 लोगों ने हमला बोल दिया और मैनेजर से पूछा कि वो 'हिंदू हैं या मुस्लिम', साथ ही ये भी पूछा गया कि उनका पाकिस्तान के साथ क्या कनेक्शन है. कराची बेकरी के उस मैनेजर ने उन लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की कि ये बेकरी पूरी तरह से हिंदुस्तानी है, लेकिन वो लोग मानने को तैयार ही नहीं थे. आलम ये था कि लोग उस कराची बेकरी के मैनेजर से उसके यहां काम करने वाले सभी मुसलमान कर्मचारियों की जानकारी मांग रहे थे.
कराची बेकरी की शुरुआत 1953 में सिंध प्रांत से भारत आए खानचंद रमनानी ने की थी. खानचंद 1947 में बंटवारे के बाद ही हिंदुस्तान के हैदराबाद आ गए थे और वहीं उन्होंने कराची बेकरी की शुरुआत की थी. ये हैदराबाद और तेलंगाना में खास तौर पर मौजूद है और साथ ही इसके पूरे देश में कई आउटलेट्स हैं.
हिंदुस्तानी बेकरी में सिर्फ नाम के कारण हंगामा कितना सही?
कराची बेकरी पर हुए इस हमले के बाद पूरे देश में इसको लेकर प्रतिक्रिया शुरू हो गई है. कुछ लोगों का कहना है कि ये गलत था, और कुछ को लगता है कि हिंदुस्तान में पाकिस्तान के नाम का कुछ भी नहीं रहना चाहिए. लेकिन क्या वाकई ये हालात भारत में सही हैं?
इसपर चर्चा को और बढ़ाने के लिए पत्रकार और एक्टिविस्ट कंचन गुप्ता ने ट्विटर पर एक सवाल पूछा था. सवाल ये था कि, 'पाकिस्तान में कितनी बेकरी, होटल और हलवाई की दुकानें हैं जो हिंदुस्तानी जगहों के नाम पर रखी गई हैं.'
ये सवाल कराची बेकरी कांड के बाद ही लिखा गया था. लेकिन इसका जवाब पाकिस्तानियों ने दे दिया है.
भले ही हिंदुस्तान में एक कराची बेकरी हो, लेकिन पाकिस्तान में न जाने कितनी ही दुकानें हिंदुस्तान की जगहों के नाम पर अभी भी चल रही हैं.
यहां तक कि वहां की बॉम्बे बेकरी तो बहुत ज्यादा मश्हूर है. जिस तरह से हिंदुस्तान के हैदराबाद में कराची बेकरी बहुत मश्हूर है वैसे ही पाकिस्तान के हैदराबाद में बॉम्बे बेकरी काफी फेमस है. बॉम्बे बेकरी को हैदराबाद (पाकिस्तान) की सबसे मश्हूर दुकानों में से एक माना जाता है. वहां आज तक कभी किसी दुकान को बंद करवाने या तोड़ने फोड़ने की घटना नहीं हुई कि उसका नाम हिंदुस्तानी है.
बॉम्बे बेकरी, बॉम्बे बिरियानी मसाला, दिल्ली दरवाजा आदि दुकाने पाकिस्तानियों की पसंदीदा दुकानों में शामिल हैं. इनमें से कई दुकानों की ब्रांच तो वाकई आजादी के समय से ही कायम हैं, लेकिन पूरी तरह से हिंदुस्तानी होने के बाद भी कराची बेकरी को लेकर यहां के लोग शक कर रहे हैं. यही नहीं पाकिस्तान में तो गली और मोहल्लों के नाम भी हिंदुस्तानी लगते हैं. जैसे फैसलाबाद में ही कई ऐसी जगहें हैं जो हिंदुस्तानी लगती हैं. गोबिंदपुरा, आनंदपुरा, मंदिर वाली गली, गुरुद्वारा गली, अमृतसर स्वीट्स, लुधियाना स्वीट्स, जालंधर स्वीट्स, बॉम्बे चौपाटी और भी बहुत कुछ ऐसा है जिससे हिंदुस्तानी नाम को जोड़ा जा सकता है.
हां, ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में कभी कोई हिंदुस्तानी नाम नहीं बदला गया. जैसे कराची का गांधी पार्क बदलकर कराची जू हो गया. लेकिन फिर भी पाकिस्तान में कई ऐसी जगह हैं जहां पर अभी भी हिंदुस्तानी नाम बहुत फेमस हैं. अगर अकेले कराची और इस्लामाबाद में ही बात की जाए तो बॉम्बे, अमृतसर, दिल्ली नाम की कई दुकानें मिल जाएंगी. पर पाकिस्तानी इन दुकानों को बिलकुल अपना मानते हैं और हमारे यहां इस तरह की बात को शायद देश द्रोह से जोड़कर देख लिया जाएगा. क्या वाकई नफरत में हम इतने अंधे हो गए हैं कि हमे ये समझ नहीं आता कि ये दुकान हमारे देश के लोगों की ही है.
कराची बेकरी पर हमला करना और नाम बदलने की कोशिश करना ये सिर्फ भारत में माहौल को खराब करने का काम करेगा. ये समय दुश्मनों के सामने एकजुट होकर खड़े होने का है, लेकिन हिंदुस्तान में आपस में ही धर्म और नाम को लेकर अगर लड़ते रहेंगे तो यकीनन ये हमारे दुश्मनों के लिए आसान होगा कि वो हमारे देश पर उंगली उठा सकें. कराची बेकरी कांड देखकर समझा जा सकता है कि भारत में दुश्मनों के प्रति हमारी नफरत हमारे अपने लोगों पर ही निकल रही है.
जब तक इस नफरत को कम नहीं किया जाएगा हमारा देश एकजुट कैसे हो सकता है?
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